योगेश
कुछ दिन पहले बिहार के भागलपुर जिले की मथुरापुर सब्ज़ी मंडी के बाहर सड़क पर एक किसान ने अपनी परवल की सब्ज़ी को लाठी पीटकर ख़राब कर दिया। सब्ज़ी मंडी में अपने परवल बेचने पहुँचा किसान परवल के कम भाव से ग़ुस्से में था। कहा जा रहा है कि व्यापारी परवल का भाव 100 से 200 रुपये कुंतल ही लगा रहे थे, जबकि इससे ज़्यादा किसान का ढुलाई ख़र्च आया था। इसी ग़ुस्से में किसान ने रोत हुए अपनी परवल की सब्ज़ी नष्ट कर डाली। देश में हर साल कई फ़सलों के भाव अच्छे न मिलने पर कई पीड़ित किसान अपनी फ़सलों को खेतों में जोतकर या सड़कों पर फेंककर नष्ट कर देते हैं। किसानों की यह दशा बाज़ार में फैली अव्यवस्था और ज़्यादा व्यापारिक फ़ायदे के लालच से पैदा हुई है, जहाँ किसानों को कभी उचित भाव नहीं मिलता और व्यापारी उनकी फ़सलों पर तगड़ी कमायी कर लेते हैं। सरकार किसानों को अच्छा न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं देना चाहती। सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य को लेकर गारंटी क़ानून भी नहीं बनाना चाहती और सब्ज़ियों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य मिलता भी नहीं है। बाज़ार में सब्ज़ियों का सही भाव न मिलने से किसान अक्सर परेशान रहते हैं। जो सब्ज़ी किसानों से 100 रुपये कुंतल सब्ज़ी मंडियों में ख़रीदी जाती है, वही सब्ज़ी मंडी के व्यापारी 1,800 से 2,000 रुपये कुंतल सब्ज़ी विक्रेताओं को बेचते हैं और सब्ज़ी विक्रेता उसी सब्ज़ी को बाज़ार में 40 से 60 रुपये किलो बेचते हैं। किसानों को लूटकर इस तरह बाज़ार की व्यवस्था में उपभोक्ता भी लूटे जाते हैं। इसलिए बाज़ार व्यवस्था में सुधार होना चाहिए।

सरकार को किसानों को इस समस्या से निकलना चाहिए, जिसमें बाज़ार व्यवस्था में सुधार करना चाहिए। लेकिन अगर सरकार ऐसा नहीं करती है, तो किसानों के सामने इस समस्या से निकलने के लिए एक दूसरा उपाय है कि वे उन फ़सलों की खेती करें, जिनका बाज़ार में अच्छा भाव मिले। इसके लिए किसानों को अपने खेतों में ज़्यादा लाभ वाली फ़सलें उगानी चाहिए। इसके अलावा किसानों को उन फ़सलों को उगाना चाहिए, जो कम उगायी जा रही हों। भेड़ चाल से फ़सलों को उगाने से किसानों को बहुत नुक़सान होता है। किसानों को अपनी फ़सलों की बुवाई करते समय फ़सल चक्र के अलावा बाज़ार की माँग और फ़सलों की पुरानी और संभावित क़ीमतों को ध्यान में रखना चाहिए। इससे किसानों को अपनी फ़सलों को नष्ट नहीं करना पड़ेगा और उन्हें फ़सल बेचकर लाभ भी मिल सकता है। इसके लिए किसानों को यह देखना चाहिए कि ज़्यादातर किसान कौन-सी फ़सल नहीं बो रहे हैं। जिन फ़सलों को किसान कम बो रहे हैं, उन फ़सलों का बाज़ार में भाव क्या है और बाज़ार में उनकी माँग कितनी है। जब किसान ऐसी फ़सलें उगाएँगे, तो उन्हें बाज़ार में उन फ़सलों का अच्छा भाव मिलेगा, जिससे उन्हें