दो साल बीत जाने के बाद भी आज तक नोटबंदी की सच्चाई सामने नहीं आई है। बात साफ नहीं हुई पर शब्दों की जंग जारी है। वित्तमंत्री अरु ण जेटली ने अपने ‘ब्लाग’ में लिखा – ‘भारतीय अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए सरकार ने जो भी फैसले लिए उनमें ‘नोटबंदी’ सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। नोटबंदी की दूसरी वर्षगांठ पर कांग्रेस पार्टी ने देश भर में विरोध प्रदर्शन किए।
वित्तमंत्री ने कहा कि सरकार ने सबसे पहले विदेशों के काले धन पर निशाना साधा। लोगों से पैसा लाकर उस पर कर का भुगतान करने को कहा। जिन लोगों ने ऐसा नहीं किया उनके खिलाफ कालाधन कानून के तहत कार्रवाई की जा रही है। जिन लोगों के खातों और संपत्ति की जानकारी सरकार तक पहुंच गई है उनके खिलाफ भी कार्रवाई की जा रही है। उन्होंने कहा कि प्रत्यक्ष और परोक्ष दोनों तरह के करों के लिए व इसका विस्तार करने के लिए टेक्नालोजी का पूरा सहयोग लिया जा रहा है। कमज़ोर वर्गों को औपचारिक अर्थव्यवस्था का हिस्सा बनाने के लिए व्यक्तियों और विभिन्न संगठनों का इससे जुड़ा एक महत्वपूर्ण कदम है। जनधन योजना से ज्य़ादातर लोग बैंक प्रणाली के साथ जुड़े हैं। आधार कानून ने सरकारी व्यवस्था के सभी लाभ सीधे लोगों के बैंक खातों में पहुंचा दिए हंै। जीएसटी से परोक्ष व प्रणाली बहुत आसान हो गई है। अब कर प्रणाली को धोखा देना बहुुत कठिन हो गया है।
भारत नकदी की अर्थव्यवस्था रही है। नकदी के कारण काफी लेन-देन छुपा छुपाया रह जाता था। यह बैकिंग प्रणाली से बाहर हो जाता और लोगों को कर चोरी का मौका देता था। नोटबंदी के कारण लोग अपना पैसा बैंक में जमा करने पर मजबूर हो गए। इस के बाद 17.42 लाख खाता धारकों का पता चला और उन्होंने खुद इसकी जानकारी दी। कानूनों की अनदेखी करने वालों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई की गई है। इसमें से ज्य़ादातर पैसा निवेश के लिए ‘म्युचुअलफंड’ में डाल दिया गया। यह एक औपचारिक व्यवस्था का हिस्सा बन गया।
नोटबंदी की यह कह कर आलोचना की जा रही है कि सारा पैसा बैंकों में वापिस आ गया है। जबकि मुद्रा को पकडऩा नोटबंदी का लक्ष्य नहीं था। इसका विस्तृत लक्ष्य था पैसे का औपचारिक अर्थव्यवस्था में लाना और जिनका पैसा है उनसे कर वसूल करना। भारत को नगदी में डिजिटल बनाने के लिए मौजूदा व्यवस्था को झंझोरना ज़रूरी था। इस सीधा असर ज्य़ादा कर वसूलने और इसके आधार को विस्तृत करने पर पड़ा है।
डिजिटल विकास
यूपीआई (यूनाइटेड पेमेंट इंटरफेस) 2016 में शुरू की गई थी। इसके तहत लेन-देन जो अक्तूबर 2016 में 0.5 बिलियन था सितंबर 2018 में 598 बिलियन रु पए तक पहुंच गया। ‘द भारत इंटरफेस ऑफ मनी (बीएचआईएम)एक ऐसी एप्लीकेशन है जिसे एनसीसीआई ने बनाया है जिससे यूपीआई के द्वारा बहुत तेजी से पेमेंट हो जाती है। इस समय इसका इस्तेमाल 1.25 करोड़ लोग कर रहे हैं। बीएचआईएम के द्वारा लेन-देन जो सितंबर 2018 में 0.02 बिलियन रु पए का था सितंबर 2018 में 70.6 बिलियन रु पए का हो गया। बीएचआईएम का इसमें जून 2017 तक का योगदान 48 फीसद हो गया।
व्यक्तिगत आयकर पर भी नोटबंदी का असर हुआ है। 2018-19 में (31.10.18 तक) इसके तहत जो पैसा इकट्ठा हुआ वह पिछले साल की तुलना में 20.2 फीसद ज्य़ादा है। यहां तक की कॉरपोरेट टैक्स भी 19.5 फीसद बढ़ गया है। नोटबंदी से पहले यह बढ़ोतरी 6.6 फीसद और 9 फीसद थी नोटबंदी के दो साल में यह 14.6 फीसद बढ़ गई। 2017-18 में यह बढ़ोतरी 18 फीसद रही। इसी प्रकार 2017-18 में टैक्स की रिटर्न की गिनती 6.86 करोड़ पहुंच गई यह पिछले साल की तुलना में 25 फीसद ज्य़ादा है। इस साल 30.10.18 तक 5.99 करोड़ रिर्टनस भरी जा चुकी हैं जो कि पहले से 54.33 फीसद ज्य़ादा है। इस साल 86.35 लाख नए लोग जुड़े हैं। मई 2014 में जब यह नई सरकार बनी थी, उस समय रिटर्न भरने वाले 3.8 करोड़ थे। इस सरकार के पहले चार साल में यह संख्या 6.86 करोड़ पहुंच गई। अर्थव्यवस्था के सुधार से करदाताओं की जो संख्या 64 लाख थी वह जीएसटी के बाद 120 लाख हो गई।
उधर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का कहना है कि नोटबंदी में देश की 86 फीसद मुद्रा सर्कुलेशन से बाहर कर दी गई। जिससे पूरी अर्थव्यवस्था ही रु क गई। उन्होंने कहा कि नोटबंदी स्वयं किया हुआ हादसा है, यह एक आत्महत्या का प्रयास था जिसने लाखों लोगों के जीवन तबाह कर दिए और छोटे व्यापार को तहसनहस कर दिया। इसका सबसे बुरा प्रभाव $गरीब से $गरीब आदमी पर पड़ा। वे लोग अपनी थोड़ी सी बचत को बचाने के लिए घंटों लाइनों में खड़े रहे। इसके साथ ही जैसे-जैसे समय बीता नोटबंदी के लक्ष्य भी बदलते गए। पहले यह उस मुद्रा को काबू करने के लिए किया गया था जो पैसा आतंकवादियों की सहायता करता था, साथ ही कालेधन को खत्म करने के लिए। बाद में इसे डिजिटल लेन-देन से जोड़ा जाने लगा। पर सरकार का एक भी लक्ष्य पूरा नहीं हुआ।