केरल के लोगों की हिम्मत दिखी आपदा से जूझने में
केरल में 24 जुलाई से ही अलेप्पी और कोट्टायम को बाढ़ पीडि़त जि़ला घोषित किया। राज्य के 14 जि़लों को राहत कार्य के लिए 63 करोड़ दिए गए। 27 जुलाई को इडुक्की रिजर्वेयर में पानी का जल स्तर बढ़ा। एनडीआरएफ टीमें तैनात की गईं। अलुवा, त्रिशूर और इडुक्की में नौ अगस्त से हालात बिगडऩे लगे। सेना की इंजीनियरिंग कोर के लोगों ने अपनी नावें बाढ़ पीडि़त इलाकों में उतारी। प्रधानमंत्री ने नौ अगस्त को मुख्यमंत्री पिनराई विजयन से बात की और रुपए सौ करोड़ राहत के लिए जारी किए। बिजली विभाग ने चेरुथोनी बांध के शटर खोले फिर बाढ़ का पानी और बढ़ा। मुख्यमंत्री ने बारह अगस्त को बताया कि शुरूआती दौर में आठ हजार 316 करोड़ रुपए मात्र का नुकसान हो चुका है। मुल्लापेरियार बांध के शटर भी 14 अगस्त को खोले गए और फिर 15 अगस्त को राज्य के 35 बांधों के शटर खोल दिए गए। अब सब जगह पानी ही पानी था। आकाश में हैलीकॉप्टर थे और तनाव। अब केरल को राहत और पुनर्वास ही नहीं बल्कि केरल का ही नव निर्माण करना है। यहां की आपदा में जिस तरह केरल सरकार के वित्त मंत्री टामस आइजक और शिक्षामंत्री सी रविंद्रनाथन ने आपदा पीडि़तों के दुख को अपना दुख माना और अब नव केरल के निर्माण के लिए विचार कर रहे हंै। केरल की बाढ़, राहत और नव निर्माण का जायजा लिया है मोहन कुमार ने
असुरों के राजा महाबली हर साल की तरह इस साल भी शनिवार (25 अगस्त) को अपने प्रदेश केरल में आए। इस बार उन्हें काफी अफसोस रहा कहीं भी लोग खुशियां मनाते नहीं दिखे। उन्होंने देखा कि केरल के लोगों ने गंदगी, बीमारी, गरीबी और भूखे रह कर भी हौसला नहीं खोया। वे हर कहीं एक दूसरे को ढांढस बंधाते दिखे। वे उन मछुआरों को किसी फरिश्ते से कम नहीं मानते जो उन्हें बढ़ती बाढ़ में उनके घरों से निकाल कर राहत शिविरों में ले आए। वे उन सैन्य बलों को को नहीं भूल पाते जिन्होंने उन्हें बचाने में अपनी भूख प्यास बीमारी की परवाह नहीं की। केरल के लोग अपने घरों से दूर ज़रूर हुए पर उन अनजान लोगों की बीच सेवा सुरक्षा मेें जो उनकी देखभाल कर रहे थे।
राजा महाबली आदमी की जिजीविषा पर चकित हुए। एक राहत शिविर में तो उन्होंने खुद को और अवतारी विष्णु के वामन को भी उसी परिधान में सुसज्जित होकर अभिनय राहत शिविर कर रहे थे। वहां बैठे सभी उनकी पुरानी कहानी सुन रहे थे। संवादों पर हंस रहे थे। बुजुर्ग महिलाएं, बच्चे कितने खुश थे। वे पर भूल गए थे विपदा। इनके चेहरे पर संकल्प था। इन्होंने देखा कैसे केरल सरकार के विभिन्न जिलों के अधिकारी तिरूअनंतपुरम के सक्रेटेरियेट में बैठने वाले सारे आला अधिकारी कृषिमंत्री और शिक्षा मंत्री सी रविंदरानाथ और वित्त मंत्री वीएस सुनील कुमार शिविरों में रहे थे।
