भारत में अब यह चकित करने की खबर नहीं होती। आरोपी देश छोड़ कर फरार हो जाता है और विदेश में बस जाता है तो यह पता लगता है कि घोटाला हुआ है। घोटालेबाजों की नई सूची में अब नए नाम जो जुड़े हैं वे हैं नीरव मोदी और मेहुल चौकसे के। फिर मामला विजय माल्या का हो या ललित मोदी का तरीका सबका एक है।
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में पंजाब नैशनल बैंक शायद देश का सबसे बड़ा बैंक है। जहां रुपए 11,000 करोड़ मात्र से भी ज़्यादा का बैंक घोटाला हुआ। बैंक ने इस घोटाले को मुंबई में अपनी शाखाओं में हुआ पाया। यदि इस नियमित घोटाले का पूरा हिसाब लगाएं तो यह लगभग रुपए 11,300 करोड़ मात्र होता है। बैंक की कुल कमाई का आठ गुणा यानी लगभग रुपए 1320 करोड़ मात्र।
देश का दूसरा सबसे बड़ा बैंक कहलाने वाले इस बैंक में दूसरे बैंकों की तुलना में पिछले कुछ सालों में बैंकिग कामकाज में खासी जांच-पड़ताल होने का दावा रहा है। वहीं ऐसा होना वाकई आश्चर्य की बात है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया, बैंक की आडिट कमेटियां और बोर्ड वगैरह बैंक के अपने खातों की नियमित वित्तीय हिसाब-किताब की पड़ताल करते ही हैं। इस सारी छानबीन का आशय यही होता है कि उन कर्जों पर नकेल कसी जा सके जो जाली होने की कगार पर पहुंच रहे हैं। यहीं यह भी याद रखें कि केंद्र सरकार भी प्राय: इधर यह कहती रही है कि कारपोरेट सेक्टर के खराब कजऱ्ों के कारण ही क्रोनी कैपिटल का विकास हुआ है। इससे निपटने के लिए 21 सार्वजनिक बैंकों को इसी वित्तीय वर्ष में रुपए एक लाख करोड़ मात्र की पूंजी देने की योजना भी बनी। इसमें से रुपए 5,473 करोड़ मात्र तो पंजाब नेशनल बैंक को ही दिए जाने थे। यह आधी ही रकम है। इसका कैपिटल एडेकवेसी रेशियो फिर भी उसी अनुपात में रहेगा जब यह री कैपिटैलाइजेशन की घोषणा हुई। बाजार में इसकी कैपिटैलाइजेशन इस घोटाले के उजागर होने के पहले तक तकरीबन रुपए 10,000 करोड़ मात्र था। इसके शेयर की कीमत में भी बीस फीसद की गिरावट आई।
तभी घोटाले का एक और मामला उजागर हुआ जो दूसरे बैंकों में हुआ। सीबीआई ने एक एफआईआर (प्राथमिकी) रोटोमैक पेन प्रमोटर विक्रम कोठारी के खिलाफ भी दायर की है। जिसने रुपए 3695 करोड़ मात्र के कजऱ् का घोटाला सार्वजनिक बैंकों के साथ किया। यह मामला तब दर्ज किया गया जब रोटोमैक ग्लोबल प्राइवेट लिमिटेड और इसके निदेशकों विक्रम कोठारी, साधना कोठारी और राहुल कोठारी के खिलाफ बैंक ऑफ बड़ौदा ने शिकायत दर्ज कराई। इस शिकायत में दर्ज है कि रोटोमैक ने सात बैंकों के समूह से रुपए 2,919 करोड़ मात्र का कजऱ् लिया। इस राशि में यदि ब्याज भी जोड़ दे ंतो यह रुपए 3695 करोड़ मात्र हो जाता है। सीबीआई की एफआईआर के अनुसार रोटोमैक पर बैंक ऑफ इंडिया के रुपए 754.77 करोड़ मात्र, रुपए 456.63 करोड़ मात्र बैंक ऑफ बडौदा रुपए 771.01 करोड़ मात्र, इंडियन ओवरसीज बैंक रुपए 458.95 करोड़ मात्र, युनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया, रु. 330.68 करोड़ मात्र इलाहाबाद बैंक रु. 49.82 करोड़ मात्र ओरिएंटल बैंक ऑफ कामर्स के बकाया है।
