2011 में मणिपुर की राजधानी इंफाल में पैदा हुई लिसिप्रिया कनगुजम दुनिया के सबसे कम उम्र की जलवायु कार्यकर्ता के तौर पर शुमार हो गयी हैं। उन्हें भारत की ‘ग्रेटा थनबर्ग’ का नाम दिया गया है। उन्होंने मैड्रिड में दुनिया-भर के नेताओं को जलवायु परिवर्तन को लेकर झकझोरा और खरी-खोटी भी सुनायी। उन्होंने कहा कि अब इस पर ज़मीनी स्तर पर काम करने की ज़रूरत समय की दरकार है। उन्होंने इस संकट से लडऩे के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् का एक विशेष सत्र बुलाने की भी माँग की।
दिसंबर 2019 में स्पेन की राजधानी मैड्रिड में जलवायु परिवर्तन पर आयोजित कॉप-25 में संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरस बोले कि भारत की आठ साल की बच्ची की मौज़ूदगी यादगार रही और इसने दुनिया की भावी पीढिय़ों को उनके उत्तरदायित्वों की याद दिलायी। इससे पहले कनगुजम ने यूएन महासचिव से मुलाकात करके दुनिया-भर के बच्चों की ओर से उनको ज्ञापन सौंपा था। ग्रेटा थनबर्ग की तरह ही मासूम ने दुनिया-भर के नेताओं से धरती, इंसानी नस्ल और उसके जैसे बच्चों के भविष्य को बचाने के लिए बिना देर किये कार्रवाई करने का आग्रह किया। यह अपने आप में महत्त्वपूर्ण है कि अगर कोई संवेदनशील व्यक्ति अपने आसपास की आबोहवा पर नज़र रखने के साथ हो रहे बदलावों को करीब से महसूस कर रहा है।
सवाल यह है कि आिखर ऐसा क्यों है कि हर अगले वर्ष जलवायु के सामने खड़ी चुनौतियाँ और गहरी होती जा रही हैं? दुनिया के जो देश कार्बन उत्सर्जन के लिए सबसे •यादा •िाम्मेदार हैं, वे •िाम्मेदारी से बच निकलते हैं। अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों का दबाव क्यों नहीं काम कर पा रहा है? ऐसी नौबत क्यों आयी कि नयी पीढ़ी के बच्चोंं की भी नज़र इस समस्या पर जा रही है और वे न केवल खुद अपने स्तर पर काम कर रहे हैं; बल्कि दुनिया को आईना दिखा रहे हैं। जून में भी दुनिया-भर के बच्चों क्लासेज छोडक़र जलवायु परिवर्तन से जुड़ी तिख्तयाँ लेकर सडक़ों पर जुटे और नेताओं व •िाम्मेदारों को जगाने का प्रयास किया था।
क्राउडफंडिंग से पहुँचीं मैड्रिड
कंगुजम जलवायु परिवर्तन पर अब 21 देशों में अपनी बात रख चुकी हैं। उन्हें दक्षिणी गोलाद्र्ध की ‘ग्रेटा थनबर्ग’ का नाम दिया गया है।
पिता के.के. सिंह ने बताया कि जब मैड्रिड का निमंत्रण मिला तो खुश भी थे और नाखुश भी। नाखुशी की वजह यह थी कि उनको समझ नहीं आ रहा था कि पैसे कहाँ से आएँगे।
पिता के अनुसार, कई मंत्रियों को ई-मेल कर यात्रा खर्च उठाने का अनुरोध किया, पर कोई जवाब नहीं मिला।
इसके बाद क्राउडफंडिंग (लोगों से चंदे के ज़रिये पैसे जुटाना) की कोशिश के बाद भुवनेश्वर के एक सज्जन ने मैड्रिड के टिकट करवाये।
कंगुजम की माँ ने अपनी सोने की चेन बेच दी, जिसके बाद होटल में ठहरने की व्यवस्था हो सकी।
खुशी की बात यह रही कि यह सब करने के बाद उनको ई-मेल मिला कि 13 दिन की यात्रा का खर्च स्पेन सरकार उठाएगी।
क्यों तेवर में दिखी थीं ग्रेटा थनबर्ग
दुनिया-भर के नेताओं को सितंबर, 2019 में संयुक्त राष्ट्र के ‘क्लाइमेट एक्शन’ समिट के दौरान झकझोरने वाली 16 वर्षीय ग्रेटा थनबर्ग के तेवर यूँ ही नहीं दिखे थे, बल्कि इससे वो खुद पीडि़ता हैं। न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक, ग्रेटा थनबर्ग एस्परजर सिंड्रोम नामक बीमारी से पीडि़त है। एस्परजर सिंड्रोम एक तरह का ऑटिज़्म है, जो लोगों के बातचीत करने और दूसरों से सम्पर्क बनाने की क्षमता को प्रभावित करता है। ग्रेटा ने बताया था कि उन्होंने लम्बे समय तक अवसाद, अलगाव और चिन्ता झेली है। इससे प्रभावित लोगों के व्यवहार में कई बार दोहराव दिखता है और इससे पीडि़त लोग अपनी बात सामान्य ढँग से नहीं रख पाते।