दूध के नाम पर बिक रहा ज़हर
स्तनधारियों में जन्म के समय हर बच्चे का आहार दूध ही होता है। इंसानों में बुढ़ापे तक सेहत के लिए दूध एक उपयोगी तरल माना गया है। दूध के महत्त्व और इसके फ़ायदों के प्रति लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से हर साल 01 जून को विश्व दुग्ध दिवस और हर साल 26 नवंबर को राष्ट्रीय दुग्ध दिवस मनाया जाता है।
26 नवंबर को श्वेत क्रान्ति के जनक कहे जाने वाले डॉ. वर्गीज कुरियन की जयंती होती है, जबकि 01 जून, 2001 को स्थापना खाद्य और कृषि संगठन द्वारा विश्व दुग्ध दिवस मनाने की शुरुआत की गयी थी। इस साल यानी 2023 की विश्व दुग्ध दिवस पर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की थीम ‘हेल्थ फॉर ऑल’ है। साल 2022 में विश्व दुग्ध दिवस पर डब्ल्यूएचओ की थीम ‘जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को डेयरी क्षेत्र में कम करना’ थी, जिसका मुख्य लक्ष्य ‘डेयरी नेट जीरो’ को पूरा करना था।
भारत दुनिया का सबसे बड़ा दूग्ध उत्पादक देश है। इसके बाद भी यहाँ मिलावटी और नक़ली दूध की भरमार है। पूरी दुनिया का 23 से 24 प्रतिशत दूध भारत में पैदा होता है। वित्त वर्ष 1950-51 में भारत में 17 मीट्रिक टन दूध होता था, जो वित्त वर्ष 2020-21 में बढक़र 209.96 मीट्रिक टन हो चुका था। दुग्ध उत्पादन में सबसे बड़ी बाधा पशुओं को होने वाले रोग हैं। पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम (एनएडीसीपी) के तहत एफएमडी और ब्रूसेलोसिस के ख़िलाफ़ जनवरी, 2023 तक भारत के 20.77 करोड़ पशुओं का टीकाकरण हो चुका था। भारत में दुग्ध उत्पादन श्वेत क्रान्ति के बाद तेज़ी से बढ़ा। सन् 1970 में राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी) ने ऑपरेशन फ्लड के ज़रिये ग्रामीण विकास कार्यक्रम शुरू किया, जिसका काफ़ी असर हुआ। फरवरी, 2014 के बाद से दुनिया भर में केंद्र सरकार ने ‘राष्ट्रीय डेयरी विकास कार्यक्रम (एनपीडीडी)’ नामक केंद्रीय योजना का क्रियान्वयन किया। इसमें जुलाई, 2021 में इस योजना को संशोधित किया गया था, जिसे 1790 करोड़ रुपये के बजट से वित्त वर्ष 2021-22 से वित्त वर्ष 2025-26 में कार्यान्वित किया जाएगा। पशुपालन अवसंरचना विकास कोष के तहत कुल 213 परियोजनाएँ स्थापित की गयी हैं।
भारत में वित्त वर्ष 2021-22 में कुल दुग्ध उत्पादन 5.29 प्रतिशत बढ़ोतरी के साथ 221.06 मिलियन टन पर पहुँच गया था। इसमें राजस्थान 15.05 प्रतिशत दुग्ध उत्पादन के साथ सबसे आगे है। इसके बाद दूसरे स्थान पर 14.93 प्रतिशत दुग्ध उत्पादन के साथ उत्तर प्रदेश दूसरे, 8.06 प्रतिशत दुग्ध उत्पादन के साथ मध्य प्रदेश तीसरे और 7.56 प्रतिशत दुग्ध उत्पादन के साथ गुजरात चौथे स्थान पर है।
इतना दूध भारत में भले ही होता है; लेकिन दुग्ध उत्पादों को बनाने और 140 करोड़ से ज़्यादा आबादी की पूर्ति के लिए अभी बहुत कम है। भारत में बराबरी का बँटवारा करने पर हर इंसान के हिस्से में एक दिन में महज़ 394 ग्राम ही दूध आएगा। लेकिन इसमें भी असमानता का पैमाना बहुत बड़ा है। क़रीब 40 प्रतिशत आबादी को यहाँ दूध पीने को नहीं मिलता है। सन् 2021 की अपेक्षा सन् 2022 में भारत का दुग्ध उत्पादन तीन प्रतिशत बढ़ोतरी का अनुमान लगाया गया है, जिसका आकलन अभी तक नहीं किया गया है कि कितना दूध 2022 में भारत में उत्पादन हुआ। लेकिन एफएएस ने 2022 में भारत में दूध की खपत का अनुमान 6,94,000 मीट्रिक टन होने का लगाया है, जो यूएसडीए के 2021 के पहले के आधिकारिक अनुमान 6,80,000 मीट्रिक टन से 2.5 प्रतिशत ज़्यादा है। यह खपत दुग्ध उत्पादन से क़रीब तीन गुनी ज़्यादा है। इसका मतलब देश में दो-तिहाई दूध नक़ली और मिलावटी है। यानी दो-तिहाई लोग दूध नहीं, बल्कि ज़हर पी रहे हैं। आज देश का कोई ऐसा शहर नहीं है, जहाँ मिलावटी या नक़ली दूध न बिकता हो।
सिंथेटिक दूध का निर्माण ग्लूकोज, यूरिया, रिफाइंड तेल, दूध पाउडर, केमिकल और पानी मिलाकर बनाया जाता है। इसमें हाइड्रोजन पेरोक्साइड सहित अन्य रसायनों का इस्तेमाल किया जाता है। दूध के अलावा सिंथेटिक पनीर, सिंथेटिक मक्खन, सिंथेटिक घी, सिंथेटिक, छाछ, सिंथेटिक दही, सिंथेटिक खोया, सिंथेटिक आइसक्रीम आदि की भी धड़ल्ले से बिक्री हो रही है। बड़े शहरों के आसपास के इलाक़ों में दूध के ये नक़ली उत्पाद सबसे ज़्यादा बिकते हैं। ये कारोबार सरकारों और भारतीय खाद्य निगम की लापरवाही से तो फल-फूल ही रहा है, स्थानीय प्रशासन और पुलिस की मिलीभगत से भी फल-फूल रहा है। बिना गाय-भैंस पाले, बिना चारे आदि का ख़र्चा किये महज़ 10 मिनट में नक़ली और मिलावटी दूध बनाने वाले गाय-भैंस पालने वालों से 10 गुना ज़्यादा मुनाफ़ा कमाते हैं। यही वजह है कि मिलावटी और नक़ली दूध बनाने वालों की संख्या देश में तेज़ी से बढ़ रही है।
नक़ली दूध या तो अधिक सफ़ेद या अधिक पीला होता है। हथेली पर रगडऩे पर इसमें झाग नहीं होते और अधिक क्षारीय, अधिक फैट वाला, सॉलिड फैट वाला होता है। हल्का-सा गर्म करने पर इसमें रिफाइंड की पीली बूँदें उभर आती हैं, जबकि असली दूध को काफ़ी गर्म करने पर घी की सफ़ेद बूँदे दिखती हैं।
हाल ही में भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) ने नक़ली दुग्ध और दुग्ध उत्पादों पर सख़्त कार्रवाई करने का मन बनाया है। एफएसएसएआई इसके लिए देशव्यापी अभियान शुरू करेगा। इसकी मुख्य वजह नक़ली और मिलावटी दूध से लोगों की ख़राब होती सेहत है। बता दें सिंथेटिक दूध से किडनी, लीवर सम्बन्धी बीमारियों के अलावा शरीर में अन्य कई बीमारियाँ लग सकती हैं, क्योंकि यह दूध शरीर में टॉक्सिन की मात्रा बढ़ा देता है। नक़ली दूध के अलावा देश में डेयरी फार्मों में गायों और भैंसों से दूध लेने के लिए ऑक्सीटोसिन इंजेक्शन लगाया जाता है, जो सेहत के लिए बहुत ही घातक है। यह इंजेक्शन शरीर को फुलाने और कोशिकाओं में कैंसर पैदा करने तक की ताक़त रखता है।
नक़ली और मिलावटी दूध की सप्लाई रोकना आसान नहीं है; लेकिन अगर प्रयास किये जाएँ, तो इसे दो-चार साल में पूरी तरह बन्द कराया जा सकता है। लेकिन इसके लिए देश और राज्य की सरकारों, भारतीय खाद्य निगम, भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण, राज्य खाद्य निगमों, पुलिस और हर ज़िला प्रशासन को सख्ती से पेश आना होगा।
हर साल होली और दीपावली पर हज़ारों टन नक़ली खोया और नक़ली पनीर पकड़ा जाता है। लेकिन इसकी कालाबाज़ारी कम होने के बजाय लगातार बढ़ रही है। इसे ध्यान में रखते हुए नक़ली दूध और नक़ली दुग्ध उत्पादकों के ख़िलाफ़ और सख्ती से पेश आने की ज़रूरत है, तभी विश्व दुग्ध दिवस की इस साल की थीम ‘हेल्थ फॉर ऑल’ का सपना साकार हो सकेगा।