सफेद कोट वाला आतंक

लाल किले के पास कार में हुए बम विस्फोट की जांच में कई चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं, जिसमें हुर्रियत से जुड़े नेटवर्कों द्वारा कश्मीरी छात्रों को मेडिकल डिग्री के लिए चुपचाप पाकिस्तान भेजने को लेकर फिर से सवाल उठने लगे हैं। इसके साथ ही विदेश में प्रशिक्षित डॉक्टरों की ताजा जांच से हुर्रियत समर्थित पाकिस्तान की संदिग्ध भूमिका भी नजर आने लगी है। इस बार तहलका ने इसी को लेकर अपनी इस रिपोर्ट में पड़ताल की है। तहलका एसआईटी की रिपोर्ट :-

2022 में तहलका की विशेष जांच टीम ने एक चौंकाने वाली स्टोरी का खुलासा किया था कि कैसे हुर्रियत एजेंट पैसे के बदले कश्मीरी छात्रों को एमबीबीएस कोर्स के लिए पाकिस्तान भेजते हैं। तहलका की इस स्टोरी के लगभग तीन साल बाद केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई), दिल्ली पुलिस और राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के अस्पतालों और क्लीनिकों को पत्र लिखकर उन डॉक्टरों का ब्यौरा मांगा है, जिन्होंने पाकिस्तान, बांग्लादेश, संयुक्त अरब अमीरात और चीन से अपनी मेडिकल डिग्री हासिल की है, यह जानकारी एक राष्ट्रीय दैनिक में छपी खबर में दी गई है। यह संपर्क अभियान दिल्ली के लाल किले के पास 10 नवंबर को हुए आत्मघाती बम विस्फोट के लिए जिम्मेदार पुलवामा-फरीदाबाद आतंकी मॉड्यूल की चल रही जांच के बीच सामने आया है, जिसमें कई निर्दोष लोग मारे गए थे। मॉड्यूल के अधिकांश सदस्य डॉक्टर हैं और जांचकर्ताओं को संदेह है कि जांच के दायरे में आए कुछ लोगों ने पाकिस्तान, बांग्लादेश, संयुक्त अरब अमीरात या चीन से एमबीबीएस, एमडी या एमएस की डिग्री हासिल की होगी। अधिकारियों ने बताया कि इस अभ्यास का उद्देश्य मॉड्यूल के सदस्यों के संभावित सहयोगियों या समर्थकों का पता लगाना है। रिपोर्ट के अनुसार, अधिकारियों ने कहा कि एजेंसियां इन चार देशों से डिग्री हासिल करने वाले सभी डॉक्टरों से पूछताछ करेंगी। मॉड्यूल के साथ किसी भी तरह के संबंध को खारिज करने के लिए उनके आपराधिक इतिहास और वित्तीय लेन-देन की जांच की जाएगी। हालांकि अधिकारियों ने स्पष्ट किया कि यह कार्रवाई निवारक प्रकृति की थी और इससे किसी भी तरह से विदेशी प्रशिक्षित डॉक्टरों पर संदेह नहीं किया गया।
केवल तहलका ही नहीं है, जिसने हुर्रियत एजेंटों द्वारा कश्मीरी युवकों को पैसे के बदले एमबीबीएस सीटों के लिए पाकिस्तान भेजने का मुद्दा उठाया था। 2018 में आतंकी फंडिंग मामले में दायर आरोप पत्र में एनआईए ने कहा था कि पाकिस्तान कश्मीरी छात्रों को पाकिस्तान की ओर झुकाव वाली पीढ़ी तैयार करने के लिए छात्रवृत्ति दे रहा है। पड़ोसी देश में छात्र वीजा पर आए अधिकांश युवा आतंकवादियों के रिश्तेदार थे। जांच के दौरान यह पता चला कि छात्र वीजा पर पाकिस्तान जाने वाले छात्र या तो पूर्व आतंकवादियों के रिश्तेदार थे, जो विभिन्न राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में शामिल थे और पाकिस्तान चले गए थे, या वे हुर्रियत नेताओं के परिचित थे। एजेंसी ने यह भी दावा किया कि उनके वीजा आवेदनों की सिफारिश विभिन्न हुर्रियत नेताओं द्वारा नई दिल्ली स्थित पाकिस्तान उच्चायोग को की गई थी।
‘यह एक त्रिकोणीय गठजोड़ को दर्शाता है, जिसमें आतंकवादी, हुर्रियत और पाकिस्तानी प्रतिष्ठान तीन मुख्य कड़ी हैं और वे कश्मीरी छात्रों को संरक्षण दे रहे हैं, ताकि कश्मीर में डॉक्टरों और टेक्नोक्रेट्स की एक ऐसी पीढ़ी तैयार की जा सके, जिनका झुकाव पाकिस्तान की ओर हो।’ -एनआईए ने विभिन्न मीडिया प्लेटफॉर्मों द्वारा प्रकाशित आरोप पत्र में कहा।
एनआईए ने हुर्रियत नेता नईम खान के घर से एक दस्तावेज जब्त किया है, जिसमें एक छात्रा को पाकिस्तान के एक मानक मेडिकल कॉलेज में प्रवेश देने की सिफारिश की गई है, क्योंकि उसका परिवार हर परिस्थिति में स्वतंत्रता संग्राम के लिए प्रतिबद्ध रहा है। जम्मू और कश्मीर पुलिस ने अगस्त, 2021 में एक बड़े गठजोड़ का खुलासा किया, जिसमें घाटी के छात्रों को एमबीबीएस की डिग्री हासिल करने के लिए पाकिस्तान भेजा जाता था और उनके माता-पिता से लिए गए पैसे का इस्तेमाल केंद्र शासित प्रदेश में आतंकवादी गतिविधियों के वित्तपोषण के लिए किया जाता था। इन एमबीबीएस सीटों को बेचकर जुटाई गई धनराशि का इस्तेमाल घाटी में आतंकवाद को वित्तपोषित करने के लिए किया गया। जम्मू-कश्मीर पुलिस के महानिदेशक दिलबाग सिंह ने कहा कि साक्ष्यों से यह भी पता चला है कि इस धन का इस्तेमाल पत्थरबाजी की घटनाओं को अंजाम देने के लिए किया गया था। सूत्रों ने खुलासा किया कि 2020 में काउंटर इंटेलिजेंस विंग, कश्मीर ने विश्वसनीय स्रोतों से जानकारी प्राप्त करने के बाद एक मामला दर्ज किया था कि कुछ हुर्रियत नेताओं सहित कई बेईमान व्यक्ति कुछ शैक्षिक परामर्शदाताओं के साथ मिले हुए थे और पाकिस्तान स्थित एमबीबीएस सीटें और अन्य पेशेवर पाठ्यक्रम सीटें बेच रहे थे।
दो दशकों से अधिक समय से पाकिस्तान सरकार अपने सभी व्यावसायिक पाठ्यक्रमों, विशेषकर मेडिकल और इंजीनियरिंग में जम्मू-कश्मीर के छात्रों के लिए विशेष कोटा आरक्षित करती रही है। जम्मू और कश्मीर के छात्रों को मोटे तौर पर दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है:- (अ) वे जो पाकिस्तान के शिक्षा मंत्रालय के माध्यम से विदेशी-छात्र सीटों के तहत प्रवेश के लिए आवेदन करते हैं, और (ब) वे जो छात्रवृत्ति कार्यक्रम के तहत आवेदन करते हैं। विदेशी-छात्र सीटों के माध्यम से आवेदन करने वाले छात्रों को किसी भी विदेशी छात्र द्वारा दी जाने वाली सामान्य फीस का भुगतान करना होगा। हालांकि छात्रवृत्ति कार्यक्रम के तहत छात्रों को 100 प्रतिशत छात्रवृत्ति, निःशुल्क आवास और प्रतिदिन भत्ता दिया जाता है। जिन छात्रों के माता-पिता या करीबी रिश्तेदार कश्मीर में सुरक्षा बलों द्वारा मारे गए हैं या भारतीय बलों के हाथों पीड़ित हुए हैं, उन्हें छात्रवृत्ति कार्यक्रम के तहत सीटों के लिए प्राथमिकता दी जाती है।
हर साल लगभग 50 छात्र केवल एमबीबीएस के लिए छात्रवृत्ति कार्यक्रम के तहत पाकिस्तान जाते हैं, जबकि इतनी ही संख्या में छात्र अन्य पाठ्यक्रमों में प्रवेश प्राप्त करते हैं। हालांकि प्रवेश के लिए एक कट-ऑफ प्रतिशत निर्धारित है, लेकिन छात्रवृत्ति कार्यक्रम के अंतर्गत छात्रों के लिए सिफारिशें हुर्रियत नेताओं द्वारा की जाती हैं। पिछले कुछ वर्षों से यह आरोप लगाया जाता रहा है कि हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के दोनों गुटों ने पाकिस्तान में व्यावसायिक पाठ्यक्रमों में प्रवेश लेने के इच्छुक छात्रों को सिफारिश पत्र जारी किए हैं। यह भी आरोप लगाया गया है कि कुछ हुर्रियत नेताओं ने सिफारिश पत्र जारी करने से पहले छात्रों से पैसे की मांग की और पाकिस्तान सरकार द्वारा निर्धारित बुनियादी मानदंडों का उल्लंघन किया गया।
यहां तक कि आरोप यह भी थे कि कुछ पुलिस अधिकारियों के बच्चों ने अलगाववादी नेताओं से सिफारिशी पत्र भी हासिल कर लिए। चूंकि कश्मीर में व्यावसायिक कॉलेज बहुत कम हैं, इसलिए छात्र चिकित्सा की पढ़ाई के लिए विदेश चले जाते हैं- पहले रूस और अब बांग्लादेश और पाकिस्तान। हालांकि पाकिस्तान में पाठ्यक्रम अपेक्षाकृत सस्ते और बेहतर गुणवत्ता वाले हैं, लेकिन जब हुर्रियत के सिफारिशी पत्रों ने उन्हें छात्रवृत्ति कार्यक्रम के तहत 100 प्रतिशत मुफ्त शिक्षा के लिए पात्र बना दिया, तो पाकिस्तान जाने वाले छात्रों की संख्या में वृद्धि हुई।
दूसरी ओर हुर्रियत ने हमेशा इस बात से इनकार किया है कि उसके नेता कश्मीर में आतंकवाद को वित्तपोषित करने के लिए पाकिस्तानी मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश बेचने में शामिल थे। हुर्रियत ने कहा कि वह यह रिकॉर्ड में दर्ज करना चाहता है कि यह पूरी तरह से निराधार है और जिन छात्रों या अभिभावकों की हमने सिफारिश की है कि वे इसकी पुष्टि कर सकते हैं, उनमें से कई छात्र आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों से हैं।
दिल्ली के लाल किले में हुए विस्फोट के बाद जहां आतंकी मॉड्यूल के अधिकांश सदस्य डॉक्टर हैं, जांचकर्ताओं का ध्यान उन डॉक्टरों पर केंद्रित हो गया है, जिन्होंने पाकिस्तान से अपनी मेडिकल डिग्री प्राप्त की है। लेकिन तहलका एक बार फिर 2022 की तरह उन लोगों की ओर ध्यान आकर्षित करता है, जिन्होंने हुर्रियत नेताओं की सिफारिशों पर पाकिस्तान में एमबीबीएस सीटें हासिल की हैं। अनुच्छेद-370 के निरस्त होने के बाद की गई तहलका की पड़ताल में पाया गया कि हुर्रियत से जुड़े एजेंट और गैर-लाभकारी संगठन पाकिस्तानी कॉलेजों में कश्मीरी छात्रों के लिए कथित रूप से आरक्षित मेडिकल सीटें बेच रहे हैं। तहलका ने पाया कि ऐसा प्रतीत होता है कि एक सुनियोजित प्रणाली चल रही है, जो पाकिस्तानी कॉलेजों के साथ मिलकर परीक्षा में नकल और अंतरराष्ट्रीय शिक्षा में धोखाधड़ी को अंजाम दे रही है तथा सीमा के इस ओर अलगाववादी और उनके सहयोगी भी इसमें शामिल हैं। राष्ट्र और जनहित में तहलका इस पड़ताल को कुछ नए पात्रों के साथ पुनः प्रस्तुत कर रहा है।
‘मेरे एनजीओ में एक उग्रवादी परिवार की एक अनाथ लड़की पढ़ती थी। हुर्रियत की सिफारिश पर उन्हें एमबीबीएस की डिग्री के लिए पाकिस्तान भेजा गया था।’ -कश्मीर के वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता जहूर अहमद टाक ने कहा।


