मायावती सरकार में कृषि, आबकारी और लोकनिर्माण जैसे महत्वपूर्ण विभागों के मुखिया रहे नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने अपने रुतबे के सहारे अपने करीबियों को तरह-तरह के अनैतिक लाभ पहुंचाए. तहलका के पास मौजूद लोकायुक्त की जांच रिपोर्ट उनके काले कारनामों का कच्चा-चिट्ठा उजागर करती है. जय प्रकाश त्रिपाठी की पडताल
बहुजन समाज पार्टी के कद्दावर नेता व पूर्व मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी बसपा सुप्रीमो मायावती के सबसे करीबियों में से हैं. जब तक प्रदेश में बसपा की सरकार थी, सिद्दीकी सरकार की आंख, नाक और कान थे. सरकार में सिद्दीकी का जितना बड़ा कद था, नियम-कानूनों के साथ खेलने की उनकी आदत भी उतनी ही बड़ी थी. उनके नियम विरुद्ध कारनामों की फेहरिस्त पत्नी हुस्ना सिद्दीकी के नाम फर्जी शिक्षण सोसाइटी बनाने से लेकर शराब कारोबार से जुड़े लोगों तक फैली है.
लखनऊ निवासी जगदीश नारायण शुक्ला की शिकायत पर लोकायुक्त एनके मल्होत्रा ने जब सिद्दीकी की पड़ताल शुरू की तो प्याज के छिलके की तरह परत-दर-परत उनके कारनामे खुलते चले गए.
सबसे पहले हुस्ना सिद्दीकी की एजुकेशनल सोसाइटी की बात करते हैं. क्यूएफ एजुकेशनल इंस्टीट्यूट 49, श्यामनगर, खुर्रमनगर, लखनऊ के नाम से यह सोसाइटी 10 जुलाई, 2007 को रजिस्ट्रार कार्यालय में पंजीकृत कराई गई थी. 10 जुलाई, 2011 को संस्था के सदस्यों ने पांच साल की अवधि के लिए इसका नवीनीकरण करवाया. समिति में अध्यक्ष सीमा अग्निहोत्री, उपाध्यक्ष मूल चंद्र, सचिव हुस्ना सिद्दीकी पत्नी नसीमुद्दीन सिद्दीकी सहित 11 लोगों को शामिल किया गया. दस्तावेजों में प्रबंधकारिणी के तीन सदस्यों सीमा अग्निहोत्री, संजीव कुमार अग्निहोत्री और पंकज अग्निहोत्री का पता बान वाली गली, चौक लखनऊ दर्ज है, जबकि सचिव हुस्ना सिद्दीकी का पता 1102, लाप्लास लखनऊ दर्ज है. बाकी सदस्यों का पता बांदा का है. साल 2006 से 2010 तक के संस्था के बहीखातों की जांच में पता चला कि सोसाइटी को 3,62,48,417 रुपये की रकम मिली. यह रकम चंदे, दान और अनुदान के रूप में मिली थी.
सोसाइटी को करोड़ों रुपया किन लोगों की तरफ से दिया गया, इसका पता लगाने के लिए लोकायुक्त ने जब अध्यक्ष सीमा अग्निहोत्री को नोटिस जारी किया तो उनका जवाब दिलचस्प था. सीमा ने लोकायुक्त को बताया कि 28 नवंबर, 2011 को उन्होंने अध्यक्ष पद से त्यागपत्र दे दिया है. इतना ही नहीं, उनका यह भी कहना था कि अनुदान देने वाले लोगों के बारे में वे कोई भी दस्तावेज देने में असमर्थ हैं. अध्यक्ष का यह जवाब लेकर उनके भाई व संस्था के सदस्य पंकज अग्निहोत्री लोकायुक्त कार्यालय में उपस्थित हुए. हद तो तब हो गई जब कागजों में संस्था का सदस्य होने के बावजूद पंकज अग्निहोत्री ने लोकायुक्त को पूछताछ में बताया कि सोसाइटी के बारे में उन्हें कोई जानकारी ही नहीं है. संस्था के दूसरे सदस्य व अध्यक्ष सीमा के एक और भाई संजीव कुमार अग्निहोत्री ने 28 दिसंबर, 2011 को अजीबोगरीब बयान लोकायुक्त कार्यालय में दर्ज कराया. उनके मुताबिक उन्होंने 49, श्यामनगर, खुर्रमनगर के पते पर सोसाइटी का कार्यालय कभी देखा ही नहीं. संजीव ने साथ में यह भी बताया कि संस्था को उन्होंने भी एक लाख रुपये दान के रूप में दिए हंै, लेकिन यह रुपया आया कहां से इसका जवाब वे आज तक लोकायुक्त को नहीं दे सके हैं.