ये लोग किस तरह राहत सामग्री शिविरों में पहुंचा रहे थे सभी भूखों को भोजन बीमार लोगों को दवाएं देने के काम में जुटे थे। वे वहीं सोते भी थे और फिर सबकी मदद में जुटे दिखते थे। यहां खालसा एड आपात हेलिकाप्टर एंबुलैंस केअर इंडिया, ग्रीन पीस, नर्मदा बचाओ समिति, उदय फाउंडेशन जैसी स्वयंसेवी संस्थाएं राहत सामग्री ला रही थीं और वितरित कर रही थीं। एमडीआरएफ, थल सेना, नौ सेना, वायुसेना, भारत-तिब्बत सेना पुलिस भी राहत पहुंचाने के काम में लगे थे। वायु सेना ने अपने हेलिकॉप्टरों से सहयोग किया। बूढ़े, बच्चों और गर्भवती महिलाओं तक को ऊंचाई पर बने राहत शिविरों में ले जाकर रखा। वह बेजोड़ था।
केरल के युवा, अधेड़ मछुआरों ने अपनी नौकाओं से बाढग़्रस्त इलाकों में टूटे-फूटे घरों से लोगों को बाहर निकाला और उन्हें राहत शिविरों में ले गए। पूरे देश ने केरल में चल रहे राहत के काम को देखा। उन्हें महसूस हुआ कि कैसे पूरी राज्य सरकार पानी में खड़ी होकर राहत के काम में जुट जाती है। पूरे देश के साथ राजा महाबली ने भी कामना की, आने वाले वर्षों में केरल फिर अपने पैरों पर खड़ा होगा। पूरे देश में सबसे ज्य़ादा साफ पर संपन्न रहा प्रदेश फिर विकसित करेगा पर्यटन, कृषि और स्वस्थ्य। जल्दी ही घर, पुल, सड़कें बन जाएंगे फिर पांच साल में दिखेगा नया केरल और भी सुंदर और खूबसूरत।
केरल में सोलह जिलों में से 13 जिलों में पांच दिन हुई भयंकर बारिश से हालात बिगड़े। हर जगह पानी ही पानी था। विपदा तब बढ़ी जब राज्य के 36 बांधों के शटर खोल दिए गए। कहीं कोई चेतावनी नहीं और पानी अपनी राह खुद बनाता बढ़ता गया हर कहीं। इस विपदा मेें केरल के समुद्री तट के मछुआरों ने आगे आकर लोगों को घरों से बाहर निकाला। राज्य के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने सेना से मदद को गुजारिश की। सेना के तीनों अंगों ने अपनी इंजीनियरिंग कोर के सहारे केरल के लोगों को सुरक्षित ऊँचे स्थानों में बने राहत शिविरों में पहुंचाया।
राज्य में भारी बारिश के चलते बांधों के गेट खोलने पड़े। इडुक्की और वायनाड जैसे पहाड़ी जिलों में बाढ़ का पानी उफान ले रहा था। बाढ़ के कारण कई जगह पहाडिय़ा धंस गई। घरों में पानी भर गया। हजारों मकान गिर गए। पानी के बहाव में दस हजार किलोमीटर सड़क इस तरह धसकतीं हुई डूबी मानों न तो सड़कें थीं और न बांध ही।
राज्य के वित्तमंत्री आइजक ने बताया कि बाढ़ से लोगों को बचाने में थलसेना, वायुसेना और नौसेना और नेशनल डिसास्टर रिस्पांस फोर्स के जवानों और अधिकारियों के अलावा स्थानीय निकाय और जिले के पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं ने लोगों को घर घर से बाढ़ से निकालने और उन्हें राहत शिविर तक पहुंचाने में खासी मदद की। मछुआरों ने अपनी नौकाओं से दिन-रात एक करके हजारों लोगों को घरों से निकाल कर राहत शिविर तक पहुंचाया।
