बेमौत मार रहा यह धीमा ज़हर
बार-बार सरकारी ऐलानों के बावजूद तंबाकू पर आज तक प्रतिबंध नहीं लगाया जा सका है। तंबाकू एक ऐसी नशीली चीज़ है, जिसका सेवन करने वालों की लत मुश्किल से ही छूटती है। भारत में तंबाकू और तंबाकू युक्त धूम्रपान की वजह से हर साल क़रीब 13.5 लाख लोग असमय मौत की नींद सो जाते हैं।
तंबाकू सेवन करने वालों को समझ लेना चाहिए कि तंबाकू से 40 तरह के कैंसर होते हैं और 25 तरह की बीमारियाँ होती हैं। इसी के चलते समाजसेवी संगठनों और चिकित्सकों ने केंद्र सरकार से 2023-24 के बजट में तंबाकू उत्पादों पर उत्पाद शुल्क बढ़ाने की अपील की थी। विश्व स्वास्थ संगठन भी तंबाकू उत्पादों पर कम से कम 75 प्रतिशत शुल्क लगाने की सिफ़ारिश करता है। वर्तमान में तंबाकू उत्पादों पर जीएसटी, उपकर, केंद्रीय उत्पाद शुल्क और नॉन कन्वर्टिबल डिबेंचर (एनसीडी) सब कुछ मिलाकर कुल उत्पाद और बिक्री बोझ ग्राहकों पर 22 से 64 प्रतिशत के अंदर ही पड़ता है। इसमें यह बोझ सिगरेट पर 52.7 प्रतिशत, बीड़ी पर कुल 22 प्रतिशत और खाने वाली तंबाकू पर 63.8 प्रतिशत पड़ता है। कुछ साल पहले सरकार ने ऐलान किया था कि सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान करने वालों का चालान कटेगा; लेकिन आज भी सार्वजनिक स्थानों पर लोग धूम्रपान करते मिल जाते हैं और उनका कुछ नहीं होता।
कहा जाता है कि धूम्रपान करने वाले से न करने वाले को ज़्यादा नुक़सान होता है, क्योंकि हवा में घुलता धुआँ धूम्रपान न करने वाले की श्वांस के माध्यम से उसे नुक़सान पहुँचाता है। इसलिए पुलिस को चाहिए कि वह सरकार द्वारा चालान के आधार पर सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान करने वालों के चालान काटे, ताकि इस तरह भी कुछ हद तक तंबाकू के सेवन पर रोक लग सके। हर साल 31 मई को विश्व तंबाकू निषेध दिवस मनाया जाता है। सन् 2022 में विश्व तंबाकू निषेध दिवस के अवसर पर विश्व स्वास्थ्य संगठन की थीम ‘पर्यावरण की सुरक्षा करें’ थी। अब 2023 में विश्व स्वास्थ्य संगठन की थीम ‘तंबाकू और फेफड़े का स्वास्थ्य’ है। यानी इस बार लोगों को उनके फेफड़ों के स्वास्थ्य और फेफड़ों पर तंबाकू के नकारात्मक प्रभाव के प्रति जागरूक किया जाना है।
रिपोट्र्स के मुताबिक, भारत में तंबाकू सेवन से पिछले 30 साल में 58.9 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। सन् 1990 में छ: लाख लोगों की जान इसी तंबाकू ने ले ली। लेकिन सन् 2019 में 10 लाख लोग भारत में तंबाकू से मरे थे। लेकिन अगर सन् 2021 के अंतरराष्ट्रीय जर्नल लैंसेट के आँकड़ों की बात करें, तो अब भारत में हर साल तंबाकू उत्पादों के सेवन के चलते क़रीब 13.5 लाख लोगों की मौत हो जाती है। ग्लोबल एडल्ट टोबेको सर्वे इंडिया की 2016-17 की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में लगभग 26.7 करोड़ यानी 29 प्रतिशत वयस्क तंबाकू उत्पादों का सेवन करते हैं। वहीं 12 प्रतिशत के लगभग नाबालिग़ तंबाकू सेवन के जाल में फँस चुके हैं। वहीं पूरी दुनिया में 15 साल से ऊपर के क़रीब 32.7 प्रतिशत पुरुष करते हैं, जबकि 6.62 प्रतिशत महिलाएँ तंबाकू उत्पादों का सेवन करती हैं। सन् 2019 में पूरी दुनिया में क़रीब 76.9 लाख लोगों की मौत हुई थी। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी तंबाकू टैक्स मैन्युअल के मुताबिक, तंबाकू उत्पादों के इस्तेमाल से हर साल दुनिया को क़रीब 1,40,000 करोड़ डॉलर यानी क़रीब 113.4 लाख करोड़ रुपये का नुक़सान हो रहा है।
