शैलेंद्र कुमार ‘इंसान’
महँगाई और बेरोज़गारी के इस दौर में जिस तरह से ठगी के मामले बढ़ रहे हैं, उससे समाज और भी ज़्यादा असुरक्षित होता जा रहा है। ठग जिस तरह से शातिर तरीक़े से लोगों को शिकार बना रहे हैं, उसमें डॉक्टर से लेकर इंजीनियर तक शामिल हैं। यानी ठग किसी को भी नहीं छोड़ रहे; चाहे वह सेना अधिकारी हों, पुलिसकर्मी हों या फिर जज ही क्यों न हों। कोई भी ठगों से नहीं बच पाया है। 10वीं, 12वीं तक पढ़े-लिखे ठग अच्छे-अच्छों को बड़ी आसानी से ठगी के शिकार बना रहे हैं। देखा जाए, तो जीवन में हर व्यक्ति कहीं-न-कहीं ठगी का शिकार ज़रूर होता है। हम अक्सर कहते हैं कि अरे तुम्हें तो ठग लिया। यह समान इतने का बिक रहा है, तुम इतने में ख़रीद लाये। बात समान तक ही नहीं है, यह धर्म-कर्म से लेकर जीवन के हर क्षेत्र से जुड़ा है। लेकिन यह सिर्फ़ यहीं तक ही सीमित नहीं है, बल्कि संचार क्रान्ति के इस दौर में अब यह एक ऐसा रूप ले चुका है, जो हर किसी को डराने वाला है। इस अपराध का नाम है- साइबर क्राइम; क्योंकि इसमें फँसकर लोग हर साल अरबों रुपये गँवा रहे हैं। आने वाले समय में यह कितना व्यापक रूप ले चुका होग? इसका अनुमान भी लगाया जा चुका है।
डेटा के ऊपर काम करने वाली दुनिया की जानी-मानी वेबसाइट स्टेटिस्टा के साइबर सिक्योरिटी आउटलुक ने दुनिया भर में अगले पाँच वर्षों में ठगी के मामले में बेहताशा वृद्धि दर्ज करने का अनुमान लगाया है। आउटलुक के जारी आँकड़ों के मुताबिक, 2022 में 8.44 ट्रिलियन डॉलर की ठगी हुई थी, जो दुनिया के कई बड़े देशों की अर्थव्यवस्था से ज़्यादा है और यह 2027 तक बढक़र 23.84 ट्रिलियन डॉलर हो जाएगी। यह आँकड़ा इतना बड़ा है कि दुनिया के टॉप-5 अर्थव्यवस्था वाले कई देश इसमें समा जाएँगे। इस वेबसाइट की रिपोर्ट में साइबर अपराध को ‘डेटा की क्षति और विनाश’ के रूप में परिभाषित किया गया है; जिसमें चुराया हुआ पैसा, खोई हुई उत्पादकता, बौद्धिक सम्पदा की चोरी, व्यक्तिगत और वित्तीय डेटा की चोरी, गबन, धोखाधड़ी, व्यवसाय के सामान्य पाठ्यक्रम में हमले के बाद व्यवधान, फोरेंसिक जाँच, हैक किये गये डेटा और सिस्टम की बहाली और विलोपन और प्रतिष्ठा के नुक़सान को दर्शाया गया है। वेबसाइट पर जारी आँकड़ों के मुताबिक, 2017 में सबसे ज़्यादा ठगी बिना-पेमेंट व बिना डिलीवरी के नाम पर हुई है, जिसमें 41 फ़ीसदी लोग ठगे गये। पर्सनल डाटा हैकिंग में 15.3 फ़ीसदी लोग शिकार बने। फ़र्ज़ी ईमेल के ज़रिये 12.5 फ़ीसदी लोग ठगी का शिकार हुए। साइबर अपराधियों ने पहचान चोर कर 8.7 फ़ीसदी लोगों को ठगी का शिकार बनाया।
वहीं क्रेडिट कार्ड के नाम पर 7.5 फ़ीसदी लोग ठगी के शिकार हुए। 7.4 फ़ीसदी सेक्सटॉर्शन केस में तो, 5.4 फ़ीसदी लोग तकनीकी सहायता के नाम पर ठगी का शिकार हुए। निनेश के नाम पर 1.5 फ़ीसदी लोग ठगी का शिकार हुए। वहीं पाँच साल बाद ठगी के तरीक़े में काफ़ी परिवर्तन देखे गये। 2022 में सबसे ज़्यादा ईमेल व अन्य माध्यमों से साइबर अपराधियों ने इलेक्ट्रॉनिक गैजेट हैकिंग के ज़रिये 53.2 फ़ीसदी लोगों को शिकार बनाया। 10.4 फ़ीसदी लोग पर्सनल डाटा हैंकिग के ज़रिये ठगे गये तो, वहीं बिना पेमेंट व बिना डिलीवरी के माध्यम से 9.2 फ़ीसदी लोग ठगी का शिकार बने। 