स्वास्थ्य हमारे जीवन की पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। क्योंकि जब हम स्वस्थ ही नहीं होंगे, तो दुनिया के सारे सुख, सारे स्वाद हमारे लिए बेकार हो जाएँगे। यह कहना है दिल्ली के एक प्राइवेट अस्पताल में अपनी सेवाएँ दे रहे एमबीबीएस डॉक्टर मनीष कुमार का। उनका कहना है कि जब-जब मौसम बदलता है, किसी भी शरीर को उसके अनुकूल ढलना पड़ता है, जिसमें उसे ढलने में कुछ समय लगता है। लेकिन अगर शरीर में मौसम के अनुकूल ढलने की क्षमता ही न तो या कोई इंसान लापरवाही करे तो, दोनों ही स्थितियों में मौसमी बीमारियाँ शरीर को जकड़ लेती हैं। चाहे फिर सर्दी हो, गर्मी हो या बरसात हो। डॉक्टर मनीष के अनुसार हर इंसान को मौसम के हिसाब से कपड़े पहनने के साथ-साथ मौसम के हिसाब से ही खानपान भी करना चाहिए। वहीं गुजरात में निजी अस्पताल चला रहे बच्चों के डॉक्टर धवल के अनुसार बच्चों को मौसम की मार से सबसे पहले बचाने का उपाय करना चाहिए। डॉक्टर धवल कहते हैं कि बच्चों को बचाने के लिए बच्चों को ही सभी मौसमों से बचाने के उपाय नहीं करने होते, बल्कि उनके आसपास या उनके सम्पर्क में रहने वाले बड़ों को भी इन मौसमी बीमारियों से बचने की ज़रूरत होती है। क्योंकि बड़ों से बच्चों में बहुत जल्दी संक्रमण फैलता है।
सर्दियाँ शुरू हो चुकी हैं। दोनों ही डॉक्टर्स ने सर्दियों में बड़ों और बच्चों को होने वाली बीमारियों की जानकारी के साथ इन बीमारियों से बचने के उपाय भी बताये। साथ ही ये बीमारियाँ कितने प्रकार की होती हैं और इनसे बचने के उपाय क्या हैं? इनका असर किस पर ज़्यादा पड़ता है? यह भी विस्तार से बताया।
त्वचा सम्बन्धी बीमारियाँ : यह बीमारियाँ काफी आम और खासी परेशानी वाली होती हैं। जैसे ही सर्दियाँ शुरू होती हैं, तकरीबन 60 से 70 प्रतिशत लोगों में त्वचा सम्बन्धी बीमारियाँ होने लगती हैं। बच्चों और किशोरों में ये बीमारियाँ बहुत होती हैं। इन बीमारियों में मुँह और हाथ-पैरों का फटना, शरीर की त्वचा का खुस्क होकर चटकना, त्वचा का खुस्क और रूखा होकर जिस्म से उतरना और हाथ-पैरों में खारिश होना आदि होता है। खारिश में खुजलाने से लाल चकते पडऩा।
इन बीमारियों का अक्सर पहला और मूल कारण होता है- शरीर में पानी की कमी होना। दूसरा कारण होता है बाहरी मौसम यानी सर्द हवा और ठंड से त्वचा में सिकुडऩ होना। सर्दी की इन त्वचा सम्बन्धी बीमारियों से बचने के लिए पानी लगातार पीते रहना चाहिए। साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखें, घर की भी और शरीर की भी। बिस्तर आदि को भी साफ-सुथरा रखें तथा उसे धूप में सुखाते रहें। जहाँ तक सम्भव हो शरीर को ढककर रखना चाहिए। सर्दी वाली माश्चराइज क्रीम या सरसों/नारियल का तेल त्वचा पर लगाना चाहिए। सूती कपड़े पहनने चाहिए, अगर ऊनी कपड़ों की ज़रूरत पड़ती है, तो सूती कपड़ों के ऊपर ऊनी कपड़े पहनने चाहिए। अधिक खारिश होने या त्वचा के अधिक चटकने पर डॉक्टर से परामर्श के अनुरूप इलाज कराना चाहिए। बच्चों को जहाँ तक सम्भव हो पूरी तरह से कपड़े पहनाकर रखने चाहिए।
