लगातार घट रहा पानी
पानी के बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। इसलिए कहा गया है कि जल ही जीवन है। लेकिन धरती पर जिस तरह से पानी की कमी हो रही है और पीने योग्य पानी लोगों द्वारा दूषित और बर्बाद किया जा रहा है, उससे ऐसा लगता है कि पानी के लिए तीसरे विश्व युद्ध के होने की सम्भावना सही हो सकती है। जिस तरह से पानी की कमी दुनिया में हो रही है, उससे लगता है कि आने वाले 50-60 वर्षों में दुनिया के कई इलाक़ों में पानी की कमी हो जाएगी। इन दिनों दुनिया के कई देशों में पानी का संकट मँडरा रहा है।
पानी की बढ़ती कमी की चिन्ता में ही ब्राजील में रियो डी जेनेरियो में सन् 1992 में पर्यावरण तथा विकास का संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन आयोजित हुआ था। इस आयोजन में पहली बार इस बात को महसूस किया गया कि जल संरक्षण ज़रूरी है और तब विश्व जल दिवस मनाने की पहल की गयी। इसके बाद संयुक्त राष्ट्र ने सन् 1993 में एक 22 मार्च को विश्व जल दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया। इस कार्यक्रम का उद्देश्य लोगों को जल संरक्षण और पीने योग्य साफ़ पानी के महत्त्व को बताना था।
तीन दशक से मनाये जा रहे विश्व जल दिवस के बावजूद पानी की बढ़ती कमी यह बताती है कि अभी भी लोग पानी की बर्बादी और लगातार होती कमी को लेकर चिन्तित नहीं हैं। हर साल पूरी दुनिया में सरकारें और कई सरकारी व निजी संगठन पानी की लगातार होती कमी का रोना रोते रहते हैं; लेकिन इसके बावजूद किसी के द्वारा पानी बचाने और उसे स्वच्छ रखने की कोई ख़ास योजना नहीं है। लोगों में पानी को लेकर जागरूकता की इतनी कमी है कि भारत जैसे देश में लोग पानी की बर्बादी करने में सबसे आगे हैं। पानी गंदा करने में भारतीय अग्रिम पंक्ति में हैं।
सबसे ज़्यादा प्राकृतिक पानी के स्रोत भारत में हैं, बावजूद इसके पानी का सबसे ज़्यादा दुरुपयोग यहीं होता है। लेकिन हम ये भूल रहे हैं कि देश के कई इलाक़ों में पानी की कमी होती जा रही है। भारत में खेती-बाड़ी भी बारिश के पानी पर ज़्यादा निर्भर है। इसके बावजूद पानी के मोल को लोग नहीं समझ रहे हैं। पानी पर्यावरण, स्वास्थ्य, कृषि और व्यापार सहित जीवन में कितना महत्त्वपूर्ण है, इसकी कल्पना वही कर सकता है, जिसके पास पानी की कमी हो। देश के कई हिस्सों में पानी की कमी से हर साल किसानों को करोड़ों रुपये का घाटा होता है। दुनिया में क़रीब 200 करोड़ लोग मानव-मल से दूषित पानी को पीने, नहाने और कपड़े धोने के लिए इस्तेमाल करते हैं। इससे हैजा, पेचिश, टाइफाइड और पोलियो के साथ-साथ पेट और चमड़ी के रोग लगातार बढ़ रहे हैं। भारत में हर साल साफ़ पानी न मिलने की वजह से दो लाख लोगों की मौत हो जाती है। पिछले साल सरकार ने कहा था कि साल 2030 तक भारत की लगभग 60 करोड़ आबादी पानी के संकट का सामना कर सकती है। 17 मार्च, 2022 को लोकसभा में एक सवाल के जवाब में जल शक्ति मंत्रालय की ओर से कहा गया था कि साल 2030 तक पानी की सबसे ज़्यादा दिक़्क़त महानगरों में हो सकती है।
सन् 1952 के मुक़ाबले 2022 तक एक-तिहाई पानी ही रह गया है, जबकि इस दौरान देश की आबादी 36 करोड़ से बढक़र 140 करोड़ के क़रीब पहुँच गयी है। एक रिपोर्ट के अनुसार, कई स्थानों पर ज़मीन में पानी का स्तर हर साल क़रीब एक फीट तक कम हो रहा है। भारत सरकार के जल शक्ति मंत्रालय के अनुसार उद्योग और ऊर्जा क्षेत्र में कुल भू-जल की मांग साल 2025 तक क़रीब 1.5 प्रतिशत ज़्यादा और साल 2050 तक क़रीब 3.1 प्रतिशत ज़्यादा हो जाएगी। पानी के प्रदूषण में भी भारत आगे है। यहाँ का 70 प्रतिशत पानी प्रदूषित है, जो हर साल बढ़ रहा है। हालाँकि जल संकट में अभी भारत काफ़ी दूर खड़ा है। लेकिन लगातार तेज़ी से गिरते भूजल स्तर को लेकर अभी से सावधान होना और इस समस्या से निपटना भारत के लिए काफ़ी ज़रूरी है, ताकि भविष्य में यहाँ पानी की क़िल्लत न हो।
संयुक्त राष्ट्र विश्वविद्यालय के कनाडा स्थित जल पर्यावरण और स्वास्थ्य संस्थान की पिछले साल की रिपोर्ट में कहा गया है कि अफ्रीका में समग्र तौर पर जल सुरक्षा का स्तर काफ़ी कम है। आज दुनिया के क़रीब 17 प्रमुख देश पानी के गम्भीर संकट से जूझ रहे हैं। इन 17 प्रमुख देशों में सऊदी अरब, क़ुवैत, क़तर, यूएई, इजराइल, लेबनान, ईरान, जॉर्डन, लीबिया, इरिट्रिया, सैन मैरिनो, बहरीन, भारत, पाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, ओमान और बोत्सवाना है। यूएन-वाटर ने रोम में अपनी 30वीं बैठक में तय किया था कि भूजल की समस्या से निपटने के प्रयासों में तेज़ी लायी जाएगी।