5.4 फ़ीसदी लोग इनवेस्टमेंट के नाम पर ठगे गये। 5.8 फ़ीसदी लोग तकनीकी सहायता के नाम पर ठगी के शिकार बने तो, वहीं 7 फ़ीसदी लोग सेक्सटॉर्शन (जबरदस्ती वसूली) के शिकार बने व 4.1 फ़ीसदी क्रेडिट कार्ड के नाम पर ठगे गये और पाँच फ़ीसदी पहचान चोर कर ठगी के शिकार बनाये गये।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा जारी 2022 के रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में आर्थिक अपराध के 1.39 लाख केस दर्ज हुए, जो 2021 के मुक़ाबले 11.1 फ़ीसदी ज़्यादा हैं। इस तरह साइबर क्राइम के मामलों में भारी वृद्धि दर्ज की गयी है। 2022 में कुल 65,893 केस दर्ज हुए, जो 2021 की तुलना में 24.4 फ़ीसदी अधिक हैं। इनमें 64.8 फ़ीसदी धोखाधड़ी से जुड़े थे। देखा जाए, तो ठगी के मामले में दिल्ली तीसरे स्थान पर है। एनसीआरबी के आँकड़ों के मुताबिक, उत्तर प्रदेश में 2021 में ठगी के 21,130 मामले व 2022 में कुल 25,484 लोग ठगी का शिकार हुए। महाराष्ट्र में 2021 में 18,560 मामले दर्ज हुए, तो वहीं 2022 में 18,799 लोग ठगी का शिकार हुए। 2021 में दिल्ली में ठगी के 14,550 मामले आयो, तो वहीं 2022 में ठगी के कुल 14,661 मामले दर्ज किये गये। बिहार में 2021 में 8,625 मामले व 2022 में 11,515 लोग ठगी का शिकार हुए। 2021 में हरियाणा में ठगी के 8,514 केस दर्ज हुए, तो वहीं 2022 में 9,371 लोग ठगी के शिकार हुए। देखा जाए, तो टॉप-5 राज्यों में ठगी के मामलों में लगातार वृद्धि दर्ज की गयी है।
ठगी के बढ़ते आँकड़ों और दर्ज की गयी एफआईआर में बेतहाशा वृद्धि के अनुमान से यह पता चलता है कि आज के समय में एक आम व्यक्ति कहीं भी सुरक्षित नहीं है। न तो जान सुरक्षित है, न ही रुपये-पैसे और न ही घर-द्वार। हर जगह ठगों और लुटेरों का साया है। घर या बैंक से पैसे लेकर निकलने पर लुटने का ख़तरा और अकाउंट में हो तो ठगों से ख़तरा है। आज हम जिस संचार क्रान्ति के युग में रह रहे हैं, उसमें हम दुनिया के किसी भी कोने में बैठे व्यक्ति से चंद सेकेंड में बड़े आसानी से बात कर सकते हैं। आज हर घर में मोबाइल फोन है। इसी का फ़ायदा साइबर ठग भी उठा रहे हैं। ठगी अब मात्र ठगी नहीं रही, यह एक पेशा बन चुकी है; जिसमें इन्वेस्टमेंट ज़ीरो है और कमायी करोड़ों में है।
अपराधी एक कमरे में बैठे-बैठे बड़े आराम से अच्छे-अच्छों को चूना लगाने में महारत हासिल कर रहे हैं। इसके लिए बाक़ायदा ट्रेनिंग भी दी जाती है। ठगी के लिए कॉल सेंटर खोले जा रहे हैं। फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने वाले लडक़े-लड़कियों को नौकरी पर रखा जाता है और वे सब मिलकर ठगी का धंधा करते हैं। हर साल ऐसे कॉल सेंटर खुलते और पकड़े जाने पर बन्द होते हैं। इस पर मूवी की सीरीज भी आ चुकी है, जिसमें यह दिखाया गया है कि किस तरह लोग ठगी को अंजाम देते हैं। ठगी के ऐसे-ऐसे हथकंडे कि कोई सोच भी नहीं सकता। पहले ठगों का केंद्र झारखण्ड का जामताड़ा होता था; लेकिन अब कई राज्यों जैसे राजस्थान, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, असम, उत्तर प्रदेश, हरियाणा व कई अन्य राज्यों सहित विदेशों से भी तार जुड़े हुए हैं, जहाँ बैठकर ठगों के सरगना गैंग चला रहे हैं।
