हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला, उनके बेटे अजय चौटाला एवं उनके अन्य सहयोगियों को मिली 10-10 साल की सजा ने एकतरफ जहां चौटाला परिवार एवं भारतीय राष्ट्रीय लोकदल के राजनीतिक भविष्य पर प्रश्नचिंह लगा दिया है वहीं दूसरी तरफ कोर्ट के इस फैसले में कई व्यापक संदेश भी छिपे हुए हैं. सबसे पहले कोर्ट का यह फैसला उन राजनेताओं और अधिकारियों के लिए एक वेकअप कॉल है जो खुद को हमेशा कानून से ऊपर मानते आए हैं. जिन्हें लगता है कि कानून के हाथ कितने भी लंबे क्यों न हों, उनके गले तक कभी नहीं पहुंचेंगे. इसी निश्चिंतता के साथ वे भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे रहते हैं.
ओमप्रकाश चौटाला, उनके बेटे और इस भ्रष्टाचार में शामिल रहे राज्य के वरिष्ठ अधिकारियों को मिली सजा से और कुछ हो न हो. इससे आम जनता का न्यायपालिका में विश्वास जरुर मजबूत हुआ होगा. इतिहास में बहुत कम ऐसे मौके आए हैं जहां आम जनता ने भ्रष्ट नेता और अधिकारियों को उनके किए की सजा भुगतते देखा हो. आम जनता के मन में यह आम भावना है कि कानून, पुलिस और सजा सिर्फ आम लोगों के लिए होते हैं. इससे वे डरते हैं कथित तौर पर बड़े लोग नहीं. इस केस ने न्याय व्यवस्था में आम आदमी की आस्था को फिर से पुनर्स्थापित किया है.
चौटाला को मिली सजा में तुष्टिकरण की राजनीति के लिए भी संदेश है. सीबीआई ने अपनी जांच में इस बात को कहा कि शिक्षकों की भर्ती में गड़बड़ी चौटाला ने अपने लोगों को उसमें फिट करने के लिए की थी. ऐसा कहा जाता रहा है कि अपने समर्थकों को इस बात का अहसास दिलाने के लिए कि वे उनके परिवार के सदस्य जैसे ही हैं, चौटाला ने फर्जी लिस्ट बनवाकर उन्हें नियुक्ति दी. ऐसे में चौटाला का केस उन नेताओं के लिए भी एक उदाहरण और सबक है जो अपने समर्थकों को बनाए रखने के लिए वैध-अवैध के अंतर को भूल जाते हैं.
चौटाला पिता-पुत्र को सजा मिलने के बाद जिस तरह से उनकी पार्टी इंडियन नेशनल लोकदल (आईएनएलडी) के भविष्य को लेकर प्रश्न उठाए जा रहे हैं, वे उन सभी राजनीतिक दलों के लिए एक सबक है जो व्यक्ति या परिवार केंद्रित हैं. और खासकर जिनके मुखिया भ्रष्टाचार जैसे मामलों में फंसे हुए हैं. आज आईएनलडी के सामने ये प्रश्न खड़ा हुआ है कि पार्टी सुप्रीमों ओमप्रकाश चौटाला और अजय चौटाला के जेल जाने के बाद भविष्य में पार्टी का क्या होगा. अगर कल सपा, बसपा, राजद, डीएमके, झामुमों के नेताओं के साथ भी ऐसा कुछ होता है तो इनका भविष्य भी आईएनएलडी के समान ही होने के आसार हैं. ऐसे में उन नेताओं और परिवार आधारित दलों को अपने और अपने परिवार के सदस्यों के अलावा ऐसे नेताओं को तैयार करने की भी जरुरत है जो उनकी अनुपस्थिति में पार्टी को आगे बढ़ा सकें.
कोर्ट का यह निर्णय उन ईमानदार अधिकारियों के साहस और मनोबल को और भी बढ़ाने वाला है, जो नेताओं की गलत मांग को मानने से इंकार कर देते हैं.
रजनी सिब्बल. यही नाम है उस महिला आईएएस अधिकारी का जो उस समय प्राथमिक शिक्षा विभाग में बतौर निदेशक कार्यरत थीं. सिब्बल को चौटाला यह सोच कर लाए थे कि वे उनके कहे अनुसार लिस्ट बदलने अर्थात फर्जी लिस्ट बनाने के लिए तैयार हो जाएंगी. लेकिन उन्होंने चौटाला की लिस्ट बदलने की मांग को न सिर्फ मामने से इंकार कर दिया बल्कि लिस्ट गायब होने या चुरा लिए जाने जैसी स्थिति से निपटने के लिए उसे अलमारी में सील करा दिया. उस पर ऑफिस के अन्य कर्मचारियों के हस्ताक्षर लिए फिर उसकी चाभी को भी सिल कर दिया. सिब्बल की हरकत से पार्टी के नेता और चौटाला समर्थक अधिकारी इतने नाराज हुए कि उन्होंने सिब्बल को काफी भला बुरा कहा.
उस समय उन्हें तमाम साथी अधिकारियों और लोकदल के नेताओं की खरी-खोटी सुननी पडी थी. यहां तक कि लोकदल के एक नेता उनके ऑफिस में आकर सरेआम उनके साथ गाली गलौज कर गए थे. वे सबके सामने फफक-फफक कर रोईं लेकिन टूटी नहीं. उस समय यह साहसी महिला उन सभी 55 लोगों से लड़ी जिन्हें आज कोर्ट ने सजा सुनाई है. समय ने आज उस महिला के साहस और ईमानदारी पर अपनी मोहर लगाई और ये साबित किया कि न्याय का सूरज भ्रष्टाचार के अंधेरे पर हमेशा भारी पड़ता है.