विलुप्त होती जड़ी-बूटियों को संरक्षित करेगा हिमाचल

मंडी ज़िले के भूलाह में राज्य का पहला जैव विविधता पार्क हुआ तैयार

दुनिया भर में भारत की जड़ी-बूटियों की पहचान रही है। देश में एक समय वैद्य जड़ी-बूटियों से ही इलाज कर लेते थे; लेकिन धीरे-धीरे अंतरराष्ट्रीय दवा निर्माता कम्पनियों के दबाव ने ऐसा जाल फैलाया कि अंग्रेजी दवाओं ने देसी और आयुर्वेदिक औषधियों की जगह ले ली। लेकिन हिमाचल प्रदेश सरकार ने जड़ी-बूटियों का महत्त्व समझते हुए इन्हें फिर सही जगह देने की कोशिश की है और प्रदेश का पहला जैव विविधता पार्क तैयार हो गया है।

यह जैव विविधता पार्क देश-विदेश के शोधकर्ताओं, पर्यटकों और हिमालय की विलुप्त होती जड़ी-बूटियों के संरक्षण में अपना योगदान देने के लिए तैयार है। मंडी ज़िले के जंजैहली घाटी के भूलाह (वादी-ए-भूलाह) में एक करोड़ की लागत से स्थापित किया गया प्रदेश का पहला बायोडायवर्सिटी पार्क (जैव विविधता उद्यान) हिमालय की विलुप्त होती जड़ी-बूटियों के संरक्षण के साथ-साथ शोधकर्ताओं व पर्यटकों के लिए भी वरदान साबित होगा।

पार्क में प्रदर्शन के लिए पहाड़ों में विलुप्त हो रही जड़ी-बूटियों की हर्बल नर्सरी तैयार की गयी है। इस नर्सरी में नाग छतरी, धूप, कडू, सर्पगंधा, चिरायता, टैक्स, बर्बरी, चैरा, पठानबेल, पत्थर चटा, भूतकेसी, न्यार, मुश्कवाला, वण, अजवायण, कूठ और वर्रे, संसरपाली, डोरी घास, रतन जोत, अतीश पतीश, वन ककड़ी, शिंगली मिगली, जगली लहसुन, डुंगतली इत्यादि जड़ी-बूटियाँ प्रदर्शित की गयी हैं।

यहाँ देश-विदेश का कोई भी शोधकर्ता इसके बारे में जानकारी प्राप्त कर अपना शोध कार्य कर सकता है। इसके अतिरिक्त हर उस जड़ी बूटी पर भी खोज कार्य किया जा सकेगी, जिनकी अभी तक कोई पहचान नहीं हो पायी है। इस हर्बल नर्सरी में विभिन्न प्रजातियों के लगभग 1,200 पौधे शोधकर्ताओं के लिए उपलब्ध है।  राज्य के पहले इस अनूठे पार्क को पाँच हेक्टेयर यानी 60 बीघा से अधिक भूमि पर तैयार किया गया है। यहाँ शोधकर्ताओं के लिए विभिन्न मूलभूत सुविधाएँ भी जुटायी गयी हैं। भूलाह की सुन्दर वादियों में स्थापित इस पार्क को चारो ओर से बाड़बंदी कर सुरक्षित बनाया गया है। एनएमएचएस प्रोजेक्ट के विभिन्न कार्य लगभग 15 हेक्टेयर भूमि पर किये गये हैं।

पार्क में आने वाली शोधकर्ताओं और पर्यटकों की सुविधा के लिए पार्क में एम्फी थियेटर भी बनाया गया है, जहाँ पहाड़ी क्षेत्रों में उगने वाली जड़ी-बूटियों के बारे में जानकारी हासिल की जा सकेगी। पार्क में देश-विदेश से आने वाले शोधकर्ताओं के लिए रहने खाने की व्यवस्था के लिए दो लॉग हट भी निर्मित किये गये है। इसके अलावा दो लॉग्स हट, वॉटर हार्वेस्टिंग स्ट्रक्चर, इंटरनल टैंक, पाँच किलोवॉट बिजली तैयार करने वाला प्रोजेक्ट, एम्फी थिएटर, पक्षियों के घोंसले, हर्बल नर्सरी, फुट ब्रिज और बिक्री केंद्र तैयार किया गया है।

पर्यटकों के लिए पार्क में दो ट्री-हट भी तैयार किये गये हैं, जहाँ से वे पार्क सहित अन्य रमणीक स्थलों को निहार सकते हैं। इसके अलावा लगभग दो किलोमीटर की दूरी तक नेचर ट्रेल्स बनायी गयी हैं। क़रीब 25 फीट ऊँची और 160 मीटर लम्बी ट्री-वॉक तैयार की गयी है। इसके अलावा सात फुट ब्रिज बनाये गये हैं। पार्क के साथ लगते टैक्सस के जंगल में शोधकर्ताओं के लिए इंटरनल ट्रैक बनाया गया है, जिसमें वे आसानी से घूमकर अपना रिसर्च कार्य कर सकते हैं।

सरकार की इस कोशिश का महत्त्व इसलिए भी ज़्यादा है, क्योंकि प्रदेश की जड़ी-बूटियों को केंद्रीय सूची में शामिल किया जा चुका है। इससे हिमाचल के जनजातीय क्षेत्रों के जंगलों में पायी जाने वाली बेशक़ीमती जड़ी-बूटियाँ औने-पौने दामों पर नहीं बिक सकेंगी। केंद्रीय जनजातीय कार्य मंत्रालय के सूची माँगने के बाद तब हिमाचल ने जंगली लहसुन, सालम पंजा, पतीश, नाग छतरी, कुटकी और कुडी प्रजाति को केंद्रीय सूची में शामिल करने का प्रस्ताव केंद्र को भेजा था। अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में प्रदेश में पैदा होने वाली पतीश का भाव 26,000 रुपये, नाग छतरी का भाव 16,000 रुपये, सालम पंजा का भाव 25,000 रुपये, जंगली लहसुन का भाव 24,000 रुपये, कुटकी और कुडी का भाव 14,000 रुपये प्रति किलो तक है।

इससे पहले हिमाचल की कोई भी जड़ी-बूटी केंद्रीय सूची में शामिल नहीं थी। हिमाचल ने केंद्र को पाँच जड़ी-बूटियों की सूची भेजकर इन्हें केंद्रीय सूची में शामिल करने की माँग उठायी थी। केंद्र इसके एवज़ में जो पैसा देता है, उसे इन्हें सहेजने पर ख़र्च किया जाता है। राज्य की वनस्पति सूची में 1,038 प्रजाति समूह और लगभग 3,400 प्रजातियाँ शामिल हैं। बहुत-सी प्रजातियाँ तो लुप्त होने के कगार पर हैं। अब उन्हें बचाने की कोशिश होगी, जो कि बहुत-ही अच्छी पहल है।

 

“राज्य के पहले जैव विविधता पार्क को वन विभाग ने नेशनल मिशन ऑन हिमालयन स्टडीज (एनएमएचएस) प्रोजेक्ट के तहत बनाया है। इसमें विलुप्त होती जड़ी-बूटियों को संरक्षित करने पर ज़ोर दिया गया है। पार्क को पयर्टन गतिविधियों से जोडऩे के साथ-साथ शोधकर्ताओं के लिए हिमालय में पायी जाने वाली विभिन्न औषधीय जड़ी-बूटियों (हर्बल प्लांट्स) पर शोध करने के नये मौक़े देने के लिए भी तैयार किया गया है, जो विलुप्त होने के कगार पर हैं।’’

जय राम ठाकुर

मुख्यमंत्री, हिमाचल