केंद्र की भाजपा नेतृत्व की एनडीए सरकार ने देश के 62 माने हुए शिक्षण संस्थानों को स्वायत्तता का तमगा देते हुए इनकी अचल संपत्तियों के लिहाज से अब इनका पूरी तौर पर निजीकरण करने का फैसला लिया है। हालांकि स्वायत्तता का मतलब यह नहीं है कि अब इनमें ज़्यादा वैचारिक आज़ादी होगी, शोध के लिए अपार फंड होगा और राज्य व सरकारी नियंत्रण कम होगा।
केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने यह घोषणा करके यह ज़रूर जता दिया कि बाधाओं के बाद भी वे नीतियां अमल में ला सकते हैं। अब जिन्हें पढऩा है वे पैसा खर्च करें। मुफ्त में कुछ नहीं।
विश्वविद्यालयों में स्वायत्तता होगी लेकिन एकेडेमिक आज़ादी का अभाव रहेगा। सरकारी शिक्षण संस्थानों में पहले संवैधानिक आदेशों के तहत शिक्षण व्यवस्था थी, अच्छे नागारिक बनाने का संकल्प था, आपस में खुला विवाद होता था। छात्र-छात्राओं को कम लागत में अच्छी शिक्षा सुलभ होती थी।
लेकिन अब स्वायत्त शिक्षण संस्थान के छात्र-छात्राओं को देश, धर्म, संस्कृति से लगाव रखना होगा। बाजार की ज़रूरतों के अनुसार ही खुद को वे योग्य बनाएंगे। एकेडेमिक ऑटोनॉमी के तहत ऐसे शोधों की संभावना बढ़ेगी जैसे सरकार की नई नीतियां और उनका प्रभाव या नई सरकारी नीतियों का बाजार पर असर आदि जैसे ढेरों विषय। यानी अब कारपोरेट उद्योग और एकेडेमिक विभागों में ज़्यादा तालमेल होगा। सही तौर पर स्वायत्तशासी यूनिवर्सिटी वह होगी जहां छात्र और अध्यापक देश विरोधी न हों सरकारी नीतियों का विरोध न करते हों और देशभक्ति संबंधी नीतियों को अमल में लाएं।
केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री प्रकाश जावडेकर ने 20 मार्च को स्वायत्तता का ऐतिहासिक घोषणा पत्र जारी किया। इसके पहले तकरीबन एक महीने पहले गजट नोटिफिकेशन किया गया था। जिस का शीर्षक था यूजीसी कैटागराइजेशन ऑफ यूनिवर्सिटीज फार ग्रांट ऑफ ग्रेडेड ऑटोनॉमी रेगुलेशंस 2018और कन्फर्मेंट ऑफ ऑटोनॉमस स्टेट ऑफ कॉलेजेज रेगुलेशंस 2012 इन रेगुलेशंस की तुलना में नई स्वायत्तता की बात कहीं अलग है। रेगुलेशंस का ज़ोर ऐसी नीति पर है जिसके तहत गुणात्मक शिक्षा में फंड जाएं।
जिन 62 विश्वविद्यालयों को स्वायत्त बनाने की बात की जा रही है उनमें जेएनयू, बीएचयू, और एएमयू प्रमुख हैं। इन सभी का परिसर काफी लंबा-चौड़ा है जिस पर अर्से से बाजार की निगाहें हैं। स्वायत्तता शब्द के बहाने देश की जनता को भ्रम में रखने की पहल केंद्र सरकार ने की है। मंत्री प्रकाश जावडेकर ने कहा कि देश में उच्च शिक्षा प्रदान करने वाले शिक्षण संस्थानों को स्वायत्तता देने के लिए सरकार प्रतिबद्ध है। इन्हें स्वायत्तता प्रदान करना इनकी अर्थव्यवस्था को उदार बनाना है। इन्हें फिर शिक्षा में अपना स्तर और ऊँचा करने के लिए यूजीसी(यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन) का मुंह नहीं देखना होगा।
उनके अनुसार इन 62 विश्वविद्यालयों को कोई कोर्स शुरू करने ,नया विभाग खोलने , कोर्स की फीस तय करने और ऑफ लाइन परिसर बनाने के लिए किसी अनुमति की ज़रूरत नहीं होगी। ये विदेशी विश्वविद्यालयों से समझौता (एमओयू) करके विदेश से अनुभवी प्राध्यापकों को ऊँचा वेतन देते हुए बुला सकते हैं। विदेशी छात्रों को अपने यहां प्रवेश दे सकते हैं। वेतन आयोग की सिफारिशें भी इनके लिए बहुत महत्व की नहीं होंगी। यूजीसी इनका निरीक्षण और परिक्षण भी नहीं करेगी। उन्होंने बताया कि संसद में पास कानून के जरिए इंडियन इंस्टीच्यूट ऑफ मैनेजमेंट को ऐसी सुविधा पहले से ही हासिल है।
