राजनीति में न कोई किसी का पक्का दोस्त होता है और न ही दुश्मन। राजनीति में केवल स्वार्थ ही पक्का दोस्त होता है। यानि राजनीति स्वार्थ पर टिकी हुर्इ है। और ऐसा ही कुछ पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सियासत में चल रहा है। जब से समाजवादी पार्टी (सपा) के अध्यक्ष अखिलेश यादव और राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) के अध्यक्ष जयंत चौधरी के बीच चुनावी तालमेल हुआ है। तब से भाजपा के साथ बसपा और कांग्रेस में इस बात की बैचेनी है कि सपा और रालोद के बीच कैसे सेंध लगायी जाये ताकि, दोनों के बीच हुआ तालमेल सफल न हो सकें।
भाजपा के नेताओं का मानना है कि सपा और रालोद के बीच चुनाव आते-आते सीटों के बीच बंटवारा होने तक शायद ही तालमेल सफल हो सकें। भाजपा उत्तर प्रदेश के नेता कुलदीप कुमार का कहना है कि, रालोद से किसानों की नाराजगी रही है। किसानों को रालोद ने गुमराह किया है और वरिष्ठ नेताओं को नजरअंदाज किया जा रहा है। भाजपा का मानना है कि रालोद के कई नेता भाजपा से लगातार संपर्क में है।
कांग्रेस के नेता अमरीश गौतम का कहना है कि, कांग्रेस के प्रति पश्चिमी उत्तर प्रदेश की जनता का रूझान बढ़ा है। लोगों ने सपा और भाजपा के शासन में देखा है कि इन दोनों दलों ने बंटवारे की राजनीति की है। अब जनता कांग्रेस के साथ आ रही है। उनका कहना है कि कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी की रैलियां में आ रही जनता इस बात की ग्वाह है कि जनता अब हर हाल में कांग्रेस के साथ है।
कांग्रेस के चुनावी परिणाम चौंकाने वाले साबित होगें। बसपा के नेता सुधीर कुमार का कहना है कि लोनी-गाजियाबाद से लेकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जनता के बीच जाकर इस बात पर जोर कर रहे है। कि सपा और रालोद का गठबंधन चुनाव के पूर्व का है चुनाव बाद जब दोनों को सफलता नहीं मिलेगी तब दोनों के दलों के बीच का गठबंधन टूट जायेगा। उनका कहना है कि बसपा की पकड़ दलितों के साथ मुस्लिम मतदाता में अच्छी है। इसलिये रालोद-सपा के बीच बना चुनावी तालमेल कोई चौंकाने वाला परिणाम नहीं दिला सकता है। और बसपा ही पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपने दम पर सबसे बड़ी जीत हासिल करेंगी।