सर्वोच्च न्यायालय ने गुरुवार को निर्वाचन आयुक्त (सीईसी) की नियुक्ति पर बड़ा फैसला सुनाया है। अब मुख्य निर्वाचन आयुक्त और आयुक्तों की नियुक्ति प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) मिलकर करेंगे। सर्वोच्च अदालत की संवैधानिक बेंच ने कहा कि चुनाव आयुक्त की नियुक्ति भी सीबीआई निदेशक की तर्ज पर की जाए।
सीबीआई निदेशक का चयन प्रधानमंत्री, नेता विपक्ष और देश के मुख्य न्यायाधीश का पैनल चुनता है। राष्ट्रपति इस पैनल की सिफारिश पर आखिरी फैसला लेंगे। जस्टिस केएम जोसेफ ने कहा कि लोकतंत्र को बनाए रखने के लिए चुनाव प्रक्रिया की स्पष्टता बनाए रखी जानी चाहिए। नहीं तो इसके अच्छे परिणाम नहीं होंगे।
जस्टिस केएम जोसेफ ने कहा कि डेमोक्रेसी बहुत महीन तरीके से लोगों की ताकत से जुड़ी है। इन्हें अलग नहीं किया जा सकता है। हमें अपने दिमाग में एक ठोस और उदार डेमोक्रेसी का हॉलमार्क लेकर चलना होगा। वोट की ताकत सुप्रीम है, इससे मजबूत से मजबूत पार्टियां भी सत्ता हार सकती हैं। इसलिए इलेक्शन कमीशन का स्वतंत्र होना जरूरी है। इसलिए इलेक्शन कमीशन का स्वतंत्र होना जरूरी है। यह भी जरुरी है कि यह अपनी ड्यूटी संविधान के प्रावधानों के मुताबिक और कोर्ट के आदेशों के आधार पर निष्पक्ष रूप से कानून के दायरे में रहकर निभाए।
सर्वोच्च अदालत ने पिछली सुनवाई में सीईसी और चुनाव आयुक्त की नियुक्ति प्रक्रिया पर सवाल उठाया था। कोर्ट ने मामले में केंद्र से जजों की अपॉइंटमेंट की फाइल मांगी थी। अदालत के आदेश के बाद केंद्र सरकार ने चुनाव आयुक्त अरुण गोयल के अपॉइंटमेंट की ओरिजिनल फाइल सुप्रीम कोर्ट को सौंपी। इसे देखने के बाद अदालत ने केंद्र से कहा कि चुनाव आयुक्त के अपॉइंटमेंट की फाइल बिजली की तेजी से क्लियर की गई। यह कैसा मूल्यांकन है। सवाल उनकी योग्यता पर नहीं है। हम अपॉइंटमेंट प्रोसेस पर सवाल उठा रहे हैं।
नियुक्ति को लेकर वरिष्ठ एडवोकेट प्रशांत भूषण ने एक याचिका दायर कर सवाल उठाया है। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार से इस मामले पर सुनवाई शुरू की है। गुरुवार को सुनवाई का तीसरा दिन है। कोर्ट सीईसी और ईसी की नियुक्ति की प्रक्रिया पर 23 अक्टूबर, 2018 को दायर की एक याचिका पर सुनवाई कर रहा है।