डेंटल काउंसिल ऑफ इंडिया या भारतीय दंत चिकित्सा परिषद (डीसीआई) जिस ढर्रे पर चलती दिखती है उससे तो लगता है कि इसे खुद ही फौरन किसी चिकित्सा की जरूरत है. देश भर में दंत चिकित्सा और इसकी पढ़ाई कराने वाले संस्थानों के नियमन के मकसद से 12 अप्रैल, 1949 को स्थापित इस संस्था पर आज कई तरह की अनियमितताओं और भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे हैं.
डीसीआई का एक अहम काम है देश के अलग-अलग हिस्सों में चल रहे डेंटल कॉलेजों को मान्यता देना. इसकी मान्यता के बगैर कोई भी कहीं डेंटल कॉलेज नहीं चला सकता. आरोप है कि कॉलेजों को मान्यता देने के मामले में डीसीआई नियम-कानूनों का पालन नहीं कर रही और गलत ढंग से मान्यता देने व रद्द करने का खेल चला रही है. इसकी वजह है इसके अधिकारियों का भ्रष्टाचार में लिप्त होना.
वैसे डीसीआई पर भ्रष्टाचार और अनियमितताओं के आरोप नए नहीं हैं. कुछ समय पहले तक डॉ अनिल कोहली इसके अध्यक्ष हुआ करते थे. जब उनके खिलाफ शिकायतों का पिटारा सीबीआई के पास पहुंचा तो जांच एजेंसी ने कोहली के कई ठिकानों पर छापामारी की थी. उन पर यह आरोप था कि उन्होंने गलत ढंग से डेंटल कॉलेजों को मान्यता दी और इस खेल में काफी पैसे बनाए. इन आरोपों की वजह से ही कोहली को डीसीआई का अध्यक्ष पद छोड़ना पड़ा था. हालांकि, यह बात और है कि कई ठिकानों पर छापेमारी और कई तरह के आरोपों के बावजूद आज तक सीबीआई कोहली का कुछ कर नहीं पाई है.
कोहली के डीसीआई के अध्यक्ष पद से हटने के बाद नए अध्यक्ष के तौर पर कोलकाता के डॉ आर अहमद डेंटल कॉलेज के प्राचार्य डॉ दिव्येंदु मजूमदार ने काम-काज संभाला. डीसीआई से जुड़े सूत्र बताते हैं कि तब उम्मीद जगी थी कि कोहली के कार्यकाल में परिषद के काम-काज पर जिस तरह के दाग लगे हैं, मजूमदार उन्हें मिटाने का काम करेंगे. लेकिन आज ये लोग नाराज हैं. इनका आरोप है कि डीसीआई में व्याप्त अनियमितताएं अब तक खत्म नहीं हुई हैं.
मजूमदार पर आरोप है कि उन्होंने कॉलेजों को मान्यता देने के मामले में पक्षपात की नीति को बढ़ावा दिया है. सूत्रों के मुताबिक जिस कॉलेज ने भी मजूमदार को खुश किया उसे मान्यता मिलने में देर नहीं हुई लेकिन जिसने भी उनकी बात नहीं मानी उसकी मान्यता में डीसीआई ने कई रोड़े अटकाए. इन आरोपों की पड़ताल के दौरान तहलका को जो दस्तावेजी सबूत मिले हैं उनसे भी डीसीआई की मान्यता संबंधी निर्णय प्रक्रिया में अनियमितता के आरोपों की पुष्टि होती है.
