भारत की जनसंख्या तेज़ी से बढ़ रही है, जो कि शायद हम दो – हमारे दो का सबक़ याद न रखने का नतीजा है। एक बार फिर भारत में दो ही बच्चे पैदा करने का क़ानून बनाने की बात की जा रही है। जनसंख्या में सबसे अग्रणी उत्तर प्रदेश से यह आवाज़ उठी है। इसकी वजह भारत में लगातार हो रहा जनसंख्या विस्फोट है।
भारत की जनसंख्या के सही-सही आँकड़े उपलब्ध नहीं हैं। यहाँ कुल कितनी जनसंख्या है, इसके अनुमान ही सबके पास हैं। परन्तु हाल ही में संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (यूएनएफपीए) की स्टेट ऑफ वल्र्ड पॉपुलेशन रिपोर्ट, 2023 ने सबको चौंका दिया है। संयुक्त राष्ट्र ने अपनी इस रिपोर्ट में कहा है कि भारत इस साल के मध्य तक दुनिया का सबसे जनसंख्या वाला देश बन जाएगा। कुछ जानकार कहते हैं कि बनेगा नहीं, बन चुका है।
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत की आबादी अप्रैल के मध्य में ही 142.86 करोड़ (1.4286 बिलियन) हो चुकी है, जबकि चीन की कुल जनसंख्या अप्रैल के मध्य तक 142.57 करोड़ (1.4257 बिलियन) ही थी। संयुक्त राष्ट्र ने दावा किया है कि इस साल के मध्य तक यानी जून, 2023 तक भारत दुनिया का सबसे ज़्यादा जनसंख्या वाला देश बन जाएगा। भारत अप्रैल के मध्य तक चीन से क़रीब 29 लाख ज़्यादा जनसंख्या हो चुकी है। यूएनएफपीए की एक दूसरी रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में 0 से 14 साल तक के बच्चों की जनसंख्या 25 प्रतिशत है। वहीं 65 से ज़्यादा आयु के बुजुर्गों की जनसंख्या 7 प्रतिशत है। इसका मतलब यह है कि 15 से 65 साल तक की आयु-सीमा वाले लोगों की जनसंख्या 68 प्रतिशत है। हालाँकि यह अनुमानित आँकड़े हैं; लेकिन यूएनएफपीए यूँ ही आँकड़े जारी नहीं करता।
भारत सरकार ने साल 2011 के बाद जनगणना नहीं करायी है। भारत सरकार द्वारा तय समयावधि के मुताबिक देश में हर 10 साल में जनगणना होनी चाहिए थी; लेकिन साल 2021 में कोरोना संक्रमण के चलते इसे टाल दिया गया था और अब मोदी सरकार इस ओर ध्यान भी नहीं दे रही है। ऐसा लगता है कि वह जिस तरह बेरोज़गारी दर, अशिक्षा दर और आत्महत्या दर की गणना कराने से ख़ुद को बचा रही है, उसी तरह जनगणना करने से भी ख़ुद को बचा रही है। लेकिन यूएनएफपीए के जनसांख्यिकीय आँकड़ों ने मोदी सरकार को शर्मिंदा किया है।
संयुक्त राष्ट्र के आँकड़ों के मुताबिक, जनसंख्या के मामले में पहले नंबर पर भारत, दूसरे नंबर पर चीन और तीसरे नंबर पर अमेरिका है। लेकिन अमेरिका की जनसंख्या भारत की जनसंख्या के मुक़ाबले एक-चौथाई से भी कम सिर्फ़ 34 करोड़ है। पिछले साल छ: दशकों में चीन की जनसंख्या वृद्धि पहली बार भारत की जनसंख्या वृद्धि से कम दिखी है। बता दें कि चीन ने तीन दशक पहले एक बच्चा क़ानून लागू किया था; लेकिन वहाँ पिछले साल जनगणना में पाया गया कि युवाओं की जनसंख्या तेज़ी से घटी है, तब चीन ने वहाँ ज़्यादा बच्चे पैदा करने की छूट दी गयी।
भारत सरकार के आँकड़ों के मुताबिक, साल 2011 के बाद से भारत की जनसंख्या वृद्धि दर औसतन 1.2 प्रतिशत थी, जो 2011 से पहले 10 वर्षों में अनुमानित 1.7 प्रतिशत थी। थी। यूएनएफपीए इंडिया के प्रतिनिधि एंड्रिया वोजनार का कहना है कि लगातार बढ़ती जनसंख्या से आम लोगों पर असर पड़ रहा है।
