श्रीलंका में राजनीतिक संकट के बीच राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना के २२५ सदस्यीय संसद को भंग करने के फैसले का पद से हटाए गए पूर्व प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे की पार्टी ने जोरदार विरोध किया है। पार्टी ने राष्ट्रपति के फैसले को लोगों के अधिकार छीनने वाला फैसले बताया है।
गौरतलब है कि शुक्रवार रात राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना ने देश की संसद को भंग कर दिया था। राष्ट्रपति के ऐलान के बाद शुक्रवार मध्यरात्रि १२ बजे संसद भंग हो गयी। देश में संसदीय चुनाव के लिए नामांकन १९ से २६ नवंबर तक दाखिल किए जाएंगे। सम्भावना है कि चुनाव ५ जनवरी को होंगे।
राष्ट्रपति ने नई संसद की बैठक आयोजित के लिए १७ जनवरी की तारीख तय कर दी है।
हालांकि सिरिसेना का संसद को भंग करने का कदम निर्धारित संसदीय चुनाव से डेढ़ साल पहले ही उठा लिया है। संसद का कार्यकाल अगस्त २०२० में पूरा होना था। कुछ राजनीतिक विशेषज्ञों के मुताबिक संसद भंग करने का फैसला १९वें संशोधन के हिसाब से असंवैधानिक है जिसके अनुसार राष्ट्रपति साढ़े चार साल का कार्यकाल पूरा होने से पहले प्रधानमंत्री को बर्खास्त नहीं कर सकते या संसद को भंग नहीं कर सकते।
उधर इस फैसले का विरोध करते हुए पद से हटाए गए पीएम विक्रमसिंघे के नेतृत्व वाली यूनाइटेड नेशनल पार्टी ने एक बयान में कहा – ”हम जोरदार तरीके से संसद को भंग करने के फैसले का विरोध करते हैं। उन्होंने लोगों से उनके अधिकार छीन लिए हैं”।
याद रहे एक हैरानी भरे फैसले में राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना ने पहले प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे को बर्खास्त कर दिया था। इसके बाद उन्होंने उनके राजनीतिक प्रतिद्वंदी महेंद्रा राजपक्षे को देश का प्रधानमंत्री नियुक्त कर दिया था। इसके बाद देश में राजनीतिक संकट पैदा हो गया था।