नसीमुद्दीन की पत्नी हुस्ना सिद्दीकी ने अपनी सोसाइटी को जिस पते पर रजिस्टर करवाया वह पता ही फर्जी निकला
चूंकि संस्था की अध्यक्ष सीमा अग्निहोत्री ने नवंबर में ही अपने पद से इस्तीफा देने की बात कही थी इसलिए नियमत: यह जरूरी था कि सोसाइटी ने कोई-न-कोई कार्यवाहक अध्यक्ष या प्रभारी बनाया हो. इसके मद्देनजर संस्था के पते पर कार्यवाहक अध्यक्ष के नाम दूसरा नोटिस भेजा गया ताकि दानकर्ताओं और चंदा देने वालों की सूची से उनके नाम व आय के स्रोतों की जानकारी मिल सके. इस बार स्थिति और भी चौंकाने वाली हो गई. जिस खुर्ररमनगर पुलिस चौकी के जिम्मे नोटिस तामील कराने का जिम्मा था, उसने लोकायुक्त कार्यालय को लिख कर दे दिया कि लिफाफे पर दिया गया पता गलत है और इस नाम का कोई कार्यालय या बिल्डिंग मौजूद ही नहीं है. पुलिस के इस जवाब और संजीव अग्निहोत्री के बयान से यह बात तो साफ हो गई कि संस्था का जो पता दिखा कर पंजीकरण कराया गया है वहां क्यू एफ एजुकेशनल इंस्टीट्यूट नाम की कोई सोसाइटी ही नहीं है.
संस्था का कोई अध्यक्ष न मिलने पर जांच का दायरा पूर्व मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी की पत्नी हुस्ना सिद्दीकी पर आ टिका. लोकायुक्त ने हुस्ना से दानकर्ताओं की सूची मांगी. हुस्ना की ओर से जो सूची दी गई वह 2007-2011 की थी. वित्तीय वर्ष 2006-2007 के दानकर्ताओं की सूची उन्होंने लोकायुक्त को नहीं दी. सूची में चंदे की कुल धनराशि 1,82,46,793 रुपये बताई गई थी. इस सूची के अनुसार अधिकांश धनराशि चेक और ड्राफ्ट द्वारा और कुछ नकद भी प्राप्त की गई थी. बाकी की रकम के बारे में उन्होंने लोकायुक्त को कोई जानकारी नहीं दी. लोकायुक्त अपनी रिपोर्ट में लिखते हैं, ‘यह साबित हो चुका है कि क्यूएफ शैक्षणिक संस्थान हुस्ना सिद्दीकी पत्नी नसीमुद्दीन सिद्दीकी की अपनी निजी सोसाइटी है. जिन लोगों को सदस्य के रूप में दिखाया गया है वे केवल पंजीकरण कराने के उद्देश्य से इसमें सम्मिलित किए गए मालूम होते हैं.’
मंत्री जी की पत्नी पर उंगली सिर्फ संस्था बना कर करोड़ों रुपये का गोलमाल करने के लिए ही नहीं उठ रही बल्कि संस्था के लिए खरीदी गई जमीन में भी बड़ा हेर-फेर हुआ है. शिक्षण संस्था के नाम बाराबंकी जिले की कुर्सी तहसील के गांव निंदूरा में लगभग 14 एकड़ जमीन 2006 में खरीदी गई. इसमें से गाटा संख्या 1206, 1207, 1208, 1209, 1210, 1223 और 1224 के कुल रकबा 1.102 हेक्टेयर पर क्यूएफ महाविद्यालय का निर्माण हुआ है. इसमेंें से 0.240 हेक्टेयर आच्छादित क्षेत्रफल व 0.862 अनाच्छादित क्षेत्रफल चारदीवारी के अंदर है. इसके अलावा गाटा संख्या 1425 में भी 0.33 हेक्टेयर पर निर्माण हो चुका है और 0.50 क्षेत्रफल निर्माणाधीन है.
