संघ-मोदी का मन किसने मिलाया?

अरुण कुमार के बारे में सुना है? पूर्वी दिल्ली की झिलमिल कॉलोनी में जन्मे, वे 18 साल की उम्र में संघ के प्रचारक (पूर्णकालिक कार्यकर्ता) बन गये और 2021 में भाजपा के साथ समन्वयक बने। यह एक बड़ी चुनौती है, क्योंकि उन्होंने अपने पूर्ववर्ती कृष्ण गोपाल की ज़िम्मेदारी सँभाली है, जिनके अधीन संघ ने अपने राजनीतिक विंग पर नियंत्रण खोना शुरू कर दिया था।

भाजपा अधिक मुखर हो गयी थी और प्रमुख मुद्दों पर परामर्श कम हो गया था। भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा के यह कहने के बाद कि संगठन सक्षम है और उसे राजनीतिक समर्थन के लिए अपने मूल निकाय यानी संघ पर निर्भर रहने की आवश्यकता नहीं है; सम्बन्ध और ख़राब हो गये। संघ नेतृत्व ने चेतावनी दी; लेकिन भाजपा अपने ही रास्ते पर चलती रही और उसने ‘अबकी बार 400 पार’ का लक्ष्य रखा; लेकिन 2024 के लोकसभा चुनावों में केवल 240 सीटों पर सिमट गयी।

यह धैर्य का खेल था और अरुण कुमार ने उस केमिस्ट्री को फिर से स्थापित करने में अहम भूमिका निभायी जिसे नज़रअंदाज़ कर दिया गया था। संघ फिर से सक्रिय हो गया और भाजपा ने हरियाणा, महाराष्ट्र और दिल्ली के विधानसभा चुनावों में इतिहास रच दिया।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी एक क़दम आगे बढ़ने का फ़ैसला लिया और दिल्ली में मराठी साहित्य सम्मेलन में संघ की जमकर तारीफ़ की। बाद में लेक्स फ्रीडमैन के पॉडकास्ट पर बोलते हुए मोदी ने कहा कि संघ की वजह से उन्हें जीवन का उद्देश्य मिला है। इतना ही नहीं, उन्होंने प्रधानमंत्री के तौर पर नागपुर में संघ मुख्यालय का ऐतिहासिक दौरा किया। उन्होंने संघ प्रमुख मोहन भागवत की भी प्रशंसा की।

संघ परिवार के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि अरुण कुमार ने मोदी के साथ व्यक्तिगत सम्बन्ध विकसित कर लिये थे, क्योंकि उन्होंने दिल्ली, हरियाणा और जम्मू-कश्मीर में प्रचारक के तौर पर भी काम किया था, जब मोदी इन राज्यों के मामलों को सँभाल रहे थे। अरुण कुमार की अतिरिक्त योग्यता यह है कि वह कश्मीर मामलों के विशेषज्ञ हैं। बताया जाता है कि अनुच्छेद-370 को हटाने के सम्बन्ध में सरकार की जम्मू-कश्मीर नीति तैयार करने में उन्होंने अहम भूमिका निभायी थी। अरुण कुमार की सबसे बड़ी चुनौती भाजपा के नये अध्यक्ष की तलाश है, जो एक साल से अटकी हुई है; क्योंकि आदमी ऐसा चाहिए, जिस पर संघ और मोदी दोनों को भरोसा हो।