बिजली महकमे की नौकरी से रिटायर हुए 75 वर्षीय हरिनारायण मीणा के चेहरे की चमक बुरी तरह बुझ चुकी है। उनके भावशून्य चेहरे पर खुशी की कोई रेखा अब शायद ही कभी उभर पाये? सेवानिवृत्ति के बाद मिली 10 लाख की रकम उन्होंने बैंक में जमा करवा दी थी। इस बीच गाँव के किसी संगी-साथी ने उन्हें फटाफट रकम दोगनी करने की राह सुझा दी। हरिनारायण भूल गये कि ‘बचत के रोमांच को जोखिम से बचाये रखना चाहिए। बुढ़ापे में आसरा देने वाली जमापूँजी को कमोबेश सुरक्षित फंड में लगाना चाहिए। लेकिन प्रलोभन के प्रभाव में आये हरिनारायण ने 10 लाख की जमा पूँजी बैंक से निकालकर संजीवनी क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसायटी में फिक्सड डिपॉजिट करवा दी। भारी मुनाफे की आस लगाये हरिनारायण के तोते तो तब उड़े, जब उन्हें पता चला कि वे बुरी तरह ठगे गये हैं। संजीवनी सोसायटी के कर्ताधर्ता तो फर्ज़ीवाड़े के डैनों पर सवार गिद्ध थे, जो न जाने कितने लोगों को कंगाल कर गये? इस सदमे ने हरिनारायण को अवसाद में धकेल दिया और पत्नी को विक्षिप्त कर दिया है। अब बेबस हरिनारायण की आवाज़ पुलिस प्रशासन के गलियारों से लौट-फिरकर उन्हीं को डस रही है। जोधपुर के पावटा इलाके की कमला देवी चार लाख की ठगी का सदमा बर्दाश्त नहीं कर सकीं और मौत के मुँह में समा गयीं। ठगी का अपशकुनी गिद्ध जयपुर की पिंकी के परिवार की ड्योढ़ी पर भी बैठा और निवेश किये गये 22 लाख ले उड़ा। लेकिन पिंकी अवसाद के कुहासे में भटकने की बजाय जालसाज़ों के िखलाफ मुश्कें कस चुकी है। िफलहाल उसकी उठापटक ने एसओजी को मुस्तैद कर दिया है। ठगों की टकसाल को खील-खील करने में एसओजी कितनी कामयाब हो पाती है? इसका तो िफलहाल इंतज़ार करना होगा। अलबत्ता एसओजी ने इस खेल की नब्ज़ टटोलना तो शुरू कर ही दिया है। इसकी शुरुआत का शगुन भी अच्छा ही हुआ है। दो लाख निवेशकों से एक हज़ार करोड़ की ठगी करने वाला विक्रम सिंह एसओजी के हत्थे चढ़ चुका है। विक्रम सिंह संजीवनी क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसायटी का प्रबन्ध निदेशक बताया जाता है। आिखर क्यों कर संजीवनी ने खम ठोककर बड़े पैमाने पर जाल फैलाया होगा। संजीवनी के सूत्रधारों ने राजस्थान में 211 और गुजरात में 26 शाखाएँ खोल लीं। राजस्थान में 953 लोगों के साथ ठगी की। गुजरात में 50 हज़ार का तियाँ-पाँचा कर दिया। विक्रम सिंह गिरफ्तार हुआ, तो उसके चार साथी- देवी सिंह, किशन सिंह, शैतान सिंह और नरेश सोनी भी धर लिये गये। इतनी बेशुमार दौलत का उन्होंने क्या किया? रहस्योद्घाटन चौंकाने वाला था। जालसाज़ों ने निवेशकों की रकम से रियल एस्टेट कम्पनी और फार्मा कम्पनियाँ खोल लीं। दक्षिण अफ्रीका में काफी ज़मीन खरीद ली और न्यूजीलैंड में एक होटल बना लिया।
सहकारिता कानून की खामियाँ और अफसरों से रसूख बनाकर लोगों को ठगने वाली संजीवनी कोई इकलौती को-ऑपरेटिव सोसायटी नहीं है। ऐसी करीब सवा सौ समितियाँ फर्ज़ीवाड़े की ज़मीन पर खड़ी हैं। इस पंक्ति में आदर्श क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसायटी तो सबसे बड़ा नाम है। इस कम्पनी को ज़मीनी हकीकत देने वाला वीरेन्द्र मोदी कभी सिरोही जैसे छोटे शहर में मामूली ड्राइवर था। आदर्श को-ऑपरेटिव सोसायटी ने 20 लाख लोगों से 14800 करोड़ हड़प लिये। चार हज़ार पन्नों की चार्जशीट में एसओजी ने तर्क दिया है कि वीरेन्द्र मोदी ने इतालवी ठग चाल्र्स पोजी की तरह ठगी को अंजाम दिया। इसी शृंखला में 40 करोड़ की ठगी करने वाली अर्बुदा को-ऑपरेटिव सोसायटी का जन्मदाता राकेश अग्रवाल उर्फ बॉबी कभी एक टी-स्टॉल चलाता था। लेकिन राजनीतिक रसूख के बूते उसने बड़े सपने दिखाकर निवेशकों के करोड़ों हड़प लिये।
