केंद्र सरकार ने दिल्ली हाईकोर्ट को बताया कि समलैंगिक जोड़े के विवाह को अनुमति नहीं है। इसकी इजाजत न तो हमारे कानून में हैं और न ही समाज और मूल्यों में इसको मान्यता दी गई है। हाईकोर्ट हिंदू मैरिज एक्ट और स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की मांग वाली जनहित याचिका पर सुनवाई कर रहा है।
दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस डीएन पटेल और जस्टिस प्रतीक जालान की पीठ के समक्ष सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, समलैंगिक विवाह को दो कारणों से मान्यता की अनुमति नहीं दी जा सकती है। पहला याचिका में अदालत को कानून बनाने को कहा गया है। दूसरा किसी भी तरह की राहत विभिन्न सांविधानिक प्रावधानों के विपरीत मानी जाएगी। पीठ ने मामले में सुनवाई के दौरान कहा कि इस तरह के मामलों को लेकर लोग स्वयं सामने नहीं आते, बल्कि जनहित याचिका का सहारा लेते हैं।
कैसे होगा पति-पत्नी का निर्धारण
अदालत में तर्क दिया गया कि जब तक कि अदालत विभिन्न कानूनों का उल्लंघन न करे, तक ऐसा करना संभव नहीं होगा तुषार मेहता ने यह भी कहा कि हिन्दू विवाह अधिनियम में भी विवाह से जुड़े विभिन्न प्रावधान संबंधों के बारे में पति-पत्नी की बात करते हैं, समलैंगिक विवाह में यह कैसे निर्धारित होगा कि पति कौन है और पत्नी कौन? पीठ ने यह माना कि दुनिया भर में चीजे बदल रही हैं, लेकिन यह भारत के परिदृश्य में लागू हो भी सकता है और नहीं भी। अदालत ने कहा कि जो लोग इससे प्रभावित होने का दावा करते हैं, वे पढ़े-लिखे हैं और खुद अदालत तक आ सकते हैं।