…सबसे खुश हूं आज

अब तक तो मुझे जीवन का यह दशक बहुत महत्वपूर्ण लग रहा है! सच कहूं तो यह जीवन यात्रा का मिड-वे है. यह वह समय है जब जीवन की लंबाई-चौड़ाई का आपको एकदम सही अंदाज हो जाता है! आप जीवन के इस पार भी देख पाते हो जो बीत गया और उस पार भी जिसे बीतना है. बहुत कुछ पाने, खोने और खुद ही छोड़ने का दौर!  सही मायनों में एक अर्जित आत्मनिर्भरता का दौर! पूर्व में की गई मेहनत और लिए गए निर्णयों के मीठे- कड़वे फल पाने का दौर.

मेरा मानना है कि मेरी ही तरह अन्य महिलाओं के लिए भी यह घने आत्मविश्वास का दौर होता होगा! चाहे वे किसी भी देश, समाज और वर्ग से ताल्लुक रखती हों,  क्योंकि 40  के साथ वह उम्र शुरू होती है, जहां प्रयासों के पेड़ पर फल लगने लगते हैं, परिवार की आरंभिक जिम्मेदारियां निपट चुकी होती हैं,  अपने-अपने स्तर पर आर्थिक संघर्ष भी किसी तरह नियंत्रण में आ जाता है! आपकी अपने समाज और वर्ग में एक प्रतिष्ठा बनने लगती है. दाम्पत्य में भी स्त्रियां इस उम्र तक आते-आते अपनी भूमिका केंद्रीयता में ले आती हैं.

देह और मन के स्तर पर वे अपनी संतुष्टि का अर्थ और ढंग दोनों जान लेती हैं. हालांकि मोहभंग का समय भी यही होता है, माता-पिता को खोने और बच्चों को बाहर पढ़ने भेजने का भी समय यही होता है! बल्कि बच्चों से या अगली पीढ़ी से टकराव का समय भी यही होता है कि आपका अहम हांफ कर थका नहीं होता है, और उनका नया-नया उगा होता है.

अपनी बात करूं, तो मेरे लिए यह घने आत्मविश्वास का समय है,  यह वह समय है जब मेरे लिखे को व्यापक स्वीकार्यता मिल चुकी है, मैं बच्चों की स्कूली जिम्मेदारियों से मुक्त हूं, परिवार में भी मैं स्वयं को साबित कर सकी हूं, कि बी. एस.सी. के बाद बॉटनी एम.एस.सी. छोड़ कर लड़-झगड़ कर हिंदी में एम.ए. करने और साहित्य में रुचि लेने का मेरा निर्णय किस तरह सही था, और वे मुझ पर छोटा -मोटा गर्व कर सकते हैं. दांपत्य में बहुत सारी फुर्सत न सही, मगर एक आपसी समन्वय का समय है यह, जब बिना कहे बहुत कुछ कहा जाता है और सुना जाता है.यह लीड और स्टैंड लेने का समय होता है, अपनी धारणाओं पर टिकने और उसे लागू करवाने का समय होता है, लोग आपकी सुनते हैं, मान देते हैं! यह समाज को दोगुना करके लौटाने का समय भी होता है!  मेरी यह उम्र मुझे यही अहसास दिलाती है कि आखिरकार यही वह ‘मैं’ हूं जो मैं होना चाहती थी, आत्मविश्वासी, स्वतंत्र और कुछ लोकप्रिय, कुछ सफल! फैब्युलस फोर्टी शायद इसी को कहते हैं! आप वह सब कर सकते हैं या करना चाहते हैं जो अब तक नहीं किया!  वह समय है कि जब पुरुषों के लिए आकर्षण का केंद्र होना आपके लिए कोई खास विषय नहीं होता. आंतरिक सुंदरता को महसूस करने की संवेदना जाग चुकी होती है. प्रेम की अवधारणा को भी आप ठीक तरह से जान-समझ चुके होते हैं. हमेशा आकर्षक और प्रेजेंटेबल लगने के बोझ से धीरे-धीरे मुक्त होने लगते हैं, खुल कर अपने मन से जीना बहुत ही मजबूती महसूस करवाता है कि आखिरकार जीवन की बागडोर आपके खुद के हाथ है, न कि पिता, भाई, पति के… सुरक्षा को लेकर अब परिवार में आपकी चिंता नहीं की जाती, आप अकेले दुनिया घूम सकते हैं!