अब बाढ़ का पानी हट रहा है। अब बिजली भी आ गई है। अब टेलिफोन की लाइनें ठीक हो रही हैं। अब चुनौती है राज्य सरकार के लिए घरों, सड़कों पर जमा कीचड़-गंदगी की सफाई, राहत पुनर्वास और राज्य का नव निर्माण। आज केले, नारियल, तमाम मसालों की फसलें बर्बाद हो गई हैं। आज किसी के पास कोई काम नहीं है। कोई काम धंधा-रोज़गार लोगों के पास नहीं है। पूरे राज्य में सड़कों और राज मार्गों के निर्माण में ही दस हजार करोड़ रु पए से ज्य़ादा का खर्च आएगा। राज्य मंत्रिमंडल ने 21 अगस्त को हुई अपनी बैठक में राज्य में हुए नुकसान का जायज़ा लिया केंद्र से शुरूआत में 100 करोड़ रुपए के पैकेज की मांग भी की गई। राज्य मंत्रिमंडल ने यह भी चाहा कि जीएसटी कौंसिल राज्य जीएसटी (एसजी एसटी) 10 फीसदी सेस लगाने दे। लेकिन कोई दिलचस्पी नहीं दिखी। केंद्र ने राज्य को सिर्फ छह सौ करोड़ रु पए दिए हैं। राज्य सरकार ने मांग की है कि राज्य की कजऱ् सीमा सकल राज्य घरेलू उत्पाद के तीन फीसद की मौजूदा दर को बढ़ा कर 4.5 फीसद कर दिया जाए। राज्य सरकार तब सार्वजनिक ऋण के रूप में 10,500 करोड़ रु पए फिर जुटा सकेगी। साथ ही केंद्र खाद्य पदार्थों की आपूर्ति करे खास तौर पर सस्ती दरों पर चावल की आपूर्ति।
केंद्र से सैन्य बलों और ज़रूरी उपकरणों आदि को तत्काल भेजा ज़रूर जाए। लेकिन अब ज्य़ादा ज़रूरी है कि राज्य की मदद के लिए विभिन्न संसाधनों के साथ पुनर्वास और पुननिर्माण की योजनाओं को भी लागू करने में मदद करे।
यूनाइटेड अरब अमीरात ने केरल की मदद के लिए सात सौ करोड़ रु पए की मदद की पेशकश की क्योंकि खाड़ी के देशों में केरल के लोगों ने काफी काम किया है। केंद्र ने उसे लेने से इनकार कर केरल के हितों को नुकसान ही पहुंचाया हैं।
केरल में कुट्टनाड के एक हिस्से अलपुझा के एक राहत शिविर मेें रह रहे गोपालन ने बताया कि पानी के निकलने में अभी एक सप्ताह और लगेगा। जब उसे और उसके परिवार को राहत शिविर में लाया गया था तो उस इलाके में छाती से ऊपर तक पानी भरा था। अकेले अलपुझा से आए लोगों को बासठ राहत शिविरों में रखा गया है। बाढ़ के पानी में फसल बर्बाद हो जाने से किसानों की सबसे बड़ी चिंता यही है कि वे कजऱ् कैसे अदा करेंगे।
आज पूरे कुट्टनाड इलाके में खास तौर पर चंबक्कुलम, नेदुमुर्डी, कवलान, काइक्कारा और कई इलाके तो एकदम बर्बाद हो गए हैं। एक सप्ताह से भी ज्य़ादा समय तक फसलों के पानी में रहने के कारण फसलें चौपट हो गई हैं। घरों में दरारें आ गई हैं। इनके जल्दी ही धसक जाने के आसार बन गए हैं। कोच्चि को केरल की वित्तीय राजधानी कहा जाता है। यहां कुट्टनाड की तरह तो नुकसान नहीं हुआ लेकिन पेरियार नदी में आए उफान का असर कोच्चि की सड़कों और पड़ोसी कस्बों मसलन अलुवा पर खासा पड़ा। यह सीजन था व्यापारियों और दुकानदारों का लेकिन सब कुछ खत्म हो गया। एक दुकानदार ने बताया।
कई जगह राज्य में औद्यौगिक इकाइयां चल रही हैं लेकिन उसमें काम करने वाले काफी कम हैं या नहीं हैं। अभी भी वे राहत शिविरों में ही है। केरल स्टेट स्माल इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के अनुसार राज्य में करीब एक लाख पैंतीस हजार लघु इकाइयां हैं। इन्हें अब विशेष पैकेज और छूट की उम्मीद हैं। इसके लिए केंद्र सरकार और राज्य सरकार को वे लिखने को है।
