एक ओर तो सरकार देश के व्यापारियों को आगे बढ़ाने की बात करती है, वहीं दूसरी ओर व्यापारियों को किसी-न-किसी तरह से परेशान भी करती रहती है। देश के छोटे-बड़े व्यापारियों का कहना है कि कोरोना वायरस के चलते मौज़ूदा समय में व्यापारियों का कारोबार काफ़ी कमज़ोर हालत में है। लेकिन केंद्र सरकार अब आगामी 1 जनवरी, 2022 से 5 से 12 फ़ीसदी जीएसटी बढ़ा रही है। इससे व्यापारियों का कारोबार तो प्रभावित होगा, साथ ही कालाबाज़ारी और कर (टैक्स) चोरी के मामले बढ़ेंगे।
भारतीय उद्योग व्यापार मंडल के राष्ट्रीय अध्यक्ष विजय प्रकाश जैन ने बताया कि 17 सितंबर, 2021 को लखनऊ में जीएसटी परिषद् की बैठक में यह निर्णय लिया गया था कि 1 जनवरी, 2022 से टेक्सटाइल, फुटवियर और स्टेशनरी पर जीएसटी 5 फ़ीसदी से बढ़ाकर 12 फ़ीसदी कर दी जाएगी। विजय प्रकाश जैन कहते हैं कि देश का छोटा-बड़ा व्यापारी सरकार की व्यापार नीतियों के विरोध में आवाज उठा रहा है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण तक पत्र लिखकर बढ़ायी गयी जीएसटी को वापस लेने की माँग कर रहा है। यदि बढ़ायी गयी जीएसटी को वापस नहीं लिया गया, तो सामान और महँगा बिकेगा, जिससे महँगाई भी बढ़ेगी। मौज़ूदा दौर में महँगाई के चलते वैसे ही जनता काफ़ी परेशान है। भारतीय उद्योग मंडल के चेयरमैन बाबू लाल गुप्ता का कहना है कि सरकार अपने तर्क दे रही है। कुछ बड़े व्यापारी की इनपुट अधिक है और आउटपुट कम है। इसलिए बड़े व्यापारियों को देखते हुए जीएसटी बढ़ाया गया है। बाबू लाल गुप्ता का कहना है कि देश में 15 फ़ीसदी बड़े व्यापारियों के चलते छोटे 85 फ़ीसदी व्यापारियों पर जीएसटी थोपना पूरी तरह से ग़लत है। इससे छोटे व्यापारियों के कारोबार पर विपरीत असर पड़ेगा। भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलेगा और कालाबाज़ारी भी बढ़ेगी। इसलिए सरकार को चाहिए कि वह जीएसटी न बढ़ाए, अन्यथा देश का व्यापारी सड़कों पर उतरने को मजबूर होंगा।
व्यापारी मुकंद मिश्रा का कहना है कि सरकार स्टेशनरी तक में जीएसटी थोप रही है, जिससे पढ़ाई-लिखाई का सामान महँगा हो जाएगा। उनका कहना है कि वैसे ही शिक्षा से जुड़ी सामग्री महँगी है। अगर अब जीएसटी के दायरे में स्टेशनरी आ गयी, तो ग़रीब और मध्यम वर्ग के छात्रों को स्टेशनरी ख़रीदना आसान नहीं होगा। सरोजनी नगर मार्केट एसोसिशन दिल्ली के अध्यक्ष अशोक रंधावा कहते हैं कि करेला, और नीम चढ़ा। यानी महँगाई पर महँगाई लाकर ग़रीब जनता को सरकार परेशान करना चाहती है। क्योंकि पहले ही जीएसटी पाँच फ़ीसदी के चलते व्यापारियों को काफ़ी दिक़्क़त का सामना करना पड़ रहा था। अब सात फ़ीसदी का इज़ाफ़ा करने से महँगाई का बढऩा स्वाभाविक है। अशोक रंधावा कहते हैं कि जब होलसेल में माल 12 फ़ीसदी के साथ छोटे व्यापारियों तक आएगा, फिर छोटा व्यापारी अपने मुनाफ़े के साथ बेचेगा, तो जो वस्तु 100 रुपये की होगी, वह 140-150 रुपये की ग्राहक को मिलेगी। इससे व्यापार में तो कमी आएगी, साथ ही ख़रीदार भी काफ़ी कम बाज़ार में आएँगे। यानी एक बार फिर बाज़ार में सन्नाटा छा आएगा। उनका कहना है जिस अंदाज़ में मौज़ूदा सरकार अपनी तानाशाही कर रही है, वो पूरी तरह से ग़लत है। व्यापारी नेता व कपड़ा व्यापारी अशोक कालरा का कहना है कि मौज़ूदा समय में सरकार को न तो जीएसटी थोपना चाहिए, बल्कि व्यापारियों को जो घाटा हुआ है। कोरोना-काल में उनके उबारने पर कार्य करना चाहिए। लेकिन केंद्र की सरकार अपने ख़ज़ाने भरने के लिए टैक्स पर टैक्स बढ़ा रही है। चाँदनी चौक के फुटवियर का काम करने वाले प्रदीप कुमार का कहना है कि कपड़ा और जूता-चप्पल आम लोगों से लेकर अमीरों तक की बुनियादी ज़रूरतें हैं। उनका कहना है कि जबसे कोरोना आया है, तबसे व्यापारिक गतिविधियाँ काफ़ी कमज़ोर हुई हैं। लोगों का रोज़गार गये हैं, जिससे पहले ही बाज़ार में ग्राहक कम हैं। मुरझाये हुए व्यापार पर बढ़ाकर जीएसटी को थोपाना व्यापार को ख़त्म करना है। उनका कहना है कि अगर कोरोना का नया स्वरूप ओमिक्रॉन बढ़ता है, तो स्वाभाविक है कि लोगों में भय बढ़ेगा, जिससे ख़रीदारी न के बराबर होगी। देश के व्यापारियों का कहना है कि जब देश के किसान अपने कृषि क़ानून को वापस करवा सकते हैं, तो देश के व्यापारी क्यों नहीं बढ़े हुए जीएसटी को वापस करवा सकते हैं? देश को सरकार चलाती है; लेकिन व्यापारी भी तो टैक्स देता है। व्यापारियों का कहना है कि सही मायने में अगर सरकार देश का व्यापार नम्बर एक में कराना चाहती है, तो बढ़ाये गये जीएसटी को वापस ले। आर्थिक मामलों के जानकार जयकुमार का कहना है कि सरकार कोरोना-काल में ख़ाली हुए ख़ज़ाने को भरने का प्रयास कर रही है।