जिस तरह के काम इस कंपनी ने किए थे उन्हें देखते हुए स्वाभाविक तो यह होता कि इसे ब्लैकलिस्ट कर दिया जाता. लेकिन सरकारें इस पर मेहरबान रहीं. मामला इन दिनों बहुचर्चित हाई सिक्योरिटी नंबर प्लेट से जुड़ा है. इसके केंद्र में अंडरवर्ल्ड डॉन बबलू श्रीवास्तव के सहयोगी नितिन शाह की भूमिका मुख्य रूप से सामने आ रही है. शाह हत्या के एक मामले में बबलू के साथ सहआरोपी हैं. इस बड़े व्यापारी पर उत्तर प्रदेश की पूर्व बसपा सरकार की कृपा तो रही ही, केंद्र में कांग्रेसनीत सरकार का रुख भी इसके लिए उदार ही दिखता है.
सरकारों की मेहरबानी शाह पर किस तरह बरसती है इसकी एक मिसाल यह है कि उत्तर प्रदेश में वाहनों पर हाई सिक्योरिटी नंबर प्लेट लगाने का ठेका शाह की कंपनी शिमनित उच इंडिया प्राइवेट लिमिटेड को देने के लिए पूर्ववर्ती बसपा सरकार ने एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया. वह भी तब जब कंपनी ने अपने बारे में सही जानकारी नहीं दी थी और वह इस काम के लिए दूसरे राज्यों की तुलना में कहीं ज्यादा रकम वसूल रही थी. इसके बावजूद तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती की अध्यक्षता में आनन-फानन में बाई सर्कुलेशन जारी करके कंपनी को कैबिनेट से हरी झंडी दे दी गई.
अगर हरियाणा, राजस्थान या अन्य राज्यों में हाई सिक्योरिटी नंबर प्लेट का ठेका लेने वाली कंपनियों की बोली की तुलना करें तो पता चलता है कि शिमनित ने टेंडर के लिए जो कीमत तय की थी वह दूसरे राज्यों की तुलना में कई गुना ज्यादा थी. इसके बावजूद उत्तर प्रदेश सरकार ने इस तथ्य को नजरअंदाज करके शिमनित उच को ठेका देने की कोशिश की. आखिरकार इस मनमानी के विरोध में कोलकाता की कंपनी सेलेक्स टेक्नोलॉजी प्राइवेट लिमिटेड ने इलाहाबाद हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया जिसने टेंडर में खामियां पाते हुए पूरा टेंडर निरस्त कर दिया.
केंद्रीय मोटर गाड़ी नियमावली – 1989 के नियम 50 में मोटर वाहनों में लगने वाले नंबर प्लेट के आकार, रंग और साइज के संबंध में स्पष्ट प्रावधान हैं. अधिकांश राज्यों में यही प्रावधान लागू हैं. साल 2001 में केंद्र सरकार ने इन नियमों में व्यापक फेरबदल किए थे. ऐसा वाहनों की बढ़ती चोरी और आतंकी घटनाओं में चोरी के वाहनों के प्रयोग को देखते हुए किया गया था. इसी बदलाव के तहत तमाम विशिष्टताओं वाली सुरक्षा लाइसेंस प्लेट वाहनों के आगे और पीछे लगाने का नियम भी बनाया गया. इसे हाई सिक्योरिटी रजिस्ट्रेशन प्लेट के नाम से जाना जाता है. देश भर में हाई सिक्योरिटी नंबर प्लेट लगाने के काम में 18 कंपनियां लगी हुई हैं. ये भारत सरकार की ओर से अधिकृत हैं. इन्हीं में से एक कंपनी नितिन शाह की शिमनित उच इंडिया प्राइवेट लिमिटेड भी है.