राज्य सरकार का अनुमान है कि लगभग तीन सौ बिलियन रुपए का नुकसान हुआ है। यह शुरूआती नुकसान का जायजा सीआईआई के केरल स्टेट कौंसिल के अध्यक्ष का है। यह सभी मानते हैं कि राज्य के मछुआरों, पंचायतों, निकाय वार्ड के पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं और सेना के अलावा राज्य में पहुंचे साठ हजार से ज्य़ादा स्वयंसेवियों ने राहत शिविरों में वाकई गजब का काम किया। तिरूवम्बादी शिविर में एक डाक्टर रोज ही आता और बीमार लोगों को दवाएं देता। राहत शिविरों के पदाधिकारियों ने यह हिदायत बरती कि उन्होंने पुराने कपड़े इसलिए नहीं लिए जिससे छूआछुत के रोग न फैलें।
केरल में तकरीबन चौदह जिले हैं। लेकिन दुनिया भर में भगवान का अपना प्रदेश कहा जाने वाले राज्य में 53 बांध हैं जिनमें 35 बांध लगभग 100 साल पहले 1024 में आई बारिश व बाढ़ की ही तरह इस बार कहीं ज्यादा प्रभावी थे। इस बार की बाढ़ में जिनमें सबसे ज्य़ादा जो जिले प्रभावित हुए उनमें कासरगोड, कन्नूर, कालीकट, मल्लापुरम, पालघाट और कोल्लुम हैं। इनके अलावा इडुक्की, पट्टनमटीटम, एलेप्पी, कोट्टायम, वायनाड, त्रिशूर, एर्णाकुलम, कोच्ची और तिरूअनंतपुरम हैं जहां कहीं कुछ कम और कुछ ज्य़ादा बारिश और बाढ़ का असर रहा।
इस भयंकर बारिश और बाढ़ से रेलवे और सड़क यातायात बेहद प्रभावित हुआ। खास तौर पर इडुक्की, कोल्लम, वायनाड, अलेप्पी, पालघाट, कालीघाट, कोट्टायम, एर्णाकुलम, त्रिशूर, मल्लपुरम, बंगलरू को जाने वाली कासरगोड़ सड़क। तमिलनाडु जाने वाली सड़क टूट गई। राहत शिविरों को अलग-अलग ऊँची जगहों पर बनाया गया था। एर्णाकुलम के एलुवा में 269 राहत शिविर हैं। इनमें 1.13 लाख परिवार रखे गए। कोल्लम के राहत शिविर 56 थे। कोट्टायम में 127 शिविर लगे जहां 17 हजार सात सौ 72 लोग रहे। कालीकट में 26 शिविर लगे जिनमें 8 हजार 788 लोग, इडुक्की में तीन हजार राहत शिविर लगे। पालघाट में 51 राहत शिविर थे जिनमें पांच हजार लोग थे।
कासरगोड में सबसे कम यानी एक ही राहत शिविर लगाया गया। मल्लपुरम में 39 राहत शिविरों में चार हजार चार सौ 95 लोग रहे। त्रिवेंद्रम में 66 राहत शिविर थे। इनमें चार हजार 122 लोग थे। त्रिशूर में 15 हजार लोग राहत शिविर में थे।
ओणम पर आए महाबली और आशीष देकर लौटे
इस बार फिर ओणम (नए वर्ष) पर भगवान के प्रदेश केरल में चर्चित महादानी प्रतापी महाराज महाबली अपनी प्रजा से मिलने पहुंचे। पहला कदम भूमि पर रखते ही उनका हृदय धक-धक करने लगा। माथे पर पसीने की बंूदें आ गईं।
उन्होंने मन में सोचा इतने खूबसूरत रहे मेरे प्रदेश का आज यह हाल। हर साल नाचते-गाते लोग अच्छी खेती, संपत्ति अर्जन करके साल में एक दिन मुझे याद करते थे। आज हर कहीं बाढ़ है, टूटे-फूटे मकान है। जहां बाढ़ का पानी नहीं है, वहां कीचड़ ही कीचड़। मरे हुए पशु, गंदगी और बदबू। उफ क्या हाल बना रखा है इस राज्य का। आखिर क्यों?
