लोकसभा में 10 दिसंबर को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का आरक्षण 10 साल बढ़ाते हुए संशोधन विधेयक-2019 पारित किया है। इस बिल को लेकर तहलका की स्वतंत्र संवाददाता मंजू मिश्रा ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के अनेक लोगों से बातचीत की। प्रस्तुत है इसी बातचीत पर आधारित एक रिपोर्ट
केन्द्र सरकार ने लोकसभा ने इसी शीत सत्र में 10 दिसंबर को संविधान के 126वें संशोधन विधेयक-2019 को मंजूरी दे दी। इस विधेयक के मुताबिक, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों को दिये गये आरक्षण की अवधि 10 वर्ष बढ़ाने का प्रावधान किया गया है। विदित हो कि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और एंग्लो-इंडियन समुदाय को पिछले 70 साल से मिल रहा आरक्षण 25 जनवरी, 2020 को समाप्त हो रहा है। अब मौज़ूदा सरकार ने इस विधेयक में एससी और एसटी के संदर्भ में इसे 10 वर्ष बढ़ाने का प्रावधान किया है। इस हिसाब से अब यह आरक्षण 25 जनवरी, 2030 को समाप्त होगा। यह विधेयक राज्य सभा और लोकसभा में पारित हो जाने के बाद सरकार को भले ही लगता हो कि उसने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों का दिल जीत लिया है, परन्तु इसमें कई सवाल हैं, जो इस आरक्षण विधेयक के पारित होने से खड़े हो रहे हैं। पहला सवाल यह है कि जब सरकारी नौकरियाँ ही नहीं बचेंगी, तब किसी वर्ग को आरक्षण का क्या फायदा मिलेगा? दूसरा सवाल यह है कि अगर देश में दिल्ली सरकार की तरह शिक्षा का स्तर अच्छा करने के साथ-साथ सभी वर्गों को समान शिक्षा की व्यवस्था कर दी जाए, तो इस आरक्षण की क्या आवश्यकता पड़ेगी? तीसरा सवाल यह कि क्या 13 प्वाइंट रोस्टर जैसी भर्ती प्रक्रिया लागू करने से आरक्षित वर्ग आरक्षण का लाभ ले सकेंगे? इन सबका जवाब शायद ही किसी के पास हो।
10 दिसंबर को भले ही आरक्षण संशोधन विधेयक-2019 355 मतों के सरकार के पक्ष में पडऩे से पारित हो गया, परन्तु इस विधेयक का वास्तव में फायदा कितना होगा यह तो समय ही बता पायेगा। इस विधेयक को पारित करने के बाद विधि एवं न्याय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा था कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का पूरा ही समाज काफ़ी पिछड़ा हुआ है। उन्होंने यह भी कहा कि ऐसे में इसे न तो दो भागों में बाँटने की आवश्यकता है और न ही अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति समाज में क्रीमीलेयर की ही ज़रूरत है। प्रसाद ने एंग्लो इंडियन समुदाय को विधेयक के दायरे से बाहर रखने के बारे में कांग्रेस सहित कुछ सदस्यों की चिंताओं पर जवाब में कहा कि कांग्रेस के समय से ही सीमा शुल्क, टेलीग्राफ और रेलवे जैसे विभागों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदायों के लिए अनेक पदों को समाप्त कर दिया गया था। इन समुदायों के शैक्षणिक अनुदान को समाप्त कर दिया गया था। मंत्री ने कहा कि मैंने पहले ही बताया है कि एंग्लो इंडियन समुदाय के लोगों की संख्या 296 है और इस बारे में रजिस्ट्रार जनरल तथा जनगणना पर संदेह करना उचित नहीं है। विधि मंत्री ने यह भी कहा कि जब यही संस्था अनुसूचित जाति के लोगों की संख्या 20 करोड़ तथा अनुसूचित जनजाति के लोगों की संख्या 10.45 करोड़ बताती है, तब यह ठीक लगता है। लेकिन यहाँ तो एंग्लो इंडियन लोगों की संख्या पर शंका की जा रही है।
प्रसाद ने कहा कि 126वें संविधान संशोधन विधेयक-2019 के ज़रिये से अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति के लोगों के सदन में आरक्षण को 10 साल बढ़ाया जा रहा है। यह आरक्षण जनवरी, 2020 में समाप्त होने जा रहा है।
उन्होंने आरक्षण को कभी न हटाने की बात कहते हुए कहा कि भाजपा अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग के आरक्षण के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध है। उन्होंने कांग्रेस पर संविधान निर्माता बाबा साहब डॉ. भीमराव आंबेडकर के साथ भेदभाव करने का आरोप लगाया। उन्होंने यह भी कहा कि कांग्रेस ने बाबा साहब को वर्षों तक भारत रत्न से वंचित रखा। वीपी सिंह सरकार ने 1990 में उन्हें भारत रत्न प्रदान किया, जिसका भाजपा ने समर्थन किया था।
जब अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का यह विधेयक पास हुआ, तो तहलका संवाददाता ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के अनेक लोगों से बातचीत की। इन वर्गों के लोगों ने कुछ इस प्रकार प्रतिक्रियाएँ दीं।
नौकरी नहीं तो आरक्षण कैसा?
