देश की सत्ताधारी पार्टी के लोग कहते हैं कि 16 घंटे काम करने वाले प्रधानमंत्री ने भारत की छवि को दुनिया मे शिखर पर पहुँचाया है। लेकिन उन लोगों को ग्लोबल हंगर इंडेक्स (जीएचआई) यानी वैश्विक भूख सूचकांक के आँकड़े देखकर ज़मीनी हक़ीक़त जानने की ज़रूरत है। हम शिखर पर तो ज़रूर पहुँचे; लेकिन तरक़्क़ी के नहीं, बल्कि भुखमरी के। भारत वैश्विक भूख सूचकांक-2021 में 116 देशों की सूची में पिछडक़र 101वें स्थान पर आ गया है; यानी इस सूची में भारत अब पाकिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल से भी पीछे है। इसमें कोई दो-राय नहीं है कि भुखमरी की समस्या का हल केवल किसान की ख़ुशहाली है। क्योंकि खेती आज भारत में ने केवल सबसे ज़्यादा रोज़गार देने वाला क्षेत्र है, बल्कि देश को भूख से बचाने वाला क्षेत्र भी है। यह लिखने में मुझे कोई गुरेज़ नहीं है कि खेती और किसान की ख़ुशहाली में ही भारत की तरक़्क़ी छुपी है। इसलिए सरकार को इस क्षेत्र पर विशेष ध्यान देते हुए ख़ास क़दम उठाने की ज़रूरत है।
सत्तारूढ़ दल ने कई बार कहा है कि हवाई चप्पल पहनने वाला ग़रीब भी हवाई जहाज़ से चलेगा। काला धन आयेगा। विकास होगा। स्मार्ट सिटी और स्मार्ट गाँव बनेंगे। हर साल दो करोड़ रोज़गार मुहैया कराये जाएँगे। हर खाते में 15-15 लाख आएँगे। हर देशवासी के पास अपना मकान होगा। अब यह सब सुनकर और याद कर अपना ही सिर के बाल नोचने को मन करता है। यह बात एक ऐसे व्यक्ति ने कही, जिसकी नौकरी पिछले लॉकडाउन में चली गयी थी और वह आज गाँव में मज़दूरी करने को मजबूर है।
यह समस्या किसी एक व्यक्ति की नहीं है, बल्कि उन लाखों लोगों की है, जो बेरोज़गार हो चुके हैं। अह हम केवल महँगाई से परेशान ही नहीं, बल्कि पिछले सात साल में भुखमरी के उस कगार पर पहुँच गये हैं, जहाँ अगर इसी तरह हम पीछे खिसकते रहे तो भविष्य में हमारी गिनती ग़रीब देशों में हो सकती है। पिछले दो साल में कितने ही परिवार भूख और ग़रीबी के चलते आत्महत्या जैसा दु:खदायी क़दम उठा चुके हैं। सरकार को इन सब चीज़ें से यह स्कीकार करना चाहिए कि देश में बेरोज़गारी, ग़रीबी के साथ-साथ भुखमरी भी तेज़ी से बढ़ रही है। इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि ग्लोबल हंगर इंडेक्स यानी वैश्विक भुखमरी सूचकांक की सन् 2014 की रिपोर्ट जब मोदी सरकार सत्ता में आ चुकी थी और उसके शासन के लगभग पाँच महीने बीत चुके थे, तब भी 120 विकासशील देशों में भारत का भुखमरी में 55वाँ स्थान था।
मोदी सरकार के छ: साल बाद यानी सन् 2020 में भारत 107 देशों में 94वें स्थान पर खिसक गया। यानी इन छ: साल में भारत में भुखमरी दोगुने स्तर पर पहुँच गयी थी; और अब मोदी सरकार के क़रीब सात साल के शासन के बाद वैश्विक भूखमरी सूचकांक-2021 की रिपोर्ट हमारे सामने है, जिसमें भारत को 116 देशों में 101वें स्थान पर भुखमरी के मामले में पहुँच चुका है। अगर ऐसे ही तानाशाही रवैये से उद्योगधन्धों को चौपट करके, उन्हें गिरवी रखकर सरकार ने शासन किया, तो अगले साल हम दुनिया के सबसे ज़्यादा भूखे देश के निवासी कहलाएँगे। सबसे दु:खदायी और शर्मनाक बात यह है कि भारत अपने छोटे-छोटे पिछड़े माने जाने वाले पड़ोसी देशों पाकिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल से भी पीछे चला गया है।
सात साल पहले जो देश भारत की दया पर निर्भर हुआ करते थे, आज वो हमसे बेहतर स्थिति में कैसे पहुँचे? यह बात वे सब लोग जानते हैं, जिन्होंने सरकार की गतिविधियों और कामों की भलीभाँति समीक्षा की है। मैं वर्तमान सरकार से पूछना चाहता हूँ कि जैसा कि वह विज्ञापनों में दावा करती है कि उसने देश को विकास की नयी ऊँचाइयाँ दी हैं। अगर ऐसा है, तो फिर देश ग़रीबी, भुखमरी, बेरोज़गारी, महँगाई और तनाव की तरफ़ क्यों जा रहा है? हर साल सैकड़ों लोग आत्महत्या क्यों कर रहे हैं? अपराधों में लगातार बढ़ोतरी क्यों हो रही है? क्यों लोग सडक़ों पर हैं? हर क्षेत्र में मंदी क्यों है? सवाल तो और भी बहुत हैं; लेकिन यहाँ सबसे पहला सवाल रोटी का है। क्योंकि यह इंसानों की ही नहीं, दुनिया के हर प्राणी की पहली मूलभूत ज़रूरत है। अगर भोजन नहीं मिलेगा, जो जीवन नहीं बचेगा। ऐसे में करोड़ों लोग अगर आज भारत में भूख से तड़प रहे हैं, तो इसकी ज़िम्मेदारी किसकी है?
