यदि आप की उम्र 50 वर्ष के पार हो गयी हो और आपका मासिक चक्र बन्द हो गया हो, तो सावधान हो जाएँ। सेहत पर अधिक ध्यान देना होगा, वरना लापरवाही महँगी पड़ सकती है। 50 वर्ष की उम्र के बाद पोस्टमेनोपॉजल की स्थिति में शरीर की हड्डियाँ कमज़ोर होने लगती हैं। हड्डी टूटने की सम्भावना बढ़ जाती है। महिलाओं में मेनोपॉज के बाद की स्थिति अधिक नाज़ुक होती है। शरीर में एस्ट्रोजन हार्मोन बनना कम हो जाता है, जो शरीर की हड्डियों को मज़बूत बनाता है। हार्मोन का का स्तर कम होने के कारण ओस्टियोपोरोसिस बीमारी होने का ख़तरा अधिक रहता है। वैश्विक स्तर पर बात करें, तो विशेषज्ञों के अनुसार, यूनाइटेड स्टेट्स और यूरोप में 30 फ़ीसदी पोस्टमेनोपॉजल महिलाओं को ऑस्टियोपोरोसिस है। उनका कहना है कि दुनिया भर में बढ़ती उम्र के साथ इन महिलाओं में ओस्टियोपोरोसिस की घटनाओं में एक बड़ी वृद्धि की सम्भावना हो सकती है।
ओस्टियोपोरोसिस की बीमारी के बारे में अधिक जागरूकता के लिए हर वर्ष 20 अक्टूबर को विश्व ओस्टियोपोरोसिस दिवस मनाया जाता है। इस वर्ष अंतरराष्ट्रीय ओस्टियोपोरोधसिस फाउंडेशन (आईओएएफ) ने ‘स्टेप अप फॉर बोन हेल्थ’ लक्ष्य रखा है। इसके मुताबिक, किसी भी उम्र में हड्डियों को तंदुरुस्त रखने के लिए पाँच स्टेप्स ज़रूरी हैं, जो भविष्य में हड्डी के टूटने को कम करने के लिए सहायक होंगे। इनमें पोषक आहार, हड्डियों और पशुओं को मज़बूत बनाने के लिए व्यायाम, शरीर के भार को सन्तुलित रखना, सिगरेट और शराब का सेवन नहीं करना और जागरूकता। ओस्टियोपोरोसिस ऐसी बीमारी है जिसका आसानी से पता नहीं चलता। इसमें हड्डियाँ कमज़ोर हो जाती हैं, जिससे हड्डी टूटने का रिस्क बढ़ जाता है। हड्डी टूटने तक ऑस्टियोपोरोसिस के लक्षण न के बराबर होते हैं। हड्डियाँ खोखली हो रही हैं, इसका तब पता चलता है, जब हल्की-सी चोट लगने पर हड्डी टूट जाती है। डब्ल्यूएचओ ऑस्टियोपोरोसिस को एक दैहिक अस्थि रोग के रूप में परिभाषित करता है, जो कम अस्थि घनत्व, हड्डी के ऊतकों की सूक्ष्म संरचना बिगडऩे के द्वारा होता है। इसके परिणाम स्वरूप हड्डी की नाज़ुकता एवं अस्थि टूटने की सम्भावना बढ़ जाती है। रीड की हड्डी या कूल्हे पर हड्डी का घनत्व, जो सामान्य औसत संदर्भ आबादी में 2.5 मानक विचलन से कम या बराबर है; ऑस्टियोपोरोसिस का संकेत है।
इस बार विश्व ओस्टियोपोरोसिस दिवस के मौक़े पर पीजीआई चंडीगढ़ के एंडोक्राइनोलॉजी विभाग के नये ओपीडी कम्प्लेक्स में एक जागरूकता अभियान चलाया गया। विभाग के अध्यक्ष डॉक्टर संजय भदादा ने बताया कि यहाँ पिछले एक वर्ष से महीने के हर पहले मंगलवार को ओस्टियोपोरोसिस एंड मेटाबॉलिक बोन डिजीज क्लीनिक चलाया जा रहा है। इसके अलावा एक ऑनलाइन ऑस्टियोपोरोसिस रजिस्ट्री ऑफ इंडिया भी चल रहा है, जिसमें इस रोग से पीडि़त 130 रोगियों का डाटा है। इनमें ज़्यादातर 93 फ़ीसदी महिलाएँ ऑस्टियोपोरोसिस से पीडि़त हैं। 20 फ़ीसदी लोगों की हड्डियाँ एक या एक अधिक जगह से टूटी थीं। 27 फ़ीसदी लोग एक साल में एक या इससे अधिक बार गिर चुके थे। डॉक्टर संजय भदादा का कहना है कि पोस्टमेनोपॉजल महिलाओं और बड़ी उम्र के पुरुषों में हड्डी टूटने का एक बड़ा कारण ऑस्टियोपोरोसिस है। इस मौक़े पर डॉक्टर संजय, डॉक्टर कन्हैया अग्रवाल और डॉक्टर अनिल किशोर सिन्हा के संयुक्त प्रयासों से ‘ओस्टियोपोरोसिस : कारण एवं निवारण’ पुस्तिका का विमोचन भी किया गया। पुस्तिका में इस बीमारी के अलग-अलग पहलुओं पर प्रकाश डाला गया है।