20 मई, 2011 को बसपा सरकार ने राज्य में हाई सिक्योरिटी नंबर प्लेट की टेंडर की प्रक्रिया शुरू की. इस प्रक्रिया में शिमनित उच इंडिया प्रा. लि. सहित कुल सात कंपनियों ने हिस्सा लिया. एक महीने बाद यानी 20 जून को टेक्निकल बिड सार्वजनिक होनी था. लेकिन अज्ञात कारणवश उस दिन बिड नहीं खोली गई. गड़बड़ी की शुरुआत यहीं से हुई. सरकार ने अगले ही दिन यानी 21 जून को बिड के संबंध में कुछ नई शर्तें जोड़ दीं. इसमें यह शर्त भी थी कि उसी कंपनी का टेंडर वैध माना जाएगा जिसके पास देश के किसी राज्य में हाई सिक्योरिटी नंबर प्लेट लगाने का कम-से-कम एक साल का अनुभव हो. अचानक थोपी गई इस नई शर्त को परिवहन विभाग के अधिकारी सरकार की चाल मानते हैं. विभाग के अधिकारी दबी जुबान में यह भी बताते हैं कि सरकार ने बेहद चालाकी से पहले सारे टेंडर देख लेने के बाद आखिरी समय में यह खेल खेला था. टेक्निकल बिड खोलने की नई तारीख पांच जुलाई घोषित की गई. इस बार भी शिमनित सहित उन्हीं सात कंपनियों ने टेंडर डाला. उसी दिन कंपनी के प्रतिनिधियों के सामने टेंडर खोला गया. टेंडर खुलने पर शिमनित उच इंडिया प्राइवेट लिमिटेड एवं टान्जेज ईस्टर्न सिक्योरिटी टेक्नोलॉजी प्राइवेट लिमिटेड ही सरकार द्वारा लगाई गई शर्त को पूरा कर सकी.
कैबिनेट सचिव शशांक शेखर सिंह ने परिवहन विभाग के प्रमुख अधिकारियों की एक बैठक बुलाकर शिमनित उच को टेंडर आवंटन का लेटर जारी कर दिया
यहां एक नई कहानी सामने आती है. जिन दो कंपनियों ने एक साल के अनुभव की शर्त पूरी की थी उनमें से शिमनित उच तो शाह की कंपनी है पर दूसरी कंपनी टान्जेज ईस्टर्न सिक्योरिटी प्राइवेट लिमिटेड भी कहीं न कहीं शाह से ही जुड़ी हुई पाई गई. बसपा के एक वरिष्ठ नेता का दावा है कि दोनों ही कंपनियां असल में नितिन शाह की हैं. 23 नवंबर, 2011 को निविदा उपसमिति की तकनीकी मूल्यांकन रिपोर्ट प्रस्तुत की गई. इसके मुताबिक मैसर्स टान्जेज ईस्टर्न सिक्योरिटी ने परिवहन आयुक्त गंगटोक, सिक्किम द्वारा जारी प्रमाण दाखिल किया था जिसके मुताबिक यह कंपनी हाई सिक्योरिटी नंबर प्लेट के क्षेत्र में जुलाई, 2009 से कार्य कर रही थी. इसी तरह शिमनित उच ने परिवहन आयुक्त शिलांग, मेघालय द्वारा जारी प्रमाण पत्र पेश किया था जिसके मुताबिक वह 11 अगस्त 2006 से हाई सिक्योरिटी नंबर प्लेट के क्षेत्र में काम कर रही थी. बाद में यह कंपनी नागालैंड में इस क्षेत्र में काम करती रही जिसका कार्यकाल 15 जून, 2011 से शुरू होता था.
टेंडर दाखिल करने की एक अनिवार्यता और भी थी. इसके मुताबिक टेंडर डालने वाली कंपनी के लिए यह जरूरी था कि उसका कोई टेंडर किसी अन्य राज्य में कभी निरस्त न हुआ हो. पर शाह की कंपनी शिमनित उच ने टेंडर फॉर्म में उक्त कॉलम में कोई जानकारी नहीं दी. जबकि दस्तावेज बताते हैं कि उसका टेंडर गोवा, कर्नाटक और राजस्थान में विभिन्न अनियमितताओं के कारण रद्द हो चुका था. सूत्र बताते हैं कि गोवा में सत्तारूढ़ नई भाजपा की सरकार ने तो शाह की कंपनी के खिलाफ आपराधिक मामले की जांच तक शुरू कर दी है. बाद में जब टेंडर कमेटी के सामने जब इस बात का खुलासा हुआ कि शिमनित उच ने फॉर्म में कई तथ्यों को छिपाया है और टेंडर की शर्तों का उल्लंघन किया है तो उसे राज्य के न्याय विभाग की ओर से कारण बताओ नोटिस जारी किया गया. न्याय विभाग ने पूछा कि कर्नाटक एवं गोवा सरकार द्वारा शिमनित उच इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के टेंडर खारिज करने की जानकारी कंपनी ने क्यों छिपाई. उसका यह कृत्य न्याय विभाग के अनुसार धोखाधड़ी के दायरे में आता है.
