रूस-यूक्रेन युद्ध 24 फरवरी, 2022 को शुरू हुआ, जब मॉस्को ने यूक्रेन के प्रमुख शहरों बर्डनस्क, चेर्निहिव, खार्किव, ओडेसा, सुमी और राजधानी कीव पर हमला किया। निश्चित ही इस युद्ध ने दुनिया को एक अनिश्चितता में डाल दिया है। यह साफ़ है कि राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने घातक हमले का सामना करने के लिए यूक्रेन की क्षमता को ठीक से नहीं तौला। हालाँकि अमेरिका के नेतृत्व वाले पश्चिम ने यह मानकर दोगुनी ग़लती की, कि वह प्रतिबंधों के दम पर रूस को घुटनों पर ला देगा। यह युद्ध सिर्फ़ हज़ारों यूक्रेनी नागरिकों की मौत, अनगिनत इमारतों के विनाश, ऊर्जा संकट, भोजन की कमी, बर्बाद अर्थव्यवस्था और परमाणु संघर्ष के ख़तरे के कारण पैदा हुआ तनाव लेकर ही आया है। युद्ध ने वैश्विक व्यापार को बाधित कर दिया है, जो अभी भी महामारी के झटके से उबर रहा है। देशों की महत्त्वाकांक्षा के बीच यूक्रेन मौत और तबाही का घर बन गया है।
संयुक्त राष्ट्र गम्भीर स्थिति को असहाय रूप से देख रहा है, क्योंकि कोई भी पक्ष शान्ति की पहल के लिए सहमत नहीं दिखता। युद्ध ने संयुक्त राष्ट्र के ढुलमुलपन को उजागर किया है, क्योंकि वह अब तक गतिरोध को समाप्त करने में विफल रहा है। कई देशों में रूसी व्यवसायों को ब्लैकलिस्ट किया गया है। फिर भी मास्को चीन के साथ आर्थिक सम्बन्धों को मज़बूत करने में सक्षम है। हालाँकि लड़ाई से बीजिंग ने दूरी बनाकर रखी है और उसने अब तक युद्ध में अपने हथियार नहीं भेजे हैं। लेकिन यदि बीजिंग रूस को सैन्य सहायता भेजता है, तो इसमें युद्ध का दृश्य बदलने की क्षमता है। पुतिन ने पहले से ही उत्तर कोरिया और ईरान के अंतरराष्ट्रीय सम्बन्धों के साथ सैन्य कड़ी को मज़बूत किया है और इससे अफ्रीका और मध्य पूर्व में प्रभाव बना हुआ है। यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की का यह कहना कि ‘हर कल लडऩे के लायक है’ यह स्पष्ट करता है कि आक्रमण के बावजूद उनका देश झुकने के लिए तैयार नहीं है। जेलेंस्की ने कहा है कि देशवासियों ने दर्द, दु:ख, विश्वास और एकता के एक वर्ष के दौरान ख़ुद को अजेय साबित किया है और युद्ध की शुरुआत के बाद से हम सोये नहीं हैं।’ उन्होंने वास्तव में 2023 को रूस पर यूक्रेन की जीत का वर्ष घोषित किया है।
भारत, जो शान्ति की नीति का पक्षधर है; उसे यह तय करना होगा कि वह एक मूकदर्शक भर रहेगा या किसी संघर्ष विराम के लिए उसे एक प्रभावी हस्तक्षेप करना है। राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के आक्रमण के आदेश के एक साल बाद संयुक्त राष्ट्र महासभा में 141 देशों ने यूक्रेन में व्यापक, न्यायपूर्ण और स्थायी शान्ति के लिए प्रस्ताव का समर्थन किया, जबकि भारत सहित 32 देशों ने मतदान से परहेज़ किया। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रभाव को मान्यता देने वाली दुनिया के साथ भारत शान्ति बनाने में एक सक्रिय भूमिका निभा सकता है।
ऐसे समय में जब दुनिया को दो भागों में विभाजित होती दिख रही है, ‘तहलका’ एसआईटी की फ़र्ज़ी डॉक्टर (भाग-2) रिपोर्ट यह ख़ुलासा करती है कि कैसे देश में अस्पताल उन विदेशी चिकित्सा स्नातकों को आँखें मूँदकर नौकरी पर रखते हैं, जिन्होंने अनिवार्य विदेशी चिकित्सा स्नातक की परीक्षा (एफएमजीई) तक पास नहीं की होती। इस रिपोर्ट के पहले भाग में पिछले अंक में ‘तहलका’ ने ख़ुलासा किया था कि रूस, यूक्रेन, चीन, फिलीपींस, बांग्लादेश, पाकिस्तान और नेपाल में विदेशी विश्वविद्यालयों से डिग्री लेने वाले कितने ही फ़र्ज़ी डॉक्टरों ने भारत में अवैध रूप से मेडिकल प्रैक्टिस शुरू कर हज़ारों लोगों के जीवन को ख़तरे में डाल दिया है।