आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने स्पष्ट रूप से कहा है कि धातु की क़ीमतों के साथ-साथ वैश्विक खाद्य क़ीमतें काफ़ी ज़्यादा हो गयी हैं। अर्थ-व्यवस्था मुद्रास्फीति की तेज़ वृद्धि के मार झेल रही है। हालाँकि सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के हाल में जारी अलग-अलग आँकड़ों ने इसे लेकर भ्रम की स्थिति पैदा की है। किसी भी तरह यह तस्वीर भारत के उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) पर पर्याप्त रूप से परिलक्षित होती नहीं दिखती है।
इतना ही नहीं, इस साल फरवरी और मार्च के लिए सरकार के मुद्रास्फीति के आँकड़ों के सन्दर्भ में आरबीआई गवर्नर का मुद्रास्फीति पूर्वानुमान भी पूरी तरह से भ्रामक प्रतीत होता है। मार्च में खुदरा मुद्रास्फीति में 6.95 फ़ीसदी दर्ज की गयी, जो पिछले 17 महीनों में सबसे अधिक है और फरवरी में थोक मूल्य में 13.11 फ़ीसदी की वृद्धि हुई है।
मार्च में थोक मूल्य मुद्रास्फीति बढक़र 14.6 फ़ीसदी हो गयी। भारतीय रिजर्व बैंक ने चालू वित्त वर्ष के लिए खुदरा मुद्रास्फीति लक्ष्य को मौज़ूदा भू-राजनीतिक तनावों के बीच बढ़ती वैश्विक क़ीमतों के कारण 5.7 फ़ीसदी तक बढ़ा दिया है। यहाँ तक कि यदि सर्दियों की फ़सल बेहतर होती है, तो अनाज और दालों की क़ीमतों में नरमी की उम्मीद की जा सकती है।
आरबीआई ने कहा कि महँगाई अब 2022-23 में 5.7 फ़ीसदी अनुमानित है पर पहले क्वार्टर के साथ 6.3 फ़ीसदी, दूसरे क्वार्टर में 5.0 फ़ीसदी, तीसरे में 5.4 फ़ीसदी और चौथे में 5.1 फ़ीसदी पर अनुमानित है। फरवरी में अपनी पिछली नीति समीक्षा में आरबीआई ने 2022-23 में खुदरा मुद्रास्फीति 4.5 फ़ीसदी रहने का अनुमान जताया था। पिछले महीने थोक मूल्य मुद्रास्फीति बढक़र 14.6 फ़ीसदी हो गयी।
मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने भी सर्वसम्मति से समायोजनात्मक बने रहने का निर्णय किया। हालाँकि यह सुनिश्चित करने के लिए स्थिरता की वापसी पर ध्यान केंद्रित किया गया कि मुद्रास्फीति आगे बढऩे के साथ-साथ विकास का समर्थन करते हुए लक्ष्य के भीतर बनी रहे। यह लगातार 11वीं बार है, जब मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने यथास्थिति बनाये रखी है।
आरबीआई गवर्नर ने कहा- ‘हालाँकि कच्चे तेल की क़ीमतों के वैश्विक उछाल के चलते आर्थिक अस्थिरता को देखते हुए विकसित हो रहे भू-राजनीतिक तनाव में विकास और मुद्रास्फीति का कोई भी अनुमान जोखिम से भरा है। हालाँकि आरबीआई ने उम्मीद जतायी कि रबी (सर्दियों) की फ़सल से अच्छी फ़सल होने से अनाज और दालों की क़ीमतों पर नियंत्रण रहेगा।
इस पर ध्यान दिया जा सकता है कि रिजर्व बैंक को खुदरा मुद्रास्फीति को 4 फ़ीसदी पर रखने के लिए बाध्य किया गया है, जिसमें दोनों तरफ़ 2 फ़ीसदी का पूर्वाग्रह है। तथ्य यह है कि पिछले साल के मध्य से भोजन, कपड़े, आवास, परिवहन, दवा और स्वास्थ्य देखभाल की लागत में 50 से 60 या उससे भी अधिक की वृद्धि हुई है। ईंधन की ऊँची क़ीमतों का असर कमोबेश सभी वस्तुओं और सेवाओं की क़ीमतों पर पड़ रहा है। हालाँकि यह वैश्विक स्तर पर है। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन के अनुसार, पिछले 12 महीने से नवंबर तक वैश्विक खाद्य क़ीमतों में 27.3 फ़ीसदी की वृद्धि हुई। पिछले तीन महीनों में क़ीमतों में और उछाल आया है, ख़ासकर रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद। भोजन, परिवहन और उपयोगिता जैसी आवश्यक वस्तुओं की क़ीमतें बढ़ गयी हैं। दुनिया भर में दो-तिहाई से अधिक लोग इसकी मार का असर महसूस कर रहे हैं।
सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय की तरफ़ से हाल में जारी किये गये दो अलग-अलग आँकड़ों से पता चलता है कि मार्च में देश की खुदरा मुद्रास्फीति बढक़र 6.95 फ़ीसदी हो गयी। फरवरी में खुदरा महँगाई 6.07 फ़ीसदी थी। वैसे मुद्रास्फीति के ये आँकड़े भी काफ़ी विश्वसनीय नहीं लगते हैं। वित्त मंत्रालय द्वारा कहा गया कि 2022-23 के राष्ट्रीय व्यय बजट की तैयारी में शामिल $गलत अंतरराष्ट्रीय ईंधन मूल्य अनुमान कि पिछले साल के मध्य तक यह 70 डॉलर प्रति बैरल पर रहेगा। इसे लेकर अर्थशास्त्रियों की तरफ़ से पहले ही आलोचना हो रही है। अंतरराष्ट्रीय ईंधन की क़ीमतें 110 डॉलर प्रति बैरल के आसपास घूम रही हैं। घर वापस, ईंधन की क़ीमतें पहले से ही आसमान छू रही हैं। अकेले इस अप्रैल के दौरान क़ीमतों में 10 फ़ीसदी से अधिक की वृद्धि हुई। क्या उपभोक्ताओं को वास्तव में आधिकारिक तौर पर घोषित मुद्रास्फीति दरों में अधिक विश्वास है?
वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय की ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक, थोक मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति में गिरावट का रुख़ बना हुआ है। इसमें कहा गया है कि जनवरी, 2022 (जनवरी, 2021 से अधिक) के महीने के लिए मुद्रास्फीति की वार्षिक दर 12.96 फ़ीसदी (अस्थायी) है, जो नवंबर, 2021 में 14.87 फ़ीसदी और दिसंबर, 2021 में 13.56 फ़ीसदी से लगातार गिरावट पर है। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) द्वारा जारी आँकड़ों के मुताबिक, पिछले साल सितंबर से महँगाई दर इस साल फरवरी में 6.07 फ़ीसदी पर पहुँच गयी थी। इस साल जनवरी में खुदरा महँगाई 6.01 फ़ीसदी थी।
मार्च लगातार तीसरा महीना रहा, जब महँगाई 6 फ़ीसदी के ऊपर रही। हालाँकि अक्टूबर, 2020 में इसका उच्च स्तर (7.61 फ़ीसदी) दर्ज किया गया था। वाणिज्य मंत्रालय की रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया है कि जनवरी, 2022 में मुद्रास्फीति की उच्च दर मुख्य रूप से इसी महीने की तुलना में खनिज तेलों, कच्चे पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस, बुनियादी धातुओं, रसायनों और रासायनिक उत्पादों, खाद्य पदार्थों आदि की क़ीमतों में वृद्धि के कारण है। प्राथमिक वस्तु समूह से खाद्य पदार्थ और निर्मित उत्पाद समूह से खाद्य उत्पाद से युक्त खाद्य सूचकांक दिसंबर, 2021 में 169.0 से घटकर जनवरी, 2022 में 166.3 हो गया है। डब्ल्यूपीआई खाद्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति की दर दिसंबर, 2021 के 9.24 फ़ीसदी से जनवरी, 2022 के 9.55 फ़ीसदी तक मामूली रूप से बढ़ी है।
वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय का कहना है कि मार्च, 2022 में मुद्रास्फीति की उच्च दर मुख्य रूप से कच्चे पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस, खनिज तेल, मूल धातुओं आदि की क़ीमतों में वृद्धि के कारण है। रूस-यूक्रेन संघर्ष के कारण वैश्विक आपूर्ति शृंखला में व्यवधान के कारण रही। सीपीआई के आँकड़ों के अनुसार, मार्च में तेल और वसा में मुद्रास्फीति बढक़र 18.79 फ़ीसदी हो गयी, क्योंकि रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण भू-राजनीतिक संकट ने खाद्य तेल की क़ीमतों को और बढ़ा दिया। यूक्रेन सूरजमुखी तेल का प्रमुख निर्यातक है। मार्च में सब्ज़ियों में मुद्रास्फीति बढक़र 11.64 फ़ीसदी हो गयी, जबकि मांस और मछली में फरवरी, 2022 की तुलना में मूल्य वृद्धि की दर 9.63 फ़ीसदी थी।
आर्थिक सलाहकार कार्यालय, उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग ने जनवरी, 2022 (अस्थायी) और नवंबर, 2021 (अन्तिम) महीने के लिए भारत में थोक मूल्य (आधार वर्ष : 2011-12) की सूचकांक संख्या जारी की है। अब उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में आते हैं और सीपीआई वस्तुओं को इसमें शामिल करता है। इसकी गणना वस्तुओं और सेवाओं के खुदरा मूल्य परिवर्तन पर विचार करके और उपलब्ध प्रत्येक वस्तु के औसत मूल्य को लेकर की जाती है।
राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) के फील्ड ऑपरेशंस डिवीजन के स्टाफ सदस्यों द्वारा व्यक्तिगत यात्राओं के माध्यम से सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को कवर करने वाले कुछ चयनित 1,114 शहरी बाज़ारों और 1,181 गाँव बाज़ारों से मूल्य डेटा एकत्र किया जाता है। भारत में एक राष्ट्रव्यापी विश्वसनीय खुदरा मूल्य गणना करना कहाँ आसान हो सकता है। देश में 28 राज्य और केंद्र शासित प्रदेश हैं। उनमें से प्रत्येक की एक अद्वितीय जनसांख्यिकी, इतिहास और संस्कृति, त्योहार, भाषा, भोजन की आदतें और अधिक महत्त्वपूर्ण रूप से विशिष्ट उपभोक्ता प्राथमिकताएँ हैं। भारत में कुल 775 ज़िले हैं, जिनमें से गुजरात का कच्छ सबसे बड़ा, पश्चिम बंगाल का उत्तर 24 परगना सबसे अधिक आबादी वाला और मध्य दिल्ली सबसे अधिक भीड़ भाड़ वाला है। सन् 2019 तक भारत में 6,64,369 गाँव दर्ज किये गये। इनमें से बहुत-से गाँवों में उचित रेल-सडक़ कनेक्शन और संगठित बाज़ार नहीं हैं। ऐसी परिस्थितियों में खुदरा मूल्य और मुद्रास्फीति पर नज़र रखना न तो आसान है और न ही काफ़ी भरोसेमंद।