धरती के क़रीब 70 प्रतिशत हिस्से में पानी है; लेकिन पीने योग्य पानी सिर्फ़ तीन प्रतिशत के क़रीब ही है। इसके अतिरिक्त जितना पानी है, वो पीने योग्य नहीं है। इस पीने योग्य तीन प्रतिशत पानी में लगातार प्रदूषण बढऩा चिन्ता का विषय है। धरती पर मीठे पानी का क़रीब 99 प्रतिशत हिस्सा तरल है। इस पानी में से लोग घरेलू उपयोग में सिर्फ़ 50 प्रतिशत ही लाया जाता है। केंद्रीय जल आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, भारत 91 जलाशय ऐसे हैं जिनमें महज़ 20 फ़ीसदी पानी ही बचा है। पश्चिम और दक्षिण भारत के जलाशयों में पानी पिछले 10 वर्षों के औसत से भी नीचे चला गया है। जलाशयों में पानी की कमी की वजह से देश का क़रीब 42 फ़ीसदी हिस्सा सूखाग्रस्त है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत की क़रीब 5 फ़ीसदी जनसंख्या (7.6 करोड़ लोग) के लिए पीने का पानी उपलब्ध नहीं है और क़रीब 1.4 लाख बच्चे हर साल गंदे पानी की वजह से होने वाली बीमारियों के कारण मर जाते हैं। जल संसाधन मंत्रालय के आँकड़ों के अनुसार, देश के 639 में से 158 ज़िलों के कई हिस्सों में भूजल खारा हो चुका है और उनमें प्रदूषण का स्तर सरकारी सुरक्षा मानकों को पार कर गया है।
दुनिया का सबसे बड़ा भूजल क्षेत्र एशिया-प्रशांत क्षेत्र में है, जिसमें 10 देश शामिल हैं। इन 10 देशों में 8 भारत और उसके निकटवर्ती देश नेपाल, पाकिस्तान, बांग्लादेश, चीन, इंडोनेशिया, ईरान, और तुर्की हैं। लेकिन यह भी सच है कि दुनिया की कुल भूजल निकासी का क़रीब 60 प्रतिशत हिस्सा इन्हीं 10 देशों द्वारा इस्तेमाल में लाया जाता है। चिन्ता की बात यह है कि घटती बारिश और बढ़ते भूजल दोहन के चलते इन देशों में भूजल स्तर गिर रहा है। कम बारिश होने का सबसे बड़ा कारण वनों का लगातार कटान होना है। मीठे पानी के दूषित होने को लेकर दुनिया भर में चिन्ता बनी हुई है और मीठे पानी के महत्त्व और इसके संरक्षण के लिए हर साल 22 मार्च अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विश्व जल दिवस मनाया जाता है। इस साल विश्व जल दिवस 22 मार्च को बुधवार के दिन मनाया जाएगा, जिसका मुख्य उद्देश्य सतत विकास लक्ष्य पाने के लिए साल 2030 तक दुनिया के सभी लोगों के लिए स्वच्छ पानी और स्वच्छता के समर्थन में वैश्विक जल संकट से निपटने के लिए कार्रवाई करने के लिए प्रेरित करना रहेगा।
बड़ी चिन्ता यह भी है कि धरती पर तेज़ी से तालाब, झीलें और नदियाँ सूख रही हैं। पीने योग्य पानी के स्रोतों के इस तरह विलुप्त होने के चलते जंगली जीवों और पक्षियों के जीवन पर संकट मँडरा रहा है। आज पानी का संकट एक बड़ा मुद्दा बन गया है, जिस पर राजनीति और धन संग्रहण की कोशिशें तो होती हैं; लेकिन पीने योग्य पानी के स्रोतों को बचाने, घटते भूजल को वापस बढ़ाने और बढ़ते जल प्रदूषण को कम करने को लेकर कोई ख़ास काम नहीं होता है। बढ़ती जनसंख्या और पीने के पानी के कम होने के मद्देनज़र पूरी दुनिया को तेज़ी से प्रयास करने चाहिए कि पानी की बर्बादी को रोका जा सके। आज के समय में पीने योग्य शुद्ध पानी सबके लिए उपलब्ध कराना कठिन हो चुका है। कई जगहों पर तो पीने के पानी की इतनी क़िल्लत है कि वहाँ पानी को लेकर आये दिन झगड़े होते रहते हैं। अनेक शहरों में ज़मीन का पानी पीना तो दूर नहाने योग्य भी नहीं रहा है।
आइए, इस बार विश्व जल दिवस पर हम सब मिलकर संकल्प लें कि पानी की बर्बादी नहीं करेंगे और न ही पानी को दूषित करेंगे। नालियों से लेकर नदियों तक साफ़-सफ़ाई रखेंगे और उनमें किसी भी प्रकार का कचरा, केमिकल और मल-मूत्र इत्यादि नहीं डालेंगे। अगर इतना संकल्प दुनिया का हर आदमी ले ले, तो आने वाले दो दशकों के भीतर पीने योग्य पानी में बढ़ोतरी हो जाएगी और लोगों को दूषित पानी पीने के लिए मजबूर नहीं होना पड़ेगा। इसके लिए सरकारों को भी मिलकर काम करने की ज़रूरत है। पानी के महत्त्व को सिर्फ़ इतनी-सी बात से समझ लेना चाहिए कि पानी के बिना एक दिन भी जीना मुश्किल है।