एक वक़्त था, जब बिहार में जुमला आम था- ‘जब तक रहेगा समोसे में आलू, तब तक रहेगा बिहार में लालू।’ अब यह जुमला न के बराबर सुनने को मिलता है। यह सब चारा घोटाले का कारण हुआ। मुद्दा इतना गरमाया कि लालू और चारा घोटाला एक-दूसरे के पर्यायवाची बन गये। इसके बावजूद आज भी राजनीति और सामाजिक दृष्टिकोण से लालू प्रसाद यादव का आकर्षण कम नहीं हुआ है। यह इन दिनों झारखण्ड-बिहार से लेकर राष्ट्रीय स्तर पर देखने को मिल रहा है। दरअसल लालू भारतीय राजनीति की जिस धारा का प्रतिनिधित्व करते हैं, वह अनोखी है। इस धारा में तैरने वाले तो बहुत-से नेता हुए; लेकिन धारा को अपने अनुकूल बनाने की क्षमता लालू से पहले किसी में नहीं दिखी। इसलिए उन्हें भारतीय राजनीति का इकलौता सामरिक समाजवादी नेता कहा जाता है। वह समर्थकों के बीच जन-नायक बनकर उभरे। लालू सियासत के वह पत्थर हैं, जिन्हें उनके समर्थक देवता मानकर पूजते हैं या फिर विरोधी नफ़रत से भरकर ठोकर मारते हैं। लेकिन उनसे बचकर कोई नहीं निकल पाता। लालू का नाम और चारा घोटाला मामला एक बार फिर समर्थकों और विरोधियों की ज़ुबान पर हैं। कारण, उन्हें चारा घोटाले के एक और मामले में सज़ा मिली है। अभी वह जेल (अस्पताल-रिम्स पेइंग वार्ड) में हैं।
देश में कई घोटाले हुए; लेकिन चारा घोटाला उस वक़्त का सबसे बड़ा घोटाला था। उस वक़्त 950 करोड़ रुपये सरकारी ख़ज़ाने से फ़र्ज़ीवाड़ा करके निकाल लिये गये। यह गबन ऐसा था कि इसका शोर सिर्फ़ भारत ही नहीं, बल्कि विदेशों तक में गूँजा। सरकारी ख़ज़ाने की इस गबन में कई अन्य लोगों के अलावा बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव और पूर्व मुख्यमंत्री स्व. जगन्नाथ मिश्र पर गहरे दाग़ लगे। इस घोटाले के कारण लालू यादव को मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा। घोटाला सन् 1996 में हुआ था। लेकिन जैसे-जैसे जाँच आगे बढ़ी, लालू प्रसाद यादव इसमें दोषी बनते गये। नये नियम के तहत लालू प्रसाद भारतीय इतिहास में लोकसभा के ऐसे पहले सांसद थे, जिन्हें इस घोटाले के चलते संसद की सदस्यता गँवानी पड़ी और चुनाव लडऩे पर रोक लगी।
चारा घोटाले के घोटालेबाज़ों ने पशुपालन विभाग के वार्षिक बजट से भी बहुत अधिक धनराशि सरकारी ख़ज़ाने से नक़ली बिल बनाकर निकाल ली। आधिकारिक सूत्रों के अनुसार, वित्त वर्ष 1992-93 का पशुपालन विभाग का बजट क़रीब 75 करोड़ रुपये का था। लेकिन ख़र्च किये गये क़रीब 155 करोड़ रुपये। इसी तरह वित्त वर्ष 1993-94 में 75 करोड़ का बजट होने के बावजूद क़रीब 240 करोड़ रुपये ख़र्च किये गये। इस लूट का बँटवारा सभी शामिल लोगों में हुआ था। आपूर्तिकर्ताओं से लेकर बड़े सरकारी अफ़सर व अनेक दलों के नेता इस लूट में शामिल थे। पटना उच्च न्यायालय ने सीबीआई को मामला सौंपते हुए कहा था कि उच्चस्तरीय साँठगाँठ के बिना ऐसा घोटाला सम्भव नहीं था।
घोटाले की कई कहानियाँ
चारा घोटाले की कई कहानियाँ हैं। सीएजी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 6 दिसंबर 1985 को राँची से एक स्कूटर चला। उस पर चार साँड लादे गये थे। यह स्कूटर 344 किलोमीटर की दूरी तय करके घागरा पहुँचा। साँड ढोने के लिए 1,285 रुपये का बिल बना। इस बिल का भुगतान भी हो गया। इसी साल मई में एक कार में राँची से झिंकपानी तक चार साँड पहुँचाये गये। बिल बना 1,310 रुपये और भुगतान हो गया। यह तो छोटे-छोटे नमूने थे।
