दिल्ली सरकार ऑड-ईवन को लागू करके भले ही वायु प्रदूषण को कम करने का दम भरे पर लोगों के आने-जाने के लिए बसों की पर्याप्त व्यवस्था न होने के कारण काफी परेशानी का सामना करना पड़ा है। मौज़ूदा वक्त में दिल्ली की परिवहन व्यवस्था काफी चरमरा-सी गयी। आलम ये है कि इस समय लगभग 5500 बसें दिल्ली की सडक़ों में दौड़ रही है। जबकि सरकार ने यातायात को सुचारू करने के लिए प्राइवेट बसों का सहारा लिया हैं; उसके वाबजूद परिवहन व्यवस्था चौपट रही है।
दिल्ली के लोगों से तमाम रूटों और बस अड्डों पर जाकर तहलका संवाददाता ने बसों की कमी के बारे में जाना। यात्रियों की प्रतिक्रिया मिली-जुली रही। कुछ यात्रियों ने बताया कि सरकार द्वारा ऑड-ईवन लागू करने प्रदूषण तो कम हुआ है, पर दैनिक यात्रा करने वालों की परेशानी भी बढ़ी है। क्योंकि बसों में यात्री बढऩे के अलावा बसों की चालन की स्थिति ठीक नहीं है। कहीं-कहीं तो घंटों बसें नहीं आतीं। इसके चलते लोग ऑफिस तक समय से नहीं पहुँच पा रहे हैं। ऑफिस मालिक या प्रबंधक आदि इस समस्या को समझते नहीं हैं और वेतन में कटौती कर देते हैं। वहीं कुछ लोगों ने यह भी बताया कि प्राइवेट सीएनजी बसों को सडक़ों पर उतार दिया गया है, जिससे काफी राहत मिली है। लेकिन पड़ताल करने पर कुछ रूट पर प्राइवेट बसों की सेवा देखने को नहीं मिली। भाजपा नेता व केंद्रीय िफल्म बोर्ड के सदस्य राजकुमार सिंह का कहना है कि मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल तो आदेश जारी करते हैं; जनता की समस्याओं को नहीं समझते, जिसके कारण छात्र-छात्राओं को काफी दिक्कत हुई है।
वहीं दिल्ली सरकार का मानना है कि राजधानी में जनसंख्या के हिसाब से लगभग 10 हज़ार बसों की ज़रूरत है; पर दिल्ली परिवहन निगम डी.टी.सी. की लगभग 3,500 और कलस्टर की औरेंज 2,000 बसों से ही काम चलाया जा रहा है। बसों की कमी के कारण दिल्ली वालों को खासी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। रूटों पर बसों का समय पर न आने की मुख्य वजह बसों का टोटा है। बताते चलें दिल्ली में 2010 में कॉमन गेम्स के बाद से डी.टी.सी. बसें ही नहीं खरीदी गई हैं। हालाँकि, कलस्टर बसों की संख्या में इज़ाफा हुआ है। डी.टी.सी. बसों की कमी के चलते बस से चलने वालों को हर दिन यातायात की समस्या से जूझना पड़ता है।
सरकार से नाराज़ हैं डी.टी.सी कर्मचारी
इधर, दिल्ली के डी.टी.सी. कर्मचारी भी सरकार से नाराज़ चल रहे हैं। उनका कहना है कि कुछ माँगों को लेकर डी.टी.सी. कर्मचारियों ने हड़ताल की थी, तो सरकार ने 108 कर्मचारियों को बर्खास्त कर दिया था। ऐसे में कर्मचारी चुपचाप रोज़ी-रोटी बचाने के डर से सरकार के समक्ष कोई बात तक नहीं रख पा रहे हैं। डी.टी.सी. बसों के कुछेक ड्राइवरों-कंडक्टरों ने बताया कि सीएनजी बसों के चलाने से स्वास्थ्य को काफी नुकसान हो रहा है। ऐसे में जो मेडिकल सुविधाएँ मिलती थीं, वो भी सरकार ने कम कर दी हैं। कलस्टर बस के चालकों का कहना है ओवर टाइम की प्रथा पूरी तरह से बंद है। डी.टी.सी. वालों की तरह सुविधाएँ उन्हें नहीं मिलती हैं। वेतन इतना कम मिलता है कि उससे परिवार चलाना मुश्किल है। दिल्ली में बसों की कमी के अलावा पुरानी बसों की हालत भी दिन-ब-दिन बिगड़ती जा रही है। यह बसें कई बार रास्ते में ही बंद हो जाती हैं। कलस्टर बस चालक संतोष का कहना है कि माना कि हम लोग ठेकेदारी-प्रथा के तहत काम करते हैं। सरकार को सोचना चाहिए हम लोग भी डी.टी.सी. ड्राइवरों-कंडक्टरों की तरह काम करते हैं, तो हमें भी उसी तरह की सुविधाएँ और वेतन आदि मिलना चाहिए। कलस्टर और डी.टी.सी. कर्मचारियों के बीच यह भेदभाव ठीक नहीं। डी.टी.सी. कर्मचारी अशोक कुमार का कहना है कि बसों की कमी के कारण और खराब बसों की बढ़ती संख्या से जनता काफी दु:खी है। दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया से बातचीत करने पर उन्होंने कहा कि हमारी ओर से कोशिशें जारी हैं। बसों की कमी को दूर किया जाएगा। ऑड-ईवन के दौरान जो भी परेशानी हो रही है, उसको भी दूर किया जा रहा है।