लोकायुक्त ने जब सोसाइटी की जमीन की जांच शुरू की तब और भी चौंकाने वाले तथ्य सामने आए. जांच में पता चला कि संस्था के नाम जो 14 एकड़ जमीन खरीदी गई है उसका मूल्य कागजों में करीब 46 लाख दिखाया गया है जबकि उसकी वास्तविक कीमत 10 करोड़ के आस-पास होती है. जमीन खरीदने के बाद एक बार फिर शुरू हुआ ताकत और रसूख का खेल. शिकायत के बाद मौके पर लोकायुक्त की ओर से भेजे गए जांच दल ने पाया कि सोसाइटी के नाम करीब 14 एकड़ जमीन खरीदी गई है जबकि मौके पर टीम ने पाया कि इसके आस-पास की 10 एकड़ अतिरिक्त जमीन पर भी विद्यालय का ही कब्जा है. सूत्र बताते हैं कि जिस 10 एकड़ अतिरिक्त जमीन पर विद्यालय का कब्जा है उसमें से अधिकांश संपत्ति नसीमुद्दीन सिद्दीकी के मंत्री रहते हुए बेनामी तरीके से उनके लोगों द्वारा खरीदी गई है. जांच के बाद लोकायुक्त ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि गांव में जो भी संपत्ति क्रय की गई है उसकी खरीद कम कीमत में दर्शाकर आय के अज्ञात स्रोतों से कमाई गई धनराशि का प्रयोग अवश्य हुआ है. कितनी धनराशि का इसमें इस्तेमाल हुआ, कितने लोगों के नाम बेनामी संपत्ति खरीदी गई, किन लोगों से खरीदी गई, यह सारी जांच किसी बड़ी अपराध अन्वेषण एजेंसी द्वारा करवाई जानी चाहिए.
ताकत के बल पर घपले-घोटालों का यह खेल सिर्फ राजधानी लखनऊ और पड़ोसी जिले बाराबंकी तक सीमित नहीं रहा. पूर्व मंत्री के गृह जिले बांदा में भी उनके परिजनों ने नियम-कानूनों के साथ जमकर खिलवाड़ किया. बांदा शहर से सटे लड़ाकापुरवा गांव की गाटा संख्या 3235 का कुल रकबा 2.389 हेक्टेयर है. इसमें से 18 सितंबर, 2008 को उपमा गुप्ता पत्नी कृष्ण चंद गुप्ता ने भगवान दीन से दो हेक्टेयर भूमि पांच लाख रुपये में खरीदी थी. इसका सर्किल रेट 12 लाख रुपये प्रति एकड़ दिखाया गया. सर्किल रेट के हिसाब से जमीन पर 4,06,000 रुपये स्टांप ड्यूटी अदा की गई. तीन सप्ताह बाद ही 10 अक्टूबर को नसीमुद्दीन सिद्दीकी के भाई जमीरूद्दीन की पत्नी अकरमी बेगम ने उपमा गुप्ता की दो हेक्टेयर जमीन में से 1.050 हेक्टेयर जमीन तीन लाख रुपये में खरीद ली. इसी दिन जमीरूद्दीन की पुत्रवधू अर्शी सिद्दीकी ने इसी गाटा संख्या वाली 0.950 हेक्टेयर जमीन को उपमा गुप्ता से ढाई लाख रुपये में खरीदा.
सिद्दीकी के परिजनों ने गरीब किसानों के लिए शुरू की गई राज्य सरकार की परियोजना का गलत फायदा उठाया
यहां यह बताना जरूरी है कि उपमा गुप्ता के पति कृष्ण चंद गुप्ता सिंचाई विभाग के इंजीनियर हैं और बांदा के ही रहने वाले हैं. गुप्ता पिछले दो साल से निर्माण निगम में प्रतिनियुक्ति पर कार्यरत हैं. सिंचाई विभाग व निर्माण निगम दोनों ही मंत्रालय नसीमुद्दीन सिद्दीकी के पास थे. यहां सवाल यह उठता है कि क्या नसीमुद्दीन सिद्दीकी के परिजनों को दिलाने के लिए ही पहले उनके ही विभाग के एक इंजीनियर की पत्नी के नाम जमीन कराई गई और फिर तीन सप्ताह बाद उसे मंत्री जी के परिजनों के नाम कर दिया गया. अगर यह मान भी लिया जाए कि यह महज संयोग है और इसमें कुछ गलत भी नहीं हुआ तो असली खेल कहां हुआ?
