सम्मेद शिखर जी मामला: आस्था में राजनीतिक घुसपैठ

झारखण्ड का हिमालय कहे जाने वाले पारसनाथ पहाड़ी पर गिरिडीह ज़िले में सम्मेद शिखर जी नामक पर्वत जैनियों का सर्वोच्च तीर्थ स्थल है। इस पुण्य क्षेत्र में जैन धर्म के 24 में से 20 तीर्थंकरों ने मोक्ष की प्राप्ति की। यहाँ पर 23वें तीर्थंकर भगवान पाश्र्वनाथ ने भी निर्वाण प्राप्त किया था। बीते कुछ दिनों से सम्मेद शिखर पर सरकार के एक फ़ैसले के ख़िलाफ़ जैन समुदाय झारखण्ड से लेकर दिल्ली, मुम्बई, जयपुर व अन्य जगहों पर आन्दोलन किया। केंद्र सरकार ने फ़ैसले में संशोधन किया। राज्य सरकार ने भी सहमति जतायी। इसके बाद भी सम्मेद शिखर जी की पवित्रता को लेकर जैन समाज चिन्तित है। इस बीच आदिवासी समुदाय ने भी सम्मेद शिखर पर अपनी आस्था जताते हुए दावा ठोक दिया है और आन्दोलन का ऐलान किया है।

सम्मेद शिखर मामले ने लोगों को सोचने के लिए मजबूर कर दिया है कि यह आस्था का टकराव है या फिर राजनीतिकरण का प्रयास हो रहा? लगता है आने वाले दिनों में विवाद और गहराएगा। क्योंकि जैन और आदिवासी समाज अपनी-अपनी आस्था जताते हुए एक-दूसरे के आमने-सामने हैं। वहीं, राजनीतिक बयानबाज़ी, केंद्र और राज्य सरकार का एक-दूसरे पर आरोप, फ़ैसले का श्रेय लेने की होड़, जैसी तमाम बातें दर्शा रही हैं कि आस्था के टकराव के बीच वोट बैंक के लिए इस मामले को राजनीतिक रूप देने का प्रयास जारी है।

तीर्थ स्थल बनाम पर्यटन स्थल

रघुवर दास के मुख्यमंत्रित्व-काल में 22 अक्टूबर, 2018 को झारखण्ड सरकार के पर्यटन, कला संस्कृति और खेलकूद विभाग ने एक कार्यालय आदेश जारी किया, जिसमें कहा गया है कि पारसनाथ सम्मेद शिखर जी सदियों से जैन धर्मावलंबियों का पवित्र और पूजनीय स्थल है। इसकी पवित्रता को अक्षुण्ण बनाये रखने के लिए राज्य सरकार प्रतिबद्ध है। रघुवर सरकार ने ही 26 फरवरी, 2019 को एक गजट नोटिफिकेशन जारी किया, जिसमें गिरिडीह के पारसनाथ मधुवन का उल्लेख पर्यटन स्थल के तौर पर किया गया है।

यह गजट अधिसूचना अकेले पारसनाथ मधुवन के बारे में नहीं, बल्कि इसमें राज्य के सभी 24 ज़िलों के पर्यटन स्थलों का उल्लेख किया गया है। इसके बाद भारत सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने 26 फरवरी, 2019 को एक गजट जारी किया, जिसमें इसे वन्य जीव अभयारण्य, इको सेंसेटिव जोन पर्यटन स्थल के रूप में चिह्नित किया गया है। झारखण्ड की हेमंत सोरेन की नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार ने वर्ष 2021 में नयी पर्यटन नीति घोषित की। इसका गजट नोटिफिकेशन 17 फरवरी, 2022 को जारी किया गया। इस नोटिफिकेशन में धर्मस्थल की पवित्रता बरक़रार रखते हुए इसके विकास की बात कही गयी है। जैन समाज ने इन सभी नोटिफिकेशन का विरोध किया। समाज के धर्मगुरुओं का कहना है कि इसे धार्मिक स्थल रहने दिया जाए, अन्यथा पर्यटन क्षेत्र बनाने से इस स्थान की पवित्रता भंग हो जाएगी।