घाटा नहीं होगा। इसके अलावा किसानों को फ़सल चक्र भी अपनाना चाहिए, जिससे उन्हें अच्छी पैदावार मिल सके। बाज़ार में जिन फ़सलों की माँग ज़्यादा होती है, उन फ़सलों की बुवाई करके किसानों को फ़सलों की बिक्री की भी समस्या नहीं रहेगी और उन्हें ख़रीदने वाले ज़्यादा व्यापारी होंगे। इसे कृषि की भाषा में कम जोखिम वाली फ़सलें भी कहते हैं। लेकिन कम जोखिम वाली फ़सलों में दो तरह की फ़सलें आती हैं, जिनमें एक तो वे फ़सलें हैं, जिन्हें पशुओं, कीटों से ज़्यादा नुक़सान नहीं पहुँचता और दूसरी वे फ़सलें हैं, जिन्हें बेचने पर अच्छा भाव मिलता है और उन्हें ख़रीदने के लिए ग्राहक भी अधिक मिलते हैं।
इसके लिए किसानों को फ़सलों को उगाने की सही जानकारी के अलावा फ़सलों के भाव और स्थानीय बाज़ारों में उनकी माँग की सही जानकारी होनी चाहिए, जिसके लिए आजकल इंटरनेट की मदद काफ़ी कारगर साबित हो सकती है। फ़सलों को उगाने के लिए किसानों को मौसम का भी पूर्वानुमान होना चाहिए। किसान ऐसा भी न करें कि जहाँ बोई जाने वाली फ़सलों के अनुकूल मौसम न हो, वहाँ फ़सल बो दें। इसके अलावा अपने खेत की मिट्टी की गुणवत्ता और वातावरण का भी किसान ध्यान रखें। जहाँ किसी फ़सल के योग्य मिट्टी की गुणवत्ता नहीं हो, वहाँ उस फ़सल को नहीं उगाना चाहिए। इसी तरह जहाँ जिन फ़सलों के योग्य मौसम न हो, वहाँ उन्हें नहीं उगाना चाहिए। हालाँकि अब बहुत-से किसान हर फ़सल को उन जगहों पर उगा रहे हैं, जहाँ उन फ़सलों के अनुसार मौसम ही नहीं है। जैसे राजस्थान में निरे रेत वाले क्षेत्रों में खीरा और हरी सब्ज़ियाँ उगायी जा रही हैं। उत्तर भारत में केसर और मेवे उगाये जा रहे हैं। अगर कहीं किसानों को समस्या आये, तो उन्हें कृषि विशेषज्ञों से सलाह लेनी चाहिए।
किसानों को इन सब बातों को तो ध्यान में रखना ही चाहिए। लेकिन उन्हें संभावित घाटे से बचने के लिए लाभ वाली फ़सलों को प्राथमिकता देनी चाहिए। किसानों को ऐसी फ़सलों चुनाव तो आँख बंद करके कर लेना चाहिए, जो हमेशा लाभ देकर जाती हैं। ऐसी फ़सलों में जो फ़सलें जहाँ आसानी से पैदा हो सकती हैं, वहाँ के किसान उन फ़सलों को उगाकर अच्छा लाभ कमा सकते हैं। इन फ़सलों में आम, अमरूद, केला, पपीता, नींबू, कटहल, जामुन, अंगूर, आडू, बुखारा आलू, लीची, संतरा, सेब, मौसमी, अनानास, फाल्से, बेल, नाशपाती, वनीला और विदेशी फल जैसी फ़सलें शामिल हैं, तो सब्ज़ियों में मशरूम, चना, दालें और वे सब्ज़ियाँ जिनकी पैदावार कम और माँग ज़्यादा रहती है। लेकिन फलों वाली फ़सलों में छोटी फ़सलें उगाने से किसान ज़्यादा लाभ कमा सकते हैं। मेवे वाली, औषधि वाली और मसाले वाली फ़सलें उगाकर किसान अच्छा लाभ कमा सकते हैं। इसके अलावा लकड़ी वाले पौधे लगाकर उनके बीच में फ़सल बोकर भी किसान ज़्यादा लाभ कमा सकते हैं। सभी मसाले वाली फ़सलें अच्छा लाभ देती हैं। कम समय में अच्छा लाभ देने वाली