‘मैं पाकिस्तान गया और एक हुर्रियत नेता की सिफारिश पर मेरे वीजा की व्यवस्था हुई। दिल्ली स्थित पाकिस्तानी दूतावास ने हुर्रियत नेता से सिफारिशी पत्र मिलने के बाद मुझे वीजा देने में कोई देरी नहीं की। इससे पहले उन्होंने मुझे वीजा देने से इनकार कर दिया था।’ -टाक ने कहा
‘हुर्रियत ने कश्मीरी आतंकवादियों के बच्चों के लिए पाकिस्तान से कोटा लिया है, जिन्हें वे अपने सिफारिशी पत्रों पर चिकित्सा और अन्य तकनीकी डिग्री के लिए भेजते हैं। वे इसके लिए पैसे लेते हैं। अब तक उन्होंने कई कश्मीरियों को पढ़ाई के लिए पाकिस्तान भेजा है, जो छात्रवृत्ति योजना के तहत मुफ्त में प्रदान की जाती है।’ -टाक ने आगे कहा।
‘जब मैं पाकिस्तान गया तो मैंने पाकिस्तानी अधिकारियों से भी कुछ कोटा देने को कहा, क्योंकि मैं कश्मीर में अनाथ बच्चों के लिए एक एनजीओ चलाता हूं। वार्ता उन्नत स्तर पर पहुंच गई थी, लेकिन अंत में अटक गई।’ -टाक ने कहा।
‘पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद एक यूरोपीय शहर की तरह बनी है। मुझे इस्लामाबाद बहुत पसंद आया। राजधानी के तौर पर दिल्ली, इस्लामाबाद के सामने कुछ भी नहीं है।’ -टाक ने तहलका के रिपोर्टर से कहा।
‘यदि आपका कोई परिचित पाकिस्तान जाने में रुचि रखता है। मैं हुर्रियत नेताओं की सिफारिश पर उसे पाकिस्तानी वीजा दिलाने में मदद कर सकता हूं।’ -टाक ने आगे कहा।
वरिष्ठ कश्मीरी सामाजिक कार्यकर्ता जहूर अहमद टाक, जिसके एनजीओ के लिए यूरोप से पर्याप्त विदेशी फंडिंग थी और हुर्रियत के भीतर अच्छे संबंध थे; अनुच्छेद-370 के निरस्त होने के बाद दिल्ली में तहलका के रिपोर्टर से मिलने आया। जहूर दिल्ली इसलिए आया, क्योंकि उनके एनजीओ का विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम (एफसीआरए) लाइसेंस गृह मंत्रालय द्वारा बहुत पहले रद्द कर दिया गया था, क्योंकि उन पर आरोप था कि उनके एक ट्रस्ट निदेशक का आतंकवादियों से संबंध है। आज तक उसका एफसीआरए लाइसेंस बहाल नहीं किया गया है। जहूर ने तहलका के रिपोर्टर के सामने स्वीकार किया कि वह हुर्रियत नेताओं से बात करेगा कि वे हमारे फर्जी कश्मीरी छात्रों को हुर्रियत की सिफारिशों पर छात्रवृत्ति योजना के तहत एमबीबीएस कोर्स में दाखिला लेने के लिए पाकिस्तान भेजें। टाक के अनुसार, हुर्रियत ने पाकिस्तान के कॉलेजों में कश्मीरी आतंकवादियों के बच्चों के लिए कोटा सुनिश्चित किया है, जिन्हें वह अपने सिफारिश पत्रों पर चिकित्सा और अन्य पेशेवर डिग्री के लिए भेजता है। वह इसके लिए पैसे लेता है। अब तक वह कई कश्मीरी युवाओं को छात्रवृत्ति योजना के तहत मुफ्त मिलने वाली मेडिकल की पढ़ाई के लिए पाकिस्तान भेज चुका है।’ -टाक ने जोड़ा।
निम्नलिखित बातचीत में जहूर ने खुलासा किया है कि किस प्रकार पाकिस्तान में एमबीबीएस सीटों को निजी नेटवर्क और हुर्रियत से जुड़े चैनलों के माध्यम से संचालित किया जाता है। वह एक ऐसी प्रणाली का वर्णन करते हैं, जिसमें मारे गए आतंकवादियों के बच्चों के लिए छात्रवृत्ति को प्रभावी और पक्षपात के माध्यम से चुपचाप बढ़ाया जाता है।

