शेयर बाज़ार को 25 साल पुरानी जेट एअरवेज ने जानकारी दी कि कंपनी के चेयरमैन ने पंजाब नेशनल बैंक के पास अपने 2.95 करोड़ शेयर यानी 26.1 फीसद की हिस्सेदारी रखी है। जेट एअरवेज (इंडिया)लिमिटेड द्वारा लिए गए नए कजऱ् की सुरक्षा गारंटी है। ऋ ण समाधान योजना के तहत नरेश गोयल और उनकी पत्नी अनीता गोयल कंपनी के निदेशक मंडल से हटे फिर भी बैंकों का समूह नए कजऱ् पर राजी न हो सका।
जानकारों के मुताबिक, इसी जून गोयल और उनकी पत्नी अनिता गोयल के 5.79 करोड़ से अधिक शेयर जारी किए गए। ये शेयर एअरलाइन द्वारा कजऱ् की सुरक्षा के लिए न बिकने की श्रेणी में रखे गए। नरेश गोयल एअरलाइन में हिस्सेदारी के लिए शुरूआती बोली जमा कर सकते हैं। एसबीआई बैंक ने आठ अप्रैल को जेट एअरवेज में हिस्सेदारी बिक्री के लिए (लेटर ऑफ इन्टेंट) अभिरुचि पत्र आमंत्रित किया। उसने अंतिम बोली जमा करने की तारीख 10 अप्रैल से बढ़ा कर 12 अप्रैल कर दी। नरेश गोयल ने 25 मार्च को चेयरमैन पद छोड़ा था।
कुल मिला कर जेट एअरलाइन के विमान जमीन पर हैं। कंपनी के लगभग 17 हजार कर्मचारियों के छह महीने से दो महीने तक के वेतन अभी दिए जाने हैं। देश में चुनाव है। कर्मचारियों का विरोध प्रर्दशन जारी है।
देश जब आज़ाद हुआ तो आकाश में कई निजी कंपनियों के विमान उड़ते थे। इनमेें ओडीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के पिता बीजू की कलिंग एअरवेज भी थी। टाटा की कंपनी टाटा एअरलाइंस थी। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 1953 में इन सबका राष्ट्रीयकरण किया और इंडियन एअरलाइंस बनाई। बाद में विदेश के लिए एअर इंडिया बनी।
उस ज़माने में नरेश गोयल विदेशी एअरलाइंस के टिकट बेचने का बड़ा काम करते थे। उनकी अच्छी साख थी। उन्होंने देश के प्रधानमंत्रियों के साथ ही अपना प्रभाव क्षेत्र भी बढ़ाया। नौकरशाहों से जब पता लगा कि सरकार यह नागरिक विमान क्षेत्र खोलने जा रही है तो उन्होंने संपर्कों से अपना कार्ड आगे कर दिया। फिर दमानिया एअरवेज, एअर सहारा, ईस्ट वेस्ट एअर लाईंस, किंगफिशर भी जेट एअरलाइंस के साथ ही मैदान में आ गए।
लेकिन यह आसान उद्योग नहीं हैं। भारत जैसे देश में तो और भी नहीं। जहाज उड़ाने में लगने वाला ईंधन, विमान का रख-रखाव, अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप तैयारी खासी खर्चीली थी। ज्य़ादातर नई कंपनियां जो उड़ान के क्षेत्र में आई थीं वे इस क्षेत्र से निकल गई। एअर सहारा और कुछ दूसरी एअरलाइंस तो जेट एअरलाइंस में जुड़ गईं।
फिर दौर आया सस्ती विमान सेवाएं देने वाली छोटे विमानों की एअरलाइंस जैसे स्पाइसजेट एअर इंडिगो, गो आदि की इनमें यात्रियों को चाय वगैरह मिलती थी लेकिन उनके पैसे देने होते थे। जेट एअरलाइंस के यात्री घटने लगे। फिर भी हमने मुकाबला किया। वित्तीय संकट बढ़ता गया। किंग फिशर ने एअर डेक्कन खरीद लिया। जेट एअरलाइंस अपनी सेवाओं के लिए जानी जाती रही। भारतीय आकाश में इसकी 44 फीसद की हिस्सेदारी हो गई।
जेट एअरवेज को कुछ और राहत मिली जब अंतरराष्ट्रीय रूट पर उड़ान भरने की अनुमति भारत सरकार ने दी। उसमें जेट एअरवेज की भागीदारी बढ़ी। किंग फिशर मैदान छोड़ गया।
