हालांकि चुनाव लडऩे और न लडऩे का फैसला पार्टी ही करती है पर मैंने यह तय कर लिया है कि 2019 में लोकसभा चुनाव मैं नहीं लडंूगी। यह घोषणा की भाजपा की वरिष्ठ नेता और केंद्रीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने 20 नवंबर को। 66 साल की लोकप्रिय नेता सुषमा स्वराज मध्यप्रदेश में विदिशा से सांसद है। सदन में वे चैथी बार सांसद बनी। उन्होंने कहा कि पिछले साल से ही स्वास्थ्य कारणों से उनकी परेशानी बढ़ती जा रही थी। पिछले ही साल उनका गुर्दा प्रत्यारोपण हुआ था।
‘डाक्टरों ने मुझेे सलाह दी है कि मैं धूल-धक्कड़ से बचूं। इसी कारण मैं खुले में होने वाले सार्वजनिक कार्यक्रमों में भी भाग नहीं लेती। चुनावी रैलियों में तो मैं और भी नहीं जा सकती। मध्यप्रदेश में दिसंबर को चुनाव हैं और बीस नवंबर को इंदौर में सुषमा स्वराज ने यह घोषणा कर भारतीय जनता पार्टी के तमाम कद्दावर नेताओं को सकते में डाल दिया। उन्होंने कहा,” मैं पिछले आठ साल से लगभग हर महीने ही अपने तमाम विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों में जाती रही हूं। लेकिन अब डाक्टरों की सलाह तो माननी ही चाहिए।
भाजपा भी दूसरी राजनीतिक पार्टियों की तरह ही है। इसमें भी अब जबरदस्त घटकवाद, परिवार मोह, लंैगिक भेदभाव, जातिवाद और क्षेत्रवाद हावी है। सुषमा स्वराज का स्वास्थ्य निश्चय ही चिंता की एक बड़ी वजह है लेकिन पार्टी में बढ़ रहे दोषों को नकारा भी नहीं जा सकता। भारतीय जनता पार्टी की विचारधारा और पार्टी से छात्र जीवन से ही उनका लगाव रहा। उन्हें जब भी जो जिम्मेदारियां सौंपी गई उन्हें निभाने में उन्होंने हमेशा जी-जान का जोर लगा दिया। वे आज पार्टी की वरिष्ठतम विभूतियों में से एक है। हालांकि उनकी वरिष्ठता के अनुरूप पार्टी उन्हें काम दे पाने में संभवत: असमर्थ है।
सुषमा स्वराज भाजपा के नेतृत्व वाली पिछली एनडीए सरकार के मंत्रिमंडल में भी थीं। पार्टी ने जब भी उन्हें बड़ी जिम्मेदारी सौंपी उसे उन्होंने अच्छी तरह निभाया। चाहे पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की बेल्लारी में चुनौती हो या फिर दिल्ली में पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित से मुकाबला।
एक सुलझे हुए राजनेता के तौर पर वे हिंदी में बहुत अच्छा भाषण देती हैं। वे महज 25 साल की उम्र में हरियाणा सरकार में कैबिनेट मंत्री बनी थीं। दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री के रूप में भी वे जानी जाती हैं। उस समय केंद्र में इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थी। वे हरियाणा विधानसभा की दो बार और राज्यसभा में तीन बार सदस्य रही। केंद्र में भाजपा के नेतृत्व में बनी 13 दिन की पहली सरकार में वे सूचना प्रसारण मंत्री बनी। जब 1998 मेंं भाजपा फिर सत्ता में आई तो वे कैबिनेट मंत्री बनी। बतौर दिल्ली की मुख्यमंत्री वे कुछ ही समय रही। सुषमा स्वराज को भाजपा के दिग्गज नेता लालकृष्ण आडवाणी का शिष्य भी माना जाता था। वे लोकसभा में 2009 से 2014 तक विपक्ष की नेता थीं। भाजपा कोई फैसला ले या न ले, लेेकिन सुषमा ने डाक्टरों की सलाह पर 2019 में लोकसभा चुनावों में भाग न लेने का निश्चय किया है। इसके दूरगामी संकेत भी हैं।