इस शिकायत में यह जानकारी भी है कि रोटोमैक ने मंजूर कजऱ् की राशि का एक दूसरी ‘जाली कंपनीÓ में निवेश किया यहां से वह धन रोटोमैक कंपनी को वापस मिला। इस पूंजी का निर्यात के आदेशों के तहत इस्तेमाल करने की बजाए सिंगापुर की एक दूसरी कंपनी बडग़ाडिया ब्रदर्स प्राइवेट लिमिटेड को गेंहू के निर्यात में किया गया। बाद में यह धन बरगडिया ने रोटोमैक के खाते में जमा किया। दूसरे मामलों में भी निर्यात के लिए माल की खरीद में इस पूंजी का इस्तेमाल नहीं किया गया और न कंपनी ने निर्यात के किसी आर्डर को पूरा ही किया। सीबीआई के एक अधिकारी ने बताया।
इस बीच पंजाब नेशनल बैंक के एक बड़े अधिकारी ने बताया कि दस अधिकारियों को तत्काल मुअत्तल कर दिया गया। जबकि सीबीआई ने अब तक एक सेवा निवृत और एक नियमित (रेगुलर) कर्मचारी को हिरासत में लिया है। यह बात गले नहीं पचती कि कुछ छोटे कर्मचारी मिल कर इतना बड़ा धोखाधड़ी कर सकते हैं। बैंक के प्रबंध निदेशक का दावा है कि निगरानी रखने और सतर्कता बरतने के तमाम किए उपायों की छानबीन की जा रही है जिससे यह पता चल सके कि घपले हुए कैसे। एन-फोर्समेंट डारेक्टोरेट ने मुख्य आरोपी के खिलाफ मनी लांड्रिंग का मामला खरबपति जवाहरात विक्रेता नीरव मोदी पर दर्ज कर लिया है।
उसके अलावा उसकी पत्नी एमी मोदी और करीबी सहयोगियों और संबंधियों के खिलाफ भी मामला दर्ज कर लिया गया है। ऐसा लगता है कि खुद बैंक कर्मचारियों ने बैंकिंग प्रणाली में सेंध लगा कर इतनी भारी धनराशि को मंजूरी दिलाने में खास भूमिका निभाई। इस महा घोटाले से ‘डिजिटल पेमेंटÓ को बढ़ावा देने की सरकारी महत्वाकांक्षा को खासी चोट पहुंची है। पंजाब नेशनल बैंक ने दूसरे बैंकों की शाखाओं को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि उन्होंने ऐसी भारी राशि मंजूर करते हुए आवश्यक सजगता नहीं बरती। लेकिन यह तो महज सफाई है जो भरोसे लायक नहीं है। आरबीआई को ज़रूर इस मामले की तह तक जाना चाहिए और जवाबदेही सुनिश्चित करनी चाहिए। बैंको और कजऱ् लेने वालों के आपसी गठजोड़ को बैंकिंग प्रणाली में समस्या की जड़ बताया जाता रहा है। अब इस मामले से इस गहरे गंठजोड़ का खुलासा होने की संभावना बनी है। आरबीआई और दूसरी एजंसियों को क्रास पड़ताल करते हुए बैंकिंग प्रणाली की पूरी छानबीन करनी चाहिए जिससे बैंकिंग प्रणाली में भरोसा जम सके।
नीरव मोदी और मेहुल चौकसी का गिरफ्तारी से पहले ही फरार हो जाना भी इशारा एक गठजोड़ की ओर ही करता है। कारपोरेट जगत के नवीनतम आरोपी नीरव को दावोस में अभी हाल में हुई वर्ल्ड इकॉनॉमिक फोरम में जुटे देश के तमाम बड़े उद्योगपतियों और राजनीतिक की ज़मात में देखा भी गया था। ये सभी ‘ब्रांड इंडियाÓ को बढ़ावा देने के लिए इक_े हुए थे। इसके कुछ ही दिन बाद पंजाब नेशनल बैंक ने आंतरिक जांच पड़ताल में 15 जनवरी को इस घपले की पड़ताल की थी।