एक ऐसा ही मामला है बिहार की राजधानी पटना के बीआर अंबेडकर इंस्टीट्यूट ऑफ डेंटल साइंसेज ऐंड हॉस्पिटल का. इसके संस्थापक राघवेंद्र नारायण राय हैं. बताते हैं कि एक बार किसी बात को लेकर राघवेंद्र नारायण राय और मजूमदार के बीच कहा-सुनी हो गई थी. इसके बाद मजूमदार ने यह सुनिश्चित कराया कि इस कॉलेज को फिर मान्यता नहीं मिले. 27 अप्रैल, 2011 को डीसीआई की एक समिति ने इस कॉलेज की निरीक्षण रिपोर्ट तैयार की. इस दो सदस्यीय जांच समिति में नागपुर के डॉ. रामकृष्ण शिनॉय और नवी मुंबई के डॉ ओंकार शेट्टी शामिल थे. इस रिपोर्ट पर चर्चा करके इसके आधार पर किसी निर्णय पर पहुंचने के मकसद से 14 मई, 2011 को डीसीआई की कार्यकारी समिति की एक बैठक हुई. इस बैठक में इस रिपोर्ट के अलावा इस डेंटल कॉलेज के प्राचार्य की 26 अप्रैल, 2011 की उस चिट्ठी पर भी चर्चा हुई जिसमें उन्होंने स्वास्थ्य मंत्रालय से डीसीआई को यह निर्देश देने का भी आग्रह किया था कि आगे कोई निरीक्षण न करवाया जाए. इसके बाद 14 जून, 2011 को डीसीआई ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय को एक पत्र लिखा जिसमें सिफारिश की गई कि रिपोर्ट और प्राचार्य के पत्र के आधार पर डीसीआई की कार्यकारी समिति ने यह फैसला किया है कि कॉलेज को 2011-12 सत्र में नए छात्रों को दाखिला देने की अनुमति नहीं दी जाए.
जो डीसीआई एक दिन पहले पटना के इस कॉलेज को नया बैच शुरू करने लायक नहीं समझ रही थी, उसी डीसीआई का रुख एक दिन में ही बिल्कुल पलट गया
फिर अचानक अगले दिन यानी 15 जून, 2011 को जो हुआ वह डीसीआई के कामकाज में अनियमितता और पक्षपात के आरोपों की पुष्टि करता हुआ दिखता है. 15 जून को डीसीआई ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय को जो पत्र लिखा उसमें 14 जून के पत्र के फैसले को पलटने की सिफारिश की गई और कहा गया कि इस कॉलेज को नए सत्र में छात्रों को दाखिला देने की अनुमति दी जानी चाहिए. तहलका के पास इन दोनों पत्रों की प्रति है. इनसे पता चलता है कि जो डीसीआई एक दिन पहले पटना के इस कॉलेज को इस लायक नहीं समझ रहा था कि वह नया बैच शुरू कर सके उसी डीसीआई को एक दिन बाद यह लग रहा था कि कॉलेज सभी मानकों को पूरा करता है इसलिए उसे नए बैच में छात्रों के दाखिले के लिए अनुमति दी जानी चाहिए. 24 घंटे के अंदर रुख में इस तरह का बदलाव इस ओर इशारा करता है कि संस्था की निर्णय लेने की प्रक्रिया में सब कुछ ठीक नहीं है.
वैसे यह कोई अकेला मामला नहीं है जिसमें डीसीआई ने बहुत कम समय में अपने ही फैसले को पलट दिया हो. बिहार के दरभंगा के सरजुग डेंटल कॉलेज के मामले में भी डीसीआई ने यही किया. इस कॉलेज का निरीक्षण भी 28 अप्रैल, 2011 को रामकृष्ण शिनॉय और ओंकार शेट्टी की दो सदस्यीय समिति ने ही किया था. इस समिति की रिपोर्ट पर चर्चा करने और कोई फैसला करने के लिए डीसीआई की कार्यकारी समिति की बैठक 30 मई, 2011 को हुई. इस समिति के निर्णयों से कॉलेज को अवगत कराने के लिए डीसीआई की तरफ से सात जून, 2011 को एक पत्र कॉलेज को भेजा गया. इसके मुताबिक निरीक्षण में यह पाया गया था कि कॉलेज के पास बुनियादी सुविधाओं व उपकरणों का घोर अभाव है, इलाज में इस्तेमाल होने वाली सामग्री अपर्याप्त है और निरीक्षण के दिन कई प्राध्यापक और शिक्षक मौजूद नहीं थे. पत्र में यह भी लिखा गया कि कॉलेज के कई प्राध्यापक और शिक्षक ऐसे हैं जिनकी उम्र तय सीमा से अधिक है.
