संसद में पेश अविश्वास प्रस्ताव 2018

नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का परिणाम क्या होगा यह तो पहले से ही पता था, लेकिन इस प्रस्ताव के बहाने विपक्ष को अवसर मिल गया सरकार को बहुत ही गंभीर मुद्दों पर कटघरे में खड़ा करने का।

खास कर ऐसे समय में जब सरकार 2019 के चुनावों को ध्यान में रख कर अपनी उपलब्धियां गिनवा रही थी। प्रस्ताव के पक्ष में 126 और विपक्ष में 325 वोट पड़े। शिवसेना, बीजू जनता दल और तेलंगाना राष्ट्र समिति ने सदन से ‘वाकआऊट’ किया।

पिछले 15 साल में यह पहला अविश्वास प्रस्ताव है। पिछले बजट सत्र में लोकसभा अध्यक्ष ने विपक्ष को यह प्रस्ताव रखने की अनुमति नहीं दी थी। क्योंकि उस समय बैंक घोटालों की वजह से मोदी सरकार इसका सामना करने के लिए पूरी तरह तैयार नहीं थी। असल में अविश्वास का यह प्रस्ताव सत्ताधारी एनडीए सरकार और विपक्ष के लिए 2019 के चुनावों में अपना-अपना एजेंडा आगे बड़ाने का अवसर बन गया।

चौकीदार बनाम भागीदार

विपक्षी दलों का प्रतिनिधित्व करते हुए कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी ने मोदी सरकार पर निशाना साधा। खासतौर पर उन्होंने आरोप लगाया कि मोदी सरकार ने महिलाओं, दलितों और आम लोगों की वास्तविक मांगों के बारे में किए गए वादों को पूरा नहीं किया।

बहस की शुरुआत करते हुए टीडीपी के सांसद ने सरकार के बहुत से वादों की याद दिलाई जो उसने आंध्रप्रदेश के साथ किए थे। उन्होंने अपने राज्य को विशेष दर्जा देने की मांग की। टीडीपी का समर्थन करते हुए कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि यह 21वीं सदी का सबसे बड़ा हथियार है। इससे केवल आंध्र ही नहीं बल्कि और भी कई पीडि़त हैं। इस हथियार का नाम है – ‘जुमला स्ट्राईक’। किसान, दलित, कबायली इलाके के लोग, युवा और महिलाएं इस हथियार के शिकार हैं।

मोदी के इस वादे पर कि हर साल दो करोड़ युवाओं को रोज़गार दिया जाएगा, कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि पिछले चार सालों में केवल चार लाख नौकरियां दी गई हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने इसके उत्तर में मुद्रा योजना और दूसरी योजनाओं का जि़क्र किया जिनसे नौकरियां पैदा होनी थीं। बहुत से विशेषज्ञों ने इस तर्क को विवादास्पद बताया है। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के बेटे जय शाह जिसकी आय थोड़े से समय में 16000 गुणा बढ़ गई, की तरफ इशारा करते राहुल गांधी ने कहा कि प्रधानमंत्री खुद को ‘चौकीदार’ होने का दावा करते हैं पर असल में वे हैं ‘भागीदार’।

राहुल गांधी के इस आरोप पर कि एनडीए सरकार किसानों और छोटे व्यापारियों की कीमत पर बड़े पूंजीपतियों के हितों की रक्षा कर रही है, मोदी ने उन योजनाओं की जानकारी दी जो उनके हिसाब से गरीबों के हक की थीं। हालांकि कुछ विशेषज्ञों ने इसे शक्तिशाली आलोचना की कमज़ोर रक्षा बताई। इस आरोप के जवाब में कि भाजपा की नीतियों के कारण भारतीय बैंक कजऱ् में डूबी कंपनियों जैसे बन गए हैं, प्रधानमंत्री ने इसके लिए पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार को दोषी ठहराया।

टरकाऊ तरीका

प्रधानमंत्री का 90 मिनट का भाषण पूरी तरह रक्षात्मक रहा। एक विशेषज्ञ ने इसे छल की संज्ञा दी। इसका कारण था कि वे गंभीर मुददों को भी टालते नज़र आए और इन्हें आंकडों के खेल से फंसाने की कोशिश करते रहे। रैफल समझौते का कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे पाए। वे केवल इस समझौते की ‘सीक्रेट’ धारा का जि़क्र करते रहे जिसके तहत कुछ सूचनाएं नहीं दी जा सकती। राहुल गांधी के यह कहने पर कि फ्रांस के राष्ट्रपति ने कीमत के बारे में ऐसी किसी धारा का जि़क्र नहीं किया। हालांकि फ्रांस और भारत दोनों सरकारों ने राहुल की इस बात से इंकार किया। लेकिन राहुल ने कहा, ”मैंने जो कहा मैं उस पर अडिग़ हंू। अगर वे (फ्रांस) इससे इंकार करते हैं तो करते रहें’’।

मोदी के भाषण में वही आंकड़े और बातें थीं जो उनके लोग महीनों से कहते आ रहे हैं। कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि मोदी ने जो दावे पेश किए हैं वे पहले ही विवादों के घेरे में हैं। जब उन्होंने अपनी उपलब्धियों की बात भी कही तो कई महत्वपूर्ण मुद्दे छोड़ दिए जो विपक्ष दिन भर उठाता रहा था। राफेल समझौते पर उनका अस्पष्ट सा जवाब, और दलितों और अल्पसंख्यक लोगों की सुरक्षा पर भी उनका चुप रहना आलोचना का कारण बना।

कुछ विश्लेषकों के अनुसार जिस तरह भाजपा सांसदों ने विमुद्रीकरण और जीएसटी जैसे गंभीर मुद्दों पर तंज कसे या उन्हें टालने का प्रयास किया उसका कोई अच्छा प्रभाव नहीं पड़ा, पिछले समय में यही दो सुधार हैं जो सरकार कर पाई है। किसी समय विमुद्रीकरण का प्रचार यह कह कर किया गया था कि कालाधन निकालने का यह सबसे प्रभावी तरीका है। पर कुछ हुआ नहीं, यह पूरी तरह ‘फ्लाप शो’ रहा। इसी प्रकार जीएसटी जिसे पूरी तरह सिर पर चढ़ा लिया गया था उसकी भी हवा निकल गई। यही कारण था कि भाजपा का कोई सांसद इन दोनों मुद्दों पर नहीं बोला। इसकी बजाए विपक्ष ने इन दोनों पर ही अपना निशाना साधे रखा और बताया कि इन दोनों फैसलों ने किस तरह आम लोगों का नुकसान किया है।

विपक्ष ने जब देश के खराब हो रहे सामाजिक ताने बाने पर जोरदार हमला बोला तो प्रधानमंत्री को मुंह खोलना पड़ा। उन्होंने कहा जो भीड़ में इकट्ठे होकर लोगों की हत्या कर रहे हैं उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।

एक विशेपज्ञ का कहना था कि मोदी ने भले विश्वास मत जीत लिया है पर विपक्ष ने पलड़ा अपने हक में झुका लिया है।