चौकसी इलाज के बहाने विदेश में कहीं और गया इसके पहले कि बैंक कोई कार्रवाई करता। खरबों रुपयों के इस घोटाले को सार्वजनिक करता। निस्संदेह व्यवसाइयों और राजनीतिकों के बीच के संबंध बेहद मज़बूती के हैं।
क्रोनी कैपिटलिज्म की बढ़ती संस्कृति से व्यवसाइयों को वित्तीय संस्थानों से भारी धनराशि में घोटाला करने का चस्का लगा है। दिन-दुपहरिया होने वाली इस लूट को बतौर खराब कर्ज ‘नॉन परफार्मिंग एसेटÓ में मान लिया जाता है। इस भयावह नुकसान की भरपाई भी करदाता ही करते हैं। इतने बड़े पैमाने पर हुई धोखाधड़ी अमीरों और ताकतवर लोगों में गठजोड़ के बिना संभव नहीं है। लेकिन आज तक किसी को जि़म्मेदार नहीं ठहराया जा सका है। ऐसी धोखाधड़ी को हर बार छिपा कर नहीं रखा जा सकता। पंजाब नेशनल बैंक के हुक्मरानों की कोशिश है कि हम यह मान लें कि रुपए 11,000 करोड़ मात्र का घोटाला कुछ छोटे मैनेजरों की ही कारस्तानी है। कैसे इतनी भारी धनराशि को बतौर कर्ज अदा करने की मंजूरी तमाम बैंकिंग कायदे कानून को एक किनारे करके दे दी जाती है। कोई छानबीन और सतर्कता भी नहीं बरती जाती।
बैंकों को सरकारी नियंत्रण से बाहर करने की सलाह
एक भारी घोटाले में जौहरी नीरव मोदी के फंसे होने और पंजाब नेशनल बैंक पर सरकारी दबाव के चलते उद्योग व्यवसाय समूहपतियों के संगठन एसोचेम ने मांग की है कि सरकार को बैंकों को अपने नियंत्रण से छोडऩा चाहिए। उन्हें भी निजी बैंकों की ही तरह काम करने देना चाहिए।
पंजाब नेशनल बैंक में 11,300 करोड़ के घोटाले को देखते हुए सरकार को बैंकों से अपनी 50 फीसद की हिस्सेदारी में कटौती करनी चाहिए। सरकारी बैंकों को भी निजी बैंकों की ही तरह काम करने देना चाहिए जिससे उनकी जवाबदेही पूरी तौर पर शेयर होल्डरों के प्रति हो और जमा करने वालों के हितों की रक्षा हो एसोचेम ने अपने के बयान में कहा।
बयान के अनुसार सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक एक के बाद एक संकट में फंसते जा रहे हैं और सरकार की भी एक सीमा है जहां तक यह मदद कर सकती है। वह भी जनता के पैसों से भले ही देनदारों में प्रमुख शेयर होल्डर क्यों न हों। सार्वजनिक बैंकों का वरिष्ठ प्रबंधन अपना ज़्यादातर समय अफसरशाही से मिले निर्देशों को लेने और अमल में लाने में निकाल देता है। इस प्रक्रिया में बैंक के मुख्य काम तमाम महत्वपूर्ण रिस्क और प्रबंधन के काम रह जाते हैं। सह मसला बकों के साथ खासा संगीन है। बैंक नई तकनॉलॉजी का इस्तेमाल कर रहे हैं। जिससे नफा और नुकसान दोनां ही संभव है। एक बार बैंकों में सरकारी हिस्सेदारी 50 फीसद से कम हो तो ज़्यादा स्वायत्तता बैंकों को हासिल होगी और वे वरिष्ठ आधिकारियों की जवाबदेही और जिम्मेदारी सुनिश्चित कर सकेंगे। बोर्ड भी नीतिगत फैसले ले सकेंगे जबकि सीईओ अपने पूरे अधिकारों के और जिम्मेदारियों के साथ चल सकेंगे। एसोचेम के सेक्रेटरी जनरल डीएस रावत ने अपने एक बयान में कहा कि आरबीआई को बैंकिंग उद्योग को पूरे वित्तीय क्षेत्र में साफ-सुथरा काम करने और चाहे वह सार्वजनिक क्षेत्र हो या फिर निजी क्षेत्र या फिर गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों का कामकाज इन सभी क्षेत्रों में अच्छा कामकाज होने की दिशा में उसे अपनी भूमिका निभानी चाहिए।