फ़सलों में लहसुन, मिर्च, एलोवेरा, तुलसी, मशरूम, आंवला, पपीता, केला, धनिया, पुदीना और मौसमी सब्ज़ियाँ हैं। इन सब्ज़ियों की बिक्री कम होने पर इनसे दवाएँ बनाकर या इनका पाउडर जैल आदि बनाकर पैकिंग करके लाभ कमाया जा सकता है। साल में एक बार लाभ देने वाली फ़सलों में केसर, लौंग, तुलसी, फूल, इलायची, काली मिर्च, हल्दी, अदरक और फल वाली फ़सलें आती हैं। इसके अलावा किसान उन फ़सलों को भी उगाकर ज़्यादा लाभ कमा सकते हैं, जिनकी पैदावार अच्छी होती है। इन फ़सलों में आलू, पालक, मेथी, बथुआ, चुकंदर, गाजर, मूली, अरबी, टमाटर, बैंगन, सेम और वे फ़सलें आती हैं, जो फ़सलें दोहरा लाभ देने वाली होती हैं। किसानों के लिए दालों वाली फ़सलें भी लाभ देने वाली होती हैं।
कई फ़सलें ऐसी हैं, जो किसानों को मालामाल बना सकती हैं। लेकिन किसानों को उन्हें उगाने और बेचने की सही जानकारी होनी चाहिए। इनमें कई फ़सलें कम लागत वाली होती हैं। हालाँकि किसानों को इन फ़सलों को उगाने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ सकती है। इसमें सुझाव यह है कि छोटे खेत वाले किसानों को बहुफसली और कम समय में मुनाफ़ा देने वाली फ़सलें ही उगानी चाहिए, जिससे उनकी ज़रूरतें जल्द पूरी होती रहें और लाभ मिलता रहे। छोटे खेत के मालिक किसान जब देर में पैदा होने वाली फ़सलें पैदा करते हैं, तो उन्हें लागत लगाने के लिए क़ज़र् भी लेना पड़ता है और लाभ के लिए ज़्यादा इंतज़ार करना पड़ता है, जिससे उन्हें अपने परिवार के लालन-पालन में परेशानी आती है। किसानों को ज़्यादातर नक़दी फ़सलें उगानी चाहिए, जिससे उन्हें फ़सल बेचने के दौरन ही नक़द रुपये मिल सकें। उड़द, मसूर, मूँग, अलसी, सौंफ, अजबाइन, भिंडी, मूली, गाजर, शलगम, धनिया, पालक और कुछ सब्ज़ियों वाली फ़सलें ऐसी ही फ़सलें हैं, जो फ़सलों के बीच में भी पैदा हो जाती हैं और कम समय में पैदा हो जाती हैं। इन फ़सलों की बाज़ार में माँग भी अच्छी है और इन्हें बेचने पर नक़द रुपये भी मिलते हैं।
इस तरह खेती करने से किसानों को बाज़ार भाव गिरने का डर भी कम रहता है और न्यूनतम समर्थन मूल्य की भी चिंता नहीं रहती है। आज के समय में ज़्यादातर किसान कई समस्याओं से जूझ रहे हैं, जिनमें सबसे बड़ी समस्या उनकी ग़रीबी है, जिससे बाहर निकलने की जगह वे क़ज़र् में डूबते जा रहे हैं। ऐसे किसान क़ज़र् से छुटकारे के लिए मज़दूरी करते हैं, खेती रेहन रख देते हैं या खेत बेच देते हैं। कई किसान जब परेशानियों से छुटकारा पाते नहीं देखते हैं, तो आत्महत्या कर लेते हैं। किसानों की इस दशा के लिए जितनी ज़िम्मेदार व्यवस्था है, उतने ही किसान भी ज़िम्मेदार हैं। कम जानकारी, खेती के अनुभव की कमी और क़ज़र् जैसी समस्याएँ किसानों के लिए घातक साबित हो रही हैं। इससे निकलने के लिए किसानों को ख़ुद ही प्रयास करने होंगे। सरकार के भरोसे बैठने से कुछ हाथ नहीं लगेगा।