रिपोर्टर : वो एमबीबीएस वाला?
जहूर : एमबीबीएस का उन्होंने कहा है, ये सेशन खतम हो गया है, नया सेशन शुरू होगा तो हम आपको बता देंगे।
रिपोर्टर : ये किससे बात हुई आपकी?
जहूर : ये हुर्रियत का एक ग्रुप है, …वो XXXXX वाला।
रिपोर्टर : इनका तरीका क्या है एमबीबीएस का?
जहूर : इनके अपने लोग हैं वहां।
रिपोर्टर : पाकिस्तान में?
जहूर : हां।
रिपोर्टर : तो उसमें पैसे तो नहीं लगते, एमबीबीएस में?
जहूर : वो तो पैसे नहीं ले रहे हैं, लेकिन ये पैसा लेते हैं।
रिपोर्टर : कौन? हुर्रियत वाले?
जहूर : उन्होंने इनको वहां कोटा दिया हुआ है, इसलिए इन्होंने वहां अपने रिश्तेदार हैं, उनको वहां भेज दिया है।
रिपोर्टर : हुर्रियत वालों ने या कश्मीर के लोगों ने?
जहूर : कश्मीर के लोगों ने भी और हुर्रियत वालों ने भी।
रिपोर्टर : काफी लोग पाकिस्तान चले गए हैं?
जहूर : बहुत चले गए हैं।
रिपोर्टर : एमबीबीएस करने या वैसे ही?
जहूर : नहीं-नहीं, एमबीबीएस करने। अब उसमें उन्होंने ये रखा था कंडीशन कि ये बच्चा जो है, ये किसी ऐसे मिलिटेंट का बच्चा होना चाहिए, जो शहीद हो गया है।
रिपोर्टर : अच्छा, ये कंडीशन है पाकिस्तान की?
जहूर : हां, लेकिन उसके साथ अपना भी कोटा वहां पैदा कर दिया हुर्रियत वालों ने, वहां मांगकर उनसे ले लिया। एक, दो, तीन, चार… कुछ न कुछ भेज देते हैं, अब उसको भी बताते हैं अगरचे शहीद का नहीं है, लेकिन हुर्रियत में है, परेशान है, जेल में है, या पकड़-जकड़ में है।

जहूर ने तहलका रिपोर्टर से बातचीत में स्वीकार किया कि उसके एनजीओ में पढ़ने वाली एक आतंकवादी की अनाथ बेटी को हुर्रियत की सिफारिश पर एमबीबीएस की डिग्री के लिए पाकिस्तान भेजा गया था। उसने इस बात पर जोर दिया कि उनके संगठन ने केवल उसे शिक्षित करने में ही भूमिका निभाई, जबकि प्रवेश की व्यवस्था भी स्वतंत्र रूप से की गई।
रिपोर्टर : तो आपने XXXX ट्रस्ट की एक लड़की जिसको आपने एमबीबीएस करवाया पाकिस्तान में, वो किस तरीके से करवाया?
जहूर : वो तो मिलिटेंट की बच्ची थी, हमारी नहीं थी, वो मिलिटेंट की बच्ची थी।
रिपोर्टर : अच्छा, आपके ट्रस्ट की थी?
जहूर : अलबत्ता वो पढ़ रही थी, हमारा उसमें कोई रोल नहीं था, रोल था सिर्फ इतना कि हमने उसको पढ़ाया-लिखाया, क्यूंकि वो मिलिटेंट की बच्ची थी, तो उसके घर वालों ने वहां राब्ता किया था।
रिपोर्टर : पाकिस्तान में?
जहूर : पाकिस्तान में, तो इस तरह से उनका हो गया।