जाँच के दौरान इस तरह के कई अनोखे और अविश्वसनीय मामले एक-एक करके सामने आये। सीबीआई ने इस बड़े घोटालों में 60 ट्रक से ज़्यादा दस्तावेज़ जुटाये। क़रीब 11 करोड़ पन्नों की फोटो कॉपी हुई। कुल 64 मामले दर्ज हुए और 979 लोग इसमें अभियुक्त बने। एजेंसी ने 8,000 से ज़्यादा गवाह बनाये। 400 से ज़्यादा सीबीआई अफ़सरों ने मामले की जाँच की और 50 से अधिक जज इस मामले की सुनवाई कर चुके हैं।
अब डोरंडा कोषागार मामले में सज़ा
चारा घोटाले से सम्बन्धित चार मामलों की सुनवाई पूरी हो चुकी है और सज़ा भी मुकर्रर कर दी गयी है। झारखण्ड के चाईबासा कोषागार के दो मामलों- देवघर और दुमका के एक-एक मामले में लालू प्रसाद को सज़ा हो चुकी है। ताजा पाँचवाँ मामला राँची के डोरंडा कोषागार का है। इस कोषागार से 139.35 करोड़ रुपये की निकासी की गयी।
आरसी 47ए/96 मामला 1990 से 1995 के बीच का है। सीबीआई ने इस मामले में 170 लोगों को अभियुक्त बनाया। इसमें से पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र समेत 55 अभियुक्तों की मौत हो गयी। छ: फ़रार घोषित हो गये। आठ को सरकारी गवाह बनाया गया। दो ने अपना दोष पहले ही स्वीकार कर लिया था, शेष 99 अभियुक्तों ने न्यायिक प्रक्रिया का सामना किया। विशेष न्यायाधीश एस.के. शशि ने 15 फरवरी 2022 को चारा घोटाले के लालू प्रसाद सहित 75 को दोषी करार दिया, शेष 24 को साक्ष्यों के अभाव में रिहा कर दिया गया। दोषियों में चार राजनीतिज्ञ, एक आईएएस, एक आईआरएस, दो ट्रेजरी ऑफिसर, 32 पशुपालक हैं। अदालत ने 35 अभियुक्तों को तीन-तीन साल कारावास और 30 हज़ार से दो लाख रुपये तक ज़ुर्माने की सज़ा 15 फरवरी को ही सुना दी गयी। लालू समेत अन्य बचे अभियुक्तों को 21 फरवरी को सज़ा सुनाई गयी, जिसमें लालू प्रसाद को पाँच साल की सज़ा हुई है और 60 लाख का ज़ुर्माना लगाया गया है।
लालू को नज़रअंदाज़ करना मुश्किल
लालू एक बार फिर जेल (राँची के रिम्स के पेइंग वार्ड) में हैं। साथ ही चर्चा में भी हैं। लालू को कोई भारत की राजनीति का मसखरा कहता है, तो कोई ग़रीबों का नेता, तो कोई बिहार की बर्बादी का ज़िम्मेदार उन्हें मानता है। लालू की पहचान विदेशों तक गूँजी। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी भी लालू को अच्छी तरह जानती है। तमाम आरोपों और विवादों के बावजूद लालू यादव आज भी सियासत के केंद्र में हैं। उनके समर्थक, उन्हें आराध्य का दर्जा देते हैं। यही कारण है कि उनके जेल में रहने के बाद भी समर्थक राँची में जमे रहते हैं। पिछले दिनों न्यायालय में पेशी के दौरान समर्थकों का हुजूम पहुँच गया।
चारा घोटाले के पाँचवें मामले में उन्हें दोषी करार दिया गया है। लेकिन समर्थकों के बीच पहले की तरह ही उनका सम्मान बरक़रार है। इन समर्थकों का मानना है कि लालू कभी कुछ ग़लत कर ही नहीं सकते। उन्हें बेवजह फँसाया गया है। समर्थकों का राँची लगातार आना-जाना में लगा हुआ है। हर किसी में लालू की झलक देखने, मिलने और आशीर्वाद पाने की ललक दिखती है। रिम्स के पेइंग वार्ड में रह रहे लालू से मिलने की जुगत में कोई-न-कोई लगा ही रहता है। अस्पताल के आसपास के इलाक़े में लालू के कई समर्थक चक्कर लगाते नज़र आते हैं।