खाँसी-जुकाम : सर्दी लगने से अधिकतर लोगों को खाँसी-जुकाम हो जाता है। इसके चलते फेफड़े सर्दी से जकड़ जाते हैं। ऐसे में बच्चों को निमोनिया होने का खतरा सबसे ज़्यादा होता है। खाँसी होने से सबसे ज़्यादा तकलीफ दमा और नज़ला के रोगियों को होती है। इन रोगों से बुजुर्ग ज़्यादा पीडि़त होते हैं। इन बीमारियों से बचने के लिए भी सबसे पहले सर्दी से बचाव करें। जिन लोगों को दमा या नज़ला या पुरानी खाँसी है, वे गर्म पानी ही पीएँ। वैसे तो सभी को गर्म पानी का लगातार सेवन करना चाहिए। ठण्डे खाद्य पदार्थ खाने से परहेज करें। बच्चों को बिलकुल भी ठण्डी ची•ों खाने में न दें। साथ ही यदि बच्चों में निमोनिया का असर हो रहा है, तो तुरन्त उसकी छाती, गले और तलवों की बच्चों वाला बाम लगाकर गर्म कपड़े से सिकायी करें। जल्द ही आराम न मिलने पर डॉक्टर को दिखाएँ। धूल और धुएँ से बचें। सम्भव हो तो धूप में हर रोज़ कुछ समय बिताएँ।
हृदय सम्बन्धी बीमारियाँ : बढ़ती सर्दी के साथ-साथ हृदय सम्बन्धी बीमारियाँ भी बढऩे लगती हैं। यह बीमारियाँ खासतौर पर बुजुर्गों के साथ उन लोगों को ज़्यादा होती हैं, जिनका कोलेस्ट्रोल बढ़ा हुआ होता है। ऐसे में साँस लेने में तकलीफ के साथ-साथ हृदय में दर्द हो सकता है। यहाँ तक कि खून का दौड़ान कम होने से रोगी को हृदयाघात या पक्षाघात भी हो सकता है। ऐसे लोगों को सर्दियों में भी सामान्य तापमान में रहना चाहिए। यदि सुविधा हो तो दिन में एक से तीन बार, जैसा सम्भव हो; गर्म पेय जैसे- चाय-कॉफी आदि पीते रहना चाहिए। पूरी सर्दी गर्म पानी पीना चाहिए। डॉक्टर से इलाज कराना चाहिए।
हाइपोथर्मिया यानी अल्पताप : अल्पताप की बीमारी तभी होती है, जब सर्दियों में शरीर का ताप सामान्य से नीचे तकरीबन 34 डिग्री सेल्सियस से नीचे चला जाए। इस बीमारी में व्यक्ति के हाथ-पैर ठंडे पडऩे लगते हैं। साँस लेने में तकलीफ होने लगती है, हृदय की गति भी बढ़ जाती है और रक्तचाप कम हो जाता है। इस स्थिति में खून जमने से व्यक्ति की मृत्यु भी हो सकती है। इस बीमारी से बचाव के लिए मरीज़ को गर्म जगह पर पूरी तरह ढककर रखें। उसकी हथेलियों, पैर के तलवों को अपनी हथेली से रगडक़र गर्म करें। गर्म पेय पिलाएँ और डॉक्टर को दिखाएँ।
टॉन्सिलाइटिस यानी तोंसिल्लितिस : टॉन्सिलाइटिस या तोंसिल्लितिस बीमारी को भले ही कम लोग नाम से जानते हों, लेकिन यह बीमारी अधिकतर बच्चों में और कुछ हद तक बड़ों में भी पायी जाती है। यह बीमारी गले में सर्दी बैठने से होती है तथा इसमें दोनों ओर गले में ही सूजन आती है। इससे खाने-पीने में काफी तकलीफ होती है। इसके अलावा गर्दन में दोनों ओर दर्द भी होता है, जिससे कई बार रोगी को तेज बुखार हो जाता है। यह एक तरह का वायरल संक्रमण से होता है। इससे बचने के लिए सर्दी से पूरी तरह बचाव, खासतौर से गले का सर्दी से बचाव ज़रूरी है। ऐसे में गर्म भोजन तथा गर्म पानी का ही सेवन करें। गले की सिकायी करें। अधिक तकलीफ होने पर डॉक्टर से इलाज कराएँ।
बेल्स पाल्सी यानी फेसियल पेरालिसिस : यह बीमारी खून की कमी वालों के अलावा बुजुर्गों और प्रौढ़ लोगों को जल्दी होती है। इस बीमारी में व्यक्ति का मुँह टेंढ़ा हो जाता है, आँखों से पानी आने लगता है, ज़ुबान लडख़ड़ाने लगती है। इस बीमारी में आँख, कान खराब हो सकते हैं। इसका कारण यह है कि कान के पास से सेवेंथ क्रेनियल नस गुजरती है, जो तेज ठंड होने पर सिकुड़ जाती है। इसी के चलते यह बीमारी होती भी है। अधिक समय तक सर्दी में रहने से, खासतौर पर तेज़ सर्द हवा में रहने से भी यह बीमारी हो जाती है। इसका पहला उपाय सर्दी से बचाव ही है। यदि यह बीमारी किसी को हो जाए, तो उसे तुरन्त डॉक्टर के पास ले जाएँ।