अब जहूर अहमद टाक ने एक और खुलासा किया। उसने कहा कि वह पाकिस्तान गया था और उसका वीजा एक हुर्रियत नेता की सिफारिश पर दिया गया था। उसके अनुसार, दिल्ली स्थित पाकिस्तानी दूतावास ने नेता का सिफारिशी पत्र मिलने के बाद बिना देरी किए वीजा जारी कर दिया; इससे पहले उन्होंने वीजा देने से इनकार कर दिया था।
रिपोर्टर : आपका क्या प्रोसीजर हुआ था सर, पाकिस्तान के वीजा का?
जहूर : मैं एंबेसी गया था, मैं एक्चुअली दूसरे काम के लिए आया था, अचानक हमें पता चला कि वहां हमारी घर वाली के रिश्तेदार हैं।
रिपोर्टर : पाकिस्तान में?
जहूर : पाकिस्तान में, …तो उन्होंने फोन किया था घर की हमारी इस तरह से शादी हो रही है, आप प्लीज तशरीफ लाइए। घर वाली ने फोन किया कि वो फोन कर रहे हैं, तो हमें जाना चाहिए। नहीं जाएंगे, तो बुरा लगेगा उनको। फिर मेरे साथ दूसरे साहेब भी थे, हम गए पाकिस्तान एंबेसी में, उन्होंने साफ कहा- हम इस तरह से नहीं देंगे, कोई रिकमेंडेशन होनी चाहिए। तो मैंने फिर फोन किया XXXX साहेब को। मैंने कहा इस तरह से मसला है, फिर उन्होंने XXXX खान से बात की, तो उन्होंने फैक्स की एक लेटर यहां दिल्ली में, तो वो फैक्स लेटर लेकर हम वहां गए, तो हुआ।
रिपोर्टर : पाक एंबेसी, दिल्ली में?
जहूर : हां।
रिपोर्टर : उसमें कितना टाइम लगा?
जहूर : एक दिन में हो गया।
रिपोर्टर : तो ये हुर्रियत के लेटर हेड पर रिकमंड किया होगा XXXX खान ने?
जहूर : हां।
जहूर : ये उन्होंने एक स्पेशल प्रोविजन रखा है लोगों की हेल्प करने के लिए, हुर्रियत वालों की वहां पर रिकॉग्नाइजेशन के लिए वर्ना वो क्या करते हैं, वो कुछ नहीं कर सकते।

जहूर ने हमें बताया कि जब वह पाकिस्तान गए थे, तो उन्होंने वहां के अधिकारियों से अनुरोध किया था कि उन्हें कोटा दिया जाए, क्योंकि वह कश्मीर में अनाथ बच्चों के लिए एक एनजीओ चलाते हैं। उन्होंने अफसोस जताते हुए कहा कि बातचीत काफी आगे बढ़ चुकी थी, लेकिन अंतिम चरण पर आकर अटक गई।
रिपोर्टर : तो इस टाइप का कोटा तो आप भी ले सकते हैं पाकिस्तान से अपने लिए, XXXX साहेब बता रहे थे, कोशिश की थी आपने?
जहूर : हमने की थी कोशिश और उन्होंने माना भी था, मगर तभी पाकिस्तान गवर्नमेंट ने, पता नहीं किस वजह से रुकावट आ गई, कि हम एनजीओज को ये नहीं करेंगे।
रिपोर्टर : क्या प्रोसीजर था, किस तरीके से आपने शुरू किया था?
जहूर : हमने उनको कहा था कि ये जैसे हुर्रियत वाले कोटा ले रहे हैं।
रिपोर्टर : एमबीबीएस स्टूडेंट्स का?
जहूर : हां, तो उसमें हमें भी कुछ कोटा दीजिए, हमने कहा हम मांग रहे हैं उन यतीम बच्चे और बच्चियों के लिए जिनका कोई नहीं है। वो अगर ले रहे हैं मिलिटेंट्स के बच्चे दूसरे बच्चे, हमारे पास मिलिटेंट्स के बच्चे नहीं हैं। हमारे पास सिर्फ ऑफेंस हैं, जिनका न मां है, न बाप है, न कोई है। अब यहां से उनका कोटा है, लेकिन कहीं-कहीं से उनको चलता ही नहीं, अगर आप ये करते तो। इन्होंने कहा था, पाकिस्तान एंबेसी वालों ने, कि हम उनके साथ बात करेंगे, इन्होंने कहा था मुझसे कि शायद वो कंसीडर करेंगे।
रिपोर्टर : आप जब पाकिस्तान गए थे, तब बात हुई थी पाकिस्तान में?
जहूर : हमारी वहां हो गई थी बात ये जो सेक्रेटरी किसम के आदमी थे, उनके साथ हमारी डायरेक्टली हुई थी और एक जान-पहचान का आदमी था, तो उसने हमारा राबता उसके साथ किया, तो उन्होंने कहा हम इसको एग्जामिन करेंगे, अगर पॉसिबल हुआ, तो करेंगे। पर वो पर्सनल हमने उनको लिखकर के दिया कि हम क्या चाहते  हैं। हमारा मसला क्या है और हम किसलिए चाह रहे हैं।

इसके बाद तहलका रिपोर्टर ने जहूर को एक फर्जी सौदा पेश किया और कहा कि हमारा एक परिचित व्यापारी पाकिस्तान जाना चाहता है और उसे वीजा की जरूरत है। जहूर ने संवाददाता को आश्वासन दिया कि वह हुर्रियत की सिफारिश पर काल्पनिक व्यवसायी के लिए पाकिस्तान का वीजा दिलाने का प्रयास कर सकते हैं। इस बातचीत में जहूर ने कहा कि हुर्रियत नेता लगभग किसी का भी समर्थन कर सकते हैं, और पाकिस्तान द्वारा ऐसे समर्थन को शायद ही कभी अस्वीकार किया जाता है। इससे यह पता चलता है कि प्रभाव कितनी आसानी से औपचारिक प्रतिबंधों को दरकिनार कर सकता है।
रिपोर्टर : इसका सर थोड़ा अर्जेंट बेसिस पर वीजा का?
जहूर : ये किन साहिब को जाना है?
रिपोर्टर : मेरी एक नाउन हैं, मुस्लिम हैं यही रहती हैं दिल्ली में, जामा मस्जिद में।
जहूर : करते क्या हैं?
रिपोर्टर : बिजनेसमैन हैं।
जहूर : अच्छा, ठीक है बिजनेसमैन को रिकमेंड करने में कोई प्रॉब्लम नहीं होनी चाहिए पॉलिटिशियन हो तो उनको प्रॉब्लम हो जाती है, बिजनेसमैन को नहीं होनी चाहिए।
रिपोर्टर : क्यूंकि जो रिलेशन चल रहे हैं आजकल आपको उसमें मुश्किल है।
जहूर : बहुत मुश्किल है।
रिपोर्टर : ये नॉन कश्मीरी को रिकमेंड कर देंगे हुर्रियत के लोग?
जहूर : किसी को भी कर सकते हैं इनको क्या है।
रिपोर्टर : शायद उनको कोई कंडीशन हो कि कश्मीर के ही बंदे को करेंगे रिकमेंड ये सब?
जहूर : मुझे वो तो पता नहीं है, मगर मेरा ऐसा मानना है कि वो जिसको रिकमेंड करते हैं, उसको वो नकारते नहीं हैं।
रिपोर्टर : अच्छा, पाकिस्तान नकारता नहीं है?
जहूर : नहीं नकारता।

