कर्नाटक में जिस फिल्मी अंदाज में केसरिया का राज्यारोहण थमा उसकी कसर अब दो तेलुगु राज्यों में अपनी जीत के परचम से भाजपा पूरी करना चाहती है। दक्षिण भारत में घुसने में कामयाब होने के लिए कर्नाटक में नाकाम भाजपा अब आंध्र प्रदेश और खासकर तेलंगाना के जरिए प्रवेश की हरचंद कोशिश कर रही है। पार्टी अब सब जगह इस प्रचार में लगी है कि उन्हें सबसे ज़्यादा मत तेलुगुभाषी क्षेत्रों में मिले। भाजपा संगठन को भरोसा है कि दक्षिण भारत विजय का सपना तेलंगाना के जरिए ही संभव है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने ज़मीनी स्तर पर गऱीबों के लिए कई कल्याणकारी और विकास की योजनाएं शुरू की। पहले से चल रही योजनाओं के नामों में यथा अनुरूप सुधार किए। फिलहाल राज्य में केसरिया पार्टी विशिष्ट संपर्क अभियान और कुछ और भी अभियान चला रही है। इसका आरोप है कि ‘राज्य की सत्ता चला रही टीआरएस पार्टी अपने चुनावी वादे पूरे नहीं कर सकी। इसने 2014 के चुनाव में सार्वजनिक सभाओं में कहा कि यह बीपीएल परिवारों को दो कमरे का घर देगी। मुख्यमंत्री के सी आर ने कहा कि नवगठित तेलंगाना का मुख्यमंत्री अनुसूचित जातियों का ही नेता होगा । लेकिन उन्होंने अपना वादा पूरा नहीं किया।Ó भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष डा. के लक्ष्मण ने आरोप लगाते हुए कहा। अब भाजपा के विशिष्ट संपर्क अभियान कार्यक्रम में पार्टी नेताओं ने स्थानीय गांवों और अनुसूचित जाति के लोगों की बस्तियों में खाने और सोने का कार्यक्रम शुरू कर दिया है, और सहपंक्ति में बैठ कर भोजन करना प्रारंभ किया । इससे उन्हें उम्मीद है कि उनका वोट हासिल होगा। हमने इन कार्यक्रमों जब में केद्र सरकार की योजनाएं बताई तो बस्तियों के नौजवान और बुजुर्ग हतप्रभ से रह गए । अब तक तीन सौ गांवों में भाजपा के नेता और कार्यकर्ता दौरे कर चुके हैं। उन्हें केंद्र की योजनाओं पर गांव के लोगों की प्रतिक्रिया भी मिली है। ये लोग चार साल में भाजपा राज की उपलब्धि भी बताते हैं और उसकी पुस्तिका बांटते हैं। पार्टी नेे एक सांस्कृतिक शाखा भी बनाई है। इसमें 80 टीमें हैं। इन टीमों के अभिनय के जरिए पार्टीे के नेता मानते हैं कि अनपढ़ लोगों को पार्टी से जुडऩे में खासी मदद मिलती है। राज्य भाजपा के नेता मानते हैं कि उज्जवला योजना जिसे 14 अप्रैल को केंद्रीय मंत्री धमेंद्र प्रधान ने संविधान निर्माता बी आर अंबेडकर के जन्म दिन पर सूर्यपेट में शुरू किया था उसका लाभ आगामी चुनावों में पार्टी को मिलेगा।
भाजपा ने पिछले चुनावों में तेलुगु देशम पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था। लेकिन इस बार यह अपने दम पर अकेले चुनाव लडऩा चाहती हैं। राज्य पार्टी अध्यक्ष ने पहले ही घोषणा कर दी है कि पार्टी राज्य की 119 विधानसभा सीटों और लोकसभा की सत्तरह सीटों पर चुनाव लड़ेगी। पिछले चुनाव में एक सांसद (बंढारू दत्तारेय, सिकंदराबाद जिन्हें हैदराबाद के शोध छात्र रोहित बेमुला कांड से भी जुड़ा माना जाता हैं) विजयी रहा। पार्टी को विधानसभा में मुशीराबाद, गौशमहल, उपल, खैरताबाद और अंबरपेट में सीटें मिली। ये सारी सीटें हैदराबाद के आसपास के इलाकों की हैं।
सबसे बड़ा सवाल आज यह है कि क्या पार्टी विधानसभा की सभी सीटों पर जीत हासिल कर सकेगी। क्योंकि इतिहास बताता है पहले कभी इसने चुनाव नहीं लड़ा और कई ग्रामीण इलाकों में तो पार्टी के पास अपने नेता नहीं हैं जो चुनाव लड़ सकें। राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह राज्य का दो बार दौरा कर चुके हैं। पहली बार उन्होंने नालगोंडा जिले का पिछले साल दौरा किया था फिर वे जून की 22 तारीख को आए लेकिन मतदाताओं में उत्साह नहीं झलका। दूसरी और पार्टी नेतृत्व ने काकातिया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर वैकुंठम कुछ गैर निवासी भारतीय और एनजीओ चलाने वालों को पार्टी में शामिल किया और पार्टी के प्रचार प्रसार को बढ़ावा दिया।
