उत्तर प्रदेश विधान परिषद के चुनाव में समाजवादी पार्टी (सपा) का सूपड़ा साफ होने से सपा के ही नेता अब अखिलेश यादव को असफलता का दूसरा नाम कहने लगे है। सपा के नेताओं ने तहलका संवाददाता को बताया कि मार्च के महीने में सपा को विधानसभा के चुनाव में भारी हार का सामना करना पड़ा और अब अप्रैल माह में विधान परिषद के चुनाव में 36 सीटों में 36 सीटों पर ही हार का सामना करना पड़ा है।
सपा के वरिष्ठ नेता ने बताया कि 2012 के विधानसभा के चुनाव में सपा ने मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में चुनाव लड़ा था। तब सपा ने अकेले दम पर सरकार बनाई थी। फिर 2017 के विधानसभा के चुनाव में पारिवारिक विवाद के चलते पार्टी से मुलायम सिंह यादव और उनके भाई शिवपाल सिंह यादव अखिलेश यादव के चाचा हाशिये पर चलें गये थे। उसके बाद अखिलेश यादव ने कांग्रेस और बसपा के साथ गठबंधन किया है। लेकिन कोई सफलता हासिल न हुई , वर्ष 2022 में अखिलेश यादव से पार्टी को बड़ी उम्मीद थी कि प्रदेश में सपा की सरकार बनेगी। लेकिन चुनाव प्रबंधन में कमी के चलते और पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के साथ तालमेल के अभाव में सपा को उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में करारी हार का सामना करना पड़ा है।
अप्रैल माह में विधान परिषद के चुनाव में एमएलसी का चुनाव लड़ रहे प्रत्याशियों का कहना है कि विधानसभा चुनाव की तुलना में ये चुनाव बहुत छोटा है। अगर पार्टी के वरिष्ठ नेता और अखिलेश यादव मेहनत करते तो आज चुनाव में सूपड़ा साफ नहीं होता। 36 सीटों में से 33 सीटों पर भाजपा को ऐतिहासिक जीत मिली है। जबकि 3 सीटों पर निर्दलीय जीते है। ऐसे में सपा की हार से पार्टी से घमासान मचा हुआ है।