उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी (सपा) के चुनाव में हारने की वजह अगर है तो वह है अत्याधिक आत्मविश्वास का होना है। क्योंकि सपा के नेताओं से लेकर चुनाव लड़ रहे प्रत्याशियों के बीच ये मैसेज कूट-कूट कर भर हुआ था। कि भाजपा का विकल्प अगर है। तो वह सपा है।
ऐसे में सपा के नेताओं ने चुनावी महामसर में अपना चुनाव कई सीटों पर लापरवाही से लड़ा है। जिसका नतीजा चुनाव हार में दिखा है। सपा के नेता ने तहलका को बताया कि मुलायम सिंह के परिवार की अंर्तकलह की लड़ाई जो 2017 में खुलकर दिखी थी। वो अंर्तकलह इस चुनाव में जरूर खुलकर नहीं दिखी लेकिन अंर्तकलह रही है। जिससे परिवार के नेता चुनाव प्रचार में कम दिखे है। और तो और सपा मुखिया अखिलेश यादव को ये भी विस्वास था। उनके साथ जो नेता और प्रत्याशी भाजपा को छोड़कर आ रहे है। उससे सपा का वोट बैंक बढ़ रहा है। लेकिन ऐसा माहौल में ही दिखा है। लेकिन धरातल पर कुछ असर नहीं दिखा।
अखिलेश यादव ने जिस अंदाज में पश्चिमी उत्तर में रालोद के नेता ज्यंत चौधरी से तालमेल किया था। कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के साथ-साथ उन्हें जाट बाहुल्य क्षेत्र से भी लाभ मिलेगा। लेकिन इसका भी कोई लाभ नहीं मिल सका। समाजवादी के कुछ नेता ऐसे है। जो चुनाव के पहले ही तटस्थ नेता की भूमिका में दिख रहे थे। और वे मौके की तलाश में थे। कि अगर उन्हे किसी अन्य दल से बुलावा आता है तो वे दूसरे दल में जा सकते है। वहीं चुनावी महसमर में देखने को मिला है। मुलायम सिंह के समय के नेता जो कट्टर समाजवादी नेता थे। उन्होंने भी भाजपा का दामन थाम लिया। सूत्रों की माने तो अखिलेश यादव के कुछ खास लोग ही भाजपा को जिताने के लिये पर्दे के पीछे काम करते रहे है। जिसकी भनक अखिलेश यादव तक को नहीं लग सकी। और भाजपा अपने में कामयाब हो गयी।