इसी गाटा संख्या 3235 से 89.22 वर्ग मीटर जमीन भगवान दीन ने 14 अगस्त, 2008 को 1,40,000 रुपये में ममता यादव पत्नी पप्पू यादव एवं दीन दयाल यादव को बेचा है. इस खरीद के आधार पर जमीन के दाम का असली मूल्यांकन किया जाए तो यह डेढ़ करोड़ प्रति हेक्टेयर से कुछ ज्यादा होता हैै. इसका अर्थ यह हुआ कि उपमा गुप्ता ने जो दो हेक्टेयर जमीन खरीदी थी उसका बाजार मूल्य तीन करोड़ से भी ज्यादा होता है. मगर उपमा गुप्ता को यह जमीन सिर्फ पांच लाख रुपये में मिल गई थी. उसपर अगली विचित्रता यह कि कौड़ियों के भाव खरीदी गई इतनी महंगी जमीन उन्होंने तीन सप्ताह बाद ही मंत्री के परिजनों को मात्र साढ़े पांच लाख रुपये में बेच भी दी. लोकायुक्त ने अपनी जांच में लिखा है कि इस भूमि की खरीद में काले धन का इस्तेमाल हुआ है और जमीन की कीमत कम दिखा कर इस संपत्ति को नसीमुद्दीन सिद्दीकी के संबंधियों ने खरीदा है.
घपले-घोटालों का यह दायरा सिर्फ जमीन खरीदने और संस्था के नाम पर करोड़ों रुपये डकारने तक ही सीमित नहीं है. बसपा के सबसे ताकतवर मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी के परिजनों ने बुंदेलखंड के गरीब किसानों के लिए शुरू की गई राज्य सरकार की विशेष परियोजना से भी जमकर फायदा उठाया. केंद्र सरकार की ओर से बुंदेलखंड के किसानों को करोड़ों का पैकेज दिया गया. इससे किसानों को सब्सिडी पर ट्रैक्टर, डिस्क, हैरो, थ्रेशर और कल्टीवेटर बंटने थे. नियम के अनुसार सब्सिडी का लाभ सिर्फ गरीब किसानों को ही मिलना था. लेकिन जब घर में ही कृषि मंत्री हो तो सब्सिडी का लाभ मिलना भला कौन-सा मुश्किल काम है. लिहाजा पूर्व कृषि मंत्री के दो भतीजों जुबैरूद्दीन व बजाहुद्दीन पुत्र जमीरूद्दीन सिद्दीकी ने एक-एक ट्रैक्टर हथिया लिए. वह भी तब जबकि वे किसान भी नहीं थे. लोकायुक्त ने अपनी जांच में लिखा है कि जो अनुदान दिया गया उसमें नियमों का पालन नहीं किया गया. कितने लोगों ने आवेदन किया, उनमें से कौन पहले आया और कौन बाद में, इसका लेखा-जोखा भी कृषि विभाग के पास नहीं है. प्रक्रिया में गड़बड़ी हुई है और इसके लिए कृषि विभाग उत्तरदायी है.
नसीमुद्दीन पर टिप्पणी करते हुए लोकायुक्त ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है, ‘उनके सीधे शामिल होने का कोई प्रत्यक्ष साक्ष्य नहीं है, लेकिन कृषि मंत्री होने के नाते व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए और कृषि विभाग को आवंटित धनराशि पात्र अभ्यर्थियों को दिलवाने का दायित्व उनका था.’ वैसे भी कोई सामान्य सा बुद्धि वाला व्यक्ति भी यह आसानी से सोच सकता है कि यदि आपके मातहत विभाग से आपके परिजनों को कोई लाभ पहुंचाया जाता है तो निश्चित ही इसके पीछे आपकी भूमिका होनी चाहिए.
नसीमुद्दीन सिद्दीकी आबकारी विभाग के भी मंत्री थे और इसके जरिये भी उन्होंने कितने नियम विरुद्ध काम किए इसके बारे में भी लोकायुक्त की रिपोर्ट में कड़ी टिप्पणियां की गई हैं. लोकायुक्त ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि सिद्दीकी ने आबकारी नीति में मनमाने बदलाव किए जिससे कुछ खास लोगों को जबर्दस्त फायदा हुआ.
पूर्व बसपा सरकार में नसीमुद्दीन सिद्दीकी पर मेहरबानियों का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि आय से अधिक संपत्ति के मामले की जांच करने के बाद पूरे प्रकरण पर जब लोकायुक्त ने सरकार से सीबीआई जांच की सिफारिश की तो सरकार ने इसे सिरे से ही खारिज कर दिया. जबकि इसी तरह की कई शिकायतों में लोकायुक्त की सिफारिश पर ही मायावती ने अपने दर्जन भर मंत्रियों को चुनाव से पहले बाहर का रास्ता दिखा दिया था.