उत्तर प्रदेश के प्रकाश गौतम ने कहा कि सरकार सभी सरकारी संस्थानों को अगर बेच देगी तो आरक्षण का क्या फायदा? प्रकाश ने बताया कि वे एक सरकारी स्कूल में चपरासी हैं। उन्होंने बड़ी मुश्किल से अपने दो बच्चों को पढ़ाया-लिखाया है; लेकिन अब लगता नहीं कि उनके बच्चों को सरकारी नौकरी मिल सकेगी, क्योंकि सरकारी संस्थान तो धड़ल्ले से बेंचे जा रहे हैं और बाक़ी को भी बेचने की तैयारी की जा रही है। उन्होंने यह भी कहा कि उनके पास इतना पैसा भी नहीं कि अपने बच्चों को डॉक्टर या इंजीनियर बना सकें। वहीं बरेली के मुन्ना लाल ने कहा कि उन्होंने बड़ी मुश्किल से अपने एक बेटे और दो बेटियों को पढ़ाया-लिखाया है। वे जैसे-तैसे बेटे को दो साल पहले एमबीए करवा पाये थे। बेटे ने कई बार सरकारी नौकरी के लिए आवेदन किये पर कहीं भी नौकरी नहीं मिली। अब उसे प्राइवेट नौकरी के लिए मजबूर होना पड़ा है। अगर उनका बेटा प्राइवेट नौकरी नहीं करेगा, तो मेरे सिर पर बच्चों की पढ़ाई के दौरान चढ़ा कर्ज़ नहीं निपट पायेगा।
आरक्षण का गरीबों को नहीं मिलता फायदा
अहमदाबाद से सटे नारोल के रहने वाले सुधीर कुमार से आरक्षण के बारे में पूछने पर उन्होंने बताया कि वे अनुसूचित जाति से आते हैं। लेकिन उनके घर में आज तक किसी को कोई सरकारी नौकरी नहीं मिली है। सुधीर ने कहा कि उन्हें यह तक नहीं मालूम रहा कि अनुसूचित जाति के लिए कितने प्रतिशत आरक्षण है? उन्होंने कहा कि वे बिहार के बेतिया के रहने वाले हैं और उनके पिता गुजरात में ही काम करते हैं। मेरा बचपन यहीं गुज़रा है और पढ़ाई भी यहीं की है, मगर 12वीं तक पढऩे के बाद भी कोई सरकारी नौकरी नहीं मिली। आिखरकार मैंने फैक्ट्री में नौकरी कर ली। वहीं अहमदाबाद के पीपलेज गाँव में रहने वाले अनूप उर्फ़ टिंकू ने बताया कि वे उत्तर प्रदेश के बांदा से हैं और पिछले आठ साल पहले अहमदाबाद आए थे। अनूप ने बताया कि वे ग्रेजुएट हैं और आज कपड़े की कम्पनी में नौकरी करने को मजबूर हैं। आठ-दस बार सरकारी नौकरी के लिए अप्लाई कर चुके अनूप ने बताया कि एक बार पुलिस भर्ती में सब कुछ ठीक होते हुए भी उनसे मोटी रकम रिश्वत के तौर पर माँगी गयी, जो दे पाना उनके लिए सम्भव नहीं थी। उन्होंने कहा कि ऐसे आरक्षण का क्या फायदा, जब उसका गरीबों को फायदा ही नहीं मिलता।
कितनी सरकारी कम्पनियों पर सरकार का दाँत
2014 में सत्ता में आने के बाद एनडीए सरकार ने सरकारी कम्पनियों का निजीकरण करने की तरकीब निकालकर निजीकरण को बढ़ावा तो दे दिया, परन्तु इससे देश के अधिकतर लोग ख़ुश नहीं हैं। आपको पता ही होगा कि प्राइवेट ट्रेन तो चल ही गयी, साथ ही कई रेलवे स्टेशन भी प्राइवेट कम्पनियों को ठेके पर दिये जा चुके हैं। इसी प्रकार हाल ही में मोदी सरकार की कैबिनेट ने पाँच कंपनियों के विनिवेश को स्वीकृति दे दी है। नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार और कुछ सूचनाओं की मानें तो केंद्र सरकार ने बिक्री के लिए 46 सरकारी कम्पनियों की लिस्ट तैयार कर ली है। यह भी कहा जा रहा है कि सरकार के मंत्रीमंडल ने इन 46 कम्पनियों में 24 के विनिवेश की स्वीकृति दे भी दी है। अब देखना यह है कि अगर इसी तरह सभी सरकारी कम्पनियों का निजीकरण कर दिया जाएगा, तो फिर आरक्षण का क्या फ़ायदा रहेगा?
कॉलेज और यूनिवर्सिटी भर्ती में रहा झोल
अगर आरक्षण की बात मान भी लें, तो यह तय कैसे माना जाए कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को आरक्षण के ज़रिये सरकारी नौकरी मिल ही जाएगी। हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा विभिन्न कॉलेजों और यूनिवर्सिटीज में 13 प्वाइंट रोस्टर लागू करने के बाद आरक्षण होते हुए भी आरक्षित वर्गों को ठीक से आरक्षण का लाभ नहीं मिल पा रहा था। इसका पूरे देश में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग ने विरोध भी किया था।