पिछले कुछ समय में जो भी घोटाले सामने आए हैं उनमें से ज्यादातर में धांधली खरीद के स्तर पर हुई है. राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन के दौरान खरीद के स्तर पर हुए घोटालों के कई मामले सामने आए थे. रक्षा क्षेत्रों से भी जिन घोटालों की बात सामने आती है उनमें से ज्यादातर में गड़बड़ी खरीद के स्तर पर ही होती है. देश में सरकारी खरीद का दायरा बहुत बड़ा है, लेकिन इसकी जरूरी निगरानी के लिए कोई कानून नहीं है. ऐसे एक कानून की जरूरत को लंबे समय से रेखांकित किया जा रहा था. लेकिन मामला टलता रहा. अंततः संप्रग सरकार ने सरकारी खरीद में पारदर्शिता लाने के मकसद से बीती 14 मई को पब्लिक प्रोक्योरमेंट विधेयक, 2012 का मसौदा लोकसभा में पेश किया.
दरअसल, केंद्र सरकार अपने विभिन्न विभागों के जरिए हर साल तकरीबन 11 लाख करोड़ रुपये की खरीदारी करती है. इसमें कई स्तर पर पारदर्शिता का अभाव है. केंद्र सरकार के कई विभाग यह काम 2005 के जनरल फाइनैंशियल रूल के तहत करते हैं. वहीं कई मंत्रालयों ने अपने अलग-अलग नियम बना रखे हैं. इससे कई स्तर पर दिक्कतें हो रही हैं. इनसे निपटने के रास्ते तलाशने के मकसद से सरकार ने कुछ साल पहले विनोद धल समिति का गठन किया था.
- अभी अलग-अलग विभाग खरीद के अलग-अलग नियम अपनाते हैं
- मई, 2012 में लोकसभा में सार्वजनिक खरीद विधेयक लाया गया
- फिलहाल यह विधेयक लोकसभा की स्थाई समिति के पास है
समिति ने कई सिफारिशें दीं. नए कानून के मसौदे में समिति की कई सिफारिशों को शामिल किया गया है. सरकारी खरीद की व्यवस्था को दुरुस्त करने की चर्चा भ्रष्टाचार पर बनी मंत्रियों की उस अधिकार प्राप्त समिति में भी हुई थी जिसकी अध्यक्षता हाल तक वित्त मंत्री रहे प्रणब मुखर्जी कर रहे थे. इस साल जनवरी में इस समिति ने भी सरकारी खरीद व्यवस्था को ठीक करने के लिए कई सुझाव दिए थे. इन सुझावों को भी प्रस्तावित कानून के मसौदे में शामिल किया गया है.
प्रस्तावित कानून को लेकर सरकार की तरफ से यह कहा गया कि इसके लागू हो जाने के बाद कई स्तर पर भ्रष्टाचार में कमी आएगी. नए कानून के दायरे में केंद्रीय मंत्रालय, विभाग और इनकी सहयोगी एजेंसियां आएंगी. साथ ही इसके दायरे में स्वायत्त संस्थाएं भी आएंगी. सरकार का कहना है कि खरीद को लेकर दुनिया के अलग-अलग देशों के कानूनों के अध्ययन के बाद उनकी अच्छी बातों को शामिल करके यह कानून बनाया गया है. इसमें खरीदी जाने वाली सामग्री की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के मकसद से प्रतिस्पर्धा बढ़ाने के उपाय किए गए हैं. प्रस्तावित कानून में पारदर्शिता के लिए शिकायत निवारण तंत्र बनाने की भी योजना है. इसकी जिम्मेदारी उच्च न्यायालय के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश पर होगी. लोकसभा में पेश होने के बाद प्रस्तावित कानून के मसौदे को 28 मई, 2012 को स्थायी संसदीय समिति के पास भेजा गया. समिति इसे अपने सुझावों के साथ संसद को वापस भेजेगी. इसके बाद सरकार को इसे संसद से पारित करवाना होगा तब जाकर सरकारी खरीद को साफ-सुथरा और भ्रष्टाचारमुक्त बनाने के मकसद से तैयार किया गया यह विधेयक कानून की शक्ल ले सकेगा.
-हिमांशु शेखर