इसके बाद जहूर ने पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद की प्रशंसा करते हुए कहा कि इसे यूरोपीय शहर की तरह बनाया गया है। टाक ने कहा कि उन्होंने बताया कि उन्हें इस्लामाबाद बहुत पसंद है और राजधानी के रूप में दिल्ली उसकी तुलना में कुछ भी नहीं है।
जहूर : मैं इस्लामाबाद गया था। रावलपिंडी, मैं यूरोप भी गया हूं। यूरोप और इस्लामाबाद में देखने लायक है। मतलब उसका ऐसे बनाया हुआ है कि बहुत हैरान होता है आदमी, इस्लामाबाद में नहीं और यूरोप में भी।
रिपोर्टर : इतना अच्छा है उनका कैपिटल?
जहूर : बहुत उम्दा।
रिपोर्टर : दिल्ली से बेटर है?
जहूर : दिल्ली तो कुछ भी नहीं है।

पाकिस्तान में एमबीबीएस दाखिले के बारे में हाल ही में जब जहूर से संपर्क किया गया, तो उसने तहलका रिपोर्टर को बताया कि वर्तमान स्थिति वहां प्रवेश पाने के लिए अनुकूल नहीं है। इसके बाद तहलका के रिपोर्टर ने अनुच्छेद-370 हटाए जाने के बाद कश्मीर में हुर्रियत के एजेंट सज्जाद मीर से भी मुलाकात की। सज्जाद ने संदिग्ध रैकेट की जांच कर रहे तहलका के अंडरकवर पत्रकार को पाकिस्तानी मेडिकल स्लॉट की पेशकश करने के लिए दिल्ली की यात्रा की। दिल्ली के एक पांच सितारा होटल में उनसे मिलने के तुरंत बाद सज्जाद मीर ने तहलका रिपोर्टर के सामने अपनी प्रवेश योजना की रूपरेखा प्रस्तुत की। इस बातचीत में एजेंट यह बताता है कि पाकिस्तानी मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश किस प्रकार आसानी से मिल जाता है, बशर्ते अंक अच्छे हों और पैसा तैयार हो। वह कागजी कार्रवाई समझाता है और यह भी आश्वासन देता है कि चयन की गारंटी है, चाहे परीक्षा हो या न हो।
सज्जाद मीर : अभी चार एडमीशन भेजो आप।
रिपोर्टर : चार लड़के?
सज्जाद मीर : परसेंट एट्टी प्लस होने चाहिए।
रिपोर्टर : ट्वेल्थ में, एट्टी प्लस?
सज्जाद मीर : हां, नीट क्वालीफाई होना चाहिए।
रिपोर्टर : नीट क्वालीफाई होगा पाकिस्तान के लिए?
सज्जाद मीर : पाकिस्तान के लिए।
रिपोर्टर : खर्चा सर?
सज्जाद मीर : 15-16 लाख।
रिपोर्टर : मतलब, ये आपको देना पड़ेगा?
सज्जाद मीर : जी।
रिपोर्टर : मतलब एक कैंडिडेट का 15 लाख रुपए?
सज्जाद मीर : एक कैंडिडेट का, ….पिछले साल का यही रेट था। इस साल का तो पता नहीं, अभी तो नीट अभी हुआ है, एक-दो लाख एक्स्ट्रा होंगे या कम होंगे या बराबर होंगे, अभी पता नहीं।
रिपोर्टर : प्रोसीजर क्या है एक बार जरा समझा दीजिए?
सज्जाद मीर : फॉर्म भरना है। वो जो हमारे बंदे हैं, वो ऑनलाइन भेज देंगे वहां पर। वहां से लिस्ट निकलेगा एग्जाम के लिए, जो सिलेक्ट होगा उसको एग्जाम देना है। वहां पर फेल होंगे पास होंगे, उनका एडमिशन होना ही होना है। वो सर्टिफाइड है अगर एग्जाम में फेल होगा, तो उसको पढ़ने नहीं देते वहां पर, अगर हमारा बंदा फेल भी हो जाएगा, तब भी सिलेक्शन है।

सज्जाद मीर ने बताया कि किस प्रकार कश्मीरियों को पाकिस्तान में एमबीबीएस में प्रवेश के लिए लाभ दिया जा रहा है। इस संक्षिप्त बातचीत में एजेंट ने पाकिस्तान में एमबीबीएस सीट चाहने वाले कश्मीरियों को दिए जाने वाले विशेष लाभ के बारे में बताया। उसने कहा कि विफलता उनके लिए कभी चिंता का विषय नहीं होती तथा उनके आवेदनों के साथ अलग तरह से व्यवहार किया जाता है।
सज्जाद मीर : वहां तो वो करते ही नहीं हैं, कश्मीरियों का वो डील है, उनके लिए फेल-वेल का मसला ही नहीं है।
रिपोर्टर : पाकिस्तान में?
सज्जाद मीर : पाकिस्तान में वो बेनिफिट देखते हैं कश्मीरियों का।
रिपोर्टर : ओके।
सज्जाद मीर : कश्मीरियों को ये बेनिफिट्स है।

बातचीत आगे बढ़ी, तो सज्जाद मीर ने तहलका के खोजी पत्रकार को पाकिस्तान में प्रवेश पाने के लिए भुगतान के तरीके के बारे में बताया। उसने वित्तीय व्यवस्था का विवरण देते हुए बताया कि फॉर्म भरने से पहले ही आधा भुगतान कर दिया जाना चाहिए। इस चर्चा से सम्पूर्ण प्रक्रिया की लेन-देन संबंधी प्रकृति का पता चलता है।
रिपोर्टर : पैसा कब देना है एडवांस?
सज्जाद मीर : 50 परसेंट पहले देने हैं, जब फॉर्म भरेंगें। 50 परसेंट तब, जब वहां से (पाकिस्तान से) कॉल लेटर आएंगे उसके बाद।
रिपोर्टर : मतलब 16 लाख का 8 लाख अभी दे दूं, रिमाइनिंग जब वहां,,,,,।
सज्जाद मीर : जब वहां से कॉल लेटर आएंगे, जिसको जाना हो, उस टाइम, …वो तो कन्फर्म एडमिशन होता है।

सज्जाद मीर ने आगे बताया कि भुगतान पूरी तरह से नकद में लिया जाता है, जिससे कोई सुराग न मिल सके और इस ऑपरेशन को खुले तौर पर अस्वीकार्य ही माना जाता है।
रिपोर्टर : आपका क्या सिस्टम है पैसे लेने का?
सज्जाद मीर : हम तो कैश ही लेते हैं।
रिपोर्टर : कैश लेते हैं, …पूरा 100 परसेंट?
सज्जाद मीर : हां।