देखा जाए, तो आजकल अमूमन लोग लालच के कारण ठगी का शिकार बनते हैं। ज़्यादा पैसे कमाने के चक्कर में अपनी गाढ़ी कमायी गँवा देते हैं। लोगों के अंदर इतना लालच बस गया है कि वो किसी-न-किसी तरीक़े से ठगों के जाल में फँस ही जाते हैं। चाहे वो क्रेडिट कार्ड का सुनहरा ऑफर हो या पार्ट टाइम काम का झाँसा या इन्वेस्टमेंट के नाम पर ज़्यादा पैसा कमाने की चाहत या फिर मुफ़्त में गिफ्ट की चाहत या डेबिट कार्ड, क्रेडिट कार्ड की सर्विस बंद करने या किसी अन्य मामलों में फँसने का डर। ठगी के बढ़ते मामलों को देखते हुए केंद्र सरकार ने संगठित अवैध निवेश और पार्ट टाइम नौकरी के नाम पर ठगी करने वाली 100 से अधिक वेबसाइट्स को बन्द कर दिया है। आजकल न जाने कितने फेक कॉल या फेक ईमेल और मोबाइल पर व्हाट्सएप और मैसेज आते हैं, जिसमें ठग शिकार तलाशते रहते हैं। ज़रा-सी चूक होते ही ठग अकाउंट को ख़ाली कर देते हैं।
कई लोग विभिन्न सेवाओं को लेने के लिए गूगल सर्च का सहारा लेते हैं। लेकिन उन्हें पता नहीं होता कि जिस नंबर को वो डायल कर रहे हैं, वो फ़र्ज़ी है। ऐसे में अपॉइंटमेंट लेने या बुकिंग चार्ज के नाम पर ठगी का शिकार बन जाते हैं। आजकल ठग तमाम सारी कम्पनियों और संस्थानों का फ़र्ज़ी वेबसाइट बनाकर बैठे हैं। जहाँ से ठग आसानी से लोगों को शिकार बना लेते हैं। ऐसे तमाम फ़र्ज़ी ऐप हैं, जिनके ज़रिये लोग ठगे जा रहे। सोशल मीडिया पर तमाम ऐसे विज्ञापन हैं, जहाँ पर कॉल करते ही लोग ठगों के जाल में फँसकर अपनी गाढ़ी कमायी गँवा रहे हैं। कई सोशल मीडिया पर बहुत सस्ते दामों पर ब्रांडेड सामानों को दिखाकर लोगों को ठगी का शिकार बना रहे। मतलब कि सोशल मीडिया या गूगल पर लोगों की हर आम ज़रूरत की चीज़ या ख़ास, ठगों के जाल से दूर नहीं है।
ऐसे कई ठग होते हैं, जो लोगों का सगा-सम्बन्धी बताकर मैसेज करके उधार माँग कर ठगते हैं और कई ठग तो सोशल मीडिया पर अधिकारियों और पुलिस अफ़सरों की फेक आईडी बनाकर लोगों को डरा धमकाकर कर ठगी का शिकार बना रहे हैं और कई सेक्सटॉर्शन गैंग लड़कियों का इस्तेमाल करके भोले-भाले लोगों सहित बुजुर्गों को वीडियो कॉल के ज़रिये या किसी अन्य तरह से अश्लील वीडियो बनाकर फँसाते हैं और वायरल करने की धमकी देकर मोटी रक़म वसूल लेते हैं। ग्रामीण इला$कों में किसानों को टावर लगवाने का झाँसा देकर ठगी का शिकार बना रहे। इस तरह से हर रोज़ ठग बड़ी आसानी से किसी-न-किसी को ठगी का शिकार बना रहे हैं।
आज हम ऐसे संक्रमण-काल में जी रहे हैं, जहाँ चारों तरफ़ ख़तरा-ही-ख़तरा है। सुरक्षा की गारंटी सिर्फ़ का$गज़ों में, पोस्टरों, बैनरों और विज्ञापनों में ही दिखायी देती है। आपकी तिजोरी और अकाउंट कब ख़ाली हो जाए, कोई भरोसा नहीं है। आज जितने ज़्यादा हमारे पास सुख सुविधाएँ हैं उतना ही ज़्यादा ख़तरा भी है। सुविधाओं के अंधाधुंध दोहन की चाह में आज व्यक्ति कहीं खो गया है। यही कारण है कि वह आज ख़ुद से उखड़ गया है। विचार से कट गया है, समाज से कट गया है और शासन और प्रशासन से भी। यही कारण है कि किसी भी समस्या का हल निकलता हुआ दिखायी नहीं पड़ता और समस्याएँ बढ़ती जाती हैं। दुनिया में किसी चीज़ की कमी अगर है, तो वह है एक चरित्रवान लोगों की। एक चरित्रवान समाज की। एक जागरूक और सभ्य समाज की; जहाँ समस्याओं का निदान हो सके।