इसके बाद प्रबंधन की गड़बडिय़ां जेट एअरलाइंस में उभरने लगीं। इस पर रुपए आठ हजार करोड़ मात्र का कजऱ् चढ़ गया। इसका नया विदेशी भागीदार भी अब पैसा लगाने को तैयार नहीं था। बैंक अपनी उगाही के लिए बेताब हो रहे थे। कोई खरीददार भी इस बड़ी कंपनी को लेने के लिए नहीं मिला। कजऱ् देने वाले बैंकों ने इसे खुद चलाने की सोची लेकिन जोखिम के नाम पर हिचकते रहे। आखिरकार अब जेट एअरलाइंस ज़मीन पर है। जब 2007 में एअर सहारा बुरी हालत में पहुंची तो जेट एअरवेज ने रु पए 1450 करोड़ मात्र में उसे खरीदा। इसका नाम बदला। इसे एअर जेट लाइट रखा। उन्होंने 2008 में करीब 13 हजार कर्मचारियों में से दो हजार की छटनी की। बाद में उन्हें दु़बारा रखा भी। जेट एअरवेज घरेलू विमानन सेवा में पिछड़ती गई। एक नई कंपनी इंडिगो हावी हुई। अरब अमीरात (यूएई) की एतिहाद ने जेट के 24 फीसद शेयर खरीद लिए। गोयल के पास तब 51 फीसद शेयर थे। फिर 2018 में एअरलाइंस को नुकसान और बढ़ा। इंडिपेंडेंट डायरेक्टर रंजन मथाई ने इस्तीफा दे दिया। कर्मचारियों का वेतन ठहरने लगा। कंपनी की रेङ्क्षटंग गिरने लगी।
उधर बंद किंगफिशर एअरलाइंस के मालिक और भारतीय बैंकों से रु पए नौ हजार करोड़ मात्र की धोखाधड़ी के आरोप में फंसे और लंदन में रह रहे विजय माल्या ने भारत सरकार से अनुरोध किया कि उसे जेट एअरवेज की उसी तरह मदद करनी चाहिए जिस तरह यह एअरइंडिया की करती रही है। अपने एक ट्वीट में उसने लिखा, एक ज़माने में जेट तो किंगफिशर की बड़ी प्रतिद्वंद्वी थी। लेकिन आज इसे नाकाम देख कर दुख हो रहा है। जबकि एअरइंडिया को सरकार ने रु पए 35 हजार करोड़ मात्र की सहायता राशि दी है।
भारत सरकार ने किंगफिशर के संकट में भी निवेश नहंी किया था जबकि सबसे ज्य़ादा पुरस्कार इसे मिले और यह देश की सबसे बड़ी एअरलाइंस थी।
किंगफिशर जब 7500 करोड़ रु पए (ब्याज 18 फीसद) हो गया तो इसकी मुश्किलें बढ़ीं। भारी कजऱ् खत्म करने के लिए भारत सरकार से ‘बेल आउट’ (जनता के पैसे में अनुदान) का अनुरोध किया गया। सस्ती दर पर कजऱ् और ईंधन की अपील की। लेकिन अनसुनी हुई। उस समय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह थे। यदि एक बार ऐसा किया जाता तो एअर इंडिया समेत दूसरी विमानन कंपनियों को भी वैसी सुविधा देनी होती। उन्होंने इंकार कर दिया। लेकिन नौकरशाही और कुछ मंत्रियों के दबाव में भारत सरकार ने भारतीय विमानन कंपनियों को 26 फीसद तक की हिस्सेदारी की छूट का प्रस्ताव दिया। सरकार ने टाटा की सिंगापुर एअरलाइंस से संयुक्त उपक्रम को योजना को मंजूरी तब नहीं दी। फिर विमान कंपनियों को विदेश में ईंधन खरीदने की छूट दी गई।
किंगफिशर तब रु पए बाहर सौ करोड़ मात्र की कंपनी थी। बैंक तैयार नहीं हुए। जीवन बीमा निगम ने दस फीसद की हिस्सेदारी ली। निजी इक्विटी फंड भी विकल्प माना गया। हालांकि उसके लिए माल्या तैयार नहीं हुए। मामला अटका रहा। बैंकों का कंसोर्टियम जेट को बतौर इमरजेंसी भी रु पए 983 करोड़ मात्र की फंडिंग के लिए भी राजी नहीं हुआ। 18 अप्रैल से जेट एअरलाइंस के पायलट कर्मचारी, हवाई और ग्राउंड स्टॉफ जिन्हें अच्छे दिनों की उम्मीद थी वे सभी पिछले छह महीने बाद तकरीबन एक लाख पारिवारिक सदस्यों की चिंताएं भी पूरी करने में एकदम अक्षम हो गए हैं। लेकिन सरकार कोई समाधान नहीं ढंूढ पा रही है।
तहलका ब्यूरो