आन्दोलन तेज़

बीते वर्ष फरवरी में हुए नोटिफिकेशन का विरोध धीरे-धीरे सुलग रहा था। इस बीच पारसनाथ पहाड़ी पर पर्यटन गतिविधियाँ बढ़ी। सम्मेद शिखर के आसपास के इलाक़े में मांस-मदिरा की ख़रीदी-बिक्री और सेवन प्रतिबंधित है। इसके बावजूद कुछ दिन पहले यहाँ शराब पीते युवक का वीडियो वायरल हुआ था।

इसके बाद विवाद तेज़ हो गया। धर्मस्थल से जुड़े लोगों का मानना है कि पर्यटन स्थल घोषित होने के बाद से जैन धर्म का पालन नहीं करने वाले लोगों की भीड़ यहाँ बढ़ी। यहाँ मांस-मदिरा का सेवन करने वाले लोग आने लगे हैं। जैन समाज का आन्दोलन तेज़ हो गया। बीते वर्ष दिसंबर से अब तक देश-विदेश के कई शहरों में जैन धर्मावलंबियों ने मौन जुलूस निकाला। धीरे-धीरे मामला तूल पकड़ा और झारखण्ड से लेकर दिल्ली, मुम्बई, जयपुर तक जैन समाज के लोग सडक़ों पर उतर आये। इस बीच जयपुर में दो जैन मुनियों ने सम्मेद शिखर को पर्यटन क्षेत्र घोषित करने के विरोध में अनशन शुरू किया और प्राण त्याग दिये। जैन मुनी सुज्ञेय सागर महाराज ने 3 जनवरी को और 7 जनवरी को मुनी समर्थ सागर ने प्राण त्यागे।

केंद्र ने फ़ैसला लिया वापस

जैन समाज के विरोध को देखते हुए केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के मंत्री भूपेंद्र यादव ने समाज के प्रतिनिधियों के साथ बैठक की। इसके बाद केंद्र सरकार ने फ़ैसला लिया कि सम्मेद शिखर अब पर्यटन क्षेत्र नहीं होगा। केंद्र सरकार ने तीन साल पहले जारी किये गये अपने आदेश को वापस ले लिया। पर्यावरण मंत्रालय ने इसे लेकर 5 जनवरी को दो पेज की चिट्ठी राज्य सरकार को भजी। इसमें लिखा कि इको सेंसेटिव जोन अधिसूचना के खंड-3 के प्रावधानों के कार्यान्वयन पर तत्काल रोक लगायी जाती है, जिसमें अन्य सभी पर्यटन और इको-टूरिज्म गतिविधियाँ शामिल हैं। राज्य सरकार को तत्काल सभी आवश्यक क़दम उठाने का निर्देश दिया गया। साथ रही केंद्र सरकार ने निगरानी समिति बनायी।

राज्य सरकार से कहा गया है कि वह इस समिति में शामिल होने के लिए जैन समुदाय से दो सदस्यों और स्थानीय जनजातीय समूह से एक सदस्य को स्थायी सदस्य के रूप में आमंत्रित करे। इसके अलावा इस क्षेत्र में शराब, ड्रग्स और अन्य नशीले पदार्थों की बिक्री, तेज़ संगीत या लाउडस्पीकर बजाना, पालतू जानवरों के साथ आना, अनधिकृत कैम्पिंग और ट्रैकिंग, मांसाहारी खाद्य पदार्थों की बिक्री पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी गयी। केंद्र सरकार का फ़ैसला आने से पहले उसी दिन मुख्यमंत्री हेमंत सोरने ने केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव को सम्मेद शिखर मामले में पत्र लिखा था और 2019 के फ़ैसले पर विचार करने का आग्रह किया था।

नया विवाद हुआ शुरू

केंद्र सरकार के फ़ैसले और राज्य सरकार के आश्वासन पर जैन समाज का विरोध थोड़ा कम हुआ; लेकिन साथ ही एक नया विवाद उठ गया। झारखण्ड के आदिवासी संथाल समुदाय ने दावा किया है कि पूरा पहाड़ उनका है। आदिवासियों का कहना है कि यह उनका मरांग बुरु (बूढ़ा पहाड़) है। यह उनकी आस्था का केंद्र है। यहाँ वे हर साल आषाढ़ी पूजा में सफ़ेद मुर्ग़े की बलि देते हैं। इसके साथ छेड़छाड़ उन्हें मंज़ूर नहीं होगी। आदिवासी समाज का 10 जनवरी को पारसनाथ में महा जुटान हुआ।