आदर्श क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसायटी के 14,800 करोड़ के घोटालों से जुड़ी चार्जशीट के 40 हज़ार पन्नों में एक-से-एक चौंकाने वाले तथ्य है। मुकेश मोदी ने एडवाइजर के रूप में कागज़ों में महावीर कंसल्टेंसी नाम की कम्पनी बनाकर करोड़ों रुपये का कमीशन बाँट दिया। यह कम्पनी सोसायटी के संस्थापक अध्यक्ष मुकेश की पन्नी मीनाक्षी व पुत्री प्रियंका के पति वैभव लोढ़ा की है, जिसका प्रधान कार्यालय हरियाणा के गुडग़ाँव में सुशांत लेक फेस-1 में सुशांत शॉपिंग एक्रेड बिल्डिंग में था। राजस्थान एसओजी की टीम जब जाँच करने यहाँ पहुँची तो ग्रांउड फ्लोर में 12 गुणा 15 फीट की दुकान मिली। इसने 123 फर्ज़ी शैल कम्पनियों का भी रजिस्ट्रेशन किया, जो अस्तित्व में नहीं थी। 14,800 सौ करोड़ रुपये के आदर्श क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसायटी घोटाले में करीब ढाई हज़ार करोड़ रुपये का लेन-देन किसके साथ हुआ? यह रकम कहाँ है? यह बात ईडी समेत अन्य जाँच एजेंसियों के लिए एक गुत्थी बनी हुई है। सवाल यह है कि आिखर क्योंकर सहकारिता अधिनियम की खामियों और जाली-झरोखों का इस्तेमाल कर जालसाज़ों नेे एक दर्जन से ज़्यादा क्रेडिट सोसायटीज बनाकर हज़ारों लोगों की तबाही का सामान कर दिया। चौंकाने वाली बात है कि हेराफेरी की अलख जगाने वाले इस खेल में सहकारिता महकमे के अफसरों ने जमकर पैसा खींचा। सबसे बड़ा और अहम सवाल है कि सहकारिता अधिनियम के तहत ऑडिट का प्रावधान है। फिर भी आिखर क्यों यह खेल पकड़ में नहीं आया?
अर्थ-शास्त्रियों का कहना है कि या तो ऑडिट हुआ ही नहीं, अगर हुआ भी, तो ऑडिट के नाम पर लीपापोती कर दी गयी। सहकारिता मंत्री उदयलाल आंजना भी इस बात से इत्तेफाक जताते हैं कि ऑडिट जिस तरीके से होना चाहिए था, नहीं हुआ। आंजना कहते हैं कि हाल ही में केन्द्र सरकार द्वारा कानून बनाये जाने के बाद राज्य सरकार ने सहकारिता अधिनियम में संशोधन करने का निर्णय लिया है। यह संशोधन ऑडिट प्रक्रिया को लेकर किया जाएगा, ताकि समय रहते फर्ज़ीवाड़े का खुलासा हो सके। आंजना यह कहते हुए अपनी •िाम्मेदारी से बच रहे हैं कि सारे फर्ज़ीवाड़े पिछली सरकार में हुए। हमारी सरकार के सामने तो खुलासे हो रहे हैं। केन्द्र सरकार ने भी कानून फरवरी में बनाया है। लेकिन तब तक तो जालसाज़ करोड़ों की रकम बटोरकर उडऩ-छू हो चुके थे।
इस कांड में तबाही का दर्द झेल रहे पीडि़त बेशक किसी को नसीहत देने की स्थिति में नहीं हैं। लेकिन उनका कहना है कि हमने सरकार के सहकारिता कानून पर भरोसा किया। आिखर क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसायटीज का उद्भव तो सहकारिता कानून की ज़मीन पर ही हुआ था। बेशक सहकारिता रजिस्ट्रार तफसील से समझाने की स्थिति में नहीं है कि आिखर इस तरह की मनमानी कैसे हुई? लेकिन सवाल है कि इतने बड़े फर्ज़ीवाड़े के बाद अब कोई कैसे सहकारिता अभियान पर विश्वास कर पायेगा? चौंकाने वाली बात है कि बेईमानी के मलकुंड में गले-गले तक डूबी इन सोसायटीज का गठन तो