सूचनाओं का आदान-प्रदान इंसानों में ही नहीं, बल्कि धरती पर मौज़ूद सभी प्रकार के प्राणियों में होता है। फ़र्क़ यह है कि अन्य प्राणी सिर्फ़ आमने-सामने रहकर ही अपनी ही प्रजाति के दूसरे प्राणियों से अपनी भावनाओं का आदान-प्रदान करने में सफल होते होंगे; लेकिन इसमें वो पूरी तरह सफल होते होंगे, इसमें भी सन्देह है। लेकिन इस आदान-प्रदान के लिए इंसानों के पास कई तरह की सुविधाएँ मौज़ूद हैं, जैसे- बोली, लेखन, इशारा, हावभाव आदि। इन सबमें भाषा सबसे मज़बूत सम्प्रेषण का ज़रिया है। यही वजह है कि इंसान अपनी बात कहीं दूर-दराज़ के इलाक़े में बैठे व्यक्ति को भी पहुँचा सकता है।
इसी व्यवस्था के तहत इंसानों ने दूर बैठे किसी व्यक्ति को सन्देश पहुँचाने के लिए अपने आरम्भ-काल से ही कोई-न-कोई तरीक़ा निकाल रखा है। राजतंत्र के दौर में दूसरे राजाओं के पास दूतों द्वारा सन्देश भेजने की परम्परा रही, जबकि जनता में सन्देश पहुँचाने के लिए ढोलची संदेशवाहक होता था, जो गली-गली घूम-घूमकर ढोल या नगाड़ा पीटकर लोगों में सन्देश दिया करता था।
जब राजतंत्र का धीरे-धीरे अन्त होने लगा, तो डाक व्यवस्था की शुरुआत हुई। हालाँकि यह व्यवस्था पहले जर्मनी में शुरू हुई, फिर भारत में और फिर पूरी दुनिया में। सन् 1990 के दशक में जब इंटरनेट की शुरुआत हुई, तब यह चर्चा शुरू हो गयी थी कि 120 वर्षों से ज़्यादा समय से चली आ रही सूचना संचार की जीवन रेखा बनी डाक व्यवस्था दुनिया से ख़त्म हो जाएगी। हालाँकि पूरी तरह नहीं, तो एक बड़े स्तर तक यह बात बिल्कुल सही साबित हुई। आज जिसके लिए डाक व्यवस्था का शुभारम्भ हुआ यानी सन्देश सम्प्रेषण का काम डाक घरों से 80 फ़ीसदी तक उठ चुका है।
देखने में आया है कि इंटरनेट से केवल डाक सेवा ही ख़त्म नहीं हुई, बल्कि लोगों की भावनाएँ भी मरी हैं। लोगों की लिखने-पढऩे की आदत में बदलाव आया है। लेकिन हो सकता है कि दुनिया में कुछ ऐसे गाँव भी होंगे, जहाँ के कुछ लोग अभी भी चिट्ठी लिखते होंगे और कुछ लोग चिट्ठी के इंतज़ार में रहते होंगे। लेकिन कभी यह डाक सेवा ही एक मात्र ऐसी सेवा थी, जिससे हर इंसान जुड़ा हुआ था।
बता दें अंतरराष्ट्रीय डाक सेवा दिवस 9 अक्टूबर, 1969 को शुरू हुई। वहीं भारतीय डाक दिवस 10 अक्टूबर को मनाया जाता है। इससे ऐसा लगता है, जैसे भारत में डाक व्यवस्था एक दिन बाद शुरू हुई। लेकिन ऐसा नहीं है। भारत में पहला डाक घर इससे भी पहले साल 1774 में वॉरेन हेस्टिंग्स ने कोलकाता (तब कलकत्ता) में खोला था। भारतीय सीमा के बाहर पहला डाक घर दक्षिण गंगोत्री, अंटार्कटिका में साल 1983 में शुरू हुआ।