इसके जवाब में कंपनी ने न्याय विभाग को बताया कि कर्नाटक एवं गोवा सरकार ने हाई सिक्योरिटी नंबर प्लेट लगाने संबंधी करार पर आपत्ति जताई है लेकिन दोनों ही मामले अदालत में विचाराधीन हैं. कंपनी के इस जवाब पर न्याय विभाग ने टिप्पणी की कि कंपनी को स्पष्ट रूप से इसका उल्लेख करना चाहिए था कि किन कारणों से उनके करार पर राज्य सरकारों ने आपत्ति जताई थी और वर्तमान में उनकी विधिक दशा क्या चल रही है. इस लिहाज से कंपनी ने फॉर्म में असत्य कथन किया है. कहने का अर्थ यह है कि न्याय विभाग ने कहीं न कहीं शिमनित उच को दोषी पाया और गलतबयानी के चलते उसका टेंडर निरस्त होना चाहिए था.
पर हैरानी की बात है कि इसी न्याय विभाग ने कुछ ही दिन बाद अपना रुख बिल्कुल बदल लिया. न जाने ऐसी कौन-सी स्थितियां बनीं कि राज्य के प्रमुख सचिव न्याय ने शिमनित के उक्त कृत्य को धोखाधड़ी की गतिविधि मानने से ही इनकार कर दिया. पहले जहां न्याय विभाग ने अपने दस्तावेजों में शिमनित की गतिविधि को गड़बड़ माना था बाद में उसे सही मान लिया और उसे धोखाधड़ी मानने से इनकार कर दिया.
इतनी सारी गड़बड़ियों के बावजूद इस प्रस्ताव को 21 दिसंबर, 2011 को मंत्रिपरिषद के सामने मुख्यमंत्री के आदेशानुसार भेज दिया गया. परिवहन विभाग की ओर से तैयार किए गए अनुमोदन में बताया गया कि निविदा समिति द्वारा टेक्निकल बिड में योग्य पाई गई दो कंपनियों को अब फाइनेंशियल बिड हासिल करनी है. 21 दिसंबर, 2011 को फाइनेंशियल बिड खोली गई. इसमें शिमनित की दरें दूसरी कंपनी से कम पाई गईं. परिवहन विभाग ने मंत्रिमंडल को अवगत कराया कि उनके पास इस कार्य हेतु अन्य राज्यों द्वारा स्वीकृत दरें उपलब्ध नहीं हैं, इस वजह से यह जांचना संभव नहीं है कि शिमनित द्वारा दी गई न्यूनतम दरें उचित हैं या नहीं. गौरतलब है कि उस समय शिमनित उच कंपनी की न्यूनतम निविदा का वेटेड एवरेज 530.17 रु था. जबकि उसी समय तमिलनाडु में शिमनित का एवरेज 102.74 रुपये का था. यानी उसी काम के लिए उत्तर प्रदेश में कंपनी पांच गुना से भी ज्यादा पैसा वसूलना चाहती थी.
हाल ही में जब सपा सरकार ने नए सिरे से ठेका आवंटित करने के लिए कंपनियों की बैठक की तो उसमें शिमनित के प्रतिनिधि भी मौजूद थे
टेंडर समिति ने अपनी संस्तुति में कहा कि परिवहन विभाग पहले अन्य राज्यों में चल रही दरों की सूचना जुटाए और इसके बाद न्यूनतम निविदादाता से मोलभाव करके अंतिम दर तय करे. इन टिप्पणियों को परिवहन मंत्री को दिखाने के बाद मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाली मंत्रिमंडलीय समिति के सामने प्रस्तुत किया गया. समिति ने यह प्रस्ताव परिवहन विभाग के पास यह कहते हुए भेज दिया कि वह सात दिन के भीतर निर्णय लेकर सरकार को बताए.