हड्डी का टूटना एक गम्भीर समस्या है, ख़ासकर यदि हड्डी कूल्हे की हो। डॉक्टरों का कहना है कि जिन लोगों की कूल्हे की हड्डी टूट जाती है, वे कभी-कभी ख़ुद चलने की क्षमता खो देते हैं। इनमें से कई लोगों को अस्पताल में भर्ती होना पड़ता है। इसलिए कूल्हे की हड्डी को टूटने से बचाना बहुत महत्त्वपूर्ण है। क़रीब 20 फ़ीसदी लोगों की कूल्हे की हड्डी टूटने के एक साल के अन्दर ही मौत हो जाती है। लेकिन अब इसका उपचार उपलब्ध है, जो कि हड्डियों के घनत्व को (बीएमडी) को बनाये रखने या बढ़ाने में मदद कर सकते हैं। विशेषज्ञ 60 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाओं के लिए डेक्सा परीक्षण यानी हड्डी सघनता परीक्षण की सलाह देते हैं। ऐसा इसलिए ज़रूरी है, क्योंकि इस आयु वर्ग की महिलाओं में ओस्टियोपोरोसिस का ख़तरा सबसे अधिक होता है। रजोनिवृत्ति की शुरुआत के साथ हड्डी पुनर्निर्माण की दर बढ़ जाती है। पुनर्निर्माण असन्तुलन के प्रभाव को बढ़ाता है। हड्डी की व्यक्तिगत ट्रेबेकुलर प्लेट ख़त्म हो जाती हैं। इससे हड्डी की मात्रा काफ़ी कम हो जाती है और सूक्ष्म संरचनात्मक रूप से हड्डी का ढाँचा कमज़ोर हो जाता है। हड्डी पुनर्निर्माण की प्रक्रिया यानी रीमॉडलिंग में पुरानी हड्डी को हटाकर उसे नयी हड्डी से बदलकर एक जटिल सन्तुलन बनाये रखती है। जब यह सन्तुलन बिगड़ जाता है तो हड्डी का नुक़सान होता है। जिसके परिणाम स्वरूप हड्डियों का क्षरण प्रतिस्थापन की तुलना में अधिक होता है। यह असन्तुलन रजोनिवृत्ति और बढ़ती उम्र के साथ ज़्यादा होता है।
ज़्यादा टूटती हैं भारतीयों की हड्डियाँ
वर्ष 2009 में इंटरनेशनल ऑस्टियोपोरोसिस फाउंडेशन के एशियन ऑडिट में विशेषज्ञ समूहों ने अनुमान लगाया था कि भारत में इस बीमारी के रोगियों की संख्या वर्ष 2003 में लगभग 2.5 करोड़ थी। वर्ष 2013 में पाँच करोड़ लोग या तो ओस्टियोपोरोटिक हैं या हड्डियों का घनत्व कम है। सिंगापुर में प्रवासी भारतीयों पर वर्ष 2001 में हुए अध्ययन से पता चला कि भारतीयों में प्रति लाख आबादी पर कूल्हे की हड्डी टूटने की आशंका ज़्यादा पायी गयी, जो कि क्रमश: महिलाओं और पुरुषों में 308 एवं 128 प्रति लाख थी। डॉक्टरों का कहना है कि भारतीयों में अपने उत्तरी अमेरिकी समकक्षों की तुलना में बीएमडी कम है। इस अन्तर का कारण आनुवंशिक, अस्थि का छोटा आकार होना और सबसे महत्त्वपूर्ण कारण कुपोषण हो सकता है। अधिक मात्रा में धूप के बावजूद विटामिन डी की कमी भारत में काफ़ी है। यह त्वचा के कालेपन, कपड़ों के पहनने की आदतों और विटामिन डी की अनुपस्थिति जैसे कारकों के कारण हैं। भारतीय भोजन में कैल्शियम की मात्रा पश्चिमी देशों की तुलना में कम होती है।
महिलाओं में ख़तरा ज़्यादा
विशेषज्ञों का मानना है कि महिलाओं की उम्र बढऩे के साथ ट्रैबेकुला ढीला होना शुरू हो जाता है। ट्रैबेकुले के बीच अन्तर अधिक होता रहता है। जबकि पुरुषों में बढ़ती उम्र के साथ ट्रैबेकुला केवल पतला होता है। कॉर्टिकल हड्डी का नुक़सान बाद में शुरू होता है। महिलाओं के जीवन-काल में हड्डियों के टूटने का ख़तरा 50 फ़ीसदी होता है, जबकि महिलाओं में कम (13-25 फ़ीसदी) होता है।
कैसे करें हड्डियों की देखभाल?
