सुप्रीम कोर्ट ने वीरवार को वरिष्ठ पत्रकार विनोद दुआ पर देशद्रोह का केस रद्द कर दिया। विनोद दुआ पर अपने यूट्यूब चैनल में मोदी सरकार पर कुछ टिप्पणियों के लिए हिमाचल प्रदेश में भाजपा नेता ने देशद्रोह का मुकदमा दर्ज कराया था। उन्होंने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी, जिस पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने प्राथमिकी और कार्यवाही को रद्द कर दिया। 6 अक्टूबर 2020 में जस्टिस ललित और जस्टिस सरन की पीठ ने विनोद दुआ, हिमाचल सरकार और शिकायतकर्ता के तर्क सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था।
सर्वोच्च अदालत ने 1962 के केदारनाथ बनाम बिहार राज्य केस का हवाला देकर दुआ को दोषमुक्त करते हुए कहा कि केदारनाथ सिंह के फैसले के अनुसार हर पत्रकार की रक्षा की जाएगी। यानी पत्रकारों को संरक्षण मिलता रहेगा।
दरअसल, 1962 में सुप्रीम कोर्ट ने केदारनाथ बनाम बिहार राज्य के वाद में महत्वपूर्ण व्यवस्था दी थी। अदालत ने कहा था कि सरकार की आलोचना या फिर प्रशासन पर कमेंट करने से राजद्रोह का मुकदमा नहीं बनता। राजद्रोह का केस तभी बनेगा जब कोई भी वक्तव्य ऐसा हो जिसमें हिंसा फैलाने की मंशा हो या फिर हिंसा बढ़ाने के कारक हों।
देशद्रोह के मुकदमे पर काफी समय से विवाद चल रहा है। अभी हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने आंध्र को दो तेलुगु चैनल के खिलाफ कार्रवाई पर रोक लगाते हुए उनके खिलाफ देशद्रोह का केस रद्द किया था। इतना ही नहीं, सर्वोच्च अदालत ने कहा था कि अब समय आ गया है कि देशद्रोह की सीमाएं तय की जाएं कि यह कहां पर लगेगा और कहां नहीं लगेगा।
पांच साल पहले सुप्रीम कोर्ट में इसको लेकर एक अर्जी भी दाखिल की गई थी और राजद्रोह कानून पर सवाल उठाया गया था। तब सुप्रीम कोर्ट में आरोप लगाया गया था कि राजद्रोह से संबंधित कानून का सरकार दुरुपयोग कर रही है। याचिकाकर्ता ने तब कहा था कि संवैधानिक पीठ ने राजद्रोह मामले में व्यवस्था दे रखी है बावजूद इसके कानून का दुरुपयोग हो रहा है। सुप्रीम कोर्ट में कॉमनकॉज की ओर से दाखिल अर्जी में कहा गया था कि सुप्रीम कोर्ट ने 1962 ने केदारनाथ बनाम बिहार राज्य के मामले में जो व्यवस्था दे रखी है उसे पालन किया जाना चाहिए और इसको लेकर सरकार को निर्देश दिया जाना चाहिए।
पूर्व जस्टिस लोकुर ने भी जताई थी चिंता
14 सितंबर 2020 को सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस मदन बी लोकुर ने कहा था कि विचार अभिव्यक्ति की आजादी पर रोक लगाने के लिए देशद्रोह जैसे कानून का इस्तेमाल किया जा रहा है जो चिंता का विषय है। फ्रीडम ऑफ स्पीच एंड ज्यूडिशियरी विषय पर आयोजित कार्यक्रम में लोकुर ने ये बात कही थी। विचार अभिव्यक्ति के मामले में पत्रकारों को जेल में डालने के मामले का हवाला दिया था और कहा था कि विचार अभिव्यक्ति के मामले में अनुमान लगाया जा रहा है और गलत संदर्भ में देखा जा रहा है, जो गंभीर चिंता का विषय है।
भाजपा नेता ने दुआ पर ये आरोप लगाए थे
शिमला में भाजपा नेता अजय श्याम की ओर से कराई गई एफआईआर में आरोप लगाया गया था कि ‘विनोद दुआ शो’ के दौरान पत्रकार ने जो टिप्पणी की थीं, वो सांप्रदायिक नफरत फैलाने और शांति भंग कर सकती थीं। दुआ का ये शो 30 मार्च 2020 को स्ट्रीम हुआ था। विनोद दुआ के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 124A (देशद्रोह या राजद्रोह), धारा 268 (सार्वजनिक उपद्रव), धारा 501 (अपमानजनक चीजें छापना) और धारा 505 (सार्वजनिक शरारत करने का इरादा रखने) के आरोपों में मुकदमा दर्जकिया यगा था। दुआ पर आपदा प्रबंधन कानून के तहत भ्रामक जानकारी और झूठे दावे करने के भी आरोप लगे थे।
मामले में दिल्ली पुलिस ने भी इस वीडियो के लिए विनोद दुआ के खिलाफ 4 जून को शिकायत दर्ज की थी। हालांकि, इस एफआईआर पर दिल्ली हाई कोर्ट ने 10 जून को रोक लगा दी थी।