सज्जाद मीर ने खुलासा किया कि किस तरह हुर्रियत सदस्य पाकिस्तान में एमबीबीएस में प्रवेश पाने के इच्छुक कश्मीरी छात्रों के लिए सिफारिश पत्र लिखते हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि हुर्रियत नेता पाकिस्तान में एमबीबीएस प्रवेश के लिए सीधे पत्र जारी नहीं करते हैं। इसके बजाय वह एक अनौपचारिक नेटवर्क की ओर इशारा करते हुए कहते हैं कि उनके पास अपने एजेंट हैं, जो इस तरह के काम को संभालते हैं।
रिपोर्टर : तो क्या हुर्रियत के लोग चिट्ठी वगैरह लिखते हैं?
सज्जाद मीर : कौन?
रिपोर्टर : हुर्रियत के लोग एडमिशन वगैरह के लिए पाकिस्तान में एमबीबीएस के लिए?
सज्जाद मीर : उन्होंने अपने एजेंट्स रखे हुए हैं।

जब सज्जाद मीर से पूछा गया कि अनुच्छेद-370 हटाए जाने के बाद जब हुर्रियत के अधिकांश शीर्ष नेता जेल में थे, तब वे सिफारिश पत्र कैसे जारी कर रहे थे? तो उसने हुर्रियत प्रणाली के बारे में बताया कि शीर्ष नेतृत्व की अनुपस्थिति में दूसरे और तीसरे स्तर के नेता कैसे काम करते हैं। उसने सुझाव दिया कि पाकिस्तान इस श्रृंखला के अंतर्गत आने वाले किसी भी व्यक्ति को मान्यता देता है, जिससे हस्ताक्षर या औपचारिक प्राधिकार लगभग अप्रासंगिक हो जाते हैं।
रिपोर्टर : ये सब तो जेल में हैं, …ये चिट्ठी कैसे लिखेंगे हुर्रियत वाले?
सज्जाद मीर : इनका सिस्टम होता है। आप बंद हो आपके बाद मैं हूं, ये ग्रुप होता है। तंजीम एक बंदे पर नहीं होती है।
रिपोर्टर : जी।
सज्जाद मीर : जो तंजीम होती है ना, वहां ना वहां तो 10-15 तंजीम चलती हैं, 20-20 लोग काम करते हैं। आपके फॉलोअर्स 30-30 होते हैं। आप बंद हो जाओगे, दूसरा होगा। दूसरा बंद हो जाएगा, तो तीसरा होता है। जिसके कॉन्टेक्ट में रहते हैं, काम तो चलता रहता है।
रिपोर्टर : उनके सिग्नेचर?
सज्जाद मीर : वो प्रॉब्लम नहीं है। उनको पता है ना ये बंदा हमारा है।
रिपोर्टर : अच्छा, पाकिस्तान वाले दूसरे बंदे को जानते होते हैं?
सज्जाद मीर : हां, सारे बंदे को जानते हैं, जो ग्रुप में होता है।
रिपोर्टर : मतलब कोई भी चिट्ठी लिख दे, वो मान लेंगे?
सज्जाद मीर : हां।

सज्जाद मीर ने आगे बताया कि उनके सभी छात्रों को पाकिस्तान के सरकारी मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश मिलेगा, निजी कॉलेजों में नहीं। उसने कहा कि छात्रवृत्ति कार्यक्रम के तहत उनका पांच वर्षीय एमबीबीएस कोर्स निःशुल्क होगा।
सज्जाद मीर : वहां गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज में एडमिशन हो जाएगा।
रिपोर्टर : अच्छा, गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज में?
सज्जाद मीर : गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज में। वहां प्राइवेट नहीं है।
रिपोर्टर : पाकिस्तान में?
सज्जाद मीर : पाकिस्तान में, गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज में एडमिशन हो जाएगा, फ्री ऑफ कॉस्ट में, वहां कुछ नहीं देना।
रिपोर्टर : अरे वाह!
सज्जाद मीर : वहां कुछ नहीं देना है, 5 रुपए तक नहीं देना है। वहां फ्री है। अगर वहां से स्कॉलरशिप हो गई, वहां से ही पैसे मिलेंगे। उसको कपड़ों के लिए भी पैसे वहीं से आते हैं। अगर उसको कपड़े खरीदने होंगे ना, तो वहीं से पैसे आएंगे। वो भी पैसे एड हैं उसमें।
रिपोर्टर : ओके, ये पांच साल का कोर्स है या चार साल का?
सज्जाद मीर : पांच।
रिपोर्टर : पांचों साल फ्री है?
सज्जाद मीर : पांचों साल।
रिपोर्टर : कोई फी नहीं?
सज्जाद मीर : कुछ नहीं।
रिपोर्टर : ऐसा क्यूं?
सज्जाद मीर : कश्मीर के लिए रखा है। हालात-वालात खराब है, वो है।

अब सज्जाद मीर ने कबूल किया है कि यह पूरी योजना उसके और अलगाववादियों के लिए पैसा कमाने का धंधा है। इस बातचीत से यह स्पष्ट स्वीकारोक्ति सामने आती है कि ये लोग शहीद कोटा से जुड़े एमबीबीएस प्रवेश को पैसा कमाने का उद्यम मानते हैं।
रिपोर्टर : पाकिस्तान में कोटा है, जो यहां शहीद हुए हैं?
सज्जाद मीर : इसलिए बिजनेस चल रहा है ना। मैं क्या बोल रहा हूं, ये सारा बिजनेस है। दुकान खोलकर रखा है।
रिपोर्टर : ये भी हुर्रियत के जरिए जाते हैं?
सज्जाद मीर : हुर्रियत के थ्रू।
रिपोर्टर : तभी आप कह रहे हैं ये भी बिजनेस है?
सज्जाद मीर : हां, ये बिजनेस है। मैं बोल रहा हूं। ये सारा बिजनेस ही है ये। सारा खेल है लोगों को बेवकूफ बनाने के लिए।
रिपोर्टर : दे (कंडीडेट्स) गो थ्रू हुर्रियत, राइट? (वे हुर्रियत के जरिए जाएंगे, ठीक?)
सज्जाद मीर : थ्रू दि हुर्रियत। (हुर्रियत के जरिए।)