मुझसे तो दान में ही यह उपजाऊ, संपन्न राज्य ले लिया था सुरों के महाप्रभु विष्णु ने फिर मैंने ही उनसे सिर्फ एक दिन यानी ओणम के दिन अपने पुराने राज्य में आने की अनुमति चाही थी। उन्होंने यह स्वीकार भी किया। लेकिन इस बार मेरे राज्य की जनता की इतनी दुर्दशा क्यों?
राजा महाबली इस बार कहीं न तो ठहरे और न कुछ बोले। उन्होंने बारिश रोकी। बांधों से आए पानी से राह दी। राहत शिविरों में घूमें बुजुर्गोंं, बच्चों, अधेड़ों और युवाओं से मुलाकात की। मछुआरों को आर्शीवाद दिया और लौट गए। नए वर्ष का पहला दिन खत्म होने पर।
गेट्स फाउंडेशन से छह लाख डालर की मदद
अमेरिकी संस्था गेट्स फाउंडेशन ने केरल आपदा में बतौर राहत छह लाख डालर की मदद वाया यूनिसेफ देने की घोषणा की है। फाउंडेशन ने कहा कि बाढ़ प्रभावित लोगों और उनकी जिंदगी फिर शुरू हो सके इस लिहाज से उन्होंने यह राशि यूनिसेफ के जरिए भेजी है। यूनिसेफ वहां सक्रिय दूसरे स्वंयसेवी संस्थाओं के जरिए इस मदद का उपयोग करेगा। यूनिसेफ केरल में सक्रिय तौर पर राहत कार्य कर रहा है।
सरदार प्रतिमा बनाने में लग रहा खर्च ही केरल राहत में दें।
बाढ़ में तबाह हो गए केरल की यात्रा से अभी-अभी लौटी देश की प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर ने बड़े ही दुख के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक चि_ी लिखी है। इसमें उन्होंने आश्चर्य जताया है कि केरल में इतनी भयानक बर्बादी के बावजूद उनकी सरकार जिम्मेदारी निभाने से क्यों बच रही है। केरल की तबाही को यह राष्ट्रीय आपदा के तौर पर क्यों घोषित नही कर रही है।
अपने पत्र में मेधा ने लिखा है कि केरल में जिस तरह बाढ़ आई, बारिश होती रही, बांधों के गेट खोल दिए गए उसके चलते पूरे प्रदेश में सुनामी और ओखी जैसी बर्बादी इस बार भी दिखाई दी। वहां रह रहे मेरे सहयोगियों ने बताया कि बाढ़ का पानी अब तो घट रहा है, लेकिन अभी भी इसमें समय लगेगा। लोग अभी भी राहत शिविरों में है। मकानों में, सड़कों पर हर कहीं कीचड और गाद जमा है। मरे मवेशी हैं। आने-जाने के साधन भी नहीं है। बांधों से छोड़े गए पानी से प्रभावित परिवारों को हेलिकॉप्टर से वायुसेना और राहत टीमों ने निकलने में मदद की। इन सब से यह याद आया कि ऐसा ही बिहार में आई कोसी विपदा के दौरान भी हुआ था।
केरल एक बहुत ही छोटा राज्य है और देश उसकी चिंता अच्छी तरह कर सकता है। लेकिन विपदा का जो व्यापक असर बुजुर्गों, बच्चों और महिलाओं पर पड़ा है, वह भी धीरे-धीरे ही जाएगा। आज ज़रूरत है कि पूरा देश केरल के लोगों के राहत और पूरे राज्य के नव निर्माण के लिए आगे आए। हम लोगों को केरल के ही लोगों ने बताया कि ओखी तूफान के समय भी केंद्र ने मदद का हाथ नहीं बढ़ाया। उस समय भी यदि प्रधानमंत्री ने तत्काल कदम उठाए होते तो जान-माल की बर्बादी इतनी नहीं होती। इस बार भी असंवेदनशीलता ही झलकी। केंद्र सरकार में जल संसाधन मंत्री, वित्तमंत्री, रक्षा मंत्री क्या नहीं जानते विपदा क्या होती है और तत्काल क्या किया जाना चाहिए। आप तो देश के प्रधानमंत्री हैं आप अच्छी तरह जानते है कि छोटा सा प्रदेश केरल आज कितनी बड़ी विपदा झेल रहा है। विकास में यह विनाश का ही दर्शन है।