भारत सरकार चाहती है कि देश के बीस शिक्षण संस्थान तेजी से खुद को विकसित करें जिससे विश्वस्तर पर वे गिने भी जाएं। सरकार ने राज्यों में पांच केंद्रीय विश्व विश्वविद्यालय जेएनयू (हैदराबाद यूनिवर्सिटी) जाधवपुर यूनिवर्सिटी (कोलकाता), यूनिवर्सिटी ऑफ जम्मू, नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी (दिल्ली), सावित्री बाई फुले (पुणे) विश्वविद्यालय इन्हें सरकार ने शिक्षण विश्वविद्यालयों और संस्थानों को नेशनल एसेसमेंट एंड एक्रिडिटेशन कौंसिल (एनएएसी) की रैकिंग के आधार पर चुने हैं। जिन्हें 305 और उससे ज़्यादा पहली कैटेगरी में स्थान हासिल हुए उन्हें पूर्ण स्वायत्तता दी गई। जिन विश्वविद्यालयों का नतीजा 3.5 से कम रहा उन्हें दूसरी कैटेगरी में रखा गया और उन्हें आंशिक स्वायत्तता दी गई। कुछ मुद्दों पर इन्हें जरूर अपनी गतिविधियों में यूजीसी से अनुमति लेनी होगी और विदेशी विश्वविद्यालयों से कांट्रेक्ट की पहल करनी होगी। इनमें मध्यप्रदेश के सागर में डा. हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय है जिसके पास अच्छा बड़ा परिसर है और जहां अपनी स्थापना के समय से ही कई ऐसे विषय पढ़ाए जाते रहे हैं,जो तब देश के किसी और विश्वविद्यालय में पढ़ाए ही नहीं जाते थे।
सूची में शामिल निजी विश्वविद्यालयों में ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी सोनीपत, पंडित दीन दयाल पेट्रोलियम यूनिवर्सिटी गांधीनगर, वेल्लोर इंस्टीच्यूट ऑफ टेक्नॉलोजी और मणिपाल एकेडेमी भी है।
सरकार ने आठ कॉलेजों को भी स्वायत्तता दी है। इनमें यशवंत राव चव्हाण इंस्टीच्यूट ऑफ साइंस, सतारा, श्री शिव सुब्रमण्यम नाडार कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, कला-वक्कम, जी नारायम्मा इंस्टीच्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी साइंस, हैदराबाद, विवेकानंद कॉलेज, कोल्हापुर, श्री वसावी इंजीनियरिंग कॉलेज पश्चिम गोदावरी, बोनम वेंकट चलमाय्या इंजीनियरिंग कॉलेज पूर्व गोदावरी, जयहिंद कॉलेज ऑफ कामर्स, और श्री विल पार्ल कलावानी मंडल मिठिबाई कॉलेज ऑफ आर्ट्स मुंबई हैं। ये तमाम कॉलेज अपने कोर्स तैयार करेंगे, परीक्षा लेंगे और छात्रों की योग्यता तय करेंगे । लेकिन ये डिग्री नहीं देंगे। यह काम विश्वविद्यालय करेंगे।
अखिल भारतीय तौर पर दो कैटेगरी में जांचे परखे गए विश्वविद्यालय में पहली कैटेगरी में दो विश्वविद्यालय और दूसरी कैटेगरी में तीन केंद्रीय विश्वविद्यालय यानी कुल पांच केंद्रीय विश्वविद्यालय हुए। राज्य विश्वविद्यालयों में पहली कैटेगरी में 12,दूसरी कैटेगरी में नौ यानी 21 राज्य विश्वविद्यालय हुए। इसी तरह डीम्ड विश्वविद्यालयों की पहली कैटेगरी में 11, दूसरी कैटेगरी में 13 यानी कुल 24 डीम्ड विश्वविद्यालय हुए। निजी विश्वविद्यालयों में दूसरी कैटेगरी में दो ही चुने गए। ऑटोनॉमस कालेजों में कोई भी पहली और दूसरी कैटेगरी में नहीं आ पाया। लेकिन आठ को सूची में रखा गया। इस तरह 60 शिक्षण संस्थान स्वायत्तता के क्षेत्र में अब चुन लिए गए हैं। जहां अब शिक्षण महंगा ज़रूर हो जाएगा।