लेकिन आश्चर्यजनक ढंग से ठीक एक सप्ताह बाद यानी 14 जून, 2011 को डीसीआई ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय को पत्र लिखकर यह बताया कि दरभंगा के सरजुग डेंटल कॉलेज एक स्थापित डेंटल कॉलेज के बुनियादी ढांचे से संबंधित सारे मानकों को पूरा करता है इसलिए इस कॉलेज को नए सत्र में छात्रों को दाखिला देने की अनुमति दी जानी चाहिए. तहलका के पास इन दोनों पत्रों की प्रति है. डीसीआई ने यह भी लिखा कि यह कॉलेज स्थापित डेंटल कॉलेज की श्रेणी में आता है इसलिए नए सत्र में दाखिले की मंजूरी देने के लिए इस कॉलेज के निरीक्षण की जरूरत ही नहीं है.
अब सवाल उठना स्वाभाविक है कि आखिर कैसे इस कॉलेज ने एक सप्ताह के भीतर उन सारी खामियों को दूर कर लिया जिन पर डीसीआई ने सवाल उठाए थे. सवाल यह भी उठता है कि एक सप्ताह के भीतर आखिर क्या हुआ कि संस्था का रुख बिल्कुल बदल गया. जो डीसीआई एक सप्ताह पहले निरीक्षण के आधार पर खामियों को रेखांकित कर रहा था, उसी ने एक सप्ताह बाद न सिर्फ इस कॉलेज को नए सत्र में दाखिला देने की अनुमति देने की सिफारिश की बल्कि यह भी कहा कि इस कॉलेज को तो निरीक्षण की भी कोई जरूरत नहीं है. हफ्ते भर के भीतर अपना ही फैसला खुद पलट देना डीसीआई में व्याप्त गड़बडि़यों की ओर इशारा करता है.
सूत्रों के मुताबिक ये दो उदाहरण इस बात के हैं कि तमाम आपत्तियों के बावजूद अगर डीसीआई और खास तौर पर उसके अध्यक्ष दिव्येंदु मजूमदार प्रसन्न हो जाएं तो किसी कॉलेज को मान्यता मिलने में देर नहीं होती.
डीसीआई में व्याप्त अनियमितता का दूसरा पहलू यह है कि जो कॉलेज डीसीआई अधिकारियों की इच्छाओं को पूरा नहीं करते उन्हें मान्यता देने के लिए तरह-तरह से परेशान किया जाता है. इसका उदाहरण है बिहार में दरभंगा जिले में बहेड़ा का डॉ नकी इमाम डेंटल कॉलेज. इसके संचालक जफर इमाम हैं. इमाम ने पहले भी डीसीआई में व्याप्त अनियमितताओं और भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाई थी. उन्होंने इसकी शिकायत न सिर्फ केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री गुलाम नबी आजाद से की थी बल्कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को भी पत्र लिखा था.
यह भी आरोप है कि जो कॉलेज डीसीआई अधिकारियों की इच्छाओं को पूरा नहीं करते उन्हें मान्यता देने के लिए तरह-तरह से परेशान किया जाता है
इमाम ने बाकायदा शपथ पत्र देकर कहा था कि डीसीआई में किस तरह से धांधली और भ्रष्टाचार का दबदबा है. उन्होंने बताया था कि डेंटल कॉलेजों को मान्यता देने में डीसीआई ने किस तरह से नियमों की अनदेखी की है और भ्रष्ट तरीकों से कॉलेजों को मान्यता देने का काम किया है. अपने शपथ पत्र में उन्होंने इन मामलों की निष्पक्ष जांच की मांग करते हुए कहा था, ‘मैं शपथ पत्र देकर ये आरोप लगा रहा हूं इसलिए अगर मेरे आरोप गलत साबित होते हैं तो आप मुझ पर कानूनी कार्रवाई कर सकते हैं.’ जाहिर है कि यह बात डीसीआई के अधिकारियों को नागवार गुजरी. खास तौर पर इसलिए भी कि डीसीआई की मान्यता से ही डेंटल कॉलेज चलाने वाले व्यक्ति ने ऐसा किया था.
