कोरोना महामारी के संकटकाल में शहरों से मजबूरी में घर लौटे करोड़ों प्रवासी मज़दूरों के लिए मनरेगा सहारा बन रहा है। इसमें गाँवों के दिहाड़ी मज़दूरों को जून में पिछले साल के मुकाबले 84 फीसदी ज़्यादा काम मिला है। मनमोहन सिंह सरकार के ज़माने की यह योजना न सिर्फ रोज़गार देने वाली, बल्कि ग्रामीण अर्थ-व्यवस्था को भी गति देने वाली साबित हो रही है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, देशभर में जून के महीने औसतन 3.42 करोड़ लोगों को रोज़ाना काम करने की पेशकश की गयी है; जो पिछले साल के इसी महीने के मुकाबले 83.87 फीसदी ज़्यादा है।
केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय के आँकड़ों के अनुसार, बीते मई महीने में औसतन 2.51 करोड़ लोगों को मनरेगा के तहत काम मिला; जो कि पिछले साल के इसी महीने के औसत आँकड़े 1.45 करोड़ के मुकाबले 73 फीसदी अधिक था। इस प्रकार मई में मनरेगा के तहत रोज़गार में 73.1 फीसदी का इज़ाफा दर्ज किया गया।
अब जून में मनरेगा की स्कीम के तहत रोज़ाना काम करने वालों की औसत संख्या 3.42 करोड़ हो गयी है; जबकि पिछले साल इसी दौरान रोज़ाना औसतन 1.86 करोड़ लोगों को काम मिला था। मज़दूरों को मज़दूरी का भुगतान सीधे उनके बैंक खाते में होने लगा है और इस स्कीम के लिए आवंटित राशि में से करीब 31,500 करोड़ रुपये राज्यों को जारी किया जा चुका है। मनरेगा के तहत चालू वित्त वर्ष 2020-21 में कुल बजटीय आवंटन 61,500 करोड़ रुपये था; लेकिन 17 मई को वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने इस योजना के लिए 40,000 करोड़ रुपये अतिरिक्त आवंटित करने की घोषणा की है। यह राशि आत्मनिर्भर अभियान के तहत सरकार की तरफ से घोषित किये गये 20 लाख करोड़ रुपये के आॢथक पैकेज का हिस्सा है। मज़दूरों के ग्रामीण इलाकों में पलायन को देखते हुए सरकार ने यह फैसला किया, ताकि लोगों को रोज़गार मिल सके।
मानव दिवस के रूप में रोज़गार की गणना
मनरेगा के तहत रोज़गार की गिनती को मानव दिवस के रूप की जाती है। इसके मुताबिक, एक दिन में जितने लोगों को काम मिलता है, वह उतने मानव दिवस होते हैं। इस प्रकार जून में औसतन यह आँकड़ा 3.42 करोड़ मानव दिवस रहेगा। पिछले साल इसी महीने में इस योजना के तहत रोज़ाना औसतन 1.86 करोड़ लोगों को काम मिला था।
हुनरमंद और पढे-लिखे भी कर रहे काम
रोज़ी-रोटी की दरकार और परिवार का पेट पालने के लिए लोग कुछ भी करने को तैयार हैं। मजबूरी में श्रमिक हों, अकुशल मज़दूर या हुनरमंद, सबको मनरेगा में ही आसरा नज़र आ रहा है। दिल्ली, मुम्बई जैसे मेट्रो शहरों से लौटे कामगार अपनी कारीगरी का जलवा दिखाने वाले हुनरमंद अब गाँव में फावड़ा और गैंती पकडक़र दो जून की रोटी का जुगाड़ कर रहे हैं। इसमें कई तो स्नातक यहाँ तक कि स्नातकोत्तर डिग्री धारी युवक भी शामिल हैं। पढ़े-लिखे और हुनरमंद पहले तो तसला उठाने, फावड़ा चलाने में संकोच कर रहे थे; लेकिन समय की मार ने यह करना भी उनको सिखा दिया। इस काम में पारदॢशता भी है, पूरा पेमेंट आपके खाते में आता है और समय पर मिल भी जाता है।
मनरेगा में क्या-क्या होता है काम
इस योजना के तहत चैक डैम, नहर की खुदाई, तालाब की खुदाई एवं सिल्ट सफाई, गाँवों में पौधारोपण के लिए गड्ढों की खुदाई, नालों की सफाई, कच्चे रास्तों का निर्माण, नालों एवं नालियों की कीचड़ की सफाई का काम कराया जाता है।
राजस्थान : 60 दिन में 60 हज़ार से 38 लाख मज़दूर
महामारी के दौर में राजस्थान के मज़दूरों के लौटने के बाद लोगों की नौकरियाँ जाने से मनरेगा में मज़दूरों की संख्या में बड़ा इज़ाफा हुआ है। प्रवासी श्रमिकों के राजस्थान लौटने पर उनको काम देने के मामले में गहलोत सरकार टॉप पर है। 15 अप्रैल से 10 जून के बीच राज्य में मनरेगा मज़दूरों की संख्या 38 लाख पहुँच गयी हैं; जबकि प्रदेश में 15 अप्रैल तक मनरेगा में काम करने वालों की संख्या महज़ 60 हज़ार थी। एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक, राजस्थान की सरकार ने 49 लाख लोगों को मनरेगा से जोड़ा है।
मनरेगा को भाजपा बनाम कांग्रेस न बनाएँ : सोनिया
कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने कहा कि यूपीए सरकार की प्रमुख योजना मनरेगा से लॉकडाउन के दौरान गरीबों का बहुत भला हुआ है। जबकि भाजपा वर्षों तक इसका मज़ाक उड़ाती रही है। एक अखबार में लेख के ज़रिये सोनिया ने कहा कि वह सरकार से कहना चाहती हैं कि यह राष्ट्रीय संकट का समय है, राजनीति करने का नहीं। मनरेगा कांग्रेस बनाम भाजपा का मसला नहीं है। सरकार के पास मनरेगा के रूप में एक ताकतवर प्रणाली है। कृपया ज़रूरत की घड़ी में देश के लोगों की मदद के लिए इसका इस्तेमाल करें। उन्होंने कहा कि इस योजना ने इन वर्षों में अपनी अहमियत साबित कर दी है। यहाँ तक कि पिछले छ: साल में एक विरोधी सरकार में भी इसकी अहमियत बनी रही।
सोनिया ने लिखा कि मौज़ूदा सरकार इस योजना को बदनाम करती रही, इसे नज़रअंदाज़ करती रही। लेकिन अनिच्छा से ही सही उसने इस पर भरोसा किया। सोनिया ने कहा कि हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि मनरेगा संसद की तरफ से पारित कानून के तहत लागू हुआ है। मनरेगा योजना सिविल सोसायटी के ज़रिये वर्षों के संघर्ष का नतीजा है। यह हमारे घोषणा-पत्र में 2004 में शामिल हुआ था और इसे 2005 में कानूनी रूप दे दिया गया। महामारी के इस संकटकाल में कृपया इसे कांग्रेस बनाम भाजपा का रंग न दें।
विफलताओं का जीता-जागता स्मारक
मेरी राजनीतिक सूझबूझ कहती है कि मनरेगा कभी बन्द मत करो, क्योंकि मनरेगा आपकी विफलताओं का जीता-जागता स्मारक है। आज़ादी के 60 साल के बाद आपको लोगों को गड्ढे खोदने के लिए भेजना पड़ा; यह आपकी विफलताओं का स्मारक है और मैं गाजे-बाजे के साथ इस स्मारक का ढोल पीटता रहूँगा। दुनिया को बताऊँगा ये गड्ढे क्यों खोद रहे हो? क्योंकि ये उन 60 साल के पापों का परिणाम है।
नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री (2015 संसद में)
रोज़गार के लिए अतिरिक्त आवंटन
सरकार ने कोविड-19 संकट के बीच उद्योग को राहत के लिए कर्ज़ चूक के नये मामलों में दिवाला कार्रवाई पर एक साल के लिए रोक लगा दी है। इसके अलावा अपने घरों को लौट रहे प्रवासी मज़दूरों को रोज़गार के लिए मनरेगा के तहत 40,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त आवंटन किया गया है।
नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री
अब काम तीन गुना बढ़ा
पहले मनरेगा का पैसा मज़दूरों को नहीं मिलता था; जबकि आज उनके खाते में जाता है। यूपीए सरकार में 21.4 फीसदी काम होता था; जबकि आज 67.29 फीसदी काम हो रहा है।
रविशंकर प्रसाद, केंद्रीय सूचना
प्रसारण एवं कानून मंत्री
न्यूनतम मज़दूरी 182 से 202 रुपये की
कोरोना वायरस की वजह से अपने राज्यों को लौटे श्रमिकों को रोज़गार के लिए मनरेगा के तहत 40,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त आवंटन किया गया है। यह बजट में आवंटित 61,000 करोड़ रुपये की राशि के अतिरिक्त है। देशभर में मनरेगा मज़दूरों की न्यूनतम मज़दूरी 182 रुपये से बढ़ाकर 202 रुपये कर दी गयी है। इसके साथ ही 2.33 करोड़ प्रवासी श्रमिकों को पंचायतों में काम दिया जाना है।
निर्मला सीतारमण, केंद्रीय वित्त मंत्री
तंज के साथ तारीफ
(ट्विटर पर मोदी का मनरेगा की आलोचना वाला वीडियो शेयर करके) प्रधानमंत्री ने यूपीए काल में सृजित मनरेगा स्कीम के लिए 40,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बजट देने की मंज़ूरी दी है। मनरेगा की दूरदर्शिता को समझने और उसे बढ़ावा देने के लिए हम उनके प्रति आभार प्रकट करते हैं।
राहुल गाँधी, कांग्रेस नेता
प्रवासी मज़दूरों को सीमित लाभ होगा
सरकार दावा कर रही है कि नये मनरेगा कार्यों से प्रवासी मज़दूरों को मदद मिलेगी, लेकिन यह काम उन मज़दूरों को अधिक दिया जाएगा; जो गाँवों में रहें। प्रवासी मज़दूरों के लिए लाभ बहुत सीमित होगा। मोदी सरकार ने प्रवासी मज़दूरों के मुद्दे को बहुत ही गलत तरीके से हैंडल किया।
पी. चिदंबरम, पूर्व वित्त मंत्री,
कांग्रेस नेता
गरीब के खाते में हर माह डालें पैसे
हर गरीब के बैंक खाते में अगले छ: महीने तक हर महीने 7500 रुपये डाले जाने चाहिए। मनरेगा के तहत साल में 100 दिन के बजाय 200 दिन काम दिया जाए। एमएसएमई क्षेत्र के लिए तुरन्त एक पैकेज घोषित किया जाए। साथ ही सरकार मज़दूरों को उनके घर लौटाने के लिए इंतज़ाम करे।
सोनिया गाँधी, कांग्रेस की कार्यकारी अध्यक्ष