सन् 1986 में स्पीड पोस्ट की शुरुआत भारत में हुई, जबकि सन् 1980 में भारतीय डाक सेवा ने मनी ऑर्डर की शुरुआत की। हालाँकि भारत में डाक सेवा की स्थापना सन् 1766 में ही लार्ड क्लाइव ने कर दी थी। वहीं 9 अक्टूबर, 1874 को स्विट्जरलैंड की राजधानी बर्न में दुनिया के 22 देशों के बीच एक सन्धि हुई, जिसके बाद यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन का गठन किया गया था। 1 जुलाई, 1876 को भारत यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन की सदस्यता लेने वाला पहला एशियाई देश बना। सन् 1852 में स्टाम्प टिकट की शुरुआत हुई।
इस तरह सन् 2022 में आते-आते इस बार हम भारतीय डाक सेवा का 248वें राष्ट्रीय डाक सेवा दिवस में प्रवेश कर चुके हैं। जबकि विश्व डाक दिवस का यह 148वाँ साल है, यानी भारतीय डाक व्यवस्था दुनिया की डाक व्यवस्था से भी 100 साल पुरानी कही जाए, तो गलत नहीं होगा। हालाँकि भारत से भी पहले सन् 1,600 में जर्मनी की सरकार ने ड्यूश पोस्ट नाम से डाक सेवा की शुरुआत की थी, जिसका मुख्यालय बॉन में आज भी है। इस तरह डाक सेवा शुरू करने का श्रेय जर्मनी को जाता है। लेकिन इससे पहले भी भारत में राजा-महाराजा दूतों के द्वारा लिखित सन्देश भिजवाते थे, जो कि एक प्रकार की डाक सेवा ही थी।
ऐसे में अगर यह कहा जाए कि डाक सेवा का आइडिया भारतीय संस्कृति की देन है, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। जहाँ तक डाक घर स्थापित करने की बात है, तो भारत में इसकी स्थापना के एक साल बाद सन् 1775 में अमेरिका में यूएस मेल नाम से इसकी स्थापना हुई। आज भले ही इंटरनेट ने भारतीय डाक सेवा को बड़ा नुक़सान पहुँचाया है। लेकिन इस व्यवस्था को भारतीय सम्प्रेषण का एक अभिन्न अंग ही कहा जाएगा, क्योंकि आज भी डाकघरों के ज़रिये काफ़ी काम होते हैं। साथ ही समय के साथ-साथ डाकघरों ने अपनी कार्यप्रणाली में काफ़ी बदलाव किया है।
दिलचस्प है कि भारतीय डाक व्यवस्था में पिनकोड का बड़ा महत्त्व है। पिन कोड में पिन का मतलब पोस्टल इंडेक्स नंबर होता है, जिसकी शुरुआत पता आसानी से ढूँढने और समझने के लिए 15 अगस्त, 1972 को केंद्रीय संचार मंत्रालय में एक अतिरिक्त सचिव श्रीराम भिकाजी वेलणकर ने की थी। इससे पहले चिट्ठियों के भटकाव की शिकायतें बहुत रहती थीं। छ: अंकों के पिन कोड ने सही पते पर चिट्ठी, मनी ऑर्डर और दूसरी डाक सेवाओं को पहुँचाने में बड़ी मदद की।
क्या बन्द हो जाएँगे डाकघर?