कांग्रेस ने शुरू की बस यात्रा
राज्य के सबसे बड़े विपक्षी दल कांग्रेस ने चरणों में बस यात्राओं के जरिए तेलुगु भाषी लोगों के बीच जाकर उन्हें कांग्रेस का महत्व और देश के विकास में इसके अवदान से परिचित कराया है। पार्टी ने राज्य में सत्ता चला रही टीआरएस सरकार की चार साल में खेती, किसानी में इसकी नाकामी को मुद्दा बनाया है। अब मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव अचानक राज्य के किसानों के लिए रायतू योजना लाए हैं। जबकि उन्हीं की सरकार के राज में चार हजार किसानों ने आत्महत्या की। कांग्रेस का कहना है कि सरकार दो लाख मात्र तक का कजऱ् माफ कर देगी बशर्ते उनकी सरकार राज्य में बन जाए। राज्य में तीन स्तरों में कांगे्रस ने 80 विधानसभा क्षेत्रों में यात्रा कर ली है। इन बस यात्राओं में तेलंगाना की जनता खासी रूचि इसलिए भी ले रही है क्योंकि वह जानती हैं कि राव किस तरह अपना पूरा परिवार राज्य सरकार पर हावी करने में जुटे है।
टीआरएस को किसानों और सिंचाई परियोजना से उम्मीद
बहुत ही कम अंतर से बहुमत पाकर तेलंगाना राष्ट्र समिति ने राज्य में सरकार बनाने का न्यौता चार साल पहले पाया था। इस दौरान मुख्यमंत्री ने पार्टी पर और शासन में अपनी गिरफ्त बनाए रखने के इरादे से बेटे और बेटी को साथ लिया। उधर पार्टी में परिवार तो हावी हुआ पर दूसरे नेता कमजोर। चार साल में मुख्यमंत्री ने तमाम तरह के कई दिन चलने वाले भव्य यज्ञ कराए और खूब पूजा-पाठ किया। बताया गया कि यह सब राज्य की खुशहाली और समृद्धि के लिए हैं। लेकिन इन सबसे राज्य के अधिकांश मतदाता खिन्न रहे। टीआरएस के कई विधायकों ने यह महसूस किया कि वे चुनाव में हार सकते हैं।
टीआरएस राज में कई विधायकों और बाहर से आकर विधायक बने नेताओं (दूसरे दलों से आए) में मतभेदों का सिलसिला सुनाई देने लगा। राज्य में मुख्यमंत्री ने कई नए जिले विकास के आधार पर तो बना दिए लेकिन उस आधार पर विधानसभा सीटें नहीं बढ़ी।
दूसरी ओर जनप्रिय योजनाएं मसलन कल्याण लक्ष्य, शादी-मुबारक, सामाजिक सुरक्षा पेंशन, किसानों के लिए पांच लाख रुपए मात्र का बीमा और इन्सेंटिव सब्सीडी योजनाएं चैथे साल में शुरू की । जाहिर है ऐसी योजनाओं की होड में कुछ मझोली और बड़ी सिंचाई योजनाएं शुरू की। इनसे नेताओं में एक आत्मविश्वास ज़रूर बढ़ा । महत्वपूर्ण सिंचाई योजना कालेश्वरम को तो पार्टी आने वाले चुनावों में बतौर नारे इस्तेमाल भी करेगी।
टीडीपी क्या टीआरएस या कांग्रेस के साथ होगी
तेलुगु देशम पार्टी क्या विपक्षी दलों की एकता को और मज़बूत करेगी। इसके सुप्रीमो और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री के अनुसार इस गठजोड़ को नकारा नहीं जा सकता। हालांकि उन्होंने अपनी ओर से कोई इशारा नहीं किया कि वे खुद किसके साथ हैं और वे किसके साथ हो सकते हैं। लेकिन राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि यह समझौता तेलंगाना राज्य की टीआरएस सरकार या फिर कांगे्रस के साथ संभव है। तेलुगु देशम वह पार्टी है जिसने आंध्र प्रदेश के बंटवारे का विरोध किया था। दो बार लगातार सत्ता में रहने के कारण इसकी अपनी पहचान पर अब संदेह होता है। बहुत से महत्वपूर्ण नेता और विधायक कांग्रेस और टीआरएस में चले गए। राज्य के विभाजन के पहले पिछले चुनाव के दौर से पहले इन नेताओं को विभाजन के बाद अच्छे पद और जगहें भी मिल गई।
हालांकि ‘वोटों के बदले नकदीÓ का मामला दो साल पहले उभरा और आज भी दिखता है। इससे पार्टी की ताकत पर असर पड़ा है। पार्टी के 15 विधायकों ने जो पार्टी के चुनाव चिह्न पर चुनाव लड़ा था। अब उनमें सिर्फ दो बचे हैं। जो पार्टी में आज भी हैं। इसी बीच 31 जि़लों के 20 जि़ला पार्टी अध्यक्ष या तो टीआरएस से जा मिले या फिर कांग्रेस से। इससे यह पता लगता है कि राज्य में आज तेलुगु देशम पार्टी की क्या स्थिति है।