जहां 40-50 का यह दशक मेरे लिए और ज्यादा आजादी, अकेले और पहली बार की गई यूरोप यात्रा और उपन्यास सेलेब्रेट करने का समय रहा है वहीं मां को एक साल के अंदर-अंदर कैंसर से जाते देख एक सघन विरक्ति और हताशा का भी समय रहा है. यही हार्मोनों के बदलाव का समय भी है, इसलिए एक अजब किस्म की डॉमिनेन्स इस उम्र में आ जाती है, एक अड़ियलपन भी! जो मुझे खुद अजीब लगता है, उस अल्हड़पन को तरसती हूं, जो मेरे केस में देर से विदा हुआ था. मुझे अब बोल्ड विषय उठाते भय नहीं होता, बोल्ड यानी केवल सेक्स नहीं होता, सत्ता विरोध, या लीक से हट कर किसी बात को कहना भी होता है, मसलन स्त्री विमर्श के चालू मुहावरे के विरोध में लिखना. भय अब विवादों और कुचर्चा से भी नहीं होता, यह दिलों की पुख्तगी का दौर होता है, टूटता कम है! दुखता कम है! मैंने देखा कि इस दौर में दोस्त छंटते जाते हैं, जो रह जाते हैं वे सच में दोस्त होते हैं, जिनके सामने आपको अपने गुनाहों की स्वीकारोक्ति या उपलब्धियों का बखान नहीं करना होता, वे सब कुछ जानते हैं.

सब कुछ अच्छा-अच्छा तो नहीं हो सकता किसी भी उम्र में, कुछ असुरक्षाएं और उलझन भी लाती है यह उम्र, यह दशक. नजर कमजोर होना मुझे बहुत अखरा क्योंकि मेरे लिए चश्मा बहुत बड़ी उलझन है, मैं बस यही नहीं चाहती थी कि मेरे चश्मा लगे!  खैर… यह तय है कि इस उम्र में आप जान जाते हैं कि कुछ खोई चीजें, खोए लोग वापस नहीं लौट सकते तो उसके लिए हमें तैयार होना ही होता है! जैसा कि मैंने शुरू में कहा कि 40 से 50 यानी हमारी उम्र की स्त्रियां ठीक मिडवे पर हैं जीवन के,  कुछ पल सुस्ता कर आगे जाने को तैयार, नए सफर में! बहुतों के साथ होते हुए भी अकेले होते जाने की नई यात्रा की तरफ, बाहर से भीतर की ओर!

ज्यादातर 40 से ऊपर की महिलाएं स्वयं को बेहतर तरीके से जानती हैं कि वे क्या हैं, वे परवाह नहीं करतीं कि आपके ख्याल उनके बारे में क्या हैं! 20 से 30 की उम्र में हमेशा मैं सोचती थी कि लोग मेरे बारे में सोचें, तीस से चालीस की उम्र में मैं परवाह करती रही कि हाय! लोग मेरे बारे में क्या सोचेंगे, या क्या सोचते होंगे. और अब इस दशक में किसे परवाह? यारों, जिंदगी बहुत छोटी है, एक-एक पल जीने के उत्साह से भरा हो! मुझे लगता है 40 पार की स्त्रियां सबसे ज्यादा आत्मविश्वासी, आकर्षक और जीवन से भरी होती हैं, वे जीवन की कुछ स्पर्धाएं जीत चुकी होती हैं और उन्हें अपनी गति को लेकर सही-सही अंदाज हो चला होता है!  वे दुनिया को साफ-साफ समझ पाती हैं. वे ताड़ पाती हैं-  झूठी तारीफों को, सूंघ पाती हैं – षड़यंत्रों को, वे जान जाती हैं सच्चे प्रेम के मनोविज्ञान को और अंतत: खुद को!  कुल मिलाकर मुझे लगता है, खुद को एक संपूर्ण स्त्री बनाने में मैंने 45 साल लगा लिए और अब लगता है कि मानो अब तक जो जिया वह तैयारी थी, यह ‘मैं’ होने की!

यही वक्त है कि महिला के सारे कृत्रिम आवरण हट जाते हैं और वह मारक तौर पर ईमानदार हो जाती है, ऐसे ही में ज्यादातर लेखिकाएं आत्मकथा लिखने बैठती हैं, मगर मैं ऐसा कुछ भी नहीं करना चाहती. मेरे लिए आत्मकथा का अर्थ निज जीवन की चीर-फाड़, प्रेमियों की फेहरिस्त से आगे का आयाम है, अपने समय से साक्षात्कार जैसा महत्वपूर्ण! सच में, जिसके आगे प्रेम और बेवफाइयां, बहुत बौनी चीजें हैं.

मेरे हिसाब से यह उम्र स्मार्ट दिखने की और होने की है, क्योंकि 40 तक आते-आते आपको पता चल जाता है कि आप पर क्या फबता है और क्या आरामदेह है! मैं बस साड़ी या जींस-कुर्ती और ट्राउजर-फॉर्मल शर्ट तक सीमित हो गई हूं!  फैशन के आगे आरामदेही भाती है,  चालीस की होऊं कि नब्बे की मुझसे जींस-कुर्ती नहीं छूटने वाले, आरामदेही का मामला जो ठहरा. निसंदेह यह समय मेरे जीवन का स्वर्णिम समय है, फैब्यूलस फोर्टी प्लस! उम्र और अनुभव से मैं अपने भीतर के एक बेहतर ‘स्व’ को खोज पाई! इस उम्र में मुझे तो सातवें आसमान पर होना महसूस होता है, क्योंकि मेरे पास बाकी की आधी जिंदगी के लिए ढेर सारे मनपसंद काम और प्लान हैं!