लेकिन मंत्रिमंडल में एक तरह से शिमनित का टेंडर पास हो जाने के बाद परिवहन विभाग ने अन्य राज्यों से रेट लेने की जहमत तक नहीं उठाई. विभाग के सूत्र बताते हैं कि सरकार के दबाव में 22 दिसंबर को ही कैबिनेट सचिव शशांक शेखर सिंह के सचिवालय स्थित कक्ष में परिवहन विभाग के प्रमुख सचिव सहित कई बड़े अधिकारियों की एक बैठक बुलाई गई. इसके तुरंत बाद शिमनित उच को टेंडर आवंटन का लेटर जारी कर दिया गया. बाई सर्कुलेशन द्वारा जिस प्रस्ताव को पास करके एक सप्ताह का समय सरकार की ओर से दिया गया था उसका भी इंतजार करने की जरूरत नहीं समझी गई. कंपनी की ओर से अंतिम वेटेड एवरेज रेट 425.27 रुपये तय कर दिया गया. कैबिनेट सचिव की बैठक के बाद ही कंपनी को अनुबंध पत्र भी जारी कर दिया दिया.
दिलचस्प बात यह है कि ठेके की इस प्रक्रिया में अब तक जितनी भी कमियां उजागर हुई थीं वे सब मुख्यमंत्री की अगुवाई में हुई कैबिनेट की बैठक में रखी गईं. लेकिन न तो मुख्यमंत्री मायावती और न ही किसी मंत्री ने इस पर कोई आपत्ति दर्ज कराई. जब कोलकाता की कंपनी सेलेक्स टेक्नोलाजी मामला लेकर हाई कोर्ट गई तब अदालत ने ठेका रद्द किया.
हैरानी की बात यह भी है कि शिमनित का ठेका रद्द होने के बाद भी उसे आगे बोली लगाने से रोका नहीं जा सकता. हाल ही में जब समाजवादी पार्टी की सरकार ने नए सिरे से हाई सिक्योरिटी नंबर प्लेट का ठेका आवंटित करने के लिए कंपनियों की बैठक की थी तब उसमें शिमनित के प्रतिनिधि भी मौजूद थे. राज्य के एक बड़े अधिकारी बताते हैं कि शाह इस सरकार में भी अपनी पैठ बनाने के लिए हाथ-पैर मार रहे हैं. वे इसके लिए लखनऊ की यात्रा भी कर चुके हैं. उन्होंने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से मिलने के लिए कई लोगों से संपर्क किया लेकिन सफल नहीं हुए. इस दौरान सपा के एक मंत्री से भी शाह की मुलाकात के चर्चे हैं.
सवाल उठता है कि आखिर इतनी गड़बड़ियों के बावजूद आखिर क्यों शिमनित को ब्लैकलिस्ट नहीं किया जा रहा है. एसोसिएशन ऑफ रजिस्ट्रेशन प्लेट मैनुफैक्चरर्स ऑफ इंडिया के अध्यक्ष रवि सोमानी कहते हैं, ‘शाह पर उत्तर प्रदेश सरकार ही मेहरबान नहीं है बल्कि केंद्र सरकार उसकी सबसे बड़ी ढाल बन गई है. तीन-तीन राज्यों में शाह की कंपनियों का ठेका निरस्त होने के बावजूद उसे केंद्र सरकार ने ब्लैक लिस्ट नहीं किया है. हाई सिक्योरिटी नंबर प्लेट लगाने संबंधी प्रमाणपत्र जारी करने का काम केंद्र सरकार का ही है. राज्यों से इसका कोई लेना-देना नहीं. ऐसे में केंद्र से शिमनित उच को बार-बार क्लीन चिट मिलना केंद्र सरकार की ईमानदारी पर भी सवाल खड़े करता है.’