देश के नागरिक यह नहीं समझ पा रहे हैं कि आपकी सरकार पूरी मदद करने से क्यों हिचक रही है, क्यों यह इस आपदा को राष्ट्रीय विपदा घोषित करने से हिचकिचा रही है। प्रदेश के 35 बांधों से पानी छोड़ देने से प्रदेश की सारी संपत्ति तबाह हो चुकी है। प्राकृतिक संपदा खत्म हो गई और इस सबकी भरपाई की कोशिश करनी ही होगी। केरल राज्य की सरकार का अनुरोध है कि कम से कम 8000 करोड़ की मदद दी जाए। हालांकि नुकसान तो इससे कई गुना ज़्यादा का हुआ है। आपने शुरू में 100 करोड़ और राहत कोष के नाम पर महज 500 करोड़ देकर इतिश्री कर ली।
जबकि केरल में तमाम मूलभूत परियोजनाएं थीं जिनमें नदियों पर बांध बने थे। लेकिन प्राकृतिक कोप ने सब कुछ बर्बाद कर दिया। ऐसे में आवश्यक है कि दूसरी परियोजनाएं रोक ली जाएं। जिससे बचाव का काम हो सके। आपकी सरकार मदद देने में सक्षम है। आप राज्य सरकार की मदद की गुहार पर अमल ज़रूर करें। प्रधानमंत्री जी, राष्ट्रीय आपदा घोषित करने के लिए राज्य में हुए नुकसान के मुद्दें पर केंद्र सरकार का जायजा उसकी पहल और मदद का जायजा लिया जाता है। यह सारा आप खुद देख चुके है। फिर भी यदि आपके लिए यह मदद दे पाना संभव नहीं है तो सरदार पटेल की भव्यमूर्ति बनाने पर जो विशाल धन राशि खर्च की जा रही है उसके बराबर की ही राशि आप बतौर मदद या उपहार स्वरूप राज्य सरकार को दे सकें तो आम जनता को बहुत खुशी होगी। सरदार पटेल की आत्मा को भी शांति मिलेगी।
राहत देने में राजनीति क्यों?
देश में बाढ़ आना कोई नई बात नहीं है। भौगोलिक तौर पर मौसम में हर साल असंतुलन होता ही है। लेकिन इस बार केरल में बाढ़ से बहुत ज़्यादा बर्बादी हुई। इस विपदा के समय भी आपदा प्रभावित लोगों को मानवीय तौर पर राहत देने में राजनीति का होना अच्छा नही।
राज्य को हाल फिलहाल दो हज़ार करोड़ रुपए से भी कहीं ज़्यादा धन की ज़रूरत राहत और पुनवार्स के लिए चाहिए। लेकिन केंद्र न तो ज़रूरी मदद दे रही है और न विदेशों से मदद के लिए बढ़े हाथों को ही मान्य कर रहा है। यहां तक कि विदेशी गैर सरकारी स्वंयसेवी संगठनों की ओर से मदद के प्रस्ताव पर भी रोक लगा रखी है। यह पूरी तौर पर पार्टी की राजनीति है जो यह बताता है कि देश में दक्षिण के प्रति कितना ज़्यादा डाह है।
संवाददाता सम्मेलन में तेलंगाना प्रदेश कांग्रेस कमेटी के कोषाध्यक्ष गुडुर नारायण रेड्डी ने कहा, ”तकरीबन दस दिन तो केंद्र सरकार को केरल में आई बाढ़ को ‘सीवियर कैलामिटीÓÓ बताने में ही लग गए। जबकि उत्तराखंड में जब बाढ़ के रूप में विपदा आई तो फौरन ”प्राकृतिक विपदाÓÓ की घोषणा कर दी गई। क्या देश के प्रधानमंत्री को पार्टी लाइन से उठकर सभी प्रदेशों को एक नजऱ से नहीं देखना चाहिए?