बैंकों में निजी भागीदारी बढ़े: अरविंद सुब्रमणयम
भारत सरकार के प्रमुख आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमणयम ने चेन्नई में बोलते हुए सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में निजी भागीदारी की हिमायत की। उन्होंने कहा कि हांलाकि सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में रिकैपिटइलेजेशन कर रही है, छानबीन सतर्कता और देखरेख करती ही रही हैं लेकिन साथ ही यह सब अनुशासनात्मक कार्रवाई का बेहतर नतीजा तभी सामने आएगा जब ज़्यादा निजीकरण बैंकों का होगा।
उनके अनुसार निजी क्षेत्र पर सरकारी खर्च भी कम आएगा और बैंकिंग क्षेत्र में निजी भागीदारी ज़्यादा होगी। उन्होंने कहा कि ज़्यादा निजी भागीदारी होनी चाहिए क्योंकि ऐसी कोई भी गारंटी नहीं है कि बैंकों में कामकाज सुचारू रूप से होगा। जबकि निजीकरण होने पर ऐसा ं होगा।
सीबीआई की पड़ताल
मुंबई की सीबीआई अदालत में इस मामले में गिरफ्तार तीन आरोपियों को पुलिस की हिरासत में भेज दिया। इनमें पंजाब नेशनल बैंक के उपप्रबंधक गोकुलनाथ शेट्टी, सिंगिल विंडों ऑपरेटर मनोज खराट और नीरव मोदी समूह की ओर से दस्तखत करने वाले अधिकारी।
इन तीनों के अलावा सीबीआई ने इस धोखधड़ी में शामिल रहने के आरोप में दस निदेशकों और अधिकारियों को पूछताछ के दायरे में रखा है। एन्फार्समेंट डायरेक्टोरेट, ने नीरव मोदी, मेहुल चौकसी और 39 स्थानों पर पंजाब नेशनल बैंक के ठिकानों पर भी अचल संपत्तियों की पड़ताल की।
यह सारा घोटाला हुआ कैसे
इस सारे घोटाले में स्विफ्ट (एसडब्लू आईएफटी) यानी बैंकों में एक दूसरे से संपर्क रखने की प्रणाली और अधूरी लेजर एंट्रीज और जांच और समुचित व्यवस्था और बैंक की अपनी बनाए हुए बैंकिंग कायदे-कानूनों की जानबूझ कर की गई अनदेखी। पंजाब नेशनल बैंक के सीईओ सुनील मेहता ने कहा, हां, समस्या तो है। हमने इसकी पड़ताल कर ली है। हम इससे निपटने में जुटे हैं। हम तमाम कमियों को देखेंगे और उन्हें दुरूस्त करेंगे। यह जोखिम तो जनता से जुड़ा हुआ है। हम इसे देख रहे हैं।
सीबीआई के अदालती दस्तावेजों के अनुसार एक बड़ी संख्या में जाली लेटर्स ऑफ अंडरटेकिंग (एलओयू) जारी किए गए। यह एक तरह की गारंटी है दूसरे बैंकों को किसी उपभोक्ता को कजऱ् देने के लिए। यह बैंकों की विदेश स्थित शाखाओं को दिए गए। इस मामले में खासतौर पर ये जेवरात की कंपनियों के एक समूह को दिए गए। चूंकि ये गारंटी पत्र भारतीय बैंकों की विदेश स्थित शाखाओं को भेजे गए थे। यह माना गया कि सभी भारतीय हैं और बैंको ने तमाम जेवरात कंपनियों को धन दे दिया।
शेट्टी ने बैंक की स्विफ्ट प्रणाली के ज़रिए उन पासवर्ड का इस्तेमाल किया जिनसे वह कागज बना सका। ऐसे भी उदाहरण हैं कि एक या उससे ज़्यादा भी जूनियर सहयोगी रहे हों जिन्होंने संदेश भेजे और व्यक्ति विशेष ने सहमति देने के लिहाज से सारे खतूत को जांचा। बैंक एकज्क्यूटिवस से छानबीन और अदालती दस्तावेजों और साक्षात्कारों से यह बात सामने आई।
