भूमंडलीकरण के इस भौतिकवादी दौर में आज जिस तरह से वैश्विक स्तर पर मानवीय मूल्यों में पतन देखा जा रहा है, वह बेहद दु:खद है। लेकिन मानव मूल्यों और मानवता की रक्षा करना ही मानव का पहला धर्म है। ऐसे ही मानव सेवा में लगे लोगों को उचित सम्मान देने के लिए प्रति वर्ष 19 अगस्त को विश्व मानवता दिवस मनाया जाता है। लोगों में मानवता की भावना जगाने के उद्देश्य से आरम्भ किया गया यह महत्त्वपूर्ण दिवस विपरीत परिस्थितियों में जोखिम उठाकर या अपनी जान की बाज़ी लगाकर मानवता की सेवा करने वाले लोगों को समर्पित है।
आज जहाँ मध्य-पूर्व के देश आपसी संघर्ष और भीषण हिंसा से गुज़र रहे हैं, वहीं दक्षिण एशिया में साम्प्रदायिक राजनीति तथा आतंकवाद ने अपनी जड़ें जमा ली है, जिससे दुनिया के कई हिस्सों में करोड़ों लोग परेशान हैं। आतंकवादी हमले कब, कहाँ हो जाएँ, किसी को इसके बारे में कुछ नहीं पता। आज अमेरिका से लेकर ऑस्ट्रेलिया जैसे लोकतांत्रिक देशों तक में नस्लीय हमले अक्सर देखने को मिल जाते हैं। पिछले कुछ वर्षों में पश्चिमी देशों में विश्व को स्तब्ध करने वाली कई हृदयविदारक घटनाएँ घटी हैं। बेहद निराशाजनक बात यह है कि आज विश्व के कई देशों में मानवाधिकारों का गला घोंटा जा रहा है और भेदभावपूर्ण क़ानून बनाये जा रहे हैं।
दु:खद बात यह है कि दुनिया के अलग-अलग देशों में आज भी करोड़ों लोग तानाशाही शासन व्यवस्था के अन्दर जी रहे हैं, जहाँ उन्हें सामान्य नागरिक अधिकार भी प्राप्त नहीं हैं और उनका लगातर शोषण किया जा रहा है। जबकि कुछ देश तो अलग विचारधारा रखने के कारण अपने ही नागरिकों पर बम बरसा रहे हैं या उन पर भयंकर अत्याचार कर रहे हैं। सीरिया, अफ़ग़ानिस्तान, दक्षिण सूडान, लीबिया, कांगो गणराज्य, नाइजीरिया, म्यांमार जैसे देश इसका सटीक उदाहरण हैं, जहाँ मानवता हर पल कराह रही है। इन देशों में हैवानियत का नंगा नाच जारी है और यहाँ आज गृहयुद्ध जैसे हालात हैं। आतंक और हिंसा की डर की वजह से इन देशों के करोड़ों नागरिक आज दूसरे देशों में शरणार्थी की ज़िन्दगी जीने को मजबूर हैं।
यह दु:खद बात है कि दुनिया के कई देशों के नागरिकों को आज भी दो वक़्त का भोजन तक नसीब नहीं हो पा रहा है। कई लोग यहाँ आज भी भूख से मर रहे हैं और ग़रीबी के कुचक्र में गम्भीर रूप से फँसे हैं। कोरोना महामारी ने लोगों के समक्ष कई तरह की गम्भीर मुसीबतें खड़ी कर दी हैं। हालाँकि बहुतेरे सरकारी संस्थान तथा अंतर्राष्ट्रीय संगठन मानवता की सेवा में लगकर स्थिति को बेहतर बनाने में लगे हैं; लेकिन दुनिया के अनुभव हमें यह बताते हैं कि केवल सरकारी मदद और अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के प्रयासों से ऐसी मुसीबतों से पूरी तरह नहीं निपटा जा सकता। हमें इन समस्याओं से निजात पाने के लिए वैश्विक स्तर पर व्यक्तिगत प्रयास करने होंगे, ताकि इस दुनिया को बेहतर बनाया जा सके। आज दुनिया में सैकड़ों क़ानूनों के बावजूद लगातार गम्भीर अपराध घटित हो रहे हैं। हत्या और बलात्कार जैसे संगीन अपराध को आज दुनिया के लगभग हर देश में अंजाम दिया जा रहा है। यह तब है, जब हमारे सभी धार्मिक ग्रन्थ हमें मानवता की सेवा करना सिखाते हैं। आज इंसान अपनों की मदद से ही कतराता है। निजी स्वार्थ मानवता की सेवा पर भारी पड़ता जा रहा है।
आज हर मानव को कबीर दास, गुरु नानक, सन्त रैदास, ज्योतिबा फुले, महात्मा गाँधी, मदर टेरेसा तथा नेल्सन मंडेला जैसी मानवतावादी विभूतियों के जीवन से प्रेरणा लेने की ज़रूरत है।
हमें याद रखना होगा कि हिंसा और युद्ध मानव जीवन की बर्बादी के सबसे बड़े कारण हैं। अहिंसा, प्रेम, दया और मानवता के द्वारा ही हम दुनिया के लोगों की सोच में बदलाव ला सकते हैं और एक दूसरे के प्रति प्यार तथा सम्मान की भावना को बढ़ा सकते हैं। ध्यान रहे कि 19 अगस्त, 2003 में संयुक्त राष्ट्र के विशेष प्रतिनिधि व मानवतावादी सर्जियो विएरा डी. मेलो और उनके 21 सहकर्मियों को इराक़ की राजधानी बग़दाद में एक आतंकवादी हमले में उड़ा दिया गया था। कुछ वर्षबाद इस दिन को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने विश्व मानवता दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया। इस साल यह मिशन 12वें वर्ष में प्रवेश कर गया है। हिंसक संघर्ष, आतंकवाद और गहरी निराशा के इस दौर में यह दिवस हमें बेसहारा तथा ज़रूरतमंद लोगों की सेवा को प्रेरित करता है।
इतिहास हमें सीख देता है कि अहिंसावादी विचारों को अपनाकर ही विश्व में शान्ति स्थापित की जा सकती है। आइए, हम उन लोगों को श्रद्धांजलि दें, जिन्होंने मानव सेवा के लिए बड़े-बड़े जोखिम उठाये और कइयों ने जान तक गँवा दी। साथ ही हम भी मानवता को बचाने का प्रयास करें, तभी सही मायने में विश्व मानवता दिवस सफ़ल होगा।
(लेखक जामिया मिल्लिया इस्लामिया में शोधार्थी हैं।)