पिछले दिनों सरकार ने प्रधानमंत्री का बड़ा-सा फोटो लगे हुए 15 किलो के बोरे पर मोटे-मोटे अक्षरों में प्रचार के मक़सद से कुछ शब्द लिखकर महज़ पाँच किलो गेहूँ देकर अपनी पीठ जमकर थपथपायी थी। जिस पर लोगों ने सरकार की खिंचाई और निंदा भी की थी। उसके ठीक दो महीने के बाद ही वैश्विक भुखमरी सूचकांक-2021 की रिपोर्ट हमारे सामने आती है, जिसमें सरकार के उस सारे झूठ पर से परदा हट जाता है, जिसमें सरकार हर ग़रीब को भरपूर राशन देने का दावा करती है।
वैश्विक भुखमरी सूचकांक में भारत की बेहद ख़राब श्रेणी (रैकिंग) के बाद भारत सरकार कहती है कि रैंकिंग के लिए इस्तेमाल की गयी पद्धति अवैज्ञानिक है। मतलब अगर अख़बारों में तारीफ़ों के पुल वाली रिपोर्ट छपती हैं, तो वो सही हैं; लेकिन अगर कोई ख़बर ऐसी आती है, जिससे सरकार की बखिया उधड़ती है, तो वह ग़लत। जबकि वैश्विक भुखमरी सूचकांक की रिपोर्ट कई दशक से लगातार बिना किसी सरकार के हस्तक्षेप के आती है। यानी जब 2014 से पहले देश में ग़रीबी, भुखमरी और बेरोज़गारी के आँकड़ों पर सियापा पीटा जाता था, तो वह ठीक था और आज वही समस्याएँ और विकराल हो चुकी हैं तथा महिमामण्डन वाले विज्ञापनों और दावों का भाँडा फूट रहा है, तो रिपोट्र्स ग़लत हैं।
ग़ौरतलब है कि भारत का वैश्विक भुखमरी सूचकांक का स्कोर (गणना) सन् 2000 में 38.8 था, जो 2021 में 27.5 पाया गया। बता दें कि वैश्विक भुखमरी सूचकांक की गणना के लिए चार पैरामीटर पर नज़र रखी जाती है, जिसमें कुपोषण, बच्चों की वृद्धि दर, अल्पपोषण और बाल मृत्यु से जुड़े आँकड़ें लिये जाते हैं। इस बार की रिपोर्ट में चीन, ब्राजील और क़ुवैत सहित 18 देशों ने पाँच से कम स्तर यानी वैश्विक भुखमरी सूचकांक स्कोर हासिल किया है और भुखमरी से लडऩे में शीर्ष स्थानों पर रहे हैं। वैश्विक भुखमरी सूचकांक की रिपोर्ट के अनुसार, भुखमरी के ख़िलाफ़ पूरी दुनिया की लड़ाई को ख़तरनाक तरीक़े से झटका लगा है। मौज़ूदा समय में अनुमानों के आधार पर कहा जा रहा है कि दुनिया और ख़ासतौर पर 47 देश 2030 तक निम्न स्तर की भूख को प्राप्त करने में समर्थ नहीं होंगे।
हालाँकि भारत सरकार ने इस रिपोर्ट पर सफ़ार्इ दी है। केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने तीखी प्रतिक्रिया की है कि यह चौंकाने वाला है कि वैश्विक भुखमरी सूचकांक-2021 ने कुपोषित आबादी के अनुपात पर एफएओ के अनुमान के आधार पर भारत के रैंक को कम कर दिया है, जो ज़मीनी वास्तविकता और तथ्यों से रहित और गम्भीर कार्यप्रणाली मुद्दों से ग्रस्त है।
मंत्रालय का कहना है कि इस रिपोर्ट की प्रकाशन एजेंसियों, कंसर्न वल्र्डवाइड और वेल्ट हंगरहिल्फ ने रिपोर्ट जारी करने से पहले उचित मेहनत नहीं की है। मंत्रालय ने दावा किया है कि एफएओ द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली कार्यप्रणाली अवैज्ञानिक है। मंत्रालय ने यह भी कहा है कि हंगर इंडेक्स ने चार प्रश्न के एक जनमत सर्वेक्षण के परिणामों पर अपना मूल्यांकन पेश किया है, जो गैलप द्वारा टेलीफोन पर किया गया था। इस अवधि के दौरान प्रति व्यक्ति खाद्यान्न की उपलब्धता जैसे अल्पपोषण को मापने के लिए कोई वैज्ञानिक पद्धति नहीं है। उसका कहना है कि अल्पपोषण का वैज्ञानिक माप करने के लिए लोगों के वज़न और ऊँचाई के माप की आवश्यकता होती है, जबकि यहाँ शामिल पद्धति में पूरी तरह से टेलीफोन पर लिये आँकड़ों के अनुमान को आधार बनाया गया है।
