पंजाब और हरियाणा के स्कूलों में एक-तिहाई पद खाली हैं। नतीजतन बच्चों का भविष्य दाँव पर है। हरियाणा राज्य विद्यालय शिक्षा विभाग के 2018 के आँकड़ों के अनुसार, 1 लाख 28 हज़ार 732 पद अध्यापकों के लिए थे; लेकिन सिर्फ 86 हज़ार 246 पद भरे जा सके। इसी तरह 45 हज़ार 446 खाली पद के लिए अतिथि अध्यापकों को 13,731 खाली पदों पर स्थान मिला। इस कारण स्कूलों में बच्चों की भर्ती भी कम हुई। कक्षा पहली से चौथी में 2012-13 में जहाँ 13 लाख 43 हज़ार 958 की भर्ती हुई, वहीं हरियाणा में 2017-18 में 9 लाख 18 हज़ार 241 छात्र ही प्रवेश पा सके।
पड़ोसी राज्य पंजाब में 80 फीसदी पद स्टेट काउंसिल ऑफ एजुकेशनल रिसर्च एंड ट्रेनिंग (एससीईआरटी) और 17 जिलों में डिस्ट्रिक्ट इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग (डीआईईटी) खाली पड़े हैं। एकेडमिक स्टाफ में 82 फीसदी (हर 5 सीट में 4 खाली) पूरे राज्य के ज़िला अध्यापक शिक्षा संस्थानों में खाली हैं, जबकि एससीईआरटी में 55 फीसदी हैं। यह जानकारी केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय से जुड़े एजुकेशनल कंसलटेंट ऑफ इंडिया लिमिटेड ने मूल्यांकन रिपोर्ट तैयार की है, में दी। जहां 17 ज़िलों में सरकार की डी मार्गदॢशका के तहत जहाँ 425 का एकेडमिक स्टाफ चाहिए, वहाँ स्कूल शिक्षा विभाग ने 264 पद पर ही सहमति दी। ज़िला स्तर के इन संस्थानों में 76 का स्टाफ तो हाल-िफलहाल है, लेकिन 349 पद खाली हैं। केन्द्र की ओर से चलायी स्कीम ऑफ रिस्ट्रक्टिरिंग एंड रि-ऑर्गेनाइजेशन ऑफ टीचर एजुकेशन में केन्द्रीय मंत्रालय में एकेडमिक पदों की संख्या हर डीआईईटी में 25 कर दी है, जिससे अध्यापक शिक्षा संस्थान मज़बूत हों। लेकिन 22 ज़िलों में से 17 में ही डीआईईटी िफलहाल काम कर रहे हैं। हालाँकि विभागों में और पद बनाने और जो हैं उन पर ही नियुक्तियों की मंज़ूरी विभाग को लेनी है। मोहाली में 5 नये ज़िला शिक्षक शिक्षा संस्थानों की मंज़ूरी है, ऐसी ही मंज़ूरी तरनतारन फाज़िल्का बरनाला और पठानकोट को भी मिली है। डीआईईटी को प्री सर्विस और इन सर्विस प्रशिक्षण अध्यापकों को देना है। स्कूल आधारित शोध शिक्षा शास्त्रीय अभ्यास और समन्वय एससीईआरटी से शिक्षक प्रशिक्षण में समन्वय और शिक्षकों को प्रशिक्षण की बात है। फिर भी राज्य में शिक्षा की गुणवत्ता में कमी आयी है।
एससीईआरटी की स्थापना 1981 में बतौर नोडल एजेंसी हुई थी, जिससे स्कूली शिक्षा में गुणात्मक सुधार है। उसके लिए 45 पद थे। इसमें विशेष कोर्स और विशेषज्ञ प्रशिक्षण की व्यवस्था थी; लेकिन राज्य सरकार ने महज़ 24 पद ही मंज़ूर किये, जिनमें अभी चार खाली हैं। पंजाब में राज्य के सरकारी सेकेंडरी स्कूलों में 6,527 अध्यापक (लगभग 21 फीसदी) अप्रशिक्षित है।
अब अखिल भारतीय स्तर पर देखें, तो तकरीबन 2 लाख अध्यापकों के पद सेकेंडरी और हायर सेकेंडरी स्कूलों में खाली हैं। बिहार और अभी हाल ही में केन्द्रशासित क्षेत्र बने जम्मू और कश्मीर में अध्यापकों की संख्या सबसे कम है।
