दागी राजनेताओं के खिलाफ जनमत बनाने में ‘तहलका’ ने हमेशा अग्रणी भूमिका निभायी है। हमने आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उन उम्मीदवारों की सच्चाई को हमेशा उजागर किया है, जिन्हें हाल के दिल्ली विधानसभा चुनाव में, या 2019 के लोकसभा चुनाव में या 2009 और 2014 के लोक सभा चुनावों में रेप, हत्या, हत्या के प्रयास और अपहरण जैसे गम्भीर आपराधिक मामलों में आरोपी बनाया गया है। इसे लेकर एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉम्र्स और नेशनल इलेक्शन वॉच की रिपोर्ट चौंकाने वाली है। रिपोर्ट के अनुसार, साल 2019 के लोकसभा चुनाव लडऩे वाले 7,928 उम्मीदवारों में से 1500 (19 फीसदी) उम्मीदवारों ने अपने खिलाफ आपराधिक मामले घोषित किये थे। चिन्ता की बात यह है कि यह चीज़ें चुनाव-दर-चुनाव जारी हैं।
साल 2014 में लोकसभा चुनावों के दौरान विश्लेषण वाले 8,205 उम्मीदवारों में से 1404 (17 फीसदी) उम्मीदवारों ने अपने खिलाफ आपराधिक मामले घोषित किये थे। इसी तरह, 2009 में लोकसभा चुनाव के दौरान विश्लेषण वाले 7810 उम्मीदवारों में से 1158 (15 फीसदी) उम्मीदवारों ने अपने खिलाफ आपराधिक मामले घोषित किये थे। ध्यान रहे कि ये आपराधिक मामले बलात्कार, हत्या, हत्या का प्रयास, अपहरण, महिलाओं के खिलाफ अपराध आदि से सम्बन्धित मामलों सहित बहुत गम्भीर मामले हैं। यह खतरनाक रुझान है। इतना ही नहीं, बढ़ती धन शक्ति का इस्तेमाल एक और खतरनाक तथ्य है, जो चुनावों के दौरान देखा जा सकता है। लोकसभा चुनाव 2019 में हरेक उम्मीदवार के पास औसत सम्पत्ति 4.14 करोड़ रुपये थी।
गौरतलब है कि सितंबर, 2018 में पाँच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से कहा था कि चुनाव लडऩे से पहले सभी उम्मीदवारों को चुनाव आयोग के सामने अपना आपराधिक रिकॉर्ड घोषित करना होगा। इसके बाद 10 अक्टूबर, 2018 को चुनाव आयोग ने संशोधित फॉर्म -26 के बारे में अधिसूचना जारी की और सभी राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों को अपनी आपराधिक पृष्ठभूमि प्रकाशित करने का निर्देश दिया। हालाँकि, इसने राजनीति के अपराधीकरण पर अंकुश लगाने में ज़्यादा मदद नहीं की है। अब जस्टिस आरएफ नरीमन और जस्टिस एस. रवींद्र भट्ट की पीठ ने चुनाव आयोग को एक हफ्ते के भीतर एक ऐसी रूपरेखा तैयार करने को कहा है, जो राजनीतिक अपराधीकरण पर अंकुश लगाने में मदद कर सकती हो। कोर्ट ने अधिवक्ता-याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय और चुनाव आयोग को एक साथ बैठने और उन सुझावों पर मंथन करने को कहा है, जो राजनीति में अपराधीकरण पर अंकुश लगाने में मदद कर सकते हों। चुनावी प्रणाली को स्वच्छ करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने सभी राजनीतिक दलों को अपने उम्मीदवारों के िखलाफ लम्बित आपराधिक मामलों का विवरण अपनी-अपनी वेबसाइट, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म और अखबारों में अपलोड करने और साथ ही साफ-सुथरे लोगों की जगह दागी लोगों को उम्मीदवार बनाने के पीछे कारणों का उल्लेख करने का निर्देश दिया है। अब वक्त आ गया है कि राजनीतिक दलों को अहसास हो कि जीतना नैतिकता का विकल्प नहीं हो सकता है। राजनेताओं के िखलाफ मामलों का तेज़ी से निपटारा भी अपराधियों को राजनीति में आने से रोक सकता है। यह चुनाव आयोग का ज़िम्मा है कि वह सर्वोच्च अदालत का आदेश लागू करने में विफल पार्टियों और उम्मीदवारों पर कड़ी नज़र रखे और उन्हें कोर्ट की अवमानना का ज़िम्मेदार माने।