समाज ने 25 जनवरी तक राज्य सरकार को इस पर फ़ैसला लेने का अल्टीमेटम दिया है। उनका कहना है कि हमारी माँग पूरी नहीं हुई तो 30 जनवरी को उलिहातू से केंद्र और राज्य सरकार के ख़िलाफ़ बड़ा आन्दोलन शुरू करेंगे। इस आन्दोलन में झामुमो के विधायक लोबिन हेब्रम, पूर्व विधायक गीता कोड़ा समेत कई आदिवासी नेता साथ दे रहे हैं।

श्रेय लेने वाले ख़ामोश

सम्मद शिखर को लेकर विवाद शुरू हुआ, तो राजनीति भी शुरू हो गयी। राज्य सरकार ने अपना पल्ला झाड़ते हुए कहा कि यह सब भाजपा के शासनकाल में हुआ है। केंद्र सरकार ने अधिसूचना जारी की है, वही रद्द कर सकती है। प्रदेश भाजपा और झामुमो आमने-सामने थी। केंद्र ने 2019 की अधिसूचना को संशोधित करते हुए राज्य सरकार को पत्र लिखा और निर्देश दिया। केंद्र ने जैन समाज का हित की बात करते हुए श्रेय लिया। वहीं मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन वन एवं पर्यावरण मंत्रालय को लिखे अपने पत्र का हवाला देते हुए इस फ़ैसले का श्रेय लेने का प्रयास किया।

झामुमो और भाजपा नेता भी जैन समाज के हित में तीर्थ स्थल घोषित किये जाने का श्रेय लेने में जुट गये। अब जब इस विवाद में ख़ुद गठबंधन सरकार के एक विधायक (झामुमो के) लोबिन हेब्रम शिखर सम्मद पर आदिवासियों का अधिकार को लेकर आन्दोलन खड़ा कर रहे, तो सरकार और पार्टी ने चुप्पी साध ली है। केंद्र की तरफ़ से भी कुछ नहीं कहा जा रहा। मौज़ूदा राजनीति में कोई आदिवासी समाज को भी नाख़ुश नहीं करना चाहता। वह भी राज्य में एक बड़ा वोट बैंक है। लिहाज़ा भविष्य में यह आन्दोलन क्या रुख़ लेता है और केंद्र व राज्य सरकार क्या क़दम उठाती है, इसका फ़िलहाल इंतज़ार किया जा रहा है।

निकालना होगा रास्ता

यह सही है कि तीर्थ और पर्यटन स्थल में अन्तर होता है। तीर्थ स्थल का जुड़ाव आस्था से होती है। श्रद्धालु कष्ट को भूल कर उस स्थल को पूजते हैं। यहाँ खानपान समेत सभी चीज़ें भिन्न होती हैं। वहीं पर्यटन स्थल में वह भाव नहीं आता है। यहाँ न ही खानपान पर कोई पाबंदी होती, और न ही किसी अन्य बात की। इसे पिकनिक स्पॉट के रूप में देखा जाता है। हालाँकि जैन समाज हो या आदिवासी समाज, दोनों ही इसे अपना धर्म स्थली बता रहे; लेकिन हर धर्म की अपनी-अपनी आस्था होती है। अपनी मान्यता होती है। जैन समाज में जहाँ बलि की प्रथा नहीं है, वहीं आदिवासी समाज में बलि की प्रथा है। दोनों ही समाज की मान्यताएँ अलग-अलग हैं। पूजा-पाठ, भक्ति के तरीक़े अलग-अलग हैं।

उधर, स्थानीय लोग केवल शान्ति चाहते हैं। क्योंकि यहाँ लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं, जिनसे उनका रोज़गार चलता है। केंद्र और राज्य सरकार को इस मामले पर गम्भीरता से सोचने की ज़रूरत है। केवल नोटिफिकेशन कर देने या धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर बचाने के प्रयास को दिखाते हुए श्रेय लेने से सम्मेद शिखर का मान, सम्मान और आस्था बरक़रार नहीं रहेगा। इसके लिए राजनीतिक चश्मे को उतारकर एकजुटता से सभी को साथ लेकर ठोस निर्णय लेने की ज़रूरत है। नहीं तो आने वाले समय में इस क्षेत्र में विवाद और बढ़ेगा, जिसकी आग की चपेट में झारखण्ड ही नहीं पूरा देश आएगा।