पिछले 15 साल से राजनीति की मुख्यधारा से अलग रहने के बावजूद लालू की यह करिश्माई व्यक्तित्व क़ायम है। यही कारण है कि उन्हें कोई पसन्द करे या न करे, कम-से-कम उन्हें नज़रअंदाज़ तो नहीं कर पाता।
अभी और बढ़ेंगी मुश्किलें
पटना उच्च न्यायालय ने 7 मार्च, 1996 सीबीआई को जाँच सौंपते वक़्त टिप्पणी की थी कि रोम जलता रहा और नीरो बंसी बजाता रहा, वही स्थिति बिहार की रही। उच्च न्यायालय की इस टिप्पणी का अर्थ निकाला जाए, तो सम्भवत: नीरो की तुलना लालू प्रसाद से की गयी थी। क्योंकि उस वक़्त लालू प्रसाद ही बिहार के मुख्यमंत्री थे। चारा घोटाले में पहली बार जेल जाने के बाद से उनकी मुश्किलें कम नहीं हुई हैं। अभी उनकी मुश्किलें और बढऩे के आसार हैं। क्योंकि एक मामला बिहार के पटना में सीबीआई की विशेष अदालत में चल रहा है। जिसमें अभी सुनवाई जारी है।
उधर चारा घोटाले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की एंट्री हो गयी है। सीबीआई विशेष न्यायालय के निर्देश पर ईडी ने दो मामलों में (झारखण्ड के देवघर कोषागार से 3.76 करोड़ रुपये और दुमका कोषागार से 34.91 करोड़ रुपये की अवैध निकासी) केस दर्ज कर लिया है। दोनों मामलों की जाँच शुरू हो गयी है। लालू को सीबीआई कोर्ट द्वारा दोनों मामलों में सज़ा सुनायी गयी है। ईडी पहले सज़ा पाने वाले लोगों की ही जाँच करेगी। इसलिए लालू प्रसाद की परेशानी बढ़ गयी है।
किन-किन मामलों में मिली सज़ा?
पहला मामला : आरसी-20 ए/96 चाईबासा कोषागार से 377 करोड़ रुपये अवैध निकासी के आरोप में लालू प्रसाद यादव सहित 44 अभियुक्त बने, जिसमें लालू को पाँच साल की सज़ा हुई।
दूसरा मामला : आरसी 64ए/96 देवघर कोषागार 84.53 लाख रुपये की अवैध निकासी के आरोप में लालू प्रसाद यादव सहित 38 अभियुक्त बने, जिनमें लालू को साढ़े तीन साल की सज़ा हुई।
तीसरा मामला : चाईबासा आरसी 68 ए/96 कोषागार से 33.67 करोड़ रुपये की अवैध निकासी मामले में लालू प्रसाद सहित 56 अभियुक्त बने, जिनमें लालू को पाँच साल की सज़ा सुनायी गयी।
चौथा मामला : आरसी-38ए/96 दुमका कोषागार से 3.13 करोड़ रुपये की अवैध निकासी मामले में लालू को दो अलग-अलग धाराओं में सात-सात साल (14 साल) की सज़ा हुई।
पाँचवाँ मामला : आरसी 47ए/96 राँची के डोरंडा कोषागार से 139.35 करोड़ की अवैध निकासी मामले में अब लालू प्रसाद को फिर पाँच साल की सज़ा हुई है।
कब, कितने समय रहे जेल में
पहली बार : 30 जुलाई, 1997 को लालू जेल भेजे गये।
दूसरी बार : 28 अक्टूबर, 1998 को 73 दिनों के लिए जेल गये।
तीसरी बार : 5 अप्रैल, 2000 को 11 दिनों के लिए जेल हुई।
चौथी बार : 28 नवबर, 2000 को एक दिन के लिए जेल गये।
पाँचवीं बार : 03 अक्टूबर, 2014 को 70 दिन की जेल हुई।
छठी बार : 23 दिसंबर, 2017 को क़रीब 3.5 साल के लिए जेल हुई, जिसमें अप्रैल, 2021 से लालू जमानत पर थे।
सातवीं बार : 15 फरवरी, 2022 को गिरफ़्तार हुए और 21 फरवरी को पाँच साल की सज़ा सुनायी गयी।