सज्जाद मीर अब उपलब्ध नहीं है और उसका नंबर भी बदल गया है। सज्जाद के बाद तहलका रिपोर्टर ने सज्जाद की सहयोगी शाहिदा अली से मुलाकात की। यह बैठक भी अनुच्छेद-370 हटाए जाने के बाद हुई थी। सज्जाद मीर अकेले काम नहीं करता। ऐसा प्रतीत होता है कि उसने पाकिस्तानी कॉलेजों में प्रवेश पाने के लिए कुछ स्थानीय गैर-लाभकारी संगठनों को शामिल किया था। पड़ताल के दौरान तहलका की मुलाकात XXXXX ट्रस्ट की संस्थापक शाहिदा अली (बदला हुआ नाम) से हुई। यह 20 साल पुराना गैर-लाभकारी संगठन है, जो चिकित्सा और शिक्षा से लेकर विधवा देखभाल तक के क्षेत्रों में काम करने का दावा करता है। सज्जाद मीर इसके लिए मुखौटे के रूप में काम करता था।
शाहिदा अली के साथ यह मुलाकात नोएडा के एक शॉपिंग मॉल में हुई। उसने कहा कि हुर्रियत की सिफारिशों पर कश्मीरियों को पाकिस्तान में एमबीबीएस कार्यक्रमों में प्रवेश मिलता है, जहां उनकी शिक्षा पूरी तरह मुफ्त है। इस संक्षिप्त बातचीत से यह स्पष्ट हो जाता है कि पाकिस्तान में एमबीबीएस सीटें हुर्रियत से जुड़े विशिष्ट पत्रों के माध्यम से कैसे प्राप्त की जाती हैं। शाहिदा ने पुष्टि की कि एक बार यह अनुमोदन प्राप्त हो जाने पर कश्मीरी छात्रों को न केवल निःशुल्क प्रवेश मिलेगा, बल्कि बुनियादी खर्चों के लिए भी धन मिलेगा।
रिपोर्टर : मैं ये बात इसलिए पूछ रहा हूं, मुझे आपसे कुछ काम है। अगर आप कर सकते तो, ये हुर्रियत के लोग लड़कों को एमबीबीएस के लिए भेजते हैं?
शाहिदा : हां, पाकिस्तान।
रिपोर्टर : आपको मालूम है। तो हमारे 4-5 लड़के हैं, कश्मीर के हैं।
शाहिदा : XXXX साहेब का एक लेटर चाहिए होगा उनको। XXXX साहेब जब लेटर देते हैं, तभी होता है।
रिपोर्टर : वो एडमीशन शायद पाकिस्तान में फ्री होता है, पढ़ाई उसकी?
शाहिदा : जी, बिलकुल फ्री होती है। उनको शॉपिंग के लिए भी पैसे मिलते हैं।
रिपोर्टर : जी।

शाहिदा ने कबूल किया कि वह कश्मीरी अलगाववादी आसिया अंद्राबी से जुड़ी हुई थी, जो कथित तौर पर भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ने के आरोप में मुकदमे का सामना कर रही है। उसने यह भी दावा किया कि वह हुर्रियत में लगभग सभी लोगों को जानती है।
शाहिदा : हुर्रियत में सब हमको जानते हैं।
रिपोर्टर : आप हुर्रियत में सबको जानती हैं?
शाहिदा : बहुत अच्छे से, आसिया अंद्राबी।
रिपोर्टर : जी।
शाहिदा : कुरान शरीफ पढ़ाया है।
रिपोर्टर : आसिया अंद्राबी ने आपको?
शाहिदा : हां, उनको कहीं भी ले जाना हो जैसे डॉक्टर के पास ,तो मैं ही साथ जाती थी।
रिपोर्टर : आसिया अंद्राबी जी को? ओके।

नोएडा के उसी शॉपिंग मॉल में तहलका के पत्रकार से दोबारा मिलने से पहले शाहिदा अली ने हुर्रियत एजेंट सज्जाद मीर से पाकिस्तान में कश्मीरी छात्रों के प्रस्तावित प्रवेश के बारे में बात की थी। वह पूरी योजना के साथ तैयार होकर आई थी।
शाहिदा : वो बोले आप आ जाओ, डाक्यूमेंट्स लेकर आ जाओ बस।
रिपोर्टर : एडमिशन हो जाएगा?
शाहिदा : हो जाएगा।
रिपोर्टर : पाकिस्तान में, एमबीबीएस में?
शाहिदा : हां।
रिपोर्टर : कश्मीरी लड़कों का?
शाहिदा : बोला उसने।
रिपोर्टर : पक्का है ये?
शाहिदा : पक्का।
रिपोर्टर : क्यूंकि मैं तो उनको जानता नहीं हूं, आप ही जानती हैं।
शाहिदा : क्यूंकि वो लास्ट टाइम भी मेरे पास आए थे, वहीं से आए थे। भरोसे वाले हैं। वर्ना हर किसी को नहीं बोलते हैं। बोला कि अगर ऐसी कोई बात है, अगर है कोई अपना तो भेज।
रिपोर्टर : आपसे कहा था यही सज्जाद मीर ने?
शाहिदा : हां।
रिपोर्टर : सज्जाद मीर नाम बताया था आपने?
शाहिदा : हां।
रिपोर्टर : तो पहले भेज चुके?
शाहिदा : हां, ही (सज्जाद मीर) वुड लाइक टू मीट यू विद डाक्यूमेंट्स। दैट (एडमिशन) विल बी डन। (वह [सज्जाद मीर] आपसे दस्तावेज़ों के साथ मिलना चाहेंगे। वह [दाखिला] हो जाएगा।)
रिपोर्टर : एमबीबीएस इन पाकिस्तान? (पाकिस्तान में एमबीबीएस?)
शाहिदा : यस, ही इज अ रिलायबल पर्सन। ही कम टू मीट मी दि लास्ट टाइम एज वेल। ही डजन्ट से एनीथिंग अदरवाइज। ही टोल्ट मी टू टेल यू टू मीट हिम। (हाँ, वह एक विश्वसनीय व्यक्ति है। वह पिछली बार भी मुझसे मिलने आए थे। वह इसके अलावा कुछ नहीं कहते। उन्होंने मुझसे कहा कि मैं तुम्हें उनसे मिलने के लिए कहूं।

पाकिस्तान में एमबीबीएस में प्रवेश के लिए भुगतान की जाने वाली राशि के बारे में पूछे जाने पर शाहिदा अली ने तहलका के रिपोर्टर को बताया कि यह सब उम्मीदवार की आर्थिक स्थिति पर निर्भर करता है। ‘चाहे उम्मीदवार अनाथ हो या गरीबी रेखा से नीचे हो। इन सब बातों पर विचार करना होगा।’ -सज्जाद ने कहा। शाहिदा अली ने एक संपन्न परिवार के उम्मीदवार के लिए 10 लाख रुपए की बोली लगाई।

शाहिदा : नहीं, फैमिली कैसी है उस पर डिपेंड करता है। मतलब, ऑरफन है तो उस पर डिपेंड करता है। ब्लो प्रोवर्टी लाइन है, तो उस पर डिपेंड करता है, तो वो देखना पड़ता है।
रिपोर्टर : फैमिली अच्छी है।
शाहिदा : गरीब हैं?
रिपोर्टर : गरीब नहीं हैं, पैसे वाले हैं।
शाहिदा : फिर 10 लाख भी देंगे, तो दिक्कत क्या है।
रिपोर्टर : 10 लाख?
शाहिदा : हैं ना! … 10 भी देंगे तो दिक्कत क्या है। 40 लाख, मेरी हैं ना फ्रेंड की बेटी, उसको तो 40 लाख लगे थे। फिर तो 8-10 लाख में उनको प्रॉब्लम नहीं होनी चाहिए। फिर मैं सज्जाद भाई का नुकसान क्यूं करवाऊं, उनको भी चाहिए।
रिपोर्टर : लेकिन ये पाकिस्तान की बात हो रही है, एमबीबीएस की?
शाहिदा : हां, मैं भी वो ही बात कर रही हूं।