महकमे के अफसरों और कर्मचारियों के रहम-ओ-करम से ही हुआ। इस समीकरण की बानगी बेहद दिलचस्प है। सहकारिता महकमे के हुक्कामों पर सोसायटीज की कोठरियों में झाँकने का •िाम्मा होता है। उनका यह भी •िाम्मा होता है कि कानूनी जाल फैलाकर उन घडिय़ालों को काबू किया जाए, जो निवेशकों की जमा-पूँजी को निगलने की िफराक में रहते हों? लेकिन जब अफसर ही सेवानिवृत्ति लेकर इन सोसायटीज के मोटी पगार वाले नौकर हो गये, तो जाल सिकुडऩा ही था। इन बेईमानों की पंक्ति में सहकारिता महकमे के संयुक्त रजिस्ट्रार जवाहरलाल परिहार, इंस्पेक्टर मुन्नालाल वर्मा के नाम लिये जा सकते हैं। यह तथ्य बहुत कुछ कह देता है कि जोधपुर जोन के एक दर्जन से अधिक अफसर और कार्मिक इन क्रेडिट सोसायटीज में नौकरी कर रहे हैं। सेवानिवृत्ति का मंसूबा बनाकर बैठे अफसरों और कार्मिकों ने सबसे पहले उन्हीं सोसायटीज का पंजीयन अनुमोदन करवाया। इस काम में कानूनी कायदों की जो भी अड़चनें रहीं, उन्हें खत्म करने के नाम पर भी इन्होंने खूब मलाई उड़ायी। मतलब कानून-कायदों को ध्वस्त करने में उन्होंने कोई गुरेज़ नहीं किया। इस अवैध खेल की भनक सरकार को लगी तो जाँच भी करवायी गयी। लेकिन किसी को भी दोषी नहीं ठहराया गया।
बहरहाल, अब राज्य सरकार ने केन्द्र की तर्ज पर क्रेडिट सोसायटीज पर नकेल कसने का मन बना लिया है। लेकिन इसकी सफलता तभी है, जब सरकार अफसरों के असमंजस का मर्म टटोल सके। लेकिन िफलहाल तो सरकार ने किसी भी नई सोसायटी के गठन पर रोक लगा दी है। भ्रष्टाचारियों पर सीधे हाथ डालने की बजाय नापतोल के पैमाने तय कर दिये हैं। देखना तो यह है कि यह कानून ठगी में डूबी सोसायटीज में कितना खौफ पैदा कर पाता है?
ठगी की जाँच में तेज़ी
निवेश के नाम पर हज़ारों लोगों के साथ ठगी कर चुकी आदर्श, संजीवनी और नवजीवन क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसायटी के िखलाफ चल रही कार्रवाई में तेज़ी लाने के लिए पड़ताल को अब ‘द बेनिंग ऑफ अनरेगुलेटेड डिपॉजिट स्कीम एक्ट’ के तहत लाया जाएगा। सहकारिता समितियों के रजिस्ट्रार नीरज के. पवन को ही इस प्राधिकृत अधिकारी बनाया गया है। राज्य सरकार का मानना है कि इस नयी व्यवस्था से जालसाज सोसायटीज के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई की राह खुल जाएगी। सहकारिता रजिस्ट्रार पवन का कहना है कि अब तक बहुराज्यीय क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसायटीज का लाइसेंस केन्द्रीय रजिस्ट्रार द्वारा जारी किया जाता था; जबकि एक ही राज्य में सक्रिय सोसायटी का लाइसेंस राज्य का सहकारी विभाग जारी कर रहा था। इस व्यवस्था से फर्जीवाड़े की सम्भावनाएँ ज़्यादा रहती हैं। िफलहाल जालसाज सोसायटीज के विरुद्ध चल रही जाँच में इस व्यवस्था से कई दिक्कते भी आ रही थी। अब नयी व्यवस्था से जाँच में सीबीआई का दखल हो सकेगा। सहकारिता रजिस्ट्रार पवन ने एक्ट के प्रावधानों का खुलासा करते हुए कहा कि एक्ट की धारा 30 के मुताबिक, निवेश स्वीकार करने वाली एजेंसी निवेशक तथा एजेंसी की संपत्ति देश और देश के बाहर हो, तो ऐसे मामलों की जाँच सीबीआई करेगी। इन मामलों को सरकार दिल्ली स्पेशल पुलिस एस्टेबिलशमेंट एक्ट 1946 की धारा-6 के तहत केन्द्र सरकार को भेजेगी। केन्द्र सरकार धारा-5 के तहत प्रकरण जाँच के लिए सीबीआई को देगी। बहरहाल इससे ठगी के शिकार लोगों को आस तो बँधी है।