मंत्रालय ने कहा है कि रिपोर्ट में कोरोना वायरस की अवधि के दौरान पूरी आबादी की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सरकार के बड़े पैमाने पर प्रयासों की पूरी तरह से अनदेखी की गयी है, जिस पर सत्यापन योग्य विवरण उपलब्ध है। कुल मिलाकर यह सफ़ार्इ देने वाली बात है; क्योंकि वैश्विक भुखमरी सूचकांक की रिपोर्ट पहले भी आती रही हैं। मोदी सरकार में हर साल भुखमरी की रिपोर्ट जारी हुई है। जिसे इससे पहले कभी न इस सरकार ने ग़लत बताया और न किसी सरकार ने ग़लत ठहराया, तो फिर आज यह रिपोर्ट ग़लत कैसे हो गयी? जबकि साफ़ दिख रहा है कि देश में समस्याएँ बढ़ती जा रही हैं। मसलन देश में पिछले सात साल में न केवल ग़रीबी बढ़ी है, बल्कि बेरोज़गारी, महँगाई बढ़ी भी है। देश की अर्थ-व्यवस्था कमज़ोर हुई है। सवाल यह है कि सरकार आख़िर कौन-कौन से आँकड़े झुठलाती रहेगी? सही तो यही होगा कि उसे अपनी ग़लतियों और कमियों को स्वीकार करते हुए उनमें सुधार करना चाहिए।
बहरहाल सरकार कोई ऐसा एक काम बताने में आज नाकाम है, जिसमें लोग ख़ुश हुए हों। ख़ुद भाजपा के कई नेता भी अन्दरख़ाने अपनी सरकार से नाख़ुश दिखने लगे हैं। हमारे देहात में एक कहावत है कि अच्छा आदमी वह होता है, जिसकी ज़्यादा लोग तारीफ़ करें और बुरा वह जिसकी ज़्यादा लोग बुराई करें। यहाँ सरकार को इसी से अंदाज़ा लगा लेना चाहिए कि उसके काम अच्छे हैं या ख़राब? वैश्विक भुखमरी सूचकांक की रिपोर्ट पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने इसके लिए प्रधानमंत्री को सीधे तौर पर ज़िम्मेदार ठहराते हुए उन पर निशाना साधते हुए ट्वीट किया है कि ‘ग़रीबी और भूख मिटाने के लिए भारत को एक विश्व शक्ति बनाने के लिए हमारी डिजिटल अर्थ-व्यवस्था के लिए मोदी जी को धन्यवाद! वैश्विक भुखमरी सूचकांक में हम साल 2020 में 94वें स्थान पर थे और 2021 में हम 101 वें स्थान पर पहुँच गये हैं।’
दरअसल यह कोई छोटा तंज़ नहीं है। प्रधानमंत्री को लोगों के सामने आकर इसके लिए स्पष्टीकरण देना चाहिए और सुधार के लिए ज़मीनी स्तर पर नये सिरे से काम करने का संकल्प करना चाहिए। वैश्विक भुखमरी की रिपोर्ट की आलोचना करना और इसे भारत विरोधी अंतरराष्ट्रीय साज़िश का हिस्सा बताना बहुत आसान है; लेकिन आईना दिखाने वाली इस हक़ीक़त के प्रति शुतुर्गमुर्ग़ वाला रवैया अपनाने के बजाय इससे सबक़ लेकर व्यवस्था में आवश्यक और अपेक्षित सुधार करने की दिशा में आगे बढ़ा जाए, तो तस्वीर बदली ही नहीं जा सकती, बल्कि पूरी तरह पलटी भी जा सकती है। यहाँ मशहूर शायर वसीम बरेलवी का एक शेर मुझे याद आता है :-
‘आसमाँ इतनी बुलंदी पे जो इतराता है। भूल जाता है ज़मीं से ही नज़र आता है।।’
(लेखक दैनिक भास्कर के राजनीतिक संपादक हैं।)