शाहिदा अली भी अब उपलब्ध नहीं है और उनका नंबर भी लगातार बंद पाया गया। इस बीच राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) ने चिकित्सा की पढ़ाई के इच्छुक छात्रों को सलाह दी है कि वे चिकित्सा की पढ़ाई के लिए पाकिस्तान न जाएं। एनएमसी के अनुसार, जो भारतीय किसी भी पाकिस्तानी मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस/बीडीएस या समकक्ष चिकित्सा पाठ्यक्रमों में प्रवेश लेना चाहते हैं, वे एफएमजीई (विदेश में एमबीबीएस पूरा करने वाले भारतीयों के लिए अनिवार्य लाइसेंसिंग परीक्षा) में शामिल होने या पाकिस्तान में प्राप्त योग्यता के आधार पर भारत में रोजगार पाने के पात्र नहीं होंगे; सिवाय उन लोगों के, जो दिसंबर 2018 से पहले पाकिस्तानी संस्थानों में शामिल हुए हों। जिन छात्रों ने दिसंबर, 2018 से पहले अपनी पढ़ाई शुरू की है या गृह मंत्रालय (एमएचए) से सुरक्षा मंजूरी प्राप्त कर ली है, वे एफएमजीई परीक्षा में शामिल हो सकते हैं। अब नामांकन कराने वाले लोग एफएमजीई के लिए पात्र नहीं होंगे और पाकिस्तान से प्राप्त डिग्री के आधार पर भारत में प्रैक्टिस नहीं कर सकेंगे।
2024 में लाहौर (पाकिस्तान) से एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी करने वाली कश्मीर की डॉक्टर मेहरू शफी ने तहलका रिपोर्टर को बताया कि उन्हें भारत सरकार से सुरक्षा मंजूरी मिल गई है, जिसमें पुष्टि की गई है कि वह किसी भी भारत विरोधी गतिविधि में शामिल नहीं हैं, जिससे उन्हें एफएमजीई परीक्षा में बैठने की अनुमति मिल गई है। शफी के अनुसार, पाकिस्तान से एमबीबीएस करने वाले 300 छात्रों में से 50 को एफएमजीई परीक्षा में बैठने के लिए सुरक्षा मंजूरी मिल गई, जबकि शेष 250 अभी भी मंजूरी का इंतजार कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि अब एमबीबीएस के लिए पाकिस्तान जाने वाले छात्र केवल भारत के बाहर ही प्रैक्टिस कर सकते हैं, देश के भीतर नहीं।

शफी ने तहलका से बातचीत में स्वीकार किया कि वह एफएमजीई परीक्षा पास किए बिना पिछले एक साल से श्रीनगर स्थित इंडिया आईवीएफ सेंटर में काम कर रही हैं, जिसकी एनएमसी द्वारा अनुमति नहीं है, क्योंकि उसकी डिग्री विदेश से प्राप्त की गई थी। उन्होंने पाकिस्तान की चिकित्सा शिक्षा की उच्च गुणवत्ता की प्रशंसा की और कहा कि पाकिस्तान में चिकित्सा की पढ़ाई करने वाले कई कश्मीरी छात्र अब भारत में सरकारी नौकरियों में हैं। उनके अनुसार, अतीत में स्थिति आज की तुलना में कम जटिल थी।
2021 में पाकिस्तान के रावलपिंडी कॉलेज से एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी करने वाली एक अन्य कश्मीरी छात्रा स्वालेहा ने  तहलका को बताया कि उसे अभी तक एफएमजीई परीक्षा में बैठने की अनुमति नहीं दी गई है और वह अभी भी सुरक्षा मंजूरी का इंतजार कर रही है। इस बीच पाकिस्तान में पढ़ाई करने वाले उनके जूनियरों को मंजूरी मिल गई है। उन्होंने बताया कि वह वर्तमान में एफएमजीई की परीक्षा पास किए बिना दिल्ली में एक शोध शाखा में काम कर रही हैं, जो एनएमसी नियमों का उल्लंघन है।

2022 में लाहौर के फातिमा जिन्ना मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस की पढ़ाई करने वाली और सर गंगा राम अस्पताल, लाहौर में इंटर्नशिप करने वाली कश्मीरी छात्रा हुमैरा फारूक को भी एफएमजीई के लिए सुरक्षा मंजूरी प्राप्त करने में देरी का सामना करना पड़ा। अंततः उन्होंने विवाह कर लिया और मालदीव में बस गईं, जहां उन्होंने स्थानीय चिकित्सा परीक्षा उत्तीर्ण की और चिकित्सा का अभ्यास कर रही हैं। हुमैरा ने बताया कि भारत में उनके कुछ जूनियरों को एफएमजीई मंजूरी मिल गई, जबकि उन्हें नहीं मिली। उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि उन्होंने एफएमजीई प्रमाणीकरण के बिना श्रीनगर के अहमद अस्पताल में काम किया, जो कानून के विरुद्ध है। लेकिन उन्होंने पाकिस्तान में चिकित्सा शिक्षा की गुणवत्ता की प्रशंसा की।
दिल्ली के लाल किले में हुए विस्फोट ने विशेषकर पाकिस्तान में प्रशिक्षित डॉक्टरों के लिए एक समस्या का पिटारा खोल दिया है। तहलका की चिंता वे लोग नहीं हैं, जिन्होंने पाकिस्तान में एमबीबीएस में प्रवेश के लिए सामान्य प्रक्रियाओं का पालन किया और अब भारत में काम कर रहे हैं: बल्कि चिंता का विषय यह है कि पड़ताल में कश्मीर के उन आतंकवादियों के बच्चों पर प्रकाश डाला गया है, जो एमबीबीएस की डिग्री के लिए हुर्रियत की सिफारिशों पर पाकिस्तान जा रहे हैं। एक गंभीर सवाल उठता है कि क्या ये छात्र कट्टरपंथी हो गए हैं? एनआईए की चार्जशीट में भी इस मुद्दे को उठाया गया है। तहलका की पड़ताल से यह सवाल भी उठता है कि जहूर अहमद टाक, सज्जाद मीर और शाहिदा अली जैसे एजेंटों द्वारा हुर्रियत की सिफारिशों पर कितने आतंकवादियों के बच्चों को एमबीबीएस के लिए पाकिस्तान भेजा गया? जो तहलका के कैमरे में कैद हो गया। ये खुलासे शिक्षा, राजनीति और कट्टरपंथी नेटवर्क के बीच जटिल और परेशान करने वाले गठजोड़ को रेखांकित करते हैं।