जो आँकड़ा मानव संसाधन विकास मंत्रालय (एचआरडी) ने लोकसभा में पेश किया उसके अनुसार सेकेंडरी और हायर सेकेंडरी स्कूल में 2 लाख 13 हज़ार 608 पद अध्यापकों के खाली हैं। यह आँकड़ा हाल 2018-19 का है। बिहार में 33 हज़ार 908 पद खाली हैं। अरुणाचल प्रदेश में 21 हज़ार 393 और मध्य प्रदेश में 19 हज़ार 455 जबकि यूपी में 16087 पद रिक्त हैं। छत्तीसगढ़, राजस्थान और हरियाणा ऐसे राज्य हैं, जहाँ 10-10 हज़ार पद रिक्त हैं। तमिलनाडु और केरल में चार हज़ार पद खाली हैं, जबकि कर्नाटक में 8 हज़ार 306, दिल्ली में 6 हज़ार 832 पद खाली हैं। कुल मिलाकर अध्यापकों के पदों की मंज़ूरी संख्या के बावजूद 23 फीसदी पद खाली हैं।
देश के राज्य विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में तकरीबन 28 फीसदी पद खाली हैं। 2 लाख 46 हज़ार 509 पदों में मात्र 1 लाख 79 हज़ार 950 पद ही अभी तक भरे जा सके। यह जानकारी केन्द्रीय मानव संसाधन विभाग मंत्रालय ने पिछले दिन राज्यों के राज्यपालों के साथ पिछले महीने हुई बैठक में दी। सरकारी कॉलेज जो बिहार हरियाणा, झारखंड, ओडिशा, उत्तराखंड और छत्तीसगढ़ में हैं, वहाँ 7 हज़ार 559 अध्यापकों की भर्ती प्रक्रिया शुरू हो गई है।
मंत्रालय ने राज्यपालों से गुज़ारिश की है कि वे सभी राज्यों की सरकारों से बात करके नियत समय में नियुक्तियाँ करा लें। उन्हें विश्वविद्यालयों के लिए भी एक मार्गदर्शिका बनाकर राज्य सरकारों को देने को कहा गया है। इन रिक्त पदों के चलते इन संस्थानों में शिक्षा की गुणवत्ता प्रभावित हो रही है क्योंकि ज्यादातर अस्थायी हैं और फिर अतिथि अध्यापक जो शिक्षा देते हैं। पंजाब में सरकारी कॉलेजों में 391 नियमित शिक्षक हैं, जबकि मंज़ूर पदों की संख्या 1,873 है। इसमें अंशकालिक अतिथि अध्यापक और सेवानिवृत्त अध्यापक भी हैं जो कमी पूरी कर रहे हैं।
देश के 292 राज्य विश्वविद्यालय हैं। उनमें राजस्थान, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तेलंगना में पूर्णकालिक वाइस चांसलर भी नहीं है। राज्यपालों से इस सम्बन्ध में कहा गया है कि वे राज्य सरकारों से बातचीत करके खाली पदों को भरे। एमएचआरडी का प्रस्ताव था कि यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन (यूजीसी) ऐसे नियम जारी करें, जिसमें 10 साल प्रोफेसर रहने, 3 साल प्रशासनिक अनुभव, वैश्विक शोध पत्रिकाओं में शोध पेपर (30 से कम पेपर छपे न हों) और उनके अधीन 10 लोगों ने पीएचडी की हो। राज्यों में यह न्यूनतम योग्यता वाइस चांसलर पद के लिए होनी चाहिए।
मंत्रालय ने सभी राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों को खाली पदों को भरने और उपयुक्त लोगों की नियुक्ति पर ज़ोर दिया है। साथ ही बताया है कि केन्द्र समग्र शिक्षा योजना के तहत राज्यों और केन्द्र शासित क्षेत्रों में अतिरिक्त अध्यापकों की तैनाती में भी मदद करता है जिससे शिष्य-शिक्षक अनुपात न बिगड़े और सेवा के दौरान ही अध्यापकों का प्रशिक्षण हो।
विश्व बैंक की एक रिपोर्ट ‘सही स्कूलों में, सही शिक्षक’ में अध्यापकों की तादाद 2017 में जारी हुई थी। इसमें बताया गया था कि जो अध्यापक स्कूल जाते नहीं थे, वह अपनी जगह उन्हें तैनात कर जाते थे, जिनके पास पढ़ाने की प्रशिक्षण योग्यता भी नहीं थी। वल्र्ड बैंक के इस अध्ययन में बताया गया कि खाली पदों के कारण सभी स्तरों पर छात्रों को ही भारी नुकसान झेलना पड़ेगा। भले वे स्कूल, कॉलेज या फिर किसी विश्वविद्यालय में न हो।