कोरोना वायरस जैसी महामारी का दुनिया में अभी भी ख़ौफ़ है। इसी बीच अब मंकी पॉक्स जैसी संक्रमित बीमारी लोगों में भय फैला रही है। डॉक्टरों का कहना है कि मंकी पॉक्स एक संक्रामक बीमारी है। अगर लापरवाही बरती गयी, तो यह भी कहर बरपा सकती है। कोरोना वायरस अभी मौज़ूद है। ऐसे में मंकी पॉक्स से बचाव ज़रूरी है।
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के पूर्व संयुक्त सचिव डॉक्टर अनिल बंसल का कहना है कि सबसे पहले सन् 1958 में बंदरों में यह वायरस पाया गया था। तभी से इसका नाम मंकी पॉक्स रखा गया है। उसके बाद सन् 1970 में यह वायरस अफ्रीका के 10 देशों में पाया गया। सन् 2003 में अमेरिका में मंकी पॉक्स का कहर रहा। इसके बाद सन् 2017 में नाइजीरिया में मंकी पॉक्स ने कहर बरपाया। अब मौज़ूदा समय में फिर से अमेरिका कनाडा और अफ्रीका के कई देशों में मंकी पॉक्स का कहर है। इन देशों में मंकी पॉक्स को लेकर अलर्ट जारी किया गया है। डॉक्टर अनिल बंसल का कहना है कि मंकी पॉक्स को लेकर भारत को भी सावधान रहने की ज़रूरत है, क्योंकि यह संक्रमित बीमारी है और तेज़ी से एक से दूसरे में फैलती है।
मैक्स अस्पताल साकेत के कैथ लैब के डायरेक्ट व हृदय रोग विशेषज्ञ डॉक्टर विवेका कुमार का कहना है कि भले ही मंकी पॉक्स ज़्यादा ख़तरनाक नहीं है; लेकिन कोरोना-काल के चलते हमें सावधान रहने की ज़रूरत है। उनका कहना है कि अगर बुख़ार के साथ मांसपेशियों में दर्द के साथ सूजन हो, तो उसे नज़रअंदाज़ न करें। हृदय रोगियों के हाथ-पैरों में अगर चकत्ते के साथ-साथ घबराहट और बेचैनी हो, तो उसे नज़रअंदाज़ न करें। डायबिटीज और रक्तचाप के रोगियों को यह वायरस ज़्यादा नुक़सान पहुँचा सकता है।
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के डॉक्टर आलोक कुमार का कहना है कि मंकी पॉक्स ने भले ही अभी भारत में दस्तक न दी हो; लेकिन यह संक्रमित बीमारी है। भारतीय लोगों का दुनिया में आना-जाना है, इसलिए मंकी पॉक्स का कहर भारत में आ सकता है। मंकी पॉक्स हाथ-पैरों से फैलता है, फिर पूरे शरीर में चकत्ते के साथ छोटी-छोटी फुंसियाँ होने लगती हैं। कई बार तो ये बड़े घाव में बदल जाती हैं। अगर आँखों के पास ये घाव बड़े हो जाएँ, तो आँखों की रोशनी भी जा सकती है। इसलिए शुरुआती दौर में ही मंकी पॉक्स के इलाज की ज़रूरत है।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि भारत बड़ी जनसंख्या वाला देश है। इसलिए यहाँ संक्रमण तेज़ी से फैलने का डर है। मंकी पॉक्स का कोई टीका भी दुनिया में कहीं उपलब्ध नहीं है। यह छोटी माता (स्मॉल पॉक्स) का बड़ा रूप है। इसलिए छोटी माता के लिए बनी वैक्सीन से ही इसका इलाज हो सकता है।
दिल्ली सरकार के स्टेट प्रोग्राम ऑफिसर डॉक्टर भरत सागर का कहना है कि कोरोना वायरस जैसी बीमारी से दुनिया जूझ ही रही है। उस पर मंकी पॉक्स वायरस की दस्तक हमें सतर्क करती है। मंकी पॉक्स जैसी बीमारी को जागरूकता तथा सावधानी से हराया जा सकता है। भारत के कई राज्यों के कुछ गाँवों में अंधविश्वास का ज़्यादा बोलवाला है, इसलिए मंकी पॉक्स को लोग बड़ी माता या चिकन पॉक्स का प्रकोप मानकर स्वयं इलाज करने लगते हैं। साथ ही छाड़-फूँककर इलाज करने लगते हैं, जो ठीक नहीं है। हालाँकि मंकी पॉक्स लेकर घबराने की ज़रूरत नहीं है। सावधानी के साथ-साथ संक्रमित और भीड़भाड़ वाली जगहों से बचने की ज़रूरत है।
डॉक्टर भरत सागर का कहना है कि लोग अज्ञानता के कारण अपनी बीमारी को छिपाने लगते हैं। इससे बीमारी बढऩे के साथ-साथ दूसरों में संक्रमण का ख़तरा बढ़ जाता है।
बताते चलें कि, मंकी पॉक्स को लेकर भारतीय स्वास्थ्य महकमा चौकन्ना है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने चेतावनी दी है कि मंकी पॉक्स उन देशों में फैल रहा है, जहाँ पहले कभी मंकी पॉक्स नहीं फैला है। ऐसे में सभी देशों को मंकी पॉक्स को लेकर सावधानी बरतने की ज़रूरत है; क्योंकि इस बीमारी की चपेट में बच्चे, युवा और बुज़ुर्ग सभी आ सकते हैं।