थोड़ी सी नींद
गुल्लक में जितने सिक्के बच गए हैं
बस उतनी ही तसल्ली की पूंजी है
बाकी की खाली जगह बेचैनियों से भर गई है
यह तय करना मुश्किल है कि
गुल्लक ज़रूरी है या सिक्का
नींद ज़रूरी है या उसमें एक स्वप्न
दूसरी तमाम आवाज़ों के बीच
सिक्के की गूंज सहसा ही कौंधती है
रोज काले पानी जैसी अँधेरी रात में
या सूखी रोटी जैसी दोपहर में
या कोंपल जैसी सुबह में कभी
मुश्किल यह है कि जो देखा हुआ स्वप्न है
वह गुल्लक नहीं है
उसमें सिक्कों जैसी चमक नहीं है
वह धुंधला दिखता है मिट्टी के रंग सा धूसर गऱीब
इन दिनों अकेला और निसहाय है वह स्वप्न
उसके लिए नींद भी अपना दरवाजा बंद कर लेती है।
एक घर
इसके शुरू होने से बनने तक
यातना की एक लंबी श्रृंखला है
कोई इसे कहानी की तरह सुुनाता है
कोई खीझ की तरह
किसी को विजेता की मुद्रा में देखता हूँ
जैसे सब कुछ हार कर जीता गया यह घर
अब बस एक सुकून है उनके चेहरे पर
बस एक शांति
इतने के बाद भी खाली समय में
उन्हें रोना आता है यह सोचकर कि
जिसके लिए बनाया इतना सुंंदर घर
वह यहाँ कभी रहने नहीं आएगा!
कतार में
तमाम जगहें कतारों से भरी हुई हैं
कोई कोना खाली नहीं
हर चेहरा दूसरे से पूछता है कि
और कितनी देर खड़ा रहना पड़ेगा
दिक्कत यह है कि
जो सुबह पर जहां खड़ा था
शाम को भी वह वहीं पर खड़ा मिलता है
चुपचाप अपनी बारी के लिए जगह बनाता हुआ
यह रोज़ की बात है
जिसमें नया कुछ नही है
सामान लुट चुका है आपस में
बंट चुका है भीतर ही भीतर
बाहर बोर्ड टंगा हुआ है खिड़की पर
जिसमें लिखा हुआ है कृपया शांति बनाए रखें
थोड़ी देर में घोषणा होगी कि
आज खत्म हो गया
अब कल मिलेगा सबको उनका हिस्सा
कोई आश्चर्य नहीं कि
कल भी ये कतारें ऐसेे ही खड़ी मिलेंगी।
आसानी से
पोस्टरों में रंग भरे हैं
खाली हो रहे हैं जीवन सेे
रोज परास्त होकर गिरते पत्तों और
नागरिकों में कोई फर्क नहीं है
जो उदासी है जाल की तरह बुनी गई
वह टहनी पर अब भी लगी हुई है
अब भी एक भरोसा उगना चाहता है
जीना चाहता है धूल सेे उठने के बाद
कोई उसे आसानी न दे तो मुश्किल भी न दे
यह कहाँ संभव है संास भी ले ले
हाथ भी ले ले
भाषा ले और आवाज़ भी ले ले
सादे कागज़ पर लगवा ले अूंगठा
और कह दे कि अपना खयाल रखना
लेकिन यही हो रहा है इन दिनों
इस तरह धोखा मिला है
इसी तरह अन्याय
कोई भी गले मिलता है सहानुभूति के लिए
और एक फंदा डाल देता है।
विस्थापन
वे खुशी खुशी नहीं गए छोड़कर
बहुत पहले सेे
उन्हें इसका आभास हो गया था कि
अब वे नहीं रह पाएंगे इस जगह
जहाँ उनके प्राण बसते हैं
जैसे वृक्ष को एक जगह सेे हटाकर
दूसरी जगह रौंपा जाए तो
सूख जाता है वह
जैसे एक नदी का रास्ता मोड़ दिया जाए तो
वह पतली रेखाओं में बदल जाती है
जैसे पंख छीन लिए जाए तो
पक्षी पत्थर में बदल जाते हैं
जैये तारे टूट कर गिरते हैं शोक में
जैसे बिखर जाता है एक बनता हुआ इन्द्रधनुष
ठीक उसी तरह वे पूरा होते होते रह गए
वे कोशिश करते रहे कि जाना टल जाए
पर एक मौका नहीं दिया गया
उन्हें इतना मज़बूर किया गया कि
हँस कर हो या रोकर
उन्हें जाना पड़ा यहाँ से चुपचाप
वे सब कुछ छोड़कर चले गए
तबाह हो गए फल से लदे एक वृक्ष की तरह।
पुकार
अक्सर यही लगता है जैसेे कोई पुकार रहा हो
गूंजती है एक मद्धिम आवाज़
भाप की तरह उठती है और
धुएँ की तरह गुम हो जाती है
इस पृथ्वी पर
वह एक लापता उम्मीद है
बारिश की एक बूंद भर भरोसा
किसी फूल की पंखुडी भर कोमल
कोई बंजारा मन
कोई हारा हुआ बेघर
या कोई स्त्री जो मरना नहीं
जीना चाहती है एक बार
कौंधती है
उसकी वह एक पुकार
बिजली की तरह
अगले पल बुझ जाती है।
सीढिय़ां
जिसने बनाया उसे यही लगा था कि
वह भी ऊपर चढ़ेगा
पर नहीं यह उसके लिए वर्जित था
अब सारी बंदिशें उसी के लिए
सारी रुकावटों और खेद के बीच
वह नींव में पत्थर की तरह
गाड़ दिया गया अंतत:
इतिहास में शीर्ष पर बैठे शासकों के नाम हैं
उनकी सीढिय़ों के बारे में एक शब्द तक नहीं।