मुंबई की अदालत में जमा सीबीआई के एक दस्तावेज के अनुसार ‘इस मामले में बैंक के एक या ज़्यादा कर्मचारियों,अधिकारियों के शामिल होने का अंदेशा संभव है। स्विफ्ट पर लेनदेन शुरू करते ही शेट्टी जो उस बैंक की उस शाखा में 2010 से 2017 तक काम करता रहा ने रेगुलर रोटेशन की आम बैंकिंग व्यवस्था को भी बैंक की इंटरनल प्रणाली पर रिकार्ड नहीं किया। क्योंकि पंजाब नेशनल बैंक की आंतरिक साफ्टवेयर प्रणाली स्विफ्ट से आटोमेटिक तौर पर नहीं जुड़ी थी। कर्मचारी खुद स्विफ्ट प्रणाली से जुड़ कर काम करते थे। यह न होने के ही कारण लेन देन बैंक के खाते में दिखाई नहीं देता था। सीबीआई के एक अधिकारी के अनुसार सात साल की अवधि में ऐेसे घोटाले के 150 मामले सामने आए।
आखिर वित्तमंत्री ने तोड़ा मौन
केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली ने पंजाब नेशनल बैंक घोटाले पर अपना मौन तोड़ा। उन्होंने इसके लिए ऑडिटर और पंजाब नेशनल बैंक के प्रबंधन की नाकामियों को जि़म्मेदार ठहराया। जिसके चलते समय रहते कदम नहीं उठाए गए जिनके चलते रुपए 11,400 करोड़ मात्र का गोलमाल पकड़ में नहीं आ सका।
‘अनियमितताओं पर लगाम लगाने के लिए नज़र रखले वाली एजेंसियों को ध्यान देना चाहिए। उन्हें यह निश्चय करना होगा कि ऐसी गड़बडिय़ां
शुरूआत में ही दबा दी जाएं। वित्तमंत्री एशिया और प्रशांत सागर के एसोसिएश्सन ऑफ डेवलपमेंट फाइनेंशियल इंस्टीटयूशनल की 41वीं बैठक में अपनी बात रख रहे थे। जांच एजेंसियां अब पंजाब नेशनल बैंक के कर्मचारियों से पूछताछ कर रही हैं। यह पता लगाने के लिए कि आरोपियों से उनका कितना संपर्क रहा है।
‘आडिटर्स भी इस घोटाले को नहीं पकड़ पाए उस पर वित्तमंत्री ने कहा, आखिर ऑडिटर्स क्या कर रहे थे? भीतरी और बाहरी ऑडिटर तक इसे नहीं पकड़ सके। ऐसे में ज़रूरी है कि यह जाना जाए कि ऐसी धोखाधड़ी का खर्च प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर होता है। कर देने वालों के लिए यह प्रत्यक्ष है जबकि अप्रत्यक्ष तौर पर लागत देना बैंकों की क्षमता पर है।
आरबीआई की बैंक धोखाधड़ी रोकने पर समिति
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने (आरबीआई) ने एक समिति बनाने की घोषणा की है। आरबीआई के सेंट्रल बोर्ड ऑफ डारेक्टर्स के पूर्व सदस्य वाईएच मालेगम की अध्यक्षता में यह समिति गाठित हुई है। यह समिति बैंकों में धोखाधड़ी के बढ़ते मामलों का अध्ययन करेगी और एक योजना तैयार करेगी जिससे इन्हें रोका जा सके।
आरबीआई ने दावा किया है कि पहले ही इसने बैंकों को चेतावनी दी थी। यह चेतावनी अगस्त 2016 से ‘स्विफ्टÓ प्रणाली के बेजा इस्तेमाल पर तीन बाद चेताया था। बैंकों ने अपनी व्यावसायिक ज़रूरतों के लिहाज से ‘स्विफ्टÓ का विकास किया लेकिन उसके इस्तेमाल के साथ जोखिम भी है इसी कारण बैंकों को संभावित बेजा इस्तेमाल से बचने की तीन बार सलाह दी। उन्हें सलाह दी कि आरबीआई के दिशा निर्देशों के तहत उसे दुरुस्त किया जाए। जिस पर ध्यान नहीं दिया गया।