इसके बाद से डीसीआई ने लगातार इमाम के कॉलेज की मान्यता अटकाने का काम किया. इस संस्थान को केंद्र सरकार ने 2007 में स्पष्ट तौर पर बताया था कि इस कॉलेज को तब तक हर साल निरीक्षण की प्रक्रिया से गुजरना होगा जब तक 2007 बैच के छात्र अपनी आखिरी परीक्षा न दे दें. इस निरीक्षण का आधार 1993 में तय मानक होंगे. इसी आधार पर कॉलेज ने डीसीआई को निरीक्षण कराने के लिए पत्र लिखा और 25 जनवरी, 2012 की तारीख अपनी तरफ से प्रस्तावित की. कॉलेज की तरफ से यह तारीख इसलिए दी गई कि अंतिम परीक्षा इसी दिन से शुरू होनी थी. यह कॉलेज दरभंगा के ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय से संबद्ध है. 24 जनवरी, 2012 को डीसीआई ने सीधे विश्वविद्यालय को पत्र लिखकर उससे परीक्षा की तिथि बढ़ाने और नई तिथि की सूचना कम-से-कम तीन सप्ताह पहले देने को कहा. इस पर अमल करते हुए विश्वविद्यालय ने परीक्षा की नई तिथि 27 फरवरी, 2012 तय की और इसकी सूचना 6 फरवरी, 2012 को डीसीआई को दे दी.
इसके बाद डीसीआई ने 24 फरवरी को नकी इमाम डेंटल कॉलेज को पत्र लिखकर बताया कि आपके कॉलेज का निरीक्षण 27 फरवरी, 2012 को कराया जाएगा. लेकिन कॉलेज प्रबंधकों का कहना है कि निरीक्षण करने के लिए दो सदस्यीय टीम 25 फरवरी को ही कॉलेज पहुंच गई और उन्होंने 1993 के मानकों की बजाय नए मानकों के आधार पर निरीक्षण करने की बात कही. इस पर कॉलेज प्रबंधन का पक्ष यह था कि उनकी मान्यता में पुराने यानी 1993 के मानकों की बात की गई है. इस सबके बीच इस निरीक्षण दल ने अपना काम पूरा किया.
इसके दो दिन बाद यानी पहले से तय 27 फरवरी की तारीख पर फिर से डीसीआई की एक टीम निरीक्षण के लिए पहुंच गई. इसने भी अपना काम किया. इसके बाद 28 फरवरी, 2012 को डीसीआई ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के पास यह अनुशंसा भेज दी कि 25 फरवरी के निरीक्षण के आधार पर डीसीआई का यह मत है कि इस कॉलेज को नए सत्र में दाखिला देने की अनुमति नहीं दी जाए. डीसीआई ने अपनी अनुशंसा में 25 फरवरी के निरीक्षण का जिक्र तो किया लेकिन 27 फरवरी के निरीक्षण का कोई जिक्र नहीं किया.
इससे कई सवाल खड़े होते हैं. पहली बात तो यह कि आखिर डीसीआई ने पहले से अपने ही द्वारा निरीक्षण की तय तारीख को क्यों बदला? जब इस कॉलेज को मान्यता देते समय ही यह साफ कर दिया गया था कि इसे पहले 1993 के मानकों को पूरा करना है तो फिर पहले निरीक्षण में नए मानकों को आधार बनाने का मतलब क्या है? जब एक निरीक्षण दल ने 25 फरवरी को निरीक्षण पूरा कर लिया तो फिर 27 फरवरी को दूसरा निरीक्षण दल भेजने का क्या औचित्य है? अगरा दूसरा निरीक्षण दल भेजा गया तो फिर इसकी जांच रिपोर्ट को भी अनुशंसा का आधार क्यों नहीं बनाया गया? आखिर क्यों सिर्फ पहले निरीक्षण दल की रिपोर्ट के आधार पर अनुशंसा कर दी गई? ये कुछ ऐसे सवाल हैं जो इस ओर इशारा करते हैं कि देश में दंत चिकित्सा और इसे पढ़ाने वाले संस्थानों के नियमन के लिए गठित डीसीआई में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है.
तमाम आरोपों पर डीसीआई का पक्ष जानने के लिए ‘तहलका’ ने संस्था के अध्यक्ष मजूमदार से संपर्क करने की कोशिश की. लेकिन उनसे बार-बार यही जवाब मिला कि वे अभी व्यस्त हैं.
तो आखिर में सवाल यही कि डीसीआई पर उठते सवालों का जवाब कौन देगा.