ज़्यादा जनसंख्या से भारत की आर्थिक स्थिति बिगडऩे के साथ-साथ बेरोज़गारी, भुखमरी, अशिक्षा और ग़रीबी बढ़ेगी। ये वो समस्याएँ हैं, जो युवाओं को नशा, अपराध और झूठ बोलने जैसे ग़लत रास्तों पर भटकाती हैं। हमें आबादी बढ़ाने के लिए किसी एक समुदाय को दोष देने की बजाय अपने आप को ज़्यादा बच्चे पैदा करने से रोकना होगा। जनसंख्या बढ़ाने के लिए अक्सर अशिक्षित लोगों को ज़्यादा दोषी माना जाता है; लेकिन यह बात भी 100 प्रतिशत सच नहीं है। कई पढ़े-लिखे और पैसे वाले लोगों के भी दो से ज़्यादा बच्चे हैं, यहाँ तक कि कई के दो आधा दर्ज़न के आसपास या उससे भी ज़्यादा बच्चे हैं। ऐसे लोगों में कई नेता भी शामिल हैं। इसलिए बच्चे पैदा करने के मामले में भारत सरकार को सभी के लिए एक समान क़ानून बनाना चाहिए।
इसके साथ-साथ भारत सरकार को चीन से सीख लेने की ज़रूरत है, क्योंकि चीन ने हर हाथ में काम देने की मुहिम को पिछले तीन दशक में जिस प्रकार से आगे बढ़ाया है, उसके विपरीत भारत सरकार ने हाथों से रोज़गार-स्वरोज़गार छीनने का काम किया है। यह बात कड़वी है; लेकिन सच्ची है। इसके बाद महँगी होती शिक्षा और बंद होते सरकारी स्कूल, मिड-डे मील में लगातार होती कमी कई समस्याओं को निमंत्रण दे रहे हैं। कोरोना काल में कुछ अनुमानित रिपोट्र्स सामने आयी थीं, जिनमें कहा गया था कि कोरोना काल में बच्चे ज़्यादा पैदा हुए। यह वो दौर था, जब ज़्यादातर लोग घरों में क़ैद थे। साफ़ है कि जब लोगों के पास रोज़गार, स्वरोज़गार नहीं होगा, तो वो घरों में सिमटने लगेंगे और कैसे भी गुजारा करेंगे; लेकिन स्वाभाविक तौर पर जनसंख्या वृद्धि होने लगेगी।
वर्तमान में अनुमानित तौर पर भारत में क़रीब 100 करोड़ से ज़्यादा हिन्दू हैं। वहीं 32 करोड़ से ज़्यादा मुस्लिम हैं। बाक़ी 10.5 करोड़ से ज़्यादा अन्य समुदायों की जनसंख्या है। आज़ादी मिलने पर बँटवारे के बाद साल 1947 में भारत की अनुमानित जनसंख्या 33 करोड़ थी। इसमें हिन्दुओं की जनसंख्या क़रीब 27.72 करोड़ (84 प्रतिशत) थी, जबकि मुस्लिम जनसंख्या क़रीब 3.3 करोड़ (10 प्रतिशत) थी। इसी तरह ईसाई 60.3 लाख (1.83 प्रतिशत), सिख 65 लाख (1.97 प्रतिशत) और बाक़ी अन्य धर्मों के लोग थे। इस तरह साल 1947 से लेकर 2023 तक हिन्दुओं की जनसंख्या क़रीब 67 करोड़ यानी दोगुनी से ज़्यादा बढ़ी है, तो मुस्लिमों की जनसंख्या इस दौरान क़रीब 29 करोड़ यानी क़रीब 10 गुना बढ़ी है।
सबसे ज़्यादा जनसंख्या वाले देश
देश जनसंख्या
चीन 1.426 अरब
भारत 1.412 अरब
अमेरिका 33.7 करोड़
इंडोनेशिया 27.5 करोड़
पाकिस्तान 22. 34 करोड़
नाइजीरिया 21.6 करोड़
ब्राजील 21.5 करोड़
बांग्लादेश 17 करोड़
रूस 14.5 करोड़
मेक्सिको 12.7 करोड़
2050 तक कितनी होगी किस देश की जनसंख्या?
देश अनुमानित जनसंख्या
भारत 1.66 अरब
चीन 1.37 अरब
अमेरिका 37.5 करोड़
नाइजीरिया 37.5 करोड़
पाकिस्तान 36.6 करोड़
इंडोनेशिया 31.7 करोड़
ब्राजील 23.1 करोड़
कांगो 21.5 करोड़
इथोपिया 21.3 करोड़
बांग्लादेश 20.4 करोड़