तीन महीने से गंभीर आर्थिक और राजनीतिक संकट का सामना कर रहे श्रीलंका में आज हुए राष्ट्रपति के चुनाव में कार्यवाहक राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे को नया राष्ट्रपति चुन गया है। उन्हें आज हुए चुनाव में 134 मत मिले। दूसरे नंबर पर दुल्लास अल्हाप्पेरुमा रहे जिन्हें 82 वोट मिले।
चुनाव में कुल तीन उम्मीदवार मैदान में थे जिनमें से एक रानिल विक्रमसिंघे भी थे जो हाल तक देश के प्रधानमंत्री थे और इस समय कार्यवाहक राष्ट्रपति हैं। उधर इस चुनाव से पहले विपक्ष के नेता साजिथ प्रेमदासा ने अनुरोध किया है कि ‘चाहे जो राष्ट्रपति बने भारत के सभी राजनीतिक दल और भारत की जनता इस आपदा से बाहर आने के लिए मां लंका और यहां के लोगों की मदद करते रहें’।
जहाँ तक राष्ट्रपति चुनाव की बात है इसमें तीन उम्मीदवारों में मुकाबला था। चौथे साजिथ प्रेमदासा मुकाबले से बाहर हो गए थे। अब मुकाबला रानिल विक्रमसिंघे, दुल्लास अल्हाप्पेरुमा और वामपंथी जनता विमुक्ति पेरामुना (जेवीपी) के नेता अनुरा कुमारा दिसानायके के बीच था।
सांसदों ने राष्ट्रपति चुनाव के लिए इन तीन उम्मीदवारों के नाम प्रस्तावित किये थे। श्रीलंका की संसद 44 साल में पहली बार त्रिकोणीय मुकाबला था। कार्यवाहक राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे और दुल्लास अल्हाप्पेरुमा के बीच कांटे की टक्कर मानी जा रही थी।
याद रहे देश के राष्ट्रपति और एक समय श्रीलंका की जनता में लोकप्रिय राजपक्षे परिवार के सदस्य गोतबाया राजपक्षे के देश में उत्पन्न हुए गंभीर आर्थिक संकट को सुलझाने में नाकाम रहने के बाद सड़कों पर उतरी जनता के विरोध प्रदर्शनों के बीच देश छोड़कर भागे राजपक्षे के अपने पद से इस्तीफा देने के बाद राष्ट्रपति का चुनाव हो रहा था।
सत्तारूढ़ श्रीलंका पोदुजाना पेरामुना (एसएलपीपी) के ज्यादातर सांसद पार्टी से अलग हुए गुट के नेता अल्हाप्पेरुमा को राष्ट्रपति और प्रमुख विपक्षी नेता सजित प्रेमदासा को प्रधानमंत्री चुने जाने के हक़ में थे। लेकिन अनुभवी रानिल विक्रमसिंघे को फिलहाल सबसे मजबूत उम्मीदवार माना जा रहा था।
विक्रमसिंघे संसद में अपनी पार्टी के इकलौते सांसद हैं, उनके हक में यही बात थी कि वे काफी अनुभवी हैं। विपक्षी एसजेबी नेता प्रेमदासा भी अल्हाप्पेरुमा के समर्थन में दिख रहे थे। प्रेमदासा ने खुद को राष्ट्रपति पद की दौड़ से अलग कर लिया था। इस तरह अल्हाप्पेरुमा और प्रेमदासा साथ दिख रहे थे।
श्रीलंका राजनीति के जानकार हाल में जनता की तरफ से नेताओं के खिलाफ सख्त रुख अपनाने के बाद उनमें उपजी असुरक्षा की भावना को भी चुनाव से जोड़कर देख रहे थे। इसे देखते हुए वे विक्रमसिंघे को मजबूत मान रहे हैं, क्योंकि सांसदों को लगता था कि किसी अन्य नेता के मुकाबले विक्रमसिंघे कड़े फैसले लेने में ज्यादा क्षमतावान हैं।