डॉक्टरों की राय में मीनोपॉज के पाँच वर्ष बाद सभी महिलाओं को कम से कम एक बार बोन डेंसिटी परीक्षण करवाने चाहिए। इन परीक्षण के परिणामों को टी और जेड स्कोर कहा जाता है। 50 वर्ष और इससे अधिक आयु वाले पुरुषों में और पोस्ट मीनोपॉजल महिलाओं में टी स्कोर अधिक महत्त्वपूर्ण है। अन्य लोगों में जेड।
डॉक्टरों का कहना है कि हड्डियों को टूटने का बचाव ही बेहतर इलाज है। यदि आप की हड्डी एक बार टूट जाए, तब वो कभी भी मूल अवस्था में नहीं पहुँच सकती। इसलिए ऑस्टियोपोरोसिस को रोकने के महत्त्वपूर्ण पहलुओं में पौष्टिक आहार लेना, नियमित व्यायाम करना और धूम्रपान से बचना शामिल है। हड्डी को स्वस्थ रखने के लिए यह सुनिश्चित करना ज़रूरी है कि आप को पर्याप्त प्रोटीन और कैलोरी के साथ-साथ कैल्शियम और विटामिन डी भी भरपूर मात्रा में मिले। कैल्शियम शरीर में हड्डियों को मज़बूत बनाये रखने के लिए बहुत ज़रूरी है और विटामिन डी शरीर में कैल्शियम को अवशोषित करने में मदद करता है। विटामिन डी की कमी तब होती है, जब आपके शरीर में पर्याप्त मात्रा में विटामिन डी नहीं बनता है। दूध एवं दूध से बने सभी खाद्य पदार्थ कैल्शियम का अच्छा स्रोत हैं। बादाम सिर्फ़ दिमाग़ को तेज़ ही नहीं करते, बल्कि हड्डियों और दातों को भी मज़बूत बनाते हैं। मांसपेशियों को तंदुरुस्त रखते हैं। कीवी, नारियल, आम, जायफल, अनानास और सीताफल में भरपूर कैल्शियम होता है।
कैल्शियम, विटामिन की ज़रूरत
विशेषज्ञों के अनुसार प्रीमेनोपॉजल महिला और पुरुष को प्रतिदिन कम से कम 1000 मिलीग्राम कैल्शियम लेना चाहिए। पोस्टमेनोपॉजल महिलाओं को प्रतिदिन 1200 मिलीग्राम कैल्शियम के सेवन की आवश्यकता होती है। विटामिन डी की बात करें तो इन महिलाओं को 800 अंतरराष्ट्रीय विटामिन डी इकाइयों (20 माइक्रोग्राम) का सेवन करना चाहिए। विशेषज्ञ मानते हैं कि लोगों के शरीर में सूरज की रोशनी से विटामिन डी बनता है। चमड़ी सीधे धूप का उपभोग करके विटामिन डी बनाती है। 30 मिनट के लिए प्रतिदिन कम कपड़े के साथ खुली धूप में बैठना चाहिए। विटामिन डी का प्राथमिक आहार स्रोत दूध है।
अन्य खाद्य पदार्थ जैसे सन्तरे का रस, दही और अनाज में भी अतिरिक्त विटामिन डी होता है। हरी सब्ज़ियाँ, कश्मीरी हरा साग, ब्रोकली, मशरूम आदि में भी विटामिन डी पाया जाता है। अधिकांश विशेषज्ञ हर सप्ताह में 5 बार कम से कम 30 मिनट प्रतिदिन व्यायाम करने की सलाह देते हैं। इसके अलावा टहलना और चलना भी ज़रूरी है। व्यायाम प्री मेनोपजल महिलाओं में हड्डी के घनत्व में सुधार लाता है। मीनोपॉज की स्थिति से गुज़रने वाली महिलाओं में हड्डियों के घनत्व को बनाये रखता है, और टूटने के जोखिम को कम करने में मदद कर सकता है।