बहुत-से लोगों के मन में यह सवाल उठ सकता है कि क्या भविष्य में डाक घर बन्द हो जाएँगे? तो इसका जवाब है- नहीं। क्योंकि डाक घर अब केवल चिट्ठी भेजने का काम ही नहीं करते, बल्कि मनी ऑर्डर, रजिस्ट्री, एफडी, सावधि जमा, बीमा, सामान की डिलीवरी, बैंकिंग और आधार आदि में परिवर्तन व सुधार में सहयोग भी करते हैं।
हालाँकि भारतीय डाक घरों को समय के हिसाब से और अधिक आधुनिक होने की आवश्यकता है, जिसके लिए उन्हें अपने काम की गति को और बढ़ाना होगा। इसमें भारत सरकार को डाक घरों की मदद की करनी चाहिए। साथ ही डाक घरों में रिक्त पदों के लिए भरना होगा। डाक घरों की बेकार पड़ी बिल्डिंगों को दोबारा चालू करना होगा। शहरों से लेकर दूर-दराज़ के ग्रामीण इला$कों तक इसे इंटरनेट की मज़बूत सेवा की तरह नये-नये फीचर्स के साथ मज़बूती प्रदान करनी होगी।
मोबाइल से आगे क्या?
सवाल यह है कि कि दिन-रात नयी-नयी खोजों में लगे वैज्ञानिकों के आविष्कार इस दुनिया का बहुत कुछ दे रहे हैं, तो बहुत कुछ छीनकर बर्बाद भी कर रहे हैं। मोबाइल इसमें दोनों तरह की भूमिका निभा रहा है। आज मोबाइल एक ऐसा आवश्यक हथियार बन चुका है, जिसके ब$गैर किसी का भी रहना मुश्किल हो चुका है, तो वहीं वह उपभोक्ता के लिए ही घातक सिद्ध हो रहा है।
अब लोग सोच रहे हैं कि क्या कभी मोबाइल से आगे भी कुछ ऐसा भविष्य में उनके हाथ में होगा, जो इसे भी ख़त्म कर देगा? क्योंकि जब लोगों के पास डाक व्यवस्था नयी-नयी थी, तब किसी ने नहीं सोचा था कि रेडियो, टीवी और टेलीफोन जैसी भी कोई व्यवस्था कभी सामने आएगी। जब लोगों के पास रेडियो, टीवी और टेलीफोन की व्यवस्था थी, तब किसी ने नहीं सोचा था कि लोगों के पास कम्प्यूटर, मोबाइल और इंटरनेट जैसी कोई चीज़ भविष्य में होगी। और आज जब इंटरनेट लोगों के पास है, तो उसकी गति और सुविधा बढ़ाने के लिए 2जी से लेकर 9जी तक का आविष्कार हो चुका है। अब सवाल यह है कि क्या भविष्य में इससे भी आगे की चीज़ इंसान के पास होगी।
कुरियर बनाम डाकघर
आजकल एक होड़ कुरियर और डाकघरों के बीच छिड़ी हुई है। इसमें कोई दो-राय नहीं कि सामान पहुँचाने के मामले में कुरियर सेवा ने डाक सेवा को कहीं पीछे छोड़ रखा है। लेकिन आज भी डाक सेवा पर लोगों का जो भरोसा बना हुआ है, वो कुरियर सेवा के मुक़ाबले कहीं ज़्यादा है। साथ ही कुरियर सेवा डाक सेवा के मुक़ाबले कहीं महँगी है। ऐसे में अगर डाक घर अपनी सामान पहुँचाने की सेवाओं को और मज़बूत तथा तेज़ कर दें, तो डाक घरों की आय में भी वृद्धि होगी, साथ ही उनके पास काम ज़्यादा होगा और वो कुरियर सेवा को मात दे सकेंगे। लेकिन इसके लिए डाक व्यवस्थापकों और सरकार में इच्छा शक्ति होनी बहुत ज़रूरी है।
देखने वाली बात यह है कि आज डाक घरों के पास कई तरह के काम करने की परमीशन हैं, जबकि कुरियर वालों के पास केवल सामान इधर-से-उधर पहुँचाने की ही सुविधा है, फिर भी इस एक काम के दम पर कुरियर सेवा ने पिछले 14-15 वर्षों में जितना पैसा कमाया है, उतना डाक सेवा ने नहीं कमाया है। ऐसे में डाक व्यवस्थापकों और सरकार को इस बारे में सोचना तो चाहिए।