कब्ज : वैसे तो सर्दियों में किसी को जल्दी कब्ज की बीमारी होती नहीं है, परन्तु यदि किसी को हो जाए, तो यह खून की पेचिस में भी बदल सकती है। इस बीमारी में पेट में ऐंठन/मरोड़ की समस्या हो जाती है। ऐसा खानपान बिगडऩे के अलावा पेट में सर्दी बैठने के चलते भी होता है। इस बीमारी में भी सर्दी से बचने के अलावा अपच या अधिक तैलीय खानपान से बचना चाहिए। हर रोज जितना सम्भव हो सके गर्म पानी पीना चाहिए। बीमारी ठीक न होने पर डॉक्टर से इलाज कराना चाहिए।
सिरदर्द : यह समस्या भी सिर में सर्दी अधिक लगने से होती है। ऐसे में सिर को टोपा-मफरल आदि से ढककर रखें। सिरदर्द होने पर बाम आदि से सिर की हल्के हाथ से मालिश करने के बाद सिर ढककर थोड़ा आराम कर लें। साथ ही गर्म पेय, खासतौर से गर्म दूध का सेवन करें। जहाँ तक सम्भव हो गर्म पानी पीएँ। जहाँ तक सम्भव हो पेन किलर लेने से बचें। यदि दर्द दो-चार घंटे तक रहे तो डॉक्टर को दिखाएँ।
छोटी-सी लापरवाही भी ले सकती है जान
एम्स के हृदय रोग विशेषज्ञ डॉक्टर राकेश यादव का कहना है कि सर्दी के मौसम में मधुमेह (शुगर) रोगी और उच्च रक्तचाप (हाई ब्लड प्रेशर) से पीडि़त मरीज़ों को काफी एहतियात बरतना चाहिए। ऐसे मरीज़ों को सुबह-सुबह की सैर से बचना चाहिए। क्योंकि मधुमेह एक ऐसी बीमारी है, जो साइलेंट किलर है। इसमें मरीज़ के शरीर में दर्द नहीं होता है। ऐसे में मरीज़ को घातक हृदयाघात होने की सम्भावना बढ़ जाती है। इसलिए सर्दी में ऐसे मरीज़ विशेष सावधानी बरतें। चक्कर आने और घबराहट होने पर तुरन्त ब्लड प्रेशर की जाँच करवाएँ और किसी क्वालीफाई डॉक्टर से अपना इलाज करवाएँ।
वहीं इंडियन हार्ट फाउण्डेशन के अध्यक्ष डॉक्टर आर.एन. कालरा का कहना है कि हृदय रोग के मामले सॢदयों के मौसम में ज़्यादा आते हैं। इसकी मुख्य वजह है जागरूकता का अभाव; जैसे- मोटापा, हाई कोलोस्ट्रॉल और मानसिक तनाव। इन बीमारियों के कारण लोगों में ब्लड प्रेशर बढऩे लगता है, जो आसानी से लोग पहचान नहीं पाते हैं। लेकिन ये रोग शरीर के हर अंग को क्षति पहुँचाते रहते हैं, जिसके कारण हृदय को ज़्यादा काम करना पड़ता है और धीरे-धीरे यही हृदय रोग का कारण बन जाता है। ऐसे में बचाव के लिए नियमित व्यायाम करें, तनाव से बचें, तले हुए खाद्य पदार्थों के सेवन से बचें और खाने में नमक का सेवन कम-से-कम करें।
मैक्स के कैथलैब के डायरेक्टर व हृदय रोग विशेषज्ञ डॉक्टर विवेका कुमार का कहना है कि कहने को तो सर्दी का मौसम बड़ा हैल्दी माना जाता है, परन्तु इस मौसम में ही ज़रा-सी लापरवाही काफी घातक हो सकती है। क्योंकि सर्दी में दिल की धमनियों में सिकुडऩ होने के कारण, खासतौर से हृदय रोगियों को हृदयाघात होने की सम्भावनाएँ बढ़ जाती हैं। डॉक्टर विवेका ने बताया कि महिलाएँ भी ज़्यादातर लापरवाही की वजह से बाएँ हाथ के दर्द, जबड़े में खिंचाव और सीने में दर्द को नज़रअंदाज़ कर जाती हैं; जो हृदय रोग के लक्षण हो सकते हैं। अगर इन लक्षणों को पहचानकर समय पर उपचार करवाएँ, तो निश्चित तौर पर हृदय रोग जैसी बीमारी से बचा जा सकता है।