दक्षिण भारत में भाजपा राजनीतिक तौर पर कर्नाटक, तेलंगाना और आंध्रप्रदेश में सिर्फ सांकेतिक तौर पर दिखती है। इसलिए केरल में आई विध्वंसकारी बाढ़ पर इस पार्टी ने केंद्र में सत्ता में रहते हुए भी वह रुचि नहीं ली जो यह उन राज्यों में दिखाती रही है जहां इसकी अपनी सरकार सत्ता में है। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा कि प्रधानमंत्री को भाजपा शासित राज्यों और गैर भाजपा शासित राज्यों के बीच भेदभाव नहीं बरतना चाहिए। उन्होंने तो जिन राज्यों में कांग्रेस की सरकारें हैं, उन्हें सलाह दी कि वे संकट की इस घड़ी में आगे आएं और केरल के लोगों की मदद करें। कांग्रेस के सभी सांसदों, विधायकों ने एक महीने का अपना वेतन केरल वासियों की मदद के लिए केरल मुख्यमंत्री राहत कोष में जमा करने का निश्चय किया है।
भाजपा और एनडीए के ऐसे रवैये की निंदा की जानी चाहिए। माकपा के नेता श्री करूणाकरण ने लोकसभा में कहा कि यह बाढ़ केरल के इतिहास में आई भयंकर बाढ़ों में एक है। उन्होंने उस वाक्य को भी याद कर अपनी नाराजग़ी जताई कि जब सब कुछ बर्बाद कर देने वाला तूफान ओखी आया था तब वादा करके भी केंद्र सरकार ने फूटी कौड़ी भी नहीं दी।
दक्षिण भारत के साथ केंद्र सरकार कई तरह से भेदभाव पहले भी करती रही है। जबकि देश की कुल आबादी की 20 फीसद आबादी यहां रहती है। यह कुल टैक्स का 30 फीसद नियमित तौर पर केंद्र को देती है। विनोद दुआ ने अपने कार्यक्रम में (22 अगस्त) बताया था। कुल सकल उत्पाद (जीडीपी) में दक्षिण भारत की भागीदारी 25 फीसद की रही है। हालांकि इसे सिर्फ 18 फीसद ही वापस मिलते हैं। उदाहरण बतौर यदि तमिलनाडु एक रुपया देता है तो इसे केवल 40 पैसा मिलता है जबकि उत्तरप्रदेश को एक रुपए में से 80 पैसा मिल जाता है। केरल दिल्ली को एक रुपया देता है लेकिन उसे महज 25 पैसा दिया जाता है। वर्तमान वित्त आयोग 2011 की गणना के अनुसार अनुदान देता है। दक्षिण भारत में जहां उत्तर की तुलना में जनसंख्या पर नियंत्रण है वहीं उस लिहाज से दक्षिण भारत कमाता है। लेकिन उत्तर भारत सिर्फ खाता है। दक्षिण भारत के समुद्री राज्यों की मदद की बात जब उठती है तो हमेशा भेदभाव किया जाता है। तेज भयंकर आंधी हो या बाढ़ का मामला हो, केंद्र सरकार की नींद हमेशा देर से खुलती है।
इस साल अगस्त में केरल में आई बाढ़ में 400 से ज़्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। छह लाख से कही ज़्यादा लोग आज बेघर हैं। उनके घर गिर चुके हैं। मवेशी मर चुके हैं और घर में रखा खाने पीने का सारा सामान खराब हो चुका है। घरों में पानी भरने के कारण कीचड़ और गंदगी है। ऐसे केरल वासियों को आज मदद की ज़रूरत है। जिसे न तो केंद्र दे रहा है और न उसे विदेशों से मदद लेने की अनुमति दे रहा है।
केंद्र ने अब तक सिर्फ 600 करोड़ रुपए दिए हैं। उन्हें कतई पर्याप्त नहीं कहा जा सकता। जहां हजारों करोड़ रुपए की बर्बादी इस विपदा में हो गई हो वहां 600 करोड़ रुपए की मदद ऊँट के मुह में जीरा ही है।
जब पूरा राज्य ही बाढ़ में लगभग तहस-नहस हो गया हो ऐसे में मदद के प्रस्ताव को ठुकराने की वजहों का कोई आधार नहीं होता।
शेषु बाबू