कुछ समाज सुधार संगठनों और डॉक्टरों की सिफ़ारिश पर केंद्र सरकार ने तंबाकू उत्पादों के उपभोग की आयु सीमा को 18 साल से बढ़ाकर 21 साल करने का प्रस्ताव रखा है; लेकिन अभी तक इस तरह का क़ानून नहीं बना है। अगर विवाह की उम्र तय करने की तरह इसके लिए भी क़ानून बने, तो इससे भी तंबाकू सेवन करने वालों की संख्या कम हो सकती है; लेकिन ऐसा नहीं हो सका है। इसके साथ-साथ कम उम्र में तंबाकू उत्पादों की लत लगाने वाले बच्चों को रोकना तब तक संभव नहीं होगा, जब तक उनके माँ-बाप और शिक्षक उनकी ज़िन्दगी में तंबाकू सेवन से होने वाले नुक़सानों के प्रति जागरूक नहीं करेंगे। इसके साथ ही सभी देशों को वायु प्रदूषण को ध्यान में रखते हुए तंबाकू नियंत्रण पर डब्ल्यूएचओ ढाँचागत संधि (एफसीटीसी) को ध्यान में रखना होगा, जिसका आज तक पालन नहीं हुआ। विश्व स्वास्थ्य संगठन की उपस्थिति में हुई यह दुनिया की पहली संधि है, जिसका पालन करने में दुनिया के तक़रीबन सभी देश नाकाम रहे हैं। तंबाकू उत्पादों की बिक्री कम करने के लिए सरकारों को नशा तस्करों पर रोक लगानी चाहिए, जो कि तक़रीबन नामुमकिन हो चुकी है। आज तंबाकू उत्पादों का धड़ल्ले से उत्पादन भी हो रहा है और उनकी लत लगाने के लिए पैसे बटोरने की अपनी हवस के चलते कई अभिनेता पर्याप्त भूमिका निभा रहे हैं।
इसके अतिरिक्त तंबाकू उत्पादों पर चेतावनी होने के बावजूद उनका सेवन करने वालों को भी समझ होनी चाहिए कि जब इतने बड़े हिस्से पर बहुत गंदी सी कैंसर की तस्वीर तंबाकू उत्पादों के पैकेटों पर छपी होती है, इसके अलावा साफ-साफ लिखा होता है कि तंबाकू सेवन / धूम्रपान करने से कैंसर हो सकता है। इसके बावजूद उपभोक्ता नहीं मानते और लगातार तंबाकू उत्पादों का सेवन करते हैं। राष्ट्रीय तंबाकू नियंत्रण कार्यक्रम (एनटीसीपी) के तहत भारत की केंद्र सरकार ने साल 2007 में कई नियमों के तहत कुछ कार्यक्रम शुरू किए थे, ताकि तंबाकू उत्पादों के सेवन करने वालों की संख्या घटे, लेकिन नहीं घटी।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
दिल्ली-एनसीआर में पाँच नशामुक्ति केंद्र चलाने वाले शांतिरत्न फाउंडेशन के अध्यक्ष इंद्रजीत सिंह कहते हैं कि देश भर में तंबाकू उत्पादों का सेवन धड़ल्ले से होता है। धीरे-धीरे लोगों को तंबाकू उत्पादों की लत लग जाती है। लेकिन तंबाकू सेवन करने वाले यह नहीं समझते कि वे अपने शारीरिक नुक़सान के साथ-साथ एक बड़ा आर्थिक नुक़सान भी कर रहे हैं। मैं और कुछ अन्य लोग नशामुक्ति अभियान चलाते हैं; लेकिन माफ़िया और नशा उत्पादकों को यह बात नागवार गुज़रती है। कई परिवार भी शराब, सिगरेट और तंबाकू पीने को उतना बुरा नहीं मानते; लेकिन वे भूल जाते हैं कि इसके